” नहीं माँ…अब मैं यहाँ एक पल भी नहीं रुकूँगी…जहाँ मेरे परिवार का अपमान हो..वहाँ का पानी पीना भी मेरे लिये हराम है..।” कहते हुए रचना बैग में अपने कपड़े रखने लगी।
” लेकिन बेटा…तुझे भी तो भाभी की बहन के लिये वो सब नहीं कहना चाहिये था।” शकुंतला जी बेटी को समझाते हुए बोली।
” बात तो भाभी ने ही शुरु की थी।” गुस्से-से रचना बोली।
” बहू ने..उसने ऐसा क्या कह दिया कि तेरा खून खौल उठा…।”
” भाभी ने…नहीं माँ…मैं नहीं कह पाऊँगी।” नम आँखों से रचना अपना बैग पैक करने लगी।
शकुंतला जी एक सम्पन्न घराने से ताल्लुक रखती थीं।उनके पति मनोहर जी की गिनती शहर के जाने-माने व्यवसायियों में होती थी।शहर के पाॅश एरिया में उनकी बड़ी कोठी थी।उन्होंने अपने बेटा राघव और बेटी रचना को बड़े लाड़ से पाला था।ग्रेजुएशन के बाद राघव कनाडा चला गया।वहाँ से वह बिजनेस मैनेजमेंट की डिग्री लेकर पिता के व्यवसाय को संभालने लगा।कुछ महीनों बाद शकुंतला जी ने अपने जैसे ही ऊँचे खानदान की लड़की प्रिया के साथ उसका विवाह करा दिया।
राघव से चार साल छोटी थी रचना।देखने में सुंदर और स्वभाव की सरल।अपनी खूबसूरती और पिता की सम्पत्ति का उसे ज़रा भी घमंड न था।प्रिया अपने छोटे भाई से रचना का विवाह कराना चाहती थी।रचना के बीए फ़ाइनल का परीक्षा होने के बाद प्रिया ने अपनी सास से रचना के साथ अपने भाई के विवाह की बात चलाई।रचना के कानों तक जब ये बात पहुँची तो उसने मना कर दिया और अपनी पसंद के लड़के वेदांत से शादी कर ली जो मुंबई के एक मल्टीनेशनल कंपनी में ज़ाॅब करता था।
वेदांत एक मिडिल क्लास की फ़ैमिली से ताल्लुक रखा था। उसके पिता का एक ग्राॅसरी शाॅप था। इसलिये रचना के परिवार वाले उसकी शादी से नाखुश थे।रचना के बहुत कहने पर जब शकुंतला जी और मनोहर जी वेदांत और उसके माता-पिता से मिले तो उनकी सादगी से बहुत प्रभावित हुए।तब उन्हें महसूस हुआ कि व्यवहार ही सबसे बड़ी दौलत है जो वेदांत के पास थी।
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लेकिन यह बात प्रिया को पसंद नहीं आई…उसे लगा कि रचना ने उसके भाई से विवाह न करके उसका अपमान किया है।
एक दिन रचना अपने पति के संग मायके आई हुई थी।डाइनिंग टेबल पर नाश्ता सर्व करते समय प्रिया बोल पड़ी,” वेदांत जी…हमारी रचना को मँहगे कपड़ों का बहुत शौक है..कहीं आपकी सैलेरी कम पड़ जाये तो हमसे माँग लीजियेगा..।” भाभी का व्यंग्य सुनकर रचना तिलमिला गई।वह जवाब देती लेकिन वेदांत ने उसे रोक दिया।इसी तरह से प्रिया जब भी मौका मिलती, रचना के सास-ससुर के लिये भी अपशब्द बोलने में ज़रा भी नहीं हिचकिचाती थी।
रचना अपने डेढ़ साल के बेटे आरव को लेकर मायके आई हुई थी।उसकी माँ अपने नाती को सोने की चेन पहनाने लगी।पास में खड़ी प्रिया तपाक-से बोल पड़ी,” पहना दीजिये मम्मी जी…रचना के ससुराल वालों की इतनी औकात कहाँ..।” तब शकुंतला जी बोली,” बहू…कपड़े-गहने से किसी की औकात नहीं होती है..असली गहना अच्छा व्यवहार होता है जो इसके ससुराल में है।” राघव और मनोहर जी भी प्रिया को समझाते कि दो दिन के लिये तुम्हारी ननद आती है…उसे अपमानित करके तुम्हें कौन-सा सुख मिल जाता है।लेकिन प्रिया उनकी बातों को अनसुना कर देती।
आरव की गर्मी की छुट्टियाँ शुरु हुई तो रचना दस दिनों के लिये माँ के पास चली आई।आरव दिन-भर प्रिया के बेटे अंकित के साथ खेलता और रात को अपनी नानी से कहानी सुनता।एक दिन टीवी का रिमोट लेने के लिये दोनों बच्चों में झगड़ा होने लगा…तुरंत प्रिया आई और आरव के हाथ से रिमोट लेते हुए कुछ ऐसा कहा जो रचना से बर्दाश्त नहीं हुआ।तब उसने भी कह दिया कि आपका बहनोई तो अपने ससुराल के टुकड़ों पर पल रहा है।
शकुंतला जी मंदिर गई हुईं थीं..आने पर उनके कानों में रचना के शब्द सुनाई पड़े जो उन्हें अच्छा नहीं लगा।बेटी को वापस जाने की तैयारी करते देख उन्होंने पूछ लिया। रचना को चुप देखकर उन्होंने ज़ोर देकर पूछा,” बता न.. प्रिया ने क्या कहा?”
