शिक्षा ही धन है – विभा गुप्ता : Moral Stories in Hindi

     ” कामिनी…ज़रा ठंडे दिमाग से सोचो…देवर जी तो अब रहे नहीं…तुम अकेली औरत..छोटी-सी बच्ची को लेकर कहाँ- कहाँ भटकोगी…,अपनी ज़िद छोड़ दो और अपने जेठ की बात मानकर आराम से यहाँ रहो..।” देविका अपनी देवरानी को समझाते हुए बोली तो कामिनी ने उन्हें घूरकर देखा…फिर बोली,” जीजी…मैंने अपनी बेटी के भविष्य के बारे में सही सोचा है और वही मेरा #आखिरी फ़ैसला है…।” कहकर वो अपने घर में चली गई।

      पलंग पर रखे कपड़ों को वो अपने ट्राॅलीबैग में रखने लगी तभी उसकी आठ साल की बेटी अनन्या उसका हाथ पकड़कर पूछने लगी,” मम्मी..तुम पैकिंग क्यों कर रही हो..हम लोग कहीं जा रहें हैं क्या…स्कूल खुलने तक आ जायेंगे ना…।”

   ” हाँ बेटी..आ जायेंगे।” कहते हुए कामिनी ने अनन्या को अपने सीने-से लगा लिया और बोली,” जाकर अपनी किताबें तो ले आ…।” 

     ” ओके मम्मा…।” कहकर अनन्या कमरे से बाहर निकल गई।कामिनी ने दीवार पर टँगी अपने पति की तस्वीर को धीरे-से उतारा और उसे अपने आँचल से पोंछकर निहारने लगी तो बरबस ही उसकी आँखें भर आईं।कल तक तो सब ठीक था..फिर अचानक…।

      कामिनी की माँ जमुना देवी सम्पन्न परिवार से ताल्लुक रखतीं थीं।उनका मानना था कि बेटी पढ़-लिखकर क्या करेगी…जैसे दहेज़ देकर मेरी शादी हुई है..वैसे ही हम अपनी बेटी का भी विवाह कर देंगे।इसीलिये आठवीं के बाद जब कामिनी ने अपने पिता से कहा कि मोटी-मोटी किताबें मुझसे पढ़ी नहीं जाती…मैं स्कूल नहीं जाऊँगी…तब उसके पिता समझाने लगे कि तुम्हारी सहेलियाँ भी तो अपनी पढ़ाई पूरी कर रहीं हैं…तो तुम्हें भी अपनी पढ़ाई पूरी…। 

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   ” छोड़िये भी…कौन सा इसे नौकरी करना है।इतना दहेज़ देंगे कि सात पुश्त बैठकर खायेगें..जा बेटी..अपनी सहेलियों के साथ खेलने जा..।” माँ के इतना भर कह देने के बाद उसने न तो फिर किताब खोली और न ही स्कूल का मुख देखा।दिन भर वह सहेलियों के साथ खेलती-बातें करती रहती थी।कभी सिलाई-बुनाई कर लेती तो कभी रसोई में जाकर अपनी माँ का हाथ बँटा देती।

     देखते-देखते कामिनी अठारह की हो गई तब उसके माता-पिता उसके लिये सुयोग्य वर तलाश करने लगे।उन्हीं में से एक परिवार उन्हें पसंद आ गया।दो वर्ष पहले ही माता-पिता का देहांत हो गया था..अब केवल दो भाई ही थें..।लड़का कमल बैंक में नौकरी करता था।एक दिन वो अपने बड़े भाई विमल के साथ आकर कामिनी को देख गया।

जमुना जी ने विमल से स्पष्ट कह दिया कि मेरी बेटी आठवीं तक ही पढ़ी है लेकिन घर के सभी कामों में बहुत होशियार है।दहेज़ आपकी सोच से ज़्यादा ही देंगे..फिर भी कोई आपत्ति हो तो अभी बता दीजिए।तब विमल हँसते हुए बोले,” हमें बहू से नौकरी थोड़े ही करवानी है..बस अपना घर-पति संभाल ले..।” बस पंद्रह दिनों के बाद ही कमल और कामिनी का लगन हो गया।

