हमें तो लड़की बहुत पसंद है अमित जी..! अब आप लोग भी अपना बता दे, ताकि आगे की तैयारी शुरू की जा सके..।
अमित जी: हमें भी इस रिश्ते से कोई आपत्ति नहीं है, बस आप भी लेनदेन का बता देते तो..?
शंकर जी: अरे अमित जी..! हमें तो कुछ भी नहीं चाहिए..। भगवान का दिया सब कुछ है हमारे पास..। आप अपनी बेटी को खुशी से जो भी दे..। आखिर आपके भी तो कुछ अरमान होंगे, अपनी बेटी के लिए… उसे रोकने वाले हम कौन होते हैं..?
बस वह क्या है ना अमित जी..! दिल्ली में गर्मी बहुत पड़ती है, तो सोचा आप की बेटी को यहां वहां आने जाने में दिक्कत होगी… उसके लिए अगर आप उसकी शादी में एक ए सी कार दे देते तो, उसे ही सहूलियत होती… और एक अच्छे बिजनेसमैन के लिए कार कौन सी बड़ी बात है..?
अमित जी, जो अब तक मुस्कुरा रहे थे… उनकी हंसी अब गायब हो जाती है..। पर फिर भी इतने अच्छे रिश्ते को हाथ से कैसे जाने देगा एक पिता..? अमित जी कार के लिए हां कर देते हैं…
अब तो यह हर दिन का हो गया, शंकर जी अमित जी को उनकी बेटी का वास्ता देकर ना जाने कितनी ही छोटी-बड़ी चीजों की मांग करने लगते हैं…
फिर शादी वाले दिन मंडप पर..
शंकर जी: यह क्या अमित जी…? हमने आपसे कोई मांग नहीं की, क्योंकि हमने सोचा आप तो हमारे स्टैंडर्ड को जानते ही हैं… उसके हिसाब से सब कुछ करेंगे… पर यहां तो देख रहे हैं, आप अपनी बेटी को फ्री में ही निपटा देना चाहते हैं..।
अमित जी: क्या हुआ शंकर जी..? कुछ गलती हो गई क्या मुझसे…?
शंकर जी: आपने बारातियों का इंतजाम इस लॉज में किया..? इस शहर में इतने सारे रिजॉर्ट हैं, तो क्या आपको कोई रिजॉर्ट नहीं मिला..? शादी में हमने ज्यादा की तो मांग ही नहीं की, जबकि हमारे बेटे के लिए एक से एक रहीस घराने से रिश्ता आ रहा था…।
और भी बहुत सारी बातें शंकर जी कहे जा रहे थे, कि तभी अमित जी की बेटी नंदिता खड़ी हो जाती है और कहती है… पापा..! आप भी ना..? इतने सस्ते में कैसे निपटा सकते हैं अपनी बेटी की शादी..? एक कार, अनगिनत सामान, इनके खानदान के कपड़े और यहां तक कि इनकी बेटी के ससुराल के लिए कपड़े और ज़ेवर, बस इतने में होती है क्या बेटी की शादी..?
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शादी तो तब होती, जब आप इनके लिए किसी फाइव स्टार रिजॉर्ट की व्यवस्था करते और शादी के बाद इनके बेटे को बिजनेस के लिए मोटी रकम देते या फिर अपना ही बिजनेस दे देते… क्या पापा..? ऐसे थोड़ी ना होती है बेटी की शादी…
वहां मौजूद सभी लोग खामोश खड़े, यह मंजर देख रहे थे…
नंदिता: पापा..! बेटी की भलाई के लिए आप इतने अंधे हो गए कि, आपको इन लोगों का दोहरा चेहरा नज़र नहीं आया… शुरुआत से ही इनका असली चेहरा दिख गया था, पर आपने अपनी आंखों पर पट्टी लगा ली… आप समझते रहे कि इतना सब कुछ देकर आप अपनी बेटी को खुश रख सकते हैं…
पर यह क्यों नहीं समझते कि, यह अपने बेटों की शादी नहीं सौदा करते हैं… आज सौदा अच्छा चल रहा है, कल अगर ना चले तो फिर इनका अत्याचार चालू..। फिर तो ना बेटी खुश रहती है और ना ही उसका परिवार… “इन्हें कुछ नहीं चाहिए” यह बस कहने की बातें हैं, यह तो बस समाज के सामने का चेहरा है..। असली मुखौटा तो हमारे सामने उतरता है..।
अमित जी: बेटा..! माफ कर दे… पता नहीं इन सब में मुझे तेरी भलाई कैसे दिख गई…? पर तूने आज समय पर बोलकर मेरी आंखें खोल दी… शंकर जी…! शायद आपको हमारा जवाब मिल गया होगा… आप अपनी बारात लेकर लौट जाइए.. हमें यह रिश्ता मंजूर नहीं…
शंकर जी: हां.. हम तो जा रहे हैं, पर याद रखिएगा मंडप पर से उठी लड़की की शादी…?
अमित जी: आप जैसों के घर जाने से तो अच्छा है, मेरी बेटी जिंदगी भर कुंवारी रहे…
आज बाप बेटी की इस करतूत से वह पूरे शहर में चर्चा का विषय बने हुए थे और आज इस बेटी की हिम्मत की वजह से, शहर में कितने ही उसे अपनी बहू बनाना चाहते थे…
धन्यवाद🙏
स्वरचित/मौलिक
रोनिता कुंडू