श्रद्धांजलि (भाग 7) – बीना शुक्ला अवस्थी: Moral stories in hindi

आखिर वह दिन आ गया जिसकी वरदान से अधिक सुकन्या को प्रतीक्षा थी। सुमन जी को समझाकर सुकन्या अपने फ्लैट में आ गई लेकिन आने के पहले अपनी योजना को साकार रूप देने के लिये कमरे में इस तरह छुपाकर दो आटोमेटिक ऐसे कैमरे रख दिये जो निर्धारित समय के बाद बिना छुये या बटन दबाये काम करने लगते थे। बेडरूम का सारा दृश्य अपने आप उन कैमरों में कैद हो सकता था।

वरदान का दिन भर खुशी के कारण काम में मन नहीं लग रहा था। रुद्रा से उसने सुबह ही कह दिया था कि वह रात को घर नहीं आ पायेगा क्योंकि उसे काम से बाहर जाना है, कल उधर से ही आफिस चला जायेगा।

शाम को जब वरदान बड़ा सा उपहार लेकर सुकन्या के फ्लैट पर पहुॅचा तो सुकन्या ने मृदु मुस्कान से उसका स्वागत करते हुये कहा – ” मेरे घर में पैर रखने वाले पहले अतिथि का बहुत बहुत स्वागत है।” वरदान ने उसे हॅसकर बॉहों में भर लिया।

” इसमें क्या है?” सुकन्या ने उपहार लेते हुये कहा।

” अन्दर चलकर देखना।”

वरदान ने स्वयं अपने हाथों से उपहार का डिब्बा खोलकर सुकन्या को दिखाया। हीरों के हार का पूरा सेट देखकर उसने ऑखें बन्द कर ली और मन ही मन कहा – ” मुझे शक्ति दे नीलू। मुझे आशीर्वाद दे आज की सफलता के लिये।”

” क्या बात है, पसन्द नहीं आया क्या?”

” बहुत सुन्दर है लेकिन मैंने तुम्हें मना किया था कि मुझे कुछ नहीं चाहिये। तुम इसे ले जाकर रुद्रा जी को दे देना।” सुकन्या जानती थी कि जितना वह मना करेगी उतना ही वरदान पर जुनून सवार होता जायेगा। वह अधिक से अधिक उस पर लुटाता जायेगा।

” यह तो तुम्हारे गृह प्रवेश का उपहार है, इसके लिये कैसे मना कर  सकती हो तुम? “

बहुत मुश्किल से सुकन्या उपहार लेने के लिये मानी तो वरदान खुश हो गया फिर वरदान ने अपने हाथों से हार सुकन्या को पहनाकर प्यार से उसे बॉहों में भरकर गर्दन पर चूम लिया। सुकन्या ने प्यार से उसे हटाया और हँसते हुये किचन में चली गई। किचन में आकर उसने अपने क्रोध और ऑसुओं पर नियंत्रण किया।

फिर कुछ देर बाद नाश्ता और काफी ले आई। दोनों ने नाश्ता किया और बातें करने लगे।

रात गहराने लगी तो सुकन्या “अभी आती हूॅ ” कहकर अंदर चली गई और जब लौटी तो ट्रे को देखकर वरदान का मन खुश हो गया। उसके मनपसंद ब्राण्ड की शराब सामने थी। वरदान ने सुकन्या की ओर देखा – ” इतनी समझदार पत्नियॉ क्यों नहीं होती?”

सुकन्या का चेहरा उतर गया – ” मैंने तो आज की रात यादगार बनाने के लिये तुम्हें बुलाया था लेकिन अगर तुम्हें रुद्रा जी की याद आ रही है तो तुम इसी वक्त जा सकते हो।”

” तुम सामने हो तो किसी की याद कैसे आ सकती है? ” वरदान ने उसे गोद में खींच लिया। वह उतावला हो रहा था लेकिन सुकन्या अलग बैठकर पैग बनाने लगी – ” पूरी रात पड़ी है, जरा सुरूर तो आने दो।”

वरदान का पैग बनाने के बाद जब उसने अपना पेग बनाया तो वरदान दंग रह गया – ” तुम तो पीती नहीं हो।” लेकिन सुकन्या ने पैग उठाकर कहा – ” आज की यादगार शाम के नाम।”

वरदान बेहद खुश हुआ – ” तुम बहुत समझदार हो।” वैसे उसने वरदान का साथ देने के लिये बियर पीना तो पहले ही शुरू कर दिया था लेकिन शराब आज पहली बार पी रही थी।

