सीमा रेखा – सुनीता मुखर्जी “श्रुति” : Moral Stories in Hindi

नहीं! नहीं! बिल्कुल नहीं! झरना नौकरी नहीं करेगी। करना ही है तो अपनी ससुराल में जाकर करें, लेकिन इस घर में रहते हुए नौकरी करने का कोई प्रश्न नहीं उठता। सुधाकर जी ने अपना निर्णय सुना दिया। जब आप पिता होकर बेटी को नौकरी नहीं करने देना चाहते हैं तो अनजान परिवार (ससुराल) नौकरी करने की इजाजत कैसे देगा? मांँ बोली। 

झरना चार भाई दो बहन थी। पिता सुधाकर टेलीफोन विभाग में अच्छे पद पर तैनात थे। लेकिन उनकी विचारधारा बहुत पुरानी थी। बेटियों को पढ़ाई- लिखाई कराने के पक्ष में तो थे….. लेकिन कॉलेज में नहीं प्राइवेट पढ़ाई करें!! उनका मानना था बेटियां घर का काम करें और पढ़ाई करें।

बेचारी बेटियां आठवीं करने के बाद घर बैठा दी गई। घर में  घरेलू कामकाज करते हुए  प्राइवेट फॉर्म भरकर आगे की पढ़ाई करने लगी। 

आसपास की अन्य लड़कियों को स्कूल कॉलेज आते जाते देखकर झरना के मन में बहुत मलाल होता है काश!! वो भी स्कूल, कॉलेज जाती। इसी आत्मग्लानि के साथ वह जी रही थी। वह प्राइवेट छात्रा जरूर थी लेकिन उसे भी चांद सितारे छूने की प्रबल इच्छा थी। उसे हमेशा लगता…. उसकी भी ढेर सारी सहेलियां हो जिनके साथ गपशप,हंसी मजाक और अपने विचार आदान-प्रदान करें। 

साथ में पढ़ने वाली लड़कियों ने भी अब किनारा कर लिया। वह सब रेगुलर पढ़ रही थी। अब प्राइवेट पढ़ने वाली सहेली को कौन पूछे? उनके द्वारा अनदेखा करने के बावजूद भी झरना जबरदस्ती बात करती। उनके स्कूल कॉलेज के बारे में, उनके अध्यापक कैसे हैं कैसे पढ़ाया जाता है और उनकी नई सहेलियों कैसी हैं?? आदि…. 

उसकी सहेलियां  हंस- हंसकर जब अपने स्कूल कॉलेज के किस्से बताती, तब झरना मन में आनंदित होकर उन पलों को जीती और कल्पना लोक में उन्हें अपने से जोड़कर देखती। उसकी सिर्फ और सिर्फ एक ही इच्छा थी कि उसे भी कॉलेज पढ़ने के लिए भेजा जाए। उसने अपने माता- पिता से बहुत मनुहार की लेकिन…. उसके परिवार की रुढ़वादिता के कारण वह कभी कॉलेज का मुख नहीं देख पाई।

एक दिन रोजगार समाचार पत्र में  ग्रुप सी की नौकरी की बहाली निकली। झरना ने भी नौकरी के लिए आवेदन कर दिया और उसका चयन भी हो गया। घर में सभी को पता था सिर्फ सुधाकर जी को नौकरी के विषय में कुछ भी पता नहीं चला। जब नौकरी पर जाने का समय आया तब पिता ने नौकरी के लिए घनघोर आपत्ति जताई।  कहा!! तुम्हें घर और नौकरी के बीच में किसी एक को चुनना होगा??

झरना रुढ़िवादी जंजीरों से मुक्त होकर घर की #सीमा रेखा लांघकर अपने सपनों को जीना चाहती थी।

“उसने नौकरी को चुना और कहा मुझे नौकरी करना है।” सुधाकर जी ने कुछ नहीं बोला बस झरना से बात करना बंद कर दिया। 

वह जब भी घर आती सबके लिए उपहार लाती। सभी भाई बहन बहुत खुश होते लेकिन सुधाकर जी बात नहीं करते। मां झरना को समझाती….धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। 

छोटी बहन और भाइयों के विवाह हो गये थे, बस एक छोटा भाई विवाह के लिए बचा था। मां, झरना के विवाह के लिए सुधाकर जी से बोलती तो वह चिढ़कर तुरंत बोलते… नहीं मैं उसका विवाह नहीं करूंगा, और न ही उसे इस घर से फूटी कौड़ी दूंगा?? 

जैसे उसने नौकरी कर ली, वैसे अपना विवाह भी कर ले!!

