सपनों का महल – ऋतु यादव : Moral Stories in Hindi

प्रेक्षा जब भी अपनी सजी संवरी, गहनों से लदी बुआ को देखती, कहती माँ मैं भी बुआ जैसे ही घर में शादी करूंगी, देखो न बुआ की जिंदगी में ऐश ही ऐश है। और न जाने कब उसकी जुबां पर देवी सरस्वती बैठी।बुआ इस बार रक्षा बंधन पर आई तो बोली, मेरी चाची सास का लड़का है भाभी, कहो तो प्रेक्षा के लिए बात चलाऊं। लाखों में किराया आता है उनका, अपनी प्रेक्षा सारी जिंदगी रानी बनकर रहेगी, रुपया, पैसे, घर-गाड़ी कोई कमी नहीं है।

प्रेक्षा की माँ ने कहा भी,”जीजी, हमारे मुकाबले घर ज्यादा ऊंचा है। इस पर बुआजी बोली,”अरे हमारी प्रेक्षा बिलकुल अपनी बुआ पर गई है, कितनी सुंदर है, सुघड़ है,पढ़ी लिखी है। उन्हें और क्या चाहिए, फिर मैं कहूंगी तो कैसे नहीं मानेंगे।आप अपना बताओ, वैसे मैं कोई गलत रिश्ता थोड़ी न बताऊंगी अपनी प्रेक्षा के लिए।”

प्रेक्षा को तो मानो मुंह मांगी मुराद मिल गई हो,आज तक सिर्फ यही तो सपना देखा था उसने अपनी चढ़ती जवानी में, बुआ जैसी शान और शौकत की ज़िंदगी।

रिश्ता तय हो गया, सगाई में प्रेक्षा के लिए डायमंड की अंगूठी और सेट, ऊपर से उतना ही स्मार्ट और मोहक विकल्प के रूप में मंगेतर। सगाई से शादी के बीच के दिनों में कभी उसे मूवी दिखाने मल्टीप्लेक्स ले जाता,कभी मॉल में महंगी शॉपिंग कराता।अभी वो अपने सपनों की दुनिया में जी ही रही थी कि शादी कर ससुराल आ गई।

शादी की पहली रात ही सामना हुआ उसका,उसके जीवन के असल सच से, जब शराब के नशे में धुत्त विकल्प कमरे में आया और बेड पर धड़ाम गिर सो गया। प्रेक्षा भयभीत सी पूरी रात शादी के जोड़े में ही सिकुड़ी कमरे में बैठी रही। सुबह सास ने दरवाजा खटखटाया तो पहला सवाल किया, अरे परीक्षित के जूते भी नहीं उतारे तुमने,ऐसे ही सोया है देखो।फिर उसे एक भारी भरकम साड़ी के साथ कुछ गहने दे कहा,ये पहनकर मुंहदिखाई की रस्म के लिए तैयार हो जाओ।

प्रेक्षा चुपचाप उठ तैयार हो गुड़िया सी बैठ गई, इसी तरह सुबह से शाम हो आई। 

इस कहानी को भी पढ़ें:

दिखावे की जिंदगी – प्रतिमा श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

रात कमरे में विकल्प आया, बिना कोई बातचीत मुंह दिखाई में रूपयों की एक मोटी गड्डी दे, अपनी जरूरत पूरी कर सो गया।

अगली सुबह फिर से एक नया जोड़ा और गहनों के साथ वो पगफेरे की रस्म को तैयार थी। मायके पहुंची तो चाची ताई सब उसे गहने से लदा देख कहने लगी, अरे प्रेक्षा तू तो बड़े भाग्य वाली है जो इतने बड़े घर में ब्याही है।

वापिस लौट प्रेक्षा अपनी ससुराल में रच बसने की कोशिश कर रही थी। पर वो महसूस कर रही थी कि विकल्प सुबह से रात बस ताश, शराब में डूबा रहता। वो कुछ कहती तो बोलता ऐश करो तुम और मुझे भी करने दो, भाग्य है तुम्हारा जो इस घर में ब्याहकर आ गई और मैं तो पैदाइशी भाग्यवान हूँ और तुम्हारा भगवान।खाना भी बस बाहर से ही खाकर आता। घर में रुपए पैसे की कोई कमी नहीं थी, पर घर का सारा काम घर की औरतों की ही जिम्मेदारी थी।उसकी पढ़ाई लिखाई की वहां कोई कीमत न थी,

