सौतेली माँ – डॉ बीना कुण्डलिया : Moral Stories in Hindi

आज सुबह से ही राकेश विचित्र मनोस्थिति में फंसा था । घर वाले उसका दूसरा विवाह करवाने पर जोर डाल रहे थे ‌। मगर वो मालती को कैसे भूला सकता था। जो कुछ माह पूर्व उसको सदा के लिए छोड़कर परलोक सिधार चुकी थी और नन्ही-सी जान पीहू को उसके हाथों सोंप गई थी। पीहू को पालने में सुलाकर राकेश मालती की तस्वीर के आगे खड़ा हो गया…बेइंतहा प्रेम था दोनों में, जैसे की एक दूसरे के लिए ही बने हों,एक पल उसके ही ख्याल में उसकी आवाज संग डूबता चला गया राकेश…

 राकेश देखना हमारा प्यार हमेशा अधिक सुंदर ताजा शालीनता से खिलेगा क्योंकि हमारा प्रेम सच्चा है। मैं तो तुम्हारा प्रेम पाकर घन्य हो गई…

पता है हमारा वैवाहिक जीवन कैसा है….?

हर सुबह एक कप काफी पीने जैसा….!

एक कप काफी, जिसे मैं हर दिन पी सकती हूँ…लेकिन फिर भी नित्य इसका आनंद ले सकती हूँ । ‌ जहां प्यार है वहीं जीवन है राकेश तुम मेरे इस एहसास, विश्वास को सदा बनाए रखना…।

मालती की आवाज जैसे राकेश के कानों में रह- रह कर टकराने लगी …अक्सर वो इन शब्दों को बोला करती थी। और निहाल हो जाता था राकेश मालती का स्नेह पाकर।

वो अप्रत्याशित पल ओह ऽऽ एक दर्दनाक आह के साथ राकेश की आंखों से आँसुओं का सैलाब बह निकला….

मालती से मिलन के वो अन्तिम पल ..मालती माँ बनने वाली थी अस्पताल जाते वक्त कितनी खुश थी वो, घर के सभी सदस्यों में एक नवीन उत्साह चेहरे में चमक बरकरार थी । मगर कुछ घन्टों में सारी खुशी गम में बदल गई पीहू, हाँ उसकी बेटी पीहू नाम उसने पहले ही सोच रखा था । डिलीवरी के वक्त खून की कमी अन्तिम समय मुश्किल से दो पल ही बोल पाई थी वो.. डाक्टर का डिलीवरी रूम से बाहर आकर कहना राकेश कहां हैं राकेश उनसे से मिलवा दीजिए, जल्दी कीजिए प्लीज़….पेशेन्ट के पास अधिक समय नहीं है…बदहवास सा भाग कर मालती के पास पहुँचा राकेश और फिर पीहू को उसके हाथों में सोंपकर …

दो पल का सुकुन – मीनाक्षी सिंह : Moral Stories in Hindi

“माफ करना राकेश शायद इतना ही साथ लिखा था तुम्हारा हमारा “ अगर फिर जन्म लिया तब तुमसे जरूर …राकेश 

आज से तुम ही मेरी पीहू की मां पिता हो दोनों ही भूमिका में खरे उतरना और फिर उसकी आँखें सदा सदा के लिए बन्द हो गई । सदा के लिए बिछुड़ गई मालती । भीतर तक टूटकर रह गया राकेश ।

माता पिता ने बेटे की हिम्मत बढ़ाई। मालती का अन्तिम संस्कार हो गया , राकेश ने मुश्किल से अपने को संभाला और मालती को अन्तिम विदाई दी । उसकी यादें घर में उसको काटने दौड़ती। माता-पिता ने बहुत समझाया, सहारा दिया, हिम्मत बढ़ाई, इकलौते बेटे का दुख ऊपर से उनकी वृद्ध अवस्था, शारीरिक अस्वस्थता टूटकर रह गये माँ पिता भी ।

अब परिस्थिति,और समय के चक्र के आगे किसकी चलती होता वही जो नियति को मंजूर होता है। यहीं आकर इंसान मजबूर हो जाता है।

अचानक पीहू के रोने की आवाज सुनकर राकेश के पिता कमरे में दौड़े आये ,बेटे को स्वर्गीय  बहू की तस्वीर के आगे बूत सा बन खड़ा देख आवाज लगाई राकेश , राकेश…. अचानक राकेश की तन्द्रा टूटी ।

 पिता बोले बेटा पीहू कब से रोये जा रही है ।

 “और तुम जाने किन-किन ख्यालों में खोये हुए हो” ।

  बेटा…राकेश !!  “ भावनाओं पर काबू रखों , पीहू की जिम्मेदारी भी संभालनी है तुमको “ ।

बड़ा ही कठिन समय माता-पिता दोनों का प्यार देना कैसे कर पायेगा वो ये सब…. राकेश सोचने पर मजबूर असहाय…होता जा रहा था… ? 

