स्वार्थ (एक और उर्मिला नहीं बनेगी) – मीनू झा 

कमी क्या है तुम्हें यहां…सुजाता…इतने प्यार करने वाले सास ससुर है…खाने कपड़े की भी कोई दिक्कत नहीं है,घर में हर सुख सुविधा की चीज है..मायका नजदीक है जब चाहती हो आती हो जाती हो, मैं भी हर हफ्ते आ ही जाता हूं तुमसे मिलने..फिर परेशानी है कहां मुझे तो समझ नहीं आता

प्रणव जी… सबकुछ है पर आप हमेशा तो नहीं होते ना यहां मेरे पास..ये कमी आपको हर कमी से बड़ी नहीं लगती..शादी के बाद औरत पति के साथ रहने भर से हर कमी बर्दाश्त कर लेती है..और मुझे वहीं साथ नहीं मिलता…इससे बड़ी क्या कोई कमी हो सकती है ??

पर तुम्हें क्या मैं शौक से अलग रख रहा हूं… तुम्हें पता है ना कि मैं इंतजाम में लगा हुआ हूं और जल्द ही व्यवस्था होते ही तुम्हें ले जाऊंगा..पर तुम तो समझने को तैयार ही नहीं हो..

मैं नासमझ नहीं हूं प्रणव जी, पर हां आप और आपका परिवार जो मुझे समझाना चाहता है वो मेरी समझ में नहीं आता..अरे ये क्या जरूरी है कि हम अपने ही घर में जाएं..थोड़े दिन किराए के मकान में रह लेंगे तो क्या बिगड़ जाएगा..फिर धीरे धीरे बाद में घर भी खरीद लेंगे कौन सी उम्र बीत गई है हमारी?

देखो..तुम थोड़ा सा धैर्य और रखो..भैया और भाभी हमारे लिए घर देख रहे हैं जल्द ही कुछ ना कुछ इंतजाम हो जाएगा-

पता नहीं वो “जल्द” मेरी जिंदगी में आएगा भी या नहीं—सुजाता का मन कह उठा ।

प्रणव एक आज्ञाकारी पुत्र ही नहीं एक अच्छा भाई भी था.. दोनों भाई शहर में नौकरी करते थे..बड़े भाई प्रणय की शादी छह साल पहले हुई थी..वो पहले से नौकरी कर रहा था तो अपनी तनख्वाह से कतर ब्योंत कर उसने एक वन बीएचके का फ्लैट खरीद लिया था..अब किराए की जगह वो किश्तें भरता था..प्रणव की नौकरी ज्यादा पुरानी नहीं थी..शादी के बाद हर लड़की की तरह सुजाता का भी मन था कि वो प्रणव के साथ शहर में जाकर रहें..पर समस्या ये थी कि फ्लैट में एक ही कमरा था जिसमें प्रणय,दीपा और उनका साढ़े तीन साल का बेटा सोते थे और हाॅल में प्रणव… सुजाता के लिए जगह ही नहीं थी और ऐसा नहीं था कि इस विषय पर प्रणव ने पहले सोचा नहीं था..उसने सोचा था कि शादी से पहले वो आसपास में ही एक घर किराए पर ले लेगा,ताकि दोनों परिवारों में मेलजोल भी बना रहे और दिक्कतें भी ना आए।



पर प्रणय और दीपा का कहना था कि प्रणव भी उनकी तरह एक फ्लैट खरीद लें,तभी वहां से जाए..भाई भाभी के भक्त प्रणव ने भी सोचा कि सही तो कह रहे हैं वो..साल दो साल में उसकी आमदनी इतनी बढ़ जाएगी कि वो‌ मकान का किश्त भी भर लेगा और घर भी आराम से चला लेगा।

दूसरा स्वार्थ ये भी था कि जितने दिन सुजाता गांव के घर पर रहेगी,उतने दिन माता पिता की अच्छी देखभाल भी हो जाएगी। जेठानी का अलग ही स्वार्थ था कि सुजाता सास ससुर की सेवा नहीं करेगी तो उसे करनी होगी और प्रणव के रहने से मिलने वाली आर्थिक और शारीरिक मददें भी खत्म हो जाएंगी।

