Moral stories in hindi : तीन माह पहले अपने पापा की सड़क दुर्घटना में हुई असमय मृत्यु के वक्त बीनल के भईया भाभी का व्यवहार उसके प्रति इतना ठंडा था कि उसका मन दोहरे दर्द से भर गया इसलिए चौथे के अगले दिन उसने लंदन के लिए उड़ान भर ली थी। उसे अपनी मां अरुणा से अनगिनत बातें बांटनी थी पर रिश्तेदारों से भरे घर में कोई उन्हें अकेला छोड़ने को तैयार नहीं था।
ऐसा नहीं था कि सभी को इन हालातों में मां से दिली सहानुभूति हो रही थी बल्कि पापा की वसीयत में किसको कितना मिला है और सबसे बढ़कर तो ये घर पर बाकी सब के लिए इस तीन मंजिला मकान का बटवारां कैसे हुआ है ये जानने की इच्छा सभी के दिमाग में चरम पर थी।
अलका बुआ, कुंदन चाचा, बीनल का भाई राजन और उसकी पत्नि शोभा जिसकी मां अपनी समधन यानी बीनल की मां के पास सभी तो साए की तरह मंडराते रहते थे।
“बाबू जी तो जीते जी बस हाथ पीले करके मेरे प्रति अपना कर्तव्य निवाह समझ कर स्वर्गवासी हो गए पर बड़े भइया तो मुझे बेटी समान समझते थे तो इस घर में मेरा हिस्सा ज़रूर छोड़ा होगा।” अलका अपनी ही सोचो में मगन थी।
“एक ही भाई था उनका मैं तो इसमें तो कोई दोराय नहीं कि मकान में मेरा भी हिस्सा होगा। राजन तो जोरू का गुलाम है।” कुंदन ने मकान के सिलसिले में अपना पूरा गणित लगा लिया था।
“अरे, बीनल तो सात समंदर पार विदेश में रहकर डॉलर में कमा रही है, तो ये मकान तो सिर्फ राजन और तेरे नाम ही होना चहिए।” शोभा की मां रिश्तों को पैसों में तौल रही थी।
हफ्ते भर बाद अरुणा