उसका लक्ष्य उसके सामने था, उसके लिये वह कुछ भी करने को तैयार थी। अपने गिलास में थोड़ी सी डालकर वह पूरा गिलास पानी और सोडा से भर लेती थी जबकि वरदान को अधिक से अधिक पिलाती जा रही थी और खुद नशे में होने का नाटक करती जिससे वरदान आगे बढ़े और उत्तेजित हो।

बहुत थोड़ा सा खाना खाया गया फिर सुकन्या ने उसे बेडरूम में भेज दिया – ” तुम चलो, मैं यह सब किचन में रखकर आती हूॅ।”

थोड़ी देर बाद जब वह बेडरूम में गई तो वरदान बेसुध पड़ा था। उसने कैमरों में निर्धारित समय लगा दिया। इसके बाद जैसे ही कैमरे अपना काम करने लगे। उसने अपने और वरदान की कई निवस्त्र तस्वीरें खींची। तस्वीरें कुछ इस तरह थीं कि वरदान का चेहरा तो स्पष्ट था लेकिन सुकन्या का चेहरा वरदान के सीने में छुपा हुआ दिख रहा था। सुकन्या के कपड़े और शरीर स्पष्ट दिख रहा था ।तस्वीरें देखकर कोई भी कह सकता था कि यह रत क्रिया में मग्न जोड़े की तस्वीरें हैं।

अपना काम हो जाने के बाद सुकन्या ने कैमरे बंद करके रख दिये और अस्त व्यस्त कपड़े में आकर वरदान के बगल में आकर लेट गई। आज उसे बहुत दिन बाद अच्छी नींद आई थी।

सुबह वरदान उठा तो उसका सिर दर्द कर रहा था, कल रात का उसे कुछ याद नहीं था। बगल में अस्त व्यस्त सुकन्या गहरी नींद में सो रही थी।

वरदान उठकर बाथरूम में गया। वाश बेसिन में अच्छे से मुॅह धोकर तौलिये से हाथ और मुॅह पोंछते हुये जब दुबारा बेडरूम में आया तो सुकन्या को सोते हुये देखकर मुस्कुरा दिया। आखिर उसने सुकन्या को पा ही लिया।

सुकन्या को उठाया तो उसने वरदान का हाथ पकड़कर फिर उसे बिस्तर पर खींच लिया – ” सो जाओ, बहुत रात है।”

” रात नहीं मैडम, नौ बज गये हैं। आफिस चलना है हमें।”

” मैं तो आफिस जाने की स्थिति में ही नहीं हूॅ। तुम भी मत जाओ और सो जाओ।”

वरदान ने उसके कपोल थपथपा दिये – ” तुम आराम करो, मैं चला जाता हूॅ।”

” वादा करो कि शाम को  फिर आओगे?”

” आज तो घर जाना ही पड़ेगा। रुद्रा से एक दिन के लिये कहा था उसे शक नहीं होना चाहिये।

सुकन्या ने उठकर उसके गले में बॉहें डाल दी – ” मन नहीं कर रहा तुम्हें छोड़ने का।”

” मन तो मेरा भी नहीं कर रहा जाने का लेकिन मजबूरी है।” वरदान के अधर सुकन्या के अधरों से मिल गये। सुकन्या ने कल उसे जो कपड़े उपहार में दिये थे, आज उन्हीं को पहनकर वरदान आफिस गया।

दोनों खुश थे। वरदान अपनी जीत पर और सुकन्या अपनी जीत पर मुस्कराती हुई चुपचाप पड़ी रही। उसकी योजना का प्रथम चरण सकुशल पूरा हो चुका था।

वह जानती थी कि अब वरदान इस भ्रम में रहेगा कि उसने सुकन्या का एक बार भोग कर लिया तो अब हमेशा ही कर सकेगा। यही भ्रम उसे बाॅधे रहेगा लेकिन अभी तो योजना का प्रथम चरण ही पूरा हुआ था।

फ्लैट खरीदने के बाद वरदान रोज सुकन्या को छोड़ने के बहाने उसके घर जाने लगा सुकन्या उसे कभी काॅफी तो कभी खाने के लिये रोक लेती लेकिन जब कभी वरदान आगे बढ़ने का प्रयत्न करता, वह प्यार से रोंक देती – ” अभी तुम्हें घर जाना है ना।”

अक्सर वरदान देर से घर पहुॅचने लगा, रूद्रा कुछ पूॅछती तो काम का बहाना बना देता। अक्सर वरदान घर आकर खाना भी नहीं खाता था । उसने रुद्रा से कह दिया – ” तुम खाना खाकर सो जाया करो। हमारी मीटिंग में अक्सर डिनर भी होता है।”

