“गाड़ी वाला आया घर से कचरा निकाल, गाड़ी वाला आया घर से कचरा निकाल।”
खिड़की से आती सफाई विभाग की गाड़ी की आवाज सुनते ही शांतिदेवी ने अपनी बहू शुभी को आवाज लगाई- “शुभी! ओ शुभी! कचरेवाली गाड़ी आ गई है। जा बेटा, कचरा फेंक आ। शुभी! ओ शुभी!”
“लेकिन शुभी का कोई आता-पता नहीं था। रोज तो बिना बोले ही खुद ही आवाज सुनते ही दौड़ जाती थी कचरा फेंकने। आज कहाँ रह गई?” सोचते हुए शांतिदेवी बाहर हॉल में आ गई। “शुभी! ओ शुभी! कहाँ हो?”
“क्यों, शोर मचा रही हो? शांति से योग भी नहीं करने देती।” शांतिदेवी के पति मोहनलाल ने गुस्साते हुए कहा।
“मुझे क्या शौक है हल्ला मचाने का? कबसे शुभी को बुला रही हूँ कि गाड़ी आ गई है, कचरा फेंक आओ लेकिन सुन ही नहीं रही। जाने कहाँ व्यस्त है?” शांतिदेवी ने झुंझलाते हुए कहा।
“अरे भाग्यवान! वो होगी कोई काम में व्यस्त। कल फेंक आएगी, तुम भी ना छोटी-छोटी बातों से परेशान हो जाती हो।” मोहनलाल ने शांतिदेवी को शांत करते हुए कहा।
“रात का बासी कूड़ा घर में रखने से बरकत चली जाती है।लेकिन आपको कौन समझाए? अब मुझे ही फेंक कर आना पड़ेगा।” कहते हुए शांतिदेवी नीचे कचरा डालने चली गयी।
“अरे माँ! आप क्यों कचरा डालने गई?” शांतिदेवी के हाथ से कचरे का डिब्बा लेते हुए शुभी ने कहा।
“तो और क्या करती? कहाँ थी तू? शांतिदेवी ने पूछा।
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“नहा रही थी।” शुभी ने कहा।
“इतनी जल्दी, रोज तो तुम साफ-सफाई करके नहाती हो।शांतिदेवी ने चौंकते हुए कहा।
“हाँ,पर आज जल्दी आँख खुल गई तो सोचा पहले रेडी हो जाऊँ फिर बाकी काम कर लूँगी।मैं अभी आपके लिए अदरक वाली चाय बनाकर लाती हूँ। ये कहकर शुभी किचन में चली गईं।
दूसरे दिन फिर गाड़ी की आवाज़ आने पर शांतिदेवी ने शुभी को आवाज़ दी। “शुभी! जा बेटा, कचरेवाली गाड़ी आ गई।”
” हाँ माँ, पूजा कर रही हूँ। बस 5 मिनट में आती हूँ।” शुभी ने जवाब दिया।
5 के 10 मिनट होने आए पर शुभी की पूजा खत्म ही नहीं हो रही थी। हारकर शांतिदेवी को कचरा फेंक कर आना पड़ा।
“सॉरी माँ, सुंदरकांड का पाठ करने में देर हो गई।” आरती देकर पाँव छूते हुए शुभी ने कहा।
“तुम कबसे सुंदरकांड का पाठ करने लगी?” शांतिदेवी ने हैरानी से पूछा।
“हाँ माँ, अबसे मैं हर मंगलवार सुंदरकांड का पाठ करूँगी। आप ही तो कहती हैं कि पाठ करने से घर में सुख-शांति रहती है।” प्रसाद देते हुए शुभी ने कहा।
तीसरे दिन भी गाड़ी आने पर शुभी का कोई अता-पता नहीं था।जब शांतिदेवी ने खोज की तो पता चला कि शुभी छत पर कपड़े सूखा रही है। आखिरकार उन्हें कचरा डाल कर आना पड़ा।
अब तो यह रोज का ही हो गया। रोज शुभी कोई न कोई काम में व्यस्त रहती और शांतिदेवी को नीचे कचरा फेंक कर आना पड़ता।
एक दिन ऐसे ही शांतिदेवी कचरा फेंक कर आकर बैठी ही थी कि बेटी विभा का फोन आ गया।”हेलो माँ, कैसे हो?” विभा ने चहकते हुए पूछा।
“ठीक हूँ, बेटा” उन्होंने धीरे से कहा।
