सीमालोघन रामू का – बालेश्वर गुप्ता : Moral Stories in Hindi

  हे, पार्वती,तू तो चली गयी,और मुझे छोड़ गयी, इस जलालत भरे जीवन भोगने को।मैं इतना कमजोर क्यूँ हूँ, जो मरने से डर जाता हूँ।

     पत्नी के फोटो के सामने खड़े शंकरलाल, ऐसे ही अक्सर अपनी पीड़ा अपनी स्वर्गीय पत्नी के फोटो के सामने व्यक्त करते रहते।बिल्कुल चुपचाप कमरे को बंद करके।पर कमरे की खिड़की से दो आंखे उन्हें अवश्य ही करुणामयी रूप से देखती।वे आंखे होती उनके हमउम्र पर घर के सेवक रामू की।आखिर जब शंकरलाल के पिता यतीम रामू को घर लाये थे तब वह शंकरलाल जी की उम्र का ही किशोर था।शंकरलाल के पिता तो रामू को भी पढ़ने को प्रोत्साहित कर रहे थे,पर रामू ने पढ़ाई लिखाई में कभी दिलचस्पी दिखायी ही नही।

इस प्रकार रामू उस घर का सेवक ही बनकर रह गया।शंकरलाल तो उसकी उम्र के ही थे ,वैसे भी रामू उस घर का ही एक सदस्य जैसा हो गया था।शंकरलाल जी के पिता ने ही रामू की शादी भी करा दी और उसे कोठी के पीछे रहने को एक क्वाटर भी दे दिया,जिससे वह अपनी गृहस्थी जमा सके।एक सवा साल बाद ही रामू के यहां बेटा उत्पन्न हुआ। रामू की इस खुशी में सब शामिल भी हुए। शंकरलाल के पिता जी ने जब अंतिम सांस ली तो उन्होंने शंकरलाल को कहा था कि वह हमेशा रामू को अपने घर का सदस्य ही समझे।शंकरलाल जी ने हमेशा रामू के स्वाभिमान का ध्यान रखा।शंकरलाल जी को भी इस बीच पुत्र प्राप्ति हो गयी थी।

     रामू का पुत्र  श्याम होनहार निकला, पढ़ाई में अव्वल ही रहा।वह तो शंकरलाल जी के बेटे राजेश को भी पढ़ाता था।शंकरलाल जी ने अपने पिता का व्यवसाय संभाल लिया था।शंकरलाल जी ने कभी भी रामू के बेटे श्याम और अपने बेटे राजेश में फर्क नही किया।असल मे उन्होंने कभी रामू को नौकर समझा ही नही था।

        धीरे धीरे समयचक्र चलता रहा।शंकरलाल जी एवम रामू अब  उम्रदराज होते जा रहे थे।शंकरलाल जी का बेटा राजेश सामान्य छात्र ही रहा, ग्रेजुएशन के बाद शंकरलाल जी ने राजेश को अपने व्यवसाय में ही लगा लिया।कारोबार काफी अच्छा था,अच्छी कमाई थी,इससे राजेश में अहंकार भी आ गया और रईसी वाले दुर्गुण भी। यार दोस्तो के साथ मटरगस्ती करना ,उनके साथ शराब आदि पीना उसके लिये आम हो गया था।नशे में वह कभी भी शंकरलाल जी का भी अपमान कर देता।

जब तक शंकरलाल जी की पत्नी पार्वती जीवित रही तो वह राजेश को फटकार भी देती और दृढ़ता के साथ अपने पति के अपमान का प्रतिकार करती।अपनी माँ के रौद्र  रूप को देख राजेश सहम जाता।पर पार्वती की मृत्यु के बाद स्थिति बदल गयी।पत्नी की मृत्यु के बाद शंकरलाल जी टूट से गये।बेटा तो वैसे ही उनकी परवाह करता ही नही था,इधर पत्नी का भी स्वर्गवास हो गया तो शंकरलाल जी अपने को नितांत अकेला महसूस करने लगे।रामू का बेटा श्याम चूंकि मेधावी छात्र रहा,उसकी बैंक में मैनेजर पद पर नियुक्ति प्रतियोगिता में सफल होने के उपरांत शहर में हो गयी।