” अचानक यह कैसा काम हो गया है तुम्हारा कि तुम्हारे पास मेरे और बच्चों के लिये जरा भी समय नहीं है। तुम्हें पता भी है कि बच्चे तुम्हें कितना याद करते हैं।”

” पता क्यो नहीं है? यह सब तुम्हारे और उन्हीं के लिये तो कर रहा हूॅ।” वरदान रुद्रा को बहला देता और रुद्रा चुप हो जाती।

जब वरदान ने सुकन्या को रुद्रा की यह बात बताई तो उसने वरदान को समझाया कि वह छुट्टी का पूरा दिन अपने परिवार के साथ बिताये जिससे रुद्रा को कोई शक न हो। वरदान मान गया और सुकन्या पूरा दिन नीलिमा के घर में बिताती लेकिन सुकन्या कभी मृत्युंजय से बात नहीं करती थी जब वह आता था तो सुकन्या जाती ही नहीं थी। सुकन्या के कहने से सुमन जी भी मृत्युंजय की नौकरी लगने के बाद भी मृत्युंजय के साथ जाने के लिये तैयार नहीं हुईं – ” मेरे लिये उसने घर, माॅ – बाप पढ़ाई सब छोड़ दी है। मैं उसे छोड़कर कैसे जा सकती हूॅ? “

” मम्मी , वो आपके साथ रहती कहाॅ है? “

” तो क्या हुआ, मेरा ख्याल तो पूरा रखती है। दिन में दो बार फोन करती है। जब मौका मिलता है, भागी चली आती है।” मृत्युंजय हारकर अपनी नई नौकरी पर चला गया।

एक बार वह नीलिमा के घर से लौट रही थी तो उसे मेट्रो  में एक लड़की मिली, उसने सुकन्या से उसकी कम्पनी का नाम लेकर पूॅछा कि क्या वह उस कम्पनी में काम करती है?”

” हाॅ, आपको कैसे पता चला?”

” मैंने आपको कई बार मि० आहूजा के साथ देखा है। कभी वो मेरे बॉस हुआ करते थे।”

” तो आपने नौकरी क्यों छोड़ दी?”

” क्योंकि मि० आहूजा की शर्तों पर मैं समझौता नहीं कर पाई।” उस लड़की के चेहरे पर व्यंग्य भरी मुस्कुराहट थी – ” लेकिन लगता है कि तुमने उनकी शर्तों से समझौता कर लिया है, तभी तो बॉस शापिंग मॉल के ज्वैलरी शो रूमों में तुम्हें लेकर जाने लगे हैं।”

” क्या मतलब है तुम्हारा?”

” यह मेरा मोबाइल नम्बर है,‌जब रोने के लिये कंधे की जरूरत हो तो आ जाना।”

सुकन्या को लगा कि जैसे ईश्वर भी उसकी मदद करना चाहता है। यह लड़की रजनी भी उसकी योजना में काम आ सकती है।

सुकन्या ने वरदान की ऐसी तस्वीरें खींची थी कि उसे चरित्र हीन सिद्ध कर सके लेकिन नीलिमा के साथ किया गया उसका अपना कृत्य उसी के मुॅह  स्वीकार करवाना था उसे।

इस बार जब वरदान टूर पर जाने लगा तो सुकन्या भी तैयार हो गई – ” यह प्यार भी कितना मजबूर कर देता है व्यक्ति को। पहले जब तुम मुझे टूर पर ले जाने के लिये कहते थे तो जानते हो मैं क्यों तुम्हें मना कर देती थी?”

” क्यों?” वरदान के अधरों पर मुस्कराहट थी।

” क्योंकि मैं डरती थी कि कहीं तुम मेरे साथ कुछ गलत हरकत न कर बैठो।”

” तो अब क्या हुआ? वह डर अब कहाॅ चला गया?”

” अब बचा ही क्या है मेरे पास जिसके लिये तुमसे डरूॅ? अब तो मैं अपना सब कुछ तुम्हें दे चुकी हूॅ।”

” अच्छा!” वरदान ने बनावटी आश्चर्य प्रकट किया – “क्या सचमुच? मुझे तो कुछ याद नहीं। नशे में क्या पता क्या हुआ, मजा तो आया ही नहीं।”

” ठीक है, जब तुम्हें कुछ याद ही नहीं है तो मैं जा रही हूॅ” सुकन्या ने रूठने का अभिनय किया – ” एक लड़की तुम्हारे प्यार और विश्वास में अपने जीवन का कीमती मोती, अपना सर्वस्व तुम्हें सौंप देती है और तुम केवल एक शब्द कहकर सब कुछ नकार देते हो। तुम्हारी नजर में मेरी कोई कीमत ही नहीं है।” सुकन्या सिसकने लगी।

