शादी से ही बचेगी घर की इज्जत – मुकुन्द लाल : Moral Stories in Hindi

 सूर्यमणि बाबू के पूर्वज जमींदार थे अंग्रेजी सल्तनत के समय।जमींदारी भले ही चली गई थी। किन्तु सम्पन्नता अभी भी बरकरार थी। वे  काफी धन-दौलत और जमीन-जायदाद के मालिक थे।

   उनके परिवार में उनकी पत्नी शिवांगी, एक पुत्री और दो पुत्र थे। उनकी पुत्री अनामिका उम्र में सबसे बड़ी थी, जबकि उसके दोनो भाई छोटे थे।

   अनामिका जवानी में ही विधवा हो गई थी। उसकी शादी होने के चार-पांँच महीनों के बाद ही ट्रेन एक्सीडेंट में  यात्रा करते समय उसके पति की मृत्यु हो गई थी।

   पति की मृत्यु के बाद वह अर्द्धविक्षिप्त सी रहने लगी। कभी दौड़कर हवेली के बाहर निकल जाती, कभी दौड़कर ख़ुदकुशी करने के मकसद से रेलवे लाइन की तरफ दौड़ पड़ती। हवेली के कारिंदे उसे पकड़कर लाते।उसकी मांँ शिवांगी उसे धैर्य बंधाती। वह सांत्वना देती यह कहकर कि ईश्वर के आगे किसी की नहीं चलती है कि तेरी किस्मत में जो लिखा था, उस पर ही वह संतोष करे। कुछ समय के लिए वह शांत हो जाती

किन्तु कुछ समय बाद जब अवसाद की हिलोरें उसके अंतस को आन्दोलित करती तो पुनः वह उद्वेलित हो जाती। ऐसी अवस्था में वह कभी अपने सिर के बालों को नोचती, कभी रोती, कभी अपना सिर दीवार पर पटक देती यह कहते हुए कि वह अब जीकर क्या करेगी?… उसका तो घर-संसार उजड़ गया।

   इन्हीं वजहों से हवेली के वातावरण में दर्द, व्यथा, क्षोभ और असंतोष छाये हुए रहते थे। इस तरह की दुखद गतिविधियांँ निरंतर जारी रहती थी, जो रुकने का नाम नहीं ले रही थी । लोग अनामिका को समझाते-समझाते थक चुके थे। इसके कारण उसके दोनों छोटे भाइयों की पढ़ाई मारी जा रही थी। इसी बात को ध्यान में रखते हुए उस कस्बे के एक युवक अक्षय को एक मित्र के परामर्श से ट्युशन पढ़ाने के लिए रखा गया। उसने हाल ही में स्नातक की डिग्री हासिल की थी।

   अनामिका के दोनों छोटे भाई  अक्षय से ट्यूशन  पढ़ने लगे।

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   जिस कमरे में अक्षय उसके छोटे भाइयों को पढ़ाता था, कभी-कभी वहाँ आकर वह अखबार पढ़ने लगी। कुछ सप्ताह के बाद वह नियमित वहाँ आकर अखबार या पत्रिकाएं पढ़ने लगी। इस दरम्यान कभी-कभार वह अक्षय से इधर-उधर की बातें भी करने लगी। इसी क्रम में वह उसके परिचय से अवगत हुई। वह कोई प्रश्न पूछती तो संक्षेप में उसका उत्तर देकर वह बच्चों की पढ़ाई में लग जाता।

  हलांकि उसकी मांँ ने भी उसको वहाँ पर अखबार या अन्य किताबों को पढ़ने से मना किया तब उसने जवाब दिया था कि वह अपने भाइयों की पढ़ाई में बाधा नहीं डालती है। 

   अक्षय भी प्रायः कहता कि वह अखबार या पत्रिका दूसरी जगह पर पढ़ें, बच्चों का ध्यान बट जाता है। तब वह कहती कि वह तो मन ही मन पढ़ती है मास्टर जी… वे लोग अखबार की तरफ देखते हैं तो वह क्या कर सकती है?… एक तो ईश्वर ने उसकी जिन्दगी के साथ जो खेल खेला है, उससे वह त्रस्त तो है ही… थोड़ा मन बहलाने की नीयत से यहाँ आकर बैठती हूँ तो उसमें भी लोग विघ्न-बाधा डालते हैं।

   ” माफ कीजिए अनामिका जी!… मैं आपके दिल में ठेस पहुंँचाने के इरादे से नहीं कहा, मेरे कहने का सारांश यह था कि बच्चों की पढ़ाई में सुधार नहीं होगा तो सूर्यमणि बाबू मुझसे नाराज हो सकते हैं।”

   ” उनको फुर्सत है बच्चों को देखने की, वे तो रात-दिन जमीन-जायदाद के मामलों में उलझे रहते हैं… कोर्ट-कचहरी का चक्कर लगाते रहते हैं… आप व्यर्थ में अपना दिमाग खराब न करें। “