श्याम अपने पिता के मनोभावों को समझता भी था और उनका सम्मान भी करता था।हर सप्ताह वह अपने माता पिता के पास आता रहता।उसने कहा भी बापू अब आपको घरेलू नौकर रहने की  जरूरत नही है,आप मेरे साथ ही शहर ही चलिये।पर रामू साफ मना कर देता और कहता बेटा मैं जीते जी शंकरलाल जी को अकेला छोड़कर नही जा सकता।उनका अब कोई नही रहा,उनका बेटा भी नही।तू ही बता कैसे उन्हें छोड़कर चला जाऊं?श्याम बापू की बात सुन चुप लगा जाता।

      अब आये दिन राजेश अपने पिता से बात बात में बदतमीजी करने लगा था।शंकरलाल जी कोशिश करते अपने बेटे के सामने न पड़े,पर उस दिन शंकरलाल जी से मिलने आये उनके पुराने मित्र के सामने ही राजेश का शराब के नशे में लड़खड़ाते आते देख उन्हें शर्मिंदगी महसूस हुई।उनके मित्र ने भी राजेश के नशे में होने को ताड लिया था।मित्र के जाने के बाद शंकरलाल जी ने राजेश को शराब न पीने की नसीहत दे दी,बस यही विस्फोट हो गया।बस कसर उन पर हाथ नही उठाया गया,बाकी अपमान किये जाने में राजेश ने कोई कोर कसर नही छोड़ी।इससे आहत हो शंकरलाल जी अपनी पत्नी पार्वती के चित्र के सामने विलाप कर रहे थे।

       रामू सारी स्थिति को समझ रहा था,पर वह अपनी सीमा भी जानता था।जो लड़का अपने बाप को जलील करता रहता है वह उसे क्यो बर्दाश्त करेगा।पर उस दिन की घटना ने रामू को झकझोर दिया,उसे लगा कि वह भी शंकरलाल जी के साथ अन्याय कर रहा है।रामू को लग रहा था जैसे वह भी उनके साथ किये जा रहे अपमान में शामिल है। उसे अपनी सीमा रेखा लांघनी ही होगी।

      रामू ने आज दृढ़ निश्चय किया कि वह शंकरलाल जी को अपमानित जीवन नही जीने देगा,वह उनका सम्मान लौटायेगा।आज उसे अपनी सीमा का उलंघन करना ही होगा।एक झटके से रामू कमरे में घुसा और विलाप करते शंकरलाल जी से बोला,छोटे सरकार छोटा मुँह बड़ी बात अब आप हमारे साथ शहर श्याम के साथ रहेंगे,श्याम भी तो आपका ही बेटा है।आप अभी हमारे साथ चले।

      हतप्रभ शंकरलाल जी रामू के मुँह को देखते रह गये।रामू ने शंकरलाल जी के पावँ पकड़ लिये, छोटे सरकार मुझ यतीम को बड़े सरकार और आपने पनाह देकर जो अहसान किया है,उसे तो हम सात जन्मों में भी नही चुका सकते।जीवन का जो थोड़ा बहुत समय बचा है,उसमें सेवा का मौका और दे दो बाबू सरकार-हमारे साथ आपको चलना ही होगा।

         रामू शंकरलाल जी को श्याम के पास ले ही आया।श्याम ने शंकरलाल जी को पितृवत सम्मान भी दिया।शंकरलाल जी ने फिर राजेश की ओर मुड़कर भी नही देखा।लेकिन शंकरलाल जी के चले आने एवम राजेश में व्यापारिक गुणों के अभाव में मार्किट में उसकी साख गिरती चली गयी,

जिससे उसको कारोबार में निरंतर घाटा होता चला गया।अब उसे अपने पिता की कीमत और सीख समझ आ रही थी।पर पिता के सम्मान की सीमा रेखा तो उसी ने तोड़ी थी।फिर भी वह अपने पिता के पास उनसे क्षमायाचना करने शहर भी गया। शंकरलाल जी ने बस उसे यही कहा,बेटा, ईश्वर तुझे सुखी रखे,पर अब मैं वहां नही जा सकता,जहां मेरी पत्नी मेरे सम्मान को रुन्दते देख मर गयी,जहां मैं रोज रोज मरता रहा,अब फिर वही चला जाऊं, इन अपनो को छोड़ कर।नही-नही  मैं यहां से नही जा सकता।

बालेश्वर गुप्ता,नोयडा

मौलिक एवम अप्रकाशित

#सीमा-रेखा

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