“इना!करवा नहीं भेजा तुम्हारी माँ ने?”करवा चौथ के दिन इना की सास सुनीता जी इना के मायके से आए बायने का समान फैलाकर बैठी थीं!
इना-“मम्मी जी!माँ ने चेक भेजा है कि अपनी पसंद का चाँदी का करवा मंगा लें, कोरियर में खोने का डर था”,
“हाँ पर चेक में पानी भर कर अर्ग देगी क्या?”
चश्मा नाक पर सरका कर सुनीता जी गुर्राई!
इना के पति समर ने कहा” मम्मी आप बताइए कैसा लाना है मैं ले आता हूँ “,
अरे! तू कहाँ जाएगा?सुबह से ही बीवी की चाकरी में लगा है चार बजे उठकर सरगी खिलाई और अब भी चौके में घुसा है,भई!हमने भी करवा चौथ के बरत करे थे, पर हमारी दरोगन अम्मा जी के सामने तेरे पापा मेरा जरा सा भी हाथ बंटाने में शरमावें थे।
मम्मी! एक बात कहूँ !समर घिधीयाते सा बोला”इना को थोड़ा जूस दे दें क्या?निर्जल कैसे रहेगी?मम्मी एकदम उछल कर बोलीं”अरे! हम भी प्यास के मारे हलकान हुए थे,पर मजाल है जो एक घूंट पानी हमारी अम्मा जी ने गटकने दिया हो।ये नई नई रीतें चलाने की जरूरत ना है।
मम्मी जी इना से बोलीं-“मेरी साड़ी भी ठीक ही है पर तेरी साड़ी जैसी नहीं है,अरे! अपनी बेटी को तो जिंदगी भर देंगी, पहली बार तो सास को बेटी के ऊपर रखती, खैर”!
मम्मी जी का मोबाइल बजा उधर से इना की ननद रीना थीं,”क्यूँ मम्मी!दोनों हाथों से बटोर रही हो क्या समधीयाने का माल?
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“अरी बिटिया काहे का माल!बस मेरी साड़ी और शाल है, तेरी साड़ी के साथ , तेरे पापा ,दामाद जी और समर के सूट का कपड़ा!सब पर टैग तो बहुत मंहगे लगे हैं राम जाने!देखने में तो ऐसे ही लगैं हैं।
बस !हमें सस्ते मे ही टरका दिया।
मिठाई तो इतनी कम कि क्या घर में रखूं क्या मोहल्ले में बांटूं?
पहली करवा चौथ थी कुछ तो ढंग का भेजा होता।”सुनीता जी बहुत देर तक बुड़बुड़ाती रही।
“पर मम्मी तुमने तो मेरी पहली करवा चौथ पर मेरी और मेरी सास की साड़ी के अलावा कुछ भी नहीं दिया था,मेरी सास ने तो मुझे कुछ भी नहीं सुनाया था,धीरे बोलो! इना सुनेगी तो क्या सोचेगी?रीना ने धीरे से कहा!
” सुनती है तो सुन ले मैं क्या किसी से डरती हूँ?परसों ही मेरी सहेली रमा ने अपनी बहू का करवा चौथ का बायना देखने को बुलाया था,क्या बताऊं इतना सामान था, मेरी तो आंखें खुली की खुली रह गई।
सुनीता देवी बहुत देर तक बुड़बुड़ाती रहीं
” सोचा था कोई बात नहीं मेरी बहू के मायके से इससे इक्कीस ना आए तब कहियो?मेरी तो नाक ही कट गई।अब रमा सारे मोहल्ले में सिर ऊंचा करके घूमेगी”।
रीना ने मां को समझाया कि इन चीजों में कोई बराबरी नहीं होती,आप खुद देखो “रमा आंटी की बहू कैसी है उसे बड़े- छोटे किसी का लिहाज नहीं, लाज-शर्म तो उससे कोसों दूर है,आंटी कितनी बार आपके पास आकर रो चुकी हैं बहू के व्यवहार को लेकर?
उधर हमारी इना हजारों की भीड़ में अलग दिखाई देती है,पूरे मोहल्ले में उसकी जैसी कोई नहीं है।तुम इतना कुछ कह देती हो कभी पलट कर जवाब नहीं देती।फिर जितना उसके पीहर से आया उतना तुम्हें तो कभी नहीं देना पड़ा, मेरे ससुराल वाले तो जो भी तुम भेजती हो कभी मीन-मेख नहीं निकालते,हमेशा तारीफ ही करते हैं”।
तुम्हारी नाक तो इना की वजह से ऊंची है,सामान तो सिर्फ दिखावा है ,किसी के लिए दिये से घर थोड़े ही भरता है असली गहना तो इना के रूप में हमें मिला है आप ये क्यों भूल जाती हो”।
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” बस बसअब लेक्चर बंद कर!पता है जब से समर का ब्याह हुआ था मेरे मन में एक ही अरमान था बहू के मायके से तीज-त्यौहार पर ऐसा सामान आऐ कि लोग देखते ही रह जाएं!”
“पर मम्मी!मेरी सास भी अगर ऐसे ही सोचने लगें तब आप क्या करोगी?”रीना ने मां से पूछा!
“अरे !हमने तो तेरे ब्याह पर ही सब तय कर दिया था कि बहुत लेने देने में हम विश्वास नहीं करते!हमें जो कुछ देना था एक बार दे दिया बाद में कोई उम्मीद ना रखें!” ,सुनीता जी गर्दन तान कर बोली!
रीना भी कहां मानने वाली थी बोली”मम्मी! इना भी किसी की बेटी है ,उनके पास कोई पैसों का पेड़ तो लगा नहीं,नौकरी पेशा वाले हैं बंधी बंधाई तनख़्वाह पाते हैं!
,आपकी तीज-त्यौहार की रोज-रोज की इच्छा को कैसे पूरी करेंगे आप खुद सोचें?आप बेटी और बहू के लेन-देन में इतना फर्क कैसे कर सकती हैं,सोचें कल को आपके इन छोटे छोटे लालचों से तंग आकर समर इना को लेकर अलग हो गया तब क्या होगा?”कहकर रीना ने फोन काट दिया!
सुनीता जी के दिमाग में रात भर रीना की कही बातें गूंजती रहीं, रीना की बातें उनके समझ में आ गई गई,सुबह उठते ही उन्होंने रीना को फोन लगाकर कहा”अरे मेरी बेटी इतनी समझदार है मुझे तो अब पता चला,बेटा तूने मेरीआँखें खोल दीं!”
उन्होंने फौरन इना की मम्मी को भी फोन लगाया और उनके भेजे सामान की खूब तारीफ की,धन्यवाद दिया और कह दिया कि आगे से उन्हें तीज-त्यौहार पर शगुन के अलावा कुछ भेजने की जरूरत नहीं,उन्होंने अपनी बेटी दे दी समझो सबकुछ देख दिया!
समर और इना सुनीता देवी के इस बदलाव को देखते ही रह गए।इना ने भी अपनी ननद को बहुत धन्यवाद किया।
कुमुद मोहन
स्वरचित-मौलिक