” अरे, रोओ मत” वरदान परेशान हो गया – ” मै तो मजाक कर रहा था।”

” मेरा सर्वस्व समर्पण तुम्हारे लिये मजाक है?” बड़ी मुश्किल से वरदान उसे मना पाया।

टूर पर वरदान होटल में एक ही कमरा लेना चाहता था लेकिन सुकन्या ने सावधानी के तौर पर दो कमरे लेने को कहा। दिन भर का कार्य समाप्त हो जाने के बाद वो दोनों फ्रेश होने के लिये अपने अपने कमरों में आ गये। आज सुकन्या को अपनी योजना का दूसरा चरण पूरा करना था। नहाने और फ्रेश होने के बाद वरदान सुकन्या के कमरे में आ गया।

सुकन्या जानती थी कि वरदान को खाना खाने के पहले शराब की आदत पड़ गई है, इस बात के लिये कई बार रुद्रा से बहस भी हुई लेकिन उस पर कोई फर्क नहीं पड़ता था।

” आज तो हमारी रात बहुत खूबसूरत रहेगी इसलिये खाना जल्दी मॅगा लेना जिससे हम पूरी रात ऐश कर सकें।”

” हॉ, लेकिन तुम्हें तो खाने के पहले कुछ और भी चाहिये।”

” पहले वही मॅगा लो, तुम्हें भी तो चाहिये होगा।” वरदान हॅस पड़ा।

” मेरी आदत तो तुमने खराब कर दी है, वरना मुझे तो इसकी महक से नफरत थी।”

” चलो,मेरी संगत में तुमने एक अच्छी आदत सीख ली है।”

सुकन्या उठ गई, फ्रिज से वरदान की पसंद का ब्राण्ड लाकर मेज पर रख दिया। साथ में सोडा, पानी, बरफ और भी बहुत कुछ।

जब वरदान नशे में पूरी तरह आ गया तब सुकन्या ने अपने मोबाइल का रिकार्ड चालू कर दिया – ” मुझसे पहले तुम्हारी सेकेट्री कोई  नीलिमा नाम की लड़की थी। आफिस में लोग बता रहे थे कि उसे बिना किसी कारण के नौकरी से निकाल दिया गया था।”

” हॉ, लेकिन उसे बिना कारण नहीं निकाला गया था। वह लड़की सेकेट्री और व्यक्तिगत सहायक का मतलब ही नहीं जानती थी। कई बार सीधे रास्ते से समझाने की कोशिश की लेकिन उस पर तो सती सावित्री बनने का जुनून सवार था।”

” तुम तो बहुत शानदार आदमी हो। सहायता करने वाले, उदार , दयालु और खुले हाथों से देने वाले – ऐसे बॉस तो नसीब वालों को ही मिलते हैं। तुम्हें तो हर लड़की पाना चाहेगी। मैं तो ईश्वर की बहुत कृतज्ञ हूॅ कि मुझे तुम मिले।” सुकन्या वरदान के बगल में बैठी थी और वरदान के एक हाथ में गिलास और दूसरा हाथ सुकन्या के कंधे पर था।

” हर लड़की तुम्हारे जैसी समझदार नहीं होती। मुझे पहली बार तुम जैसी सेकेट्री मिली है, अब मैं तुम्हें कहीं नहीं जाने दूॅगा।”

” मैं तो नहीं जाऊॅगी लेकिन कहीं तुमने मुझे नीलिमा की तरह निकाल दिया तो क्या करूॅगी मैं?”

” तुम तो बहुत अच्छी हो, तुम्हें कैसे निकाल सकता हूॅ? लेकिन तुम्हें आज नीलिमा की बात कहाॅ से याद आ गई? तुम्हारा उसका क्या लेना-देना?”

” कुछ नहीं। मेरे लिये तुमसे बढ़कर कुछ नहीं है लेकिन लोग तुम्हारे बारे में झूठी अफ़वाहें फैलाते हैं तो बहुत बुरा लगता है। मैंने सुना है कि नीलिमा गर्भवती थी इसलिये आत्महत्या की थी और उसका संबंध तुमसे जोड़ा जाता है।”

” तुम किसी की बात पर ध्यान मत दिया करो। इतने कम समय में तुमने इतनी उन्नति की और बॉस के करीब आ गई हो इसलिये सभी तुमसे ईर्ष्या करते हैं। नीलिमा ने नौकरी से जाने के बाद आत्महत्या की थी, मेरा उससे कोई लेना-देना नहीं था। उसने मुझसे कहा था कि वह नौकरी नहीं करना चाहती तो मैंने उसे तीन महीने का अतिरिक्त वेतन भी दिलवा दिया था।”