इधर सुजाता दुखी होती रहती…खुद तो जेठ जेठानी साथ रहते हैं और उसे अलग कर रखा है..अरे जिनके घर नहीं होते वो शहर में नहीं रहते क्या??इतनी भी कम तनख्वाह नहीं है प्रणव जी की जो वो एक वन बीएचके घर ना ले सकें…रही बात मां बाबूजी की तो जैसे प्रणव जी भैया भाभी के घर में हाॅल में एडजस्ट कर लेते हैं वो भी कर लेंगे..सुख दुख से दिन काटकर हम थोड़े ज्यादा पैसे इकट्ठे कर लेंगे तो वन बीएचके की बजाय टू बीएचके ले लेंगे ताकि मां बाबूजी को भी कमरे की दिक्कत ना हो और आने जाने वाले अतिथियों को भी ना सोचना पड़े..पर कितना भी वो समझाती प्रणव के पल्ले कोई बात नहीं पड़ती..और जेठानी जब मिलती यही कहती–

आगे बढ़ने में बहुत परेशानियां आती है सुजाता,औरत को घर बसाने के लिए कष्ट भी काटना पड़ता है ..स्वार्थ को परे रखकर अपने प्रेम को मजबूती बनाओ कमजोरी नहीं और बार बार देवरजी को परेशान मत किया करो..बेचारे दुखी हो जाते हैं

खुद कभी अलग रहीं होती जेठ जी से तब तो उसकी पीड़ा समझ पाती। बेचारी हर दिन अपनी इस कमी को रोती और ऊपरवाले से प्रार्थना करती की कुछ ऐसा हो जाए कि प्रणव जी उसे अपने पास ले जाएं…और ऊपरवाले ने उसकी सुन ही ली।



सुजाता…एक अच्छी और एक बुरी न्यूज है कौन सा सुनोगी पहले बताओ–एक दिन शाम को प्रणव का फोन आया।

पहले अच्छी ही सुना दीजिए…

मैंने एक जगह नौकरी के लिए आवेदन दे रखा था,वहां मेरा चयन हो गया है, वहां सैलरी भी ज्यादा मिलेगी और बहुत कम किराए पर दो कमरे वाला फ्लैट भी….

ये तो बहुत अच्छी खबर है…अब बुरी भी सुना दीजिए

यही की मुझे वो कंपनी दूसरे शहर में भेज देंगी..भैया और भाभी का सानिध्य नहीं मिल पाएगा..समझ नहीं आ रहा क्या करूं..भैया भाभी बहुत उदास हैं…लो भाभी से बात कर लो

सुजाता…मेरा तो दिल बैठा जा रहा है..जबसे आई हूं दोनों भाई साथ रहें हैं…टीकू भी अकेला पड़ जाएगा.. तुम्हारे भैया को तो कल से निवाला भी अंदर नहीं जा रहा…जाना जरूरी है क्या… मुझे तो लगता है साल दो साल बाद यही कंपनी वाले उतनी सैलरी कर देंगे तो परेशान क्यों होना??

भाभी..आप ही तो कहती हैं ना कि आगे बढ़ने में बहुत परेशानियां आती है..और प्रेम कमजोरी नहीं मजबूती होनी चाहिए..आप और जेठ जी उन्हें मजबूत करें कि वो नई जिम्मेदारी अच्छे से उठा सकें और तरक्की करें..ये आगे बढ़ेंगे तो आपलोगों को भी अच्छा लगेगा ना–सुजाता ने मियां की जूती मियां के ही सर मारी।

हां..पर मन बड़ा दुखी है…राम लक्ष्मण की जोड़ी टूट जाएगी..

हां वो तो है भाभी…पर एक और उर्मिला भी तो न बनेगी,किसी ना किसी को तो अपने स्वार्थ का त्याग करना ही था ना–सुजाता के मन का भड़ास निकल ही गया।

शायद ऊपरवाला भी यही चाहता था कि कलयुग में भी एक और उर्मिला ना बन जाए…जिसका कष्ट कोई ना समझे.. सुजाता की परीक्षा का अंत हो गया था…उसे उसके सब्र का फल मिलने जो जा रहा था…उसके जीवन की सबसे बड़ी कमी दूर होने वाली थी।

#स्वार्थ 

मीनू झा 

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