   कालांतर में अक्षय के साथ बातचीत का जो सिलसिला शुरू हुआ उसका दायरा बहुत बढ़ता गया। बाद में शादी-विवाह, सिनेमा, समाज में घटने वाली घटनाओं… आदि पर चर्चा-परिचर्चा होने लगी।

   वाद-संवाद और वार्ताओं का सिलसिला महीनों तक जारी रहा। दोनों एक-दूसरे के निकट आने लगे।

   अनामिका भले ही विधवा थी किन्तु उसके गौर वर्ण,  आभा से युक्त चेहरा, चूड़ीविहीन कलाइयांँ, सूनी मांग और श्वेत वस्त्रों में वह देवी की तरह मालूम पड़ती थी। ऐसा लगता था मानो किसी देवता के श्राप के कारण उसे मृत्यु-लोक में आना पड़ा इस धरती को आलोकित करने के लिए ।

   उसके चेहरे के तेज को अक्षय बर्दाश्त नहीं कर पाता था। वह हमेशा अपनी नजरों को झुकाए हुए पढ़ाने का कार्य करता था।

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   पढ़ाई के बीच में ही अनामिका कभी चाय और नमकीन या चाय और बिस्कुट लाकर देती थी। प्रारम्भ में वह चाय पीने के लिए तैयार नहीं हुआ था, परन्तु शिवांगी के अनुरोध पर उसने चाय पीना स्वीकार किया था।

   चाय की प्याली देते वक्त अक्सर उसकी उंगलियों का स्पर्श अनामिका की हथेली या उंगलियों से हो जाता तो कुंवारे अक्षय को ऐसा महसूस होता मानो उसको बिजली का झटका लगा है। 

   साल-भर बाद ही दोनों में नजदीकियां बढ़ने लगी। दोनों की घनिष्ठता उनके व्यवहार में परिलक्षित होने लगी।

    दोनों की गतिविधियों को परखने के बाद शिवांगी को संदेह होने लगा कि दाल में कुछ काला है। उसने अनामिका से कहा कि वह पढ़ाई वाले कक्ष में नहीं बैठे। घर के काम-काज में हाथ बंटाए।अपना ध्यान पूजा-पाठ में लगाए। उसको किसी पराये मर्द की  तरफ देखना भी पाप है।

   शिवांगी डर रही थी कि अगर उसके पति को मालूम हो गया तो अनर्थ हो जाएगा। घर की मान-मर्यादा और गरिमा का ध्यान रखते हुए  उसने अपने अंतर्मन में ही इस बात को दबाए रखा। मास्टर जी के पास जाने में प्रतिबंध लगाने लगी। किन्तु वह मानने वाली नहीं थी। उसने अपनी मांँ के पुराने खयालात को मानने से इनकार कर दिया।

   कभी-कभार अक्षय के साथ बतियाने में असुविधा महसूस होती तो अपने छोटे भाइयों को कोई बहाना बनाकर अक्षय के मना करने के बाद भी वहां से भगा देती।

   उसका प्यार परवाना चढ़ने लगा था।उसे तो न लोक-लाज का डर था और न पुराने परंपराओं की।

   इसी कड़ी में एक बार कार्तिक पुर्णिमा के अवसर पर उस कस्बे की नदी के तट पर जो वहाँ से चार-पांँच किलोमीटर की दूरी पर स्थित थी मेला लगता था। उस मेले में अक्षय को आकर मिलने के लिए राजी कर लिया।  हलांकि अक्षय नहीं चाहता था कि वह अनामिका से मिले। उसने कहा भी था कि अमीरी-गरीबी में बहुत फासला होता है। अगर उसके साथ मिलने-जुलने की खबर से उसके पिताजी नाराज हो जाएंगे

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तो शायद उसे कस्बे में रहना भी मुश्किल हो जाएगा। इसका खामियाजा उसको भुगतना पड़ सकता है। उसके पिताजी के एक इशारे पर उसके साथ हिंसक घटना  भी घट सकती है। तब उसने कहा  कि वह घबराएं नहीं, अगर आप पर गोली चलेगी या आप पर कोई प्रहार करेगा तो वह उसके आगे ढाल बनकर खड़ी हो जाएगी। उसका बाल बांका भी नहीं होने देगी। हम बालिग हैं मुझे अपने जीवन का फैसला लेने का अधिकार है। 

   उसके पिताजी आवश्यक कार्यवश बाहर गए हुए थे। उसने जिद्द करके अपनी मांँ को मना लिया। उसकी माँ ने  अनामिका को एक विश्वस्त नौकरानी के साथ मेला घूमने-फिरने के लिए भेज दिया कई तरह की हिदायतें देकर। 