      विवाह के सप्ताह भर बाद की बात है..कमल अपने शेल्फ़ से एक नाॅवेल निकालकर कामिनी को देते हुए बोले,” इसे पढ़ना..टैगोर की बेस्ट नाॅवेल है।” उस वक्त कामिनी कुछ नहीं बोली।शाम को बैंक से आने के बाद कमल ने पूछा,” कामिनी…नाॅवेल कैसी लगी?” तब कामिनी हँसते हुए बोली,” इतनी मोटी किताब कौन पढ़ता है जी..किसी तरह से हमने आठवीं तक पढ़ ली..वही बहुत है।” सुनकर कमल गुस्से- से चिल्लाया,” आठवीं! तो तुमने दसवीं की परीक्षा भी नहीं दी है।”

   ” नहीं जी…।आपके भईया तो जानते हैं।उन्होंने कहा कि हमें…।” कमल ने कामिनी की बात नहीं सुनी।वो दनदनाते हुए अपने भाई के पास गये और बोले,” भईया..दहेज़ के लालच में आपने मुझसे झूठ बोला कि लड़की बीए पास है…।”

    तब विमल की पत्नी देविका बोली,” कमल..गुस्सा थूक दो..हमें तुम्हारी पत्नी से नौकरी तो करानी है नहीं…बाकी काम में तो देखो..कितनी होशियार है कामिनी…।” भाभी की बातों का उस पर कोई असर नहीं हुआ।उस पर बिजली गिरी थी…अपनों ने ही उसके साथ धोखा..।वो चुपचाप अपने कमरे में आकर सो गया।

       उस दिन के बाद से कमल ने अपने भाई-भाभी से बात करना छोड़ दिया…कामिनी के साथ भी बेरुखी- से पेश आता।एक ही कमरे में दोनों चुप रहते…ये चुप्पी कामिनी के लिये असहनीय थी..पति का प्यार उसके लिये चार दिन की चाँदनी बन कर रह गई।

       देविका ने पति-पत्नी के बीच दूरियों का पूरा फ़ायदा उठाया।मीठा बोल-बोलकर वह कामिनी से घर का सारा काम करवाने लगी।कामिनी भी काम की व्यस्तता में पति के दुख को भूलने का प्रयास करती रहती थी।

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     एक सुबह कमल उठा तो उसका सिर भारी था।कामिनी चाय देने आई..पति को लेटे देखा तो माथा छू लिया और उसके मुँह से निकल गया,” आपको तो बहुत तेज बुखार है।” फिर जेठानी से नंबर पूछकर डाॅक्टर को फ़ोन किया।दवा खुद लेकर आई..समय पर कमल को दवा खिलाती..उसको स्पंज करके कपड़े बदलती..।

     कमल ठीक होने लगे।एक दिन कामिनी उन्हें दवा देकर जाने लगी तो उन्होंने उसका हाथ पकड़कर बिठा लिया और बोले,” अनजाने में मैंने तुम्हारा बहुत दिल दुखाया है..भईया की गलती की सज़ा मैंने तुम्हें दे दी..और तुम चुपचाप सब सहती रही..मुझे माफ़…।” उसने अपने दोनों हाथ जोड़ लिये तो कामिनी ने उसे थाम लिया,” आप खुश रहे..हम तो बस इतना ही चाहते हैं..।” कहते हुए वो कमल के सीने से लग गई।

     समय अपनी गति से चलता रहा…कामिनी एक बेटी की माँ बन गई…उसकी बेटी भी स्कूल जाने लगी।कभी-कभी वो अपने मायके भी हो आती थी।

      एक दिन कमल कुछ पेपर लेने घर आये तो देखा कि कामिनी देविका के बच्चों के कपड़े धो रही थी और वो आराम से बैठकर मैंगज़ीन पढ़ रही थी।यह देखकर उसे बहुत गुस्सा आया..।रात को वो कामिनी से बोला,” बस..अब हम यहाँ नहीं रहेंगे..मैं अपनी बेटी को पढ़ा-लिखा कर उसे अपने पैरों पर खड़ा करना चाहता हूँ लेकिन भाभी ऐसा होने नहीं देंगी।मैं कल कोलकता जा रहा हूँ..वहाँ से आकर हम अलग घर में शिफ़्ट हो जायेंगे।” कामिनी कुछ कहना चाहती थी लेकिन कमल ने उसे कहने नहीं दिया और अगले दिन शाम को वो कोलकता निकल गया।