” माँ…आप तो देखती ही हैं कि भाभी मेरे ससुराल वालों को कितना अपशब्द कहती रहतीं हैं।रिमोट लेने के लिए बच्चे आपस में झगड़ा करने लगे..भाभी आरव से रिमोट छीनते हुए बोलीं,” परचूनिये का पोता..टीवी देखकर क्या करेगा।” अपने ससुराल वालों के लिये ऐसे शब्द सुनकर मेरा खून खौल उठा।मैंने भी कह दिया कि वो जैसे भी हैं..अपनी मेहनत का खाते हैं..आपके बहनोई की तरह ससुराल के टुकड़ों पर तो नहीं पलते।अपने ससुराल का अपमान मैं हर्गिज़ सह नहीं सकती माँ ..इसलिये जा रही हूँ।”
” मैं मानती हूँ कि प्रिया की गलती है लेकिन बेटा..तुझे भी बड़ों का सम्मान करना चाहिए।अपने संस्कार तो नहीं भूलने चाहिए।” शकुंतला जी ने बेटी को समझाया।
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” ठीक है..आप कहती हैं तो भाभी को ‘साॅरी’ कह आती हूँ लेकिन अब यहाँ कभी नहीं आऊँगी।” कहते हुए रचना कमरे से बाहर जाने लगी..तभी प्रिया आ गई।रचना का हाथ पकड़कर बोली,” अपनी भाभी को माफ़ नहीं करोगी…अपने अहंकार में मैं रिश्तों के महत्त्व को भूल गई थी।तुम्हारे इंकार को मैंने अपने दिल पर ले लिया और अनाप-शनाप बकती चली गई।मैं भूल गयी थी कि मायके या ससुराल वाले के लिए अपशब्द सुनकर किसी का भी खून खौल उठता है।फिर मेरी भाभी ने मुझे समझाया और तुम्हारे भैया ने भी…तो मेरी ननद रानी..अब तुम कहीं नहीं जाओगी…मैंने वेदांत जी से भी माफ़ी माँग ली है और कह दिया है कि जब तक आरव की छुट्टियाँ हैं..दोनों हमारे पास ही रहेंगी।” कहते हुए उसने अपने हाथ जोड़ लिये।
रचना का गुस्सा छू-मंतर हो गया।भाभी का हाथ बोली,” ऐसा मत कीजिये भाभी… साॅरी तो मुझे कहना चाहिये…।” रचना भावुक हो गयी और फिर ननद-भाभी ने एक-दूसरे को गले लगा लिया।तभी दौड़ता हुआ आरव आया,” मामी..भूख लगी है।” अंकित भी बोला, ” मुझे भी…।” प्रिया ने दोनों बच्चों को अपने अंक में समेट लिया और उन्हें लेकर किचन में चली गई।शकुंतला जी रचना के माथे पर प्यार-से हाथ फेरते हुए अपने पति से बोलीं,” देखिये तो..मेरी बेटी और बहू कितनी समझदार हैं।” मनोहर जी दोनों को देखकर मुस्कुरा दिये।
विभा गुप्ता
स्वरचित ©
# ऐसे शब्द सुनकर मेरा खून खौल उठा “