   मेला में नौकरानी से अलग होकर वह अक्षय  के साथ घूमने-फिरने लगी। प्यार भरी बातें खुलकर उसने उसके साथ की । मेले में कुछ लोग उनकी जोड़ी को टक-टकी लगाए देख भी रहे थे, किन्तु किसी में कुछ कहने की हिम्मत नहीं थी। 

   एकांत मिलने पर मेले से हटकर बाग में दोनों को आलिंगनपाश में  बंधने का अरमान भी पूरा हुआ। कुछ देर तक दोनों ने प्रेमालाप भी किया। जिस मिलन की प्रतीक्षा प्रेमी-प्रेमिका को साल-भर से थी वह पूर्ण हुई। 

   मेले में उस दिन अनामिका का चेहरा खुशी से दमक रहा था मानो वह विधवा नहीं, कुवांरी लड़की हो। उसकी चंचलता, चेहरे  पर झिलमिलाती प्रसन्नता और उसके बाॅडी लैंग्वेज ने विधवा के तमाम लक्षणों पर अदृश्य पर्दा डाल दिया था। उसका आकर्षक रंग-रुप देखकर अक्षय का भी मन-मयूर नाच उठा था।वह मंत्र-मुग्ध होकर अनामिका के इशारे पर कोई भी कदम उठाने के लिए तैयार था। 

  शिवांगी भले ही उनकी गतिविधियों का विरोध कर रही थी किन्तु उसकी भी आंतरिक इच्छा थी कि समाज की दकियानूसी परम्पराओं को त्यागकर दोनों शादी के बंधन में बंध जाएं तो कितना अच्छा हो। अनामिका अपनी पहाड़ सी जिन्दगी को बिना जीवन-साथी के कैसे व्यतीत करेगी।                                   

उस समय समाज पर पारंपरिक रीति-रिवाज का प्रभुत्व था।  इसके साथ ही सूर्यमणि बाबू का डर भी था। इस वजह से वह अपना विचार व्यक्त नहीं कर पाती थी। 

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   कस्बे के कुछ प्रमुख लोगों ने दबी जुबान से मेले में अक्षय और अनामिका की रंगरेलियों के  संबंध में सूर्यमणि बाबू को जानकारी दी तो वह आगबबूला हो गए किन्तु अपनी क्रोधाग्नि को प्रकट नहीं होने दिया। वह शान्त रहे यह कहकर कि ऐसा नहीं हो सकता है, उनको भ्रम हुआ है। मेले-ठेले और भीड़-भाड़ वाले स्थानों पर अक्सर ऐसा दृष्टि-भ्रम हो जाया करता है।

      किन्तु घर पर आते ही उनके गुस्से का पारा आशमान पर चढ़ गया। उन्होंने पहले तो शिवांगी को डांँट पिलाई यह कहकर कि उस पर भरोसा करके वह घर से बाहर निकलते हैं और वह घर में आंँखें करके रहती है। वह किसकी अनुमति से मेले में गई थी। उसको कुछ समझ में आता है या नहीं। उसका दिमाग फिर गया है। कस्बे के लोग इस घटना की घोर निंदा कर रहे हैं, बदनाम कर रहे हैं। घर की इज्जत मिट्टी में मिल गई इस नासमझ लड़की की वजह से।              

“उसको इतना ही मेला घूमने का शौक था तो वह क्यों नहीं चली गई अनामिका के साथ” डांटने-फटकारने के बाद उन्होंने कहा। 

   ” मैं क्या कर सकती थी?… मेरी बात नहीं मानतीं है … जिद्द करके पर्वतिया के साथ चली गई।” 

   “पर्वतिया का कहीं अता-पता नहीं था, वह तो मास्टर के साथ घूम-फिर रही थी, गुलछर्रे उड़ा रही थी… मेरी नाक कटवा रही थी।… बेशर्मी की हद हो गई ऐसी लड़की जन्मते ही मर जाती तो ठीक था।… आज मेरा सिर उसकी आवारगी के कारण झुक गया।… जब कुछ लोगों ने मेरे सामने इस घटना का जिक्र किया तो मैंने उसकी बातों को मानने से इनकार कर दिया, परन्तु सच्चाई छिपी नहीं रह सकती है… सैकड़ो लोगों ने दोनों को साथ-साथ देखा है… मैं कैसे इस कस्बे में अपना मुंँह दिखाउंँगा… और उस मास्टर को बांधकर पीटना चाहिए… बच्चों को पढ़ाने आता था या… “

  ” चुप रहिए!… अक्षय को क्यों दोष देते हैं?… उसकी क्या औकात है कि वह मेरी बेटी कीओर अपना हाथ बढ़ाता… सारा दोष आपकी लाडली की है… उसने तो अनेक बार कहा कि अनामिका हर बात पर जिद्द करती है… उसको बच्चों को पढ़ाना मुश्किल हो जाता है। “

   कुछ पल रुककर उसने पुनः कहा,” बेचारी अनामिका भी क्या करेगी?… कोई बूढ़ी या अधेड़ उम्र की तो है नहीं कि मंदिर में बैठकर माला जपेगी, भजन-कीर्तन में भाग लेगी।… ईश्वर ने तो भरी जवानी में उस पर बजराघात कर दिया, उसके दाम्पत्य जीवन में आग लगा दी… उसके सिर पर दुख का पहाड़ टूट पड़ा है… सोचिए ठंडे दिमाग से… ।”

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   वातावरण में सन्नाटा छा गया था, जिसको कमरे में दरवाजा बन्द करके बैठी अनामिका की सिसकियाँ भंग कर रही थी। 

   उसी समय सूर्यमणि बाबू के  हितैषी, घनिष्ठ मित्र और सामाजिक कार्यकर्ता विजेन्द्र जी   पहुँचे यह कहते हुए कि वे लोग क्यों शोरगुल मचा रहे हैं, हवेली के बाहर तक आवाज जा रही है, उसी को सुनकर मैं यहाँ पहुंँच गया। 

   सूर्यमणि बाबू ने कहा कि उससे क्या छिपाना कि वह तो घर के आदमी हैं, कहते हुए उन्होंने पूरी दास्तान सुना दी। 

   थोड़ी देर तक विजेन्द्र जी खामोश रहे, फिर उसने कहा कि यह घटना तो वास्तव में स्वाभाविक है। ऐसी परिस्थितियों में तो यह होना ही था। जिस लड़की को अपने जीवन का लम्बा सफर तय करना है, वह अकेले दुर्दिन, दुखद, व पावन्दियों से भरे इतने लम्बे जीवन को काट सकेगी?… यह गंभीरतापूर्वक विचार करने वाला विषय है। हर युग में मनुष्य की बेहतरी के लिए आवश्यकतानुसार परम्पराओं में बदलाव आना चाहिए।

किसी युवती के साथ ऐसी घटना घट जाती है तो इसमें उसका क्या दोष है। अभिभावकों को भी ऐसा मर्यादित कदम उठाना चाहिए जिससे उसका जीवन सुखद हो जाए, सुखमय हो जाए। इसके लिए आवश्यक है कि ऐसी लड़कियों की शादी होनी चाहिए अगर इसके लिए वह राजी हों, तब इसी कदम से घर की इज्जत कायम रहेगी, अन्यथा जवानी के जोश में अगर लड़की किसी के साथ भाग जाएगी, तब हमारी इज्जत समाप्त हो जाएगी, मान-मर्यादा मटियामेट हो जाएगी।

   “आपकी बातों में दम है, आपके सुझाव वास्तव में सराहनीय है” सूर्यमणि बाबू ने कहा।.                      

कुछ पल तक सोचने के बाद विजेन्द्र जी ने कहा, 

“अगर अक्षय अनामिका को अपना जीवन-साथी बनाने के लिए राजी है तो आप अपनी लड़की से उसकी शादी कर दीजिए… अक्षय गरीब जरूर है पर इस कस्बे का वह पहला ग्रेजुएट है… उसके पिताजी छोटे-मोटे किसान हैं, सज्जन पुरुष हैं… आपकी बेटी भी पढ़ी पढ़ी-लिखी है, दोनों की जोड़ी भी बिलकुल सही है। “

  ” मैं भी तो यही चाहती हूँ… किन्तु कोई मेरी बात सुने तब न विजेन्द्र बाबू”शिवांगी ने अपनी राय प्रकट की। 

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  ” मैंने इतनी दूर  तक कभी गंभीरतापूर्वक नहीं सोचा था मित्र… जो हो गया था उसी को नीयति मानकर चल रहा था।… सचमुच तुम्हारा मार्गदर्शन ऐसी परिस्थिति में बिलकुल उचित है। “

  ” हांँ!… एक बात और कहनी है… आप अक्षय और अनामिका पर मत बिगड़िएगा।” 

    बंद कमरे में दरवाजे के पास बैठी अनामिका विजेन्द्र अंकल की सारी बातें सुन रही थी। उसका उदास उदास सा रहनेवाला चेहरा उमंग-उत्साह और खुशी से दमक रहा था। 

   थोड़ी देर के बाद ही शिवांगी चाय बनाकर ले आई थी नमकीन के साथ। 

   दोनों मित्रों ने चाय पीते हुए शुभ मुहूर्त देखकर अनामिका की शादी अक्षय के साथ कर देने का फैसला ले लिया। 

   स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित 

                 मुकुन्द लाल 

                  हजारीबाग(झारखंड) 

                   26-01-2025

                  कहानी प्रतियोगिता 

                 # घर की इज्जत

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