     इंसान सोचता कुछ है और भगवान की इच्छा कुछ और होती है।एयरपोर्ट से कमल जिस टैक्सी से घर आ रहे थे, रास्ते में उसका एक्सीडेंट हो गया।कामिनी बेटी को लेकर अस्पताल दौड़ी लेकिन तब तक तो…।कमल ने एक बार पत्नी-बेटी की तरफ़ देखा और अपनी आँखें हमेशा के लिये बंद कर ली।तब देविका उसके आँसू पोंछते हुए बोली,” रोती क्यों है..हम हैं ना..कमल के सपने को हम सब मिलकर पूरा करेंगे।” 

     कमल के जाने के बाद तो देविका ने कामिनी को घर के कामों में इतना उलझा दिया कि वो बिचारी अपनी बेटी को भी ठीक से देख नहीं पाती थी।

     एक दोपहर कामिनी बैठी बरतन साफ़ कर रही थी, तभी उसके कानों में देविका की आवाज सुनाई दी,” चल ला दे काॅपी और जाकर अपनी माँ का बँटा..वही तेरा भविष्य है।” अनन्या रोते हुए उसके पास आई तो उसका हृदय रो उठा।उसे पति की कही बात याद आ गई..उसने उसी वक्त एक निर्णय लिया.. बरतन पटके और बेटी को लेकर अपने कमरे में चली गई।अपनी माँ को फ़ोन करके सारी बात बता दी।

      अगली सुबह कामिनी ने जब अपनी जेठानी को कहा कि वह घर छोड़ कर जा रही है तब देविका के होश उड़ गये।वो मुफ़्त की नौकरानी को हाथ से जाने देना नहीं चाहती थी।उसे रोकने के लिये तरह-तरह प्रलोभन देने लगी…विमल ने तो यहाँ तक कह दिया था कि तुम चली गई तो कमल का हिस्सा नहीं मिलेगा।तब वो हँसते हुए बोली,” शिक्षा ही सबसे बड़ा धन है जो मेरी बेटी से कोई नहीं छीन सकता है।” तभी अनन्या हाथ में अपनी किताबें लेकर आई,” मम्मा..इसे भी रख लो..।” तो वो अतीत से वर्तमान में लौटी।

      कामिनी ने कमल की तस्वीर संभालकर रखी…अपना बैग बंद किया..एक नज़र पूरे कमरे पर डाली और एक हाथ में बैग, दूसरे हाथ से बेटी की अंगुली थामे एक अनजाने सफ़र के लिये निकल पड़ी।

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*लौटता वजूद* – बालेश्वर गुप्ता  : Moral Stories in Hindi

     दरवाज़े पर उसकी माँ गाड़ी लेकर खड़ी थी लेकिन उसने बैठने से मना कर दिया।बोली,” धन के मोह ने मेरी पढ़ाई पूरी नहीं होने दी…लेकिन अब नहीं..।अपनी बेटी के लिये मैं अकेली ही काफ़ी हूँ।”

        कमल के बैंक से मिले रुपयों से कामिनी ने रहने के लिये एक कमरा लिया।पास के स्कूल में अनन्या का दाखिला करवाकर वो रोज काम की तलाश के लिये निकल जाती।बहुत प्रयास के बाद उसे एक घर में खाना बनाने का काम मिला।फिर दो घर और मिल गये और उसकी ज़िंदगी की गाड़ी पटरी पर चलने लगी।लेकिन अभी सफ़र लंबा था।