उसने आगे पढ़ने के लिए कहा तो ससुराल वालों का कहना था, क्या करोगी पढ़कर, नौकरी तो हम कराएंगे नहीं, हम ही दो नौकर रख लें।प्रेक्षा सारा दिन घर के काम और सबकी जी हुजूरी में ही टूट लेती। कहने को कोई कमी न थी, पर उसे लगता उसकी कदर सिर्फ एक कामवाली जितनी है। लोकदिखावे की पत्नी है वो जिसको पति जरूरत हो तो इस्तेमाल करता है,पर उसकी भावनाओं की कोई कीमत नहीं है।फिर भी धीरे धीरे वो सामंजस्य बिठा रही थी।

इसी दौरान उसके भाई की शादी तय हो गई। शादी में वो सबसे महंगी गाड़ी, सास की दिलाई खूब महंगी साड़ी- गहनों में गई। माँ ने उसकी खूब बलाएं लीं। विकल्प ने खूब नोटों की गड्डियां उड़ाई घुड़चढ़ी में, उसके ससुराल वालों की खूब वाहवाही हुई। प्रेक्षा फिर अपनी किस्मत पर इतराई।

सालों इसी तरह बीत गए,वो दो बच्चों की माँ बन गई।एक दिन उसने विकल्प के फोन पर किसी महिला की अश्लील फोटो देखी, पूछने पर वह उसी पर हावी होने लगा कि तुम्हे क्या मतलब, तुम्हारी सारी जरूरतें पूरी हो रही हैं न, मेरा फोन देखने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई।बात बढ़ी तो उसकी बुआ को बुलाया गया,

उनका और घर परिवार की सभी औरतों का कहना था कि यहां के मर्दों के लिए ये आम बात है, शराब और औरत उनके शौकों में शुमार है। तुम अब बच्चों में मन लगाओ। घर का का किराया- कामकाज़ सब सास के हिसाब से होता, प्रेक्षा खर्च करने को जितना मांगती उसे बिना सवाल जवाब उस से अधिक मिलता, चाहे पैसा हो या गहने कपड़े, नहीं था तो बस वो हंसी ठिठौली, अनुभूति और सुकून पति पत्नी के रिश्ते में।

इस कहानी को भी पढ़ें:

छुपा दुश्मन –  उषा शर्मा

आज फ़िर वो मायके जा रही थी, गहनों से लदी, अपनी महंगी गाड़ी में ड्राइवर के साथ, जाते ही भाभी ने खूब आवभगत की, फिर मुस्कुरा कर बोली, दीदी अपनी भतीजी मति के लिए कोई अपने जैसा ही बड़ा घर देखो न, वो कहती है मुझे तो प्रेक्षा बुआ जैसी ज़िंदगी चाहिए। प्रेक्षा मौन थी, कैसे बताती उन्हें कि उसकी दिखावे की ज़िंदगी जो एक रंगीन और हसीं ख्वाब सी दिखती है वो कितनी बेरंग है!सहज हो मति को अपने पास बिठा बोली मेरी लाडो, तेरा तो नाम ही मति है, और मेरी भतीजी नाम के अनुसार ही तो बुद्धिमान है,पढ़ लिख ये सभी ऐशो आराम तू अपने दम पर भी तो खरीद सकती है फिर उस सोने के पिंजरे में दिखावे के लिए क्यों कैद होना। भगवान करे तुझे तेरी सारी खुशियां मिलें। फिर भाभी की तरफ मुंह कर बोली, “भाभी मैं तो चाहती हूँ कि मति हमेशा खुश रहे, मुझसे खुशनसीब और कौन होगा अगर इसे इसके मनमुताबिक घर मिले पर आप तो मेरे जीवन का सारा सच जानती है, मैं विकल्प के साथ रहकर भी कितनी अकेली रही हूँ, समझाइए मति को इस दिखावे की ज़िंदगी के सोने के महल से बहुत ख़ूबसूरत होता है अपने कंक्रीट का घर।

लौटते वक्त एक शान्ति थी प्रेक्षा के मन में, कि मति की किस्मत में चाहे जो हो पर उसने उसे कोई आसमानी झूठी स्वप्निल दुनिया के ख़्वाब नहीं दिखाए जिसमें दैहिक सुख पर मानसिक दुःख, तकलीफ और अपमान हो।

ऋतु यादव 

रेवाड़ी (हरियाणा)

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!