कुछ सालों के बाद झरना ने अपने एक सहकर्मी सुमित  से विवाह कर लिया। वह भी अपने घर गृहस्ती में रम गई। 

एक परिवार का बेटी के साथ जो रिश्ता होता है वह झरना के साथ नहीं रहा। झरना को जब मायके जाने का बहुत मन होता तो पति सुमित के साथ एक-दो दिन रहकर चली आती। भाई बहन सुमित को खूब पसंद करते थे। बहुत रात तक सब जीजू के साथ मिलकर ठहाके लगाते थे।

छोटी बहन का बेटा ऋषभ झरना को बहुत प्यार करता था मौसी- मौसी बोलकर एकदम बेहाल रहता था झरना एवं परिवार के सभी सदस्यों का बहुत प्यारा था ऋषभ….हो भी क्यों न?? घर में एक ही बच्चा था।

सबसे छोटे भाई का विवाह होने वाला था चारों तरफ खुशियां ही खुशियां थी। लोगों के घर-घर जाकर निमंत्रण कार्ड देकर आने का आग्रह किया जा रहा था।

घर में जब भी कोई कामकाज होता तो झरना को औपचारिकता निभाते हुए बस आने के लिए बोल दिया जाता। यह घर की आखिरी शादी है इसलिए शायद  कोई निमंत्रण देने आए!! ऐसी झरना को आशा थी….. आखिर वह भी तो उसी घर की बेटी है?? लेकिन ऐसा नहीं हुआ। झरना जब भी  घर में फोन करती थी तो घर वाले उसे बोलते आ जाना तुम भी। 

उसकी चचेरी, मेमेरी, मौसेरी बहनों के घर जाकर निमंत्रण दिया गया‌। उसे कम से कम इतनी तो आशा थी कि उसके पति सुमित को फोन पर तो निमंत्रण दिया जायेगा ….. लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

विवाह का समय नजदीक आ रहा था झरना इसी असमंजस में थी क्या करें विवाह में जाए या न जाए…. क्योंकि अगर नहीं जाती है तो वह भाई की विवाह की सब खुशियां मिस कर देगी।

उसने सुमित से कहा चलो, शादी में चलते हैं!! सुमित ने कहा नहीं… मुझे तो किसी ने बोला नहीं इसलिए तुमको जाना है तो चले जाओ….।

झरना शादी में अकेले ही चली गई। वहां रिश्तेदारों से पूरा घर खचाखच भरा था। झरना नही भी आती तो किसी के ऊपर कोई फर्क नहीं पड़ता। झरना ने सोचा इस विवाह के बहाने अपने सभी रिश्तेदारों से भी मिल पायेगी जिन्हें कई सालों से आमने-सामने नहीं देखा है।

मौसी- मौसी कहते हुए ऋषभ झरना से लिपट गया झरना उसे अपनी गोदी में उठाकर दुलारने लगी। अरे बच्चू!! तुम तो मुझसे पहले आ गए!!

ऋषभ तोतली भाषा में बोला…. मौसी!! रस्में क्या होती हैं??

मौसी ने बताया विवाह रस्मों रिवाज के अनुसार ही होता है।  जिसमें घर के सभी सदस्यों की भूमिका होती है। कुछ रस्में बहनों की, मां की, पिता की, छोटे भाई  और और कुछ तुम्हारी….. ऋषभ की नाक पकड़ते हुए झरना ने कहा और ऋषभ खिलखिलाने लगा।

मौसी समझ में आ गया। मामा जब हमारे यहां  निमंत्रण देने गए थे तब मम्मी से कह रहे थे तुम जल्दी आ जाना क्योंकि बहन की सभी रस्में तुम्हें ही करनी है। ऋषभ के मुंह से यह बात सुनकर झरना को एक बहुत बड़ा झटका लगा;;;;;;लेकिन वह मुस्कुराते हुए ऋषभ के साथ खेलती रही।

वैवाहिक औपचारिकता में जो रश्में होती है…. उसमें सब जगह बहन ही आगे-पीछे रही। झरना को कोई रस्म करने के लिए नहीं बुलाया गया। झरना सब के साथ मिलकर इंजॉय कर रही थी….. लेकिन मन ही मन उसे आत्मग्लानि हो रही थी। जहां सम्मान नहीं आखिर यहां आई क्यों??

लोगों में खुसुर फुसुर होने लगी की सभी रस्में छोटी बेटी कर रही है बड़ी बेटी क्यों नहीं कर रही है। तब घर की एक महिला बोली। छोटे भाई की शादी बहुत अच्छे खानदान में हो रही है इसलिए बड़ी बेटी को रास नहीं आ रहा है जल-भुन गई है इसीलिए किसी रस्म में आगे नहीं आ रही।

झरना यह सुनकर मन ही मन मुस्कुराई और सोचने लगी…. चित्त भी इनकी, पट भी इनकी।

झरना को आखिर में एहसास हो गया;;;;;;; जिस #सीमा रेखा को तोड़कर वह आसमान छूने चली थी उसका मूल्य उसे चुकाना ही पड़ेगा। आखिर किसी न किसी को तो शुरुआत करनी ही पड़ेगी। 

– सुनीता मुखर्जी “श्रुति”

       लेखिका 

हल्दिया पूर्व मेदिनीपुर पश्चिम बंगाल

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