रूपा ने आज सुबह काकी के पैर छुए तो काकी के मुँह से निकला सौभाग्यवती भव : . रूपा की ऑंखें भर
आयीं : काहे की सौभाग्यवती अम्मा , वो तो चले गए ?? कहकर रूपा रो पड़ी। काकी ने उसे उठाकर अपने
पास बिठा लिया। तू जानती है सौभाग्यवति का मतलब क्या होता है ?? वही जिसके पति की दीर्घायु हो ,
जो पुत्रवती हो। …. रूपा उदास होकर बोली……. . अरे नहीं रे !!!! काकी ने ठंडा श्वास छोड़ते हुए कहा :
सौभाग्यवती का अर्थ होता है , तुम्हारा भाग्य सदा चमकता रहे, तुम्हारा दामन खुशियों से भरा रहे। हाँ ये
अलग बात है हमारे समाज में इसे पति और पुत्र के साथ जोड़ा जाता है। लोग विधवा को सौभाग्यवती होने
का आशीर्वाद नहीं देते , उन्हें लगता है पति की मृत्यु के बाद एक स्त्री के जीवन की ख्वाहिशें ख़त्म हो जाती
हैं , पर ऐसा तो नहीं होता ना। क्यों री उसे जीने का हक नहीं हे क्या ??
और तू कौन सी सौभाग्यवती थी ? सच बताना क्या तू खुश थी उसके साथ?? कितने प्यार से तुझे घर लाये
थे , लेकिन वो तो तेरा दुर्भाग्य बनकर आया था। क्यों सच कहा ना ?? काकी ने उसकी आँखों में झांकते हुए
कहा। सच ही तो कह रही थी काकी
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……
5 साल पहले राजेश की दुल्हन बनकर आयी थी इस घर में। परिवार के नाम पर पति राजेश, सास शांति
देवी , जेठ – जेठानी और बूढ़ी काकी ही रहते थे। जेठ जी सपरिवार शहर में रहते थे। राजेश , अपनी माँ के
लाडले और बिगड़ैल बेटे थे। सारा दिन दोस्तों के साथ आवारागर्दी , नशे करना , लड़कियां छेड़ना बस यही
काम था। शांति जी ने सोचा बहु आएगी तो उसे सुधार देगी। पर जो माँ की बात न सुनता हो , बीवी की
क्या सुनेगा ?बिना दान दहेज़ के गरीब घर की रूपा से उसकी शादी करवा दी। शादी के दिन ढेरों
आशीर्वाद मिले थे , सौभाग्यवती भव् :, पुत्रवती भव :, सदा खुश रहो। पर वो कहां खुश रह पाई ? नशे की
हालत में या कभी यूँ भी वो रूपा पर हाथ उठा देता था। रूपा के लिए सबकुछ दिन प्रति दिन असहनीय
होता जा रहा था।
उसने शांति जी से बात की तो उन्होंने ने भी ये कहकर पल्ला झाड़ लिया की पतियों को सुधारना पत्नियों
का काम होता है। पति को वश में करना भी नहीं जानती क्या ? बेचारी अपना सा मुंह लेकर रह गयी थी।
काकी को उससे बड़ी सहानुभूति थी। रूपा उनके साथ ही अपना दिल हल्का किया करती। एक बार तो
राजेश ने रूपा को इतना मारा था की बेचारी तीन दिन तक बिस्तर से ही नहीं उठ पायी। राजेश के जब –
तब मारने की वजह से ही उसके दो गर्भपात हो चुके थे।
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उस दिन भी वो रूपा को मारकर घर से नशे की हालत में निकला था , कि शाम को उसके एक्सीडेंट होने
की खबर आयी। गाड़ी से निकलने का उसे मौका ही नहीं मिला, जिन्दा ही जल गया था उसमें । शायद
यही भगवान् का न्याय था। एक महीने बाद रूपा ने सास से नौकरी करने की इजाज़त मांगी, तो उन्होंने दे
दी। जीवनयापन करने के लिए कुछ तो करना ही था। पास के स्कूल में छोटे बच्चों को सँभालने का काम
मिल गया।
आज पहला दिन था, रूपा तैयार होकर निकली तो काकी के पैर छुए। काकी ने ढेर सारे आशीर्वाद दिए
और अंत में कहा सौभाग्यवती भव : रूपा मुस्कुराकर घर से निकल गयी , आख़िरकार उसे भी सौभाग्यवती
का सही अर्थ मिल गया था।
समिता बड़ियाल