कुछ महीने गुजर गये । माता-पिता का स्वास्थ्य भी साथ नहीं दे रहा था ‌…माता पिता उसकी दूसरी शादी कर देना चाहते थे। ताकि उनके रहते उसका घर दुबारा बस जाये । पिता के स्वर्गीय दोस्त दयाशंकर जी की इकलौती बेटी ‘नैना माता पिता के स्वर्गवास के बाद चाचा-चाची के संरक्षण में पल रही । बड़ी दुखी है बेचारी परिस्थिति के आगे मजबूर चाची ने तो नौकरानी बना रखा घर में उसको उनके बच्चों की देखभाल पढ़ाना लिखाना सारी जिम्मेदारी डाल रखी नैना पर ।

“हां शून्य है मेरे पापा” – ऋतु गुप्ता : Short Story in hindi

पिता ने जिद की बेटा हमारा भी क्या भरोसा ऊपर वाला कितनी जीने की मौलत बख्शता है। तुम अकेले पीहू को कैसे संभाल पाओगे ..? आॅफिस भी तो है तुम्हारा ।

माँ ने कहा बेटा एक बार नैना से मिल तो लो, बहुत अच्छी लड़की है मैं मिली हूँ उससे। अच्छे से परखा है मैंने उसे।

आज वो नैना के सामने खड़ा…उसने पीहू को नैना की गोद में डालकर पूछा नैना क्या तुम इसको अपने बच्चे सा प्यार दे पाओगी क्योंकि मैं इसके और माता पिता के आगे विवश हूँ मुझे पत्नी नहीं पीहू की ‘माँ की आवश्यकता है। मैं इसे ‘सौतेली माँ’ नहीं देना चाहता अगर तुमको म़जूर हो तभी मैं इस शादी के लिए राजी होऊंगा । शादी तो मात्र दिखावा असल में तुम मेरे घर में केवल पीहू की माँ बनकर रहोगी ।

नैना ने पीहू को गोद में लिया उसकी निश्छल मुस्कुराहट …नैना को उस कमी का अहसास होने लगा जो वो खुद अपने जीवन में महसूस कर रही थी। उसका भी तो कोई सरक्षक नहीं था । 

माँ की जगह भला कौन ले सकता है..? कोई भी रिश्ता मा़ँ समान प्रेम नहीं दे सकता..? नाज नखरे माता पिता ही उठा  सकते हैं। बिना माँ के बच्चों पर जरूरत का आभाव सदा बना रहता है।

वो अच्छे से जानती अनाथ होने का अनुभव गम्भीरता के पैमाने पर मौजूद अलग-अलग और भावनात्मक रूप से त्यागा जाना संभव है। और यह परित्याग कई स्तरों पर मौजूद हो सकता है।

नैना जानती है उसके पास बस मात्र छत है।उसके पास बस भोजन है। 

वो प्यार को कितना तरसती ,उसे बहुत आघात पहुंचता…उसी आघात के कारण उसे तलाश रहती…भावनात्मक उपेक्षा, अकेलेपन की कमी और अपने व्यस्क जीवन का खालीपन दूर करने की ।

नैना राकेश को विश्वास दिलाती है मै बनूंगी पीहू की मा़ँ …मुझे रिश्ता मंजूर है.. 

मैं इसकी माँ की सौगंध  खा कर कहती हूँ इसको उनका जैसा ही प्यार दूंगी । कभी शिकायत का मौका नहीं दुंगी।

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नैना राकेश की शादी सादगी से सम्पन्न हो जाती है। पीहू की माँ बनकर नैना उसकी देखभाल करने लगती है। वह अपने ममता के आंचल में उसको समेटे रहती ।उसकी लौरी की तरंग जब राकेश के कानों में गूंजती उसको बहुत आत्मीयता का अहसास होता । जब उसकी मीठी मीठी सरगम गीतों की लय पकड़ती,और वो पीहू को थपथपाती तो  नैना के हृदय की कोमलता, विशालता का दर्शन होता। वो उसके नहाने खाने सारी जिम्मेदारी बखूबी निभाती ।

राकेश मालती की तस्वीर के आगे खड़ा घन्टों निहारता कहता देखों मालती मैं पीहू को माँ के प्यार से वंचित नही रख सकता था‌ तुम देख ही रहीं होगी उसको वो प्यार पूरा मिल रहा है। लेकिन पत्नी का दर्जा मै किसी को नहीं दे सकता उस पर केवल तुम्हारा ही हक था ‌।

नैना ने पीहू और घर की सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली ।और राकेश ने अपने को आफिस में व्यस्त कर लिया देर रात तक कार्य में लगा रहता।

समय बीतता राकेश के माता-पिता का निधन कुछ माह अन्तराल में ही हो जाता है दोनों मधुमेह से पीड़ित थे । 

नैना दुनिया दारी रीति रिवाज रिश्तों से परे उनके ताने बाने समझने को तैयार नहीं थी । 