” निश्चित ही बेवकूफ होगी वो जो जिन्दगी का मतलब नहीं समझती थी। ईश्वर ने नारी और पुरुष को एक दैहिक आवश्यकता देकर भेजा है तो उसकी पूर्ति गलत कहॉ है? तुमने उसे समझाया नहीं कि खोखली सड़ी हुई मान्यताओं को ढ़ोते रहने से कुछ नहीं मिलता, बल्कि जीवन बरबाद ही होता है। तुम्हारी तो बातों में जादू है, इतने लोगों को अपनी बातों से प्रभावित करने वाले तुम एक लड़की को समझा नहीं पाये, हार मान ली, मुझे तो विश्वास नहीं होता।”

सुकन्या ने वरदान के शराब में भीगे होंठ चूम लिये तो  खुशी और शराब के दोहरे नशे में वह सब कुछ कहता चला गया, जिसके लिये सुकन्या ने अपना सब कुछ दाॅव पर लगा दिया था, जिसके लिये वह इतने दिन से वरदान की घिनौनी हरकतें सहन कर रही थी।

” समझ तो वह भी गई थी लेकिन उसे समझाने के लिये मुझे टेढ़ा रास्ता चुनना पड़ा था।” शायद वरदान को शराब से अधिक सुकन्या के समक्ष अपनी शेखी दिखाने का नशा चढ़ गया था। शायद वह सुकन्या को बताना चाहता था कि यदि वह सीधे रास्ते से राजी न हुई होती तो उसे दूसरे रास्ते इस्तेमाल करना अच्छी तरह आता है।

वरदान सब कुछ कहता चला गया कि कैसे नये साल की पार्टी वाले दिन उसने अपने दोस्त संजय सक्सेना से फोन पर सब कुछ समझा दिया और चाय में मिली बेहोशी की दवा के कारण अचेत नीलिमा से जब वरदान ने दुष्कर्म किया तो संजय ने तस्वीरें खींच ली और जब संजय ने अपनी प्यास बुझाई तो वरदान ने। उसके बाद उन तस्वीरों के कारण नीलिमा उसके और संजय की कामेच्छा पूर्ति की कठपुतली बन गई। वो और संजय जब चाहते नीलिमा को आना पड़ता।

सुकन्या का खून खौल रहा था । उसका मन कर रहा था कि या तो वरदान का गला दबा दे या शराब में जहर मिला कर दे दे। सुकन्या ने अपनी भावनाओं पर नियंत्रण किया, अभी उसे और भी बहुत कुछ जानना है, और भी बहुत कुछ कहलाना है।

उसने वरदान का सिर अपनी गोद में रख लिया – ” वरदान, तुम इतने खतरनाक लगते तो नहीं हो। क्या इसी कारण उसने आत्महत्या की थी? क्या गर्भवती वाली बात सिर्फ अफवाह है?”

” नहीं, अफवाह नहीं है। वह सचमुच एक दिन पेट में बच्चा लेकर मेरे सामने आकर खड़ी हो गई थी कि मुझसे शादी करो। बेवकूफ आजकल की लड़की होकर नहीं जानती थी कि सतर्कता कैसे रखी जाती है? तुरन्त नौकरी से हटाकर बाहर फेंक दिया। अपनी गलती भुगते जाकर, मुझसे क्या लेना-देना था? मरे या जिये।”

” उसके बाद उसने कुछ नहीं किया?”

” डार्लिंग, क्या करती, अपनी ही जान दे दी , मेरा क्या गया?” वरदान ने उसकी गोद में लेटे लेटे सुकन्या के गले में बॉहें डालकर उसे चूम लिया – ” उसके बाद मुझे इतनी समझदार, इतनी प्यार करने वाली तुम मिल गई जिसने सेकेट्री और व्यक्तिगत सहायक का मतलब समझा। सच सुकन्या तुमने मुझे जो सुख दिया है वह तो मैंने कभी अपनी पत्नी से भी नहीं पाया है।”

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श्रद्धांजलि (भाग 8 ) – बीना शुक्ला अवस्थी: Moral stories in hindi

बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर

1 thought on “श्रद्धांजलि (भाग 7) – बीना शुक्ला अवस्थी: Moral stories in hindi”

  1. Bahut achhi kahaani par rudraa ke lie bahut buraa lagaa vo b to apnaa parivaar padhaai sab chhod kar aai t vardaan ke lie… Nalayak insaan……

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