      एक दिन उसकी मालकिन ने कहा,” तुम अच्छे घर की लगती हो…फिर ये सब..।” तब उसने सारी बात बताई और कहा कि मैं पढ़ी-लिखी तो नहीं हूँ लेकिन सिलाई करना जानती हूँ।” मालकिन ने उसे रास्ता दिखाया..एक सिलाई स्कूल में उसका दाखिला करवा दिया।अब वो दिन में खाना बनाती और शाम को टेलरिंग स्कूल जाती।अनन्या भी समझदार हो गई थी।वह मन लगाकर अपनी पढ़ाई कर रही थी।

      टेलरिंग का कोर्स पूरा होते ही स्कूल वालों ने ही कामिनी को काम भी दिला दिया और रहने के लिये एक कमरा भी दे दिया।देखते-देखते अनन्या ने दसवीं की परीक्षा अच्छे अंकों से पास कर ली।वो बारहवीं की परीक्षा के साथ-साथ CTAT(Common Law Admission Test) की तैयारी भी करने लगी।सब कुछ इतना आसान नहीं था..कभी सेहत तो कभी आर्थिक समस्यायें आईं लेकिन कामिनी और अनन्या ने हिम्मत नहीं हारी..वे दोनों अपने फ़ैसले पर अटल रहकर अपना कर्म करते रहे।

       बारहवीं कक्षा की परीक्षा में अनन्या पूरे जिले में प्रथम आई..।उसने CLAT की परीक्षा भी पास कर ली और लाॅ काॅलेज़ में दाखिला ले लिया।अब दिन भर वो किताबों में सिर खपाती और उसकी माँ मशीन पर अपने पैर चलाती।

      समय अपनी रफ़्तार से चलता रहा और एक दिन अनन्या ने आकर कामिनी को बताया कि दो दिन बाद काॅलेज़ में दीक्षांत समारोह है…।बेटी को काला चोगा पहने और सिर पर हैट लगाये देख उसकी आँखें खुशी-से भर आईं।मंच पर बेटी को लाॅ की डिग्री लेते देख तो उसकी आँखें छलक उठीं।काश! आज अनन्या के पापा होते..।

     अनन्या कोर्ट में प्रैक्टिस करने लगी।उसने कई मुकदमे भी जीते..अखबारों में उसके चर्चे भी छपते जो वो अपनी माँ को पढ़कर सुनाती।

      एक दिन अनन्या का सीनियर प्रशांत अपने माता-पिता के साथ उसके घर आये और कामिनी से बोले,” बहन जी..अनन्या से आपके बारे में बहुत सुना था..आज उस देवी के दर्शन भी हो गये।अगर आप इज़ाजत दे तो हम अनन्या को अपने घर की बहू बनाना चाहते हैं।”

     इतना अच्छा घर-परिवार देखकर कामिनी तो नि:शब्द थी..।ईश्वर की कृपा से एक शुभ-मुहूर्त में उसने बेटी का कन्यादान कर दिया।बेटी को विदा करके वो अपने कमरे में आई और कमल की तस्वीर को अपने हाथ में लेकर बोली,” आपके आशीर्वाद और साथ के बिना तो मैं अपने आखिरी फ़ैसले को अंजाम दे ही नहीं पाती।आपकी बेटी वकील बन गई…आज वो अपने ससुराल भी चली गई..अब तो आप खुश है ना…।”

     समय के साथ कामिनी दो बच्चों की नानी बन गई थी।बुढ़ापे ने उसके शरीर पर दस्तक दे दिया था, आँखों की रोशनी भी कुछ कम होने लगी थी।इसलिये वो काम पर तो जाती लेकिन एक मेंटर के रूप में..।वो काम करने वाली सभी महिलाओं को शिक्षा का महत्व बताती और आत्मनिर्भर होने के लिये प्रेरित करती।

                                        विभा गुप्ता

# आखिरी फ़ैसला           स्वरचित, बैंगलुरु 

             कभी-कभी अपने निर्णय पर कायम रहना बहुत मुश्किल हो जाता है लेकिन जब इंसान उसे आखिरी फ़ैसला मान लेता है तब उसे पूरा करने ही हिम्मत उसमें  स्वतः ही आ जाती है।कामिनी ने भी जो ठान लिया, उसे जी-जान लगाकर पूरा किया।

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