सौतेली मां की छवि समाज में कुछ अलग ही बनी है जिसमें ज्यादातर बाहरी लोगों का हस्तक्षेप भी आग में घी डालने जैसा काम करता है। जो माँ के प्रति बच्चे को सहज नहीं होने देता । पीछे अहसास करवाया जाता ये औरत उसकी सगी माँ नहीं है। और बच्चे भी ये मान लेते हैं। जिससे स्थिति बिगड़ने का डर बना रहता। इसलिए ‌नैना एक पल भी पीहू को अपने से अलग नहीं करती ।

नैना का प्यार अपनत्व संरक्षण पीहू बड़ी हो गई उसको इस बात का अहसास ही नहीं की नैना उसकी अपनी माँ नहीं है। अक्सर हार चढी मालती की तस्वीर देख नैना से पूछती ये कौन है…? नैना बड़े प्यार से समझाती बड़ी माँ है बेटा …लेकिन हमसे मिलने क्यों नहीं आती पीहू, नैना के गले लिपट पूछ बैठती…भगवान के घर चली गई बच्चे वो …मुझे छोड़ गई तुम्हारे पास नैना जवाब दे पीहू को बहलाती।

ओह.. भगवान के घर .. लेकिन माँ तुम मत जाना मुझे छोड़कर भगवान के घर पीहू के इस प्रश्न पर नैना उसे गला से चिपका लेती …

नैना और पीहू के ऐसे वार्तालाप सूनकर राकेश का दिल भी बैठ सा जाता ।

वैसे भी बच्चे प्यार के भूखे होते हैं…वैसे  ही पीहू भी थी । जब उसे वो प्यार ममता पूरी तरह से नैना से मिल रही तो वो भला सन्तुष्ट क्यौं न होती…? 

हर पुरूष पिता नहीं  हो सकता – पूनम अरोड़ा

आज तो सुबह से ही घर में चहल-पहल पीहू का इक्कीसवा जन्मदिन वैसे तो हर वर्ष ही धूमधाम से मनाया जाता लेकिन इस बार कुछ विशेष था । पीहू ने कुछ समय पहले ही नैना को नीलेश से मिलवाया था । वो उससे मोहब्बत करती उसके साथ ही यूनिवर्सिटी में पढता था । फिर नैना ने कितनी सहजता चतुराई से राकेश को यह सब बताया, नीलेश अच्छे खानदान का शरीफ लड़का राकेश उससे मिलकर बहुत खुश होता है। आज पीहू, नीलेश के परिवार वाले एकत्रित हो रहे दोनों की सगाई की रस्म भी निभाने का प्रोग्राम बना हुआ है।

सगाई हो गई कुछ माह बाद ही शादी करके पीहू ससुराल चली जाती है। पीहू को विदा करके नैना का आंचल जैसे खाली सा हो जाता है। वो द्वार पर खड़ी देर तक ताकती रह जाती है। सारे बाराती चले जाते हैं नैना सुनसान राह को ताकती उसको एक अजीब से खालीपन का अहसास होता है। राकेश नैना को देखकर पास आकर कहता है नैना …

     “ यहां अकेली क्यौ खड़ी हो नैना “…?

    नैना उदास, आंसुओं से भरी आँखो़ से राकेश को देखती है।

     उसकी उदासी की गहराई जैसे कहना चाह रही हो..देखो राकेश मैंने अपना वादा पूरा कर दिया है। अपने आँचल की छाँव में सौतेली माँ के साये से दूर पीहू को सुरक्षित संरक्षित परवरिश देने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

आज राकेश फिर अजीब मनोस्थिति से गुजर रहा उसकी समझ में नहीं आ रहा उसने नैना के साथ न्याय किया या अन्याय ‌वो नैना के ममतामई स्पर्श का जादू पीहू पर देख चुका था । उसके मन में बरसों दबी भावनाएं जाग उठी। उसने नैना का हाथ पकड़कर सहृदयता से जवाब दिया नैना तुमने पीहू का पालन-पोषण अपनी सन्तान से भी ज्यादा बढ़कर किया।

वो उसको लेकर मालती की तस्वीर के सामने खड़ा हो जाता है। एकटक राकेश और नैना को निहारती तस्वीर, मानों कह रही हो… ‘माँ तो ‘माँ होती है इस ‘माँ शब्द के आगे सौतेली माँ न लगाओ । सौतेली शब्द लगाकर माँ शब्द की मिठास को दूषित मत करो ।

 राकेश मालती की तस्वीर के आगे खड़ा कहता है… मालती मैंने तुमको तो खो दिया लेकिन मैं नैना को खोना नहीं चाहता। बीस वर्ष उसने हमारी बेटी के लिए जो त्याग निस्वार्थ समर्पण किया उस कीमती समय की कीमत को तो मैं नही चूका सकता…. लेकिन आज उसको प्यार और समय देने की बहुत जरूरत है…उसके जीवन के खालीपन को भरना मेरा फ़र्ज़ बनता है। फिर उसने नैना की तरफ देखा…. नैना की आंँखें आँसुओं से भीग जाती है गला रूंध जाता है वह चाहकर भी कुछ नहीं कह पाती और वो राकेश के गले लग जाती है।

     लेखिका डॉ बीना कुण्डलिया 

           28 .3 .25

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