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“अरे माँ! तुम्हारी साँस क्यों फूली सी लग रही है? तबीयत तो ठीक है ना। विभा ने चिंतित होते हुए पूछा।
“हाँ, तबीयत तो ठीक है।अभी कचरा फेंककर चार तल्ले चढ़कर आई हूँ।इसलिए तुझे ऐसा लग रहा होगा।” उन्होंने उदास होते हुए कहा।
“लेकिन कचरा तो रोज भाभी फेंकती हैं ना?” विभा ने पूछा।
“हाँ, पहले तो शुभी ही फेंकती थी लेकिन पता नहीं इधर हफ्ते भर से वह किसी ना किसी काम में व्यस्त ही रहती है और मुझे कचरा फेंक कर आना पड़ता है।अब तो मुझे ऐसा लगता है कि वह जानबूझकर ऐसा करती है। आज तो मिसेज वर्मा भी मेरा मजाक उड़ा रही थी कि लगता है अब कचरा फेंकने की ड्यूटी आपकी लगी है।” शांतिदेवी ने थोड़े गुस्से में कहा।
“क्या माँ? आप भी! भाभी ऐसा क्यों करेगी? कितना ध्यान रखती है वो हम सबका। मैं अभी भाभी से बात करती हूँ।” कहते हुए विभा ने फोन रख दिया और शुभी को फोन मिलाया ।
“हेलो भाभी, क्या कर रहे हो?” विभा ने पूछा।
“खाना बना रही हूँ।आप बताइए क्या चल रहा है।” शुभी ने हँसते हुए कहा।
“सब बढ़िया चल रहा है भाभी। बस अभी माँ से बात हुई तो वो कुछ परेशान सी लग रही थी।” विभा ने कहा।
“परेशान, पर क्यों?” शुभी ने चिंतित होते हुए पूछा।
“बोल रही थी कि आजकल आप कचरा फेंकने नहीं जाती हो तो उन्हें जाना पड़ता है।कह रही थी कि अब तो सोसाइटी में भी सब उनका मजाक बनाने लगे हैं कि ये उनकी ड्यूटी हो गई है। बहुत उदास लग रही थी।” विभा ने कहा।
“ओह, तो ये बात है। दीदी, अच्छा तो मुझे भी नहीं लगता कि मेरे होते हुए माँ कचरा फेंकने जाए।पर मैं क्या करूँ?माँ को कितना समझाया,पर माँ समझती ही नहीं।ना एक्सरसाइज करती है ना वॉक। कुर्सी पर बैठे-बैठे पूरा दिन निकाल देती है जो उनकी हेल्थ के लिए बिल्कुल सही नहीं है।
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यदि वह ऐसा ही करती रही तो वह दिन दूर नहीं जब वह अपने छोटे-छोटे कामों के लिए दूसरों का मोहताज हो जाऍंगी।इसलिए मुझे यह रास्ता निकालना पड़ा। गाड़ी आने से पहले ही मैं कोई न कोई काम में बिजी हो जाती हूँ जिसकारण माँ को कचरा फेंककर आना पड़ता है।इसी बहाने उनका चार तल्ला चढ़ना उतरना तो होता है।” शुभी ने कहा।
“वाह भाभी! इस तरह से तो हमने सोचा ही नहीं।” विभा ने शुभी की तारीफ करते हुए कहा।
“बस, दीदी अब आखिरी काम आपको करना है। अभी लोहा गरम है, हथौड़ा मार दीजिए।” शुभी ने गम्भीरता से कहा।
“मैं कुछ समझी नहीं भाभी।” विभा ने कंफ्यूज होते हुए कहा।
“देखिए दीदी, सोसाइटी में मज़ाक बनने से माँ परेशान है, तो आप उन्हें समझाइये कि यदि वे चाहती हैं कि सोसाइटी में उनका मजाक ना उड़े तो वे एक्सरसाइज शुरू कर दें और मैं फिर से कचरा फेंकना शुरू कर दूँगी।” शुभी ने हँसते हुए कहा।
विभा ने जब सारी बातें माँ को बताई तो उन्होंने शुभी के कान पकड़कर हँसते हुए कहा कि “तू तो सवा सेर निकली।” अब शांतिदेवी ने एक्सरसाइज शुरू कर दी और शुभी ने फिर से कचरा फेंकना।
धन्यवाद
साप्ताहिक विषय प्रतियोगिता #मोहताज
लेखिका-श्वेता अग्रवाल
धनबाद, झारखंड
शीर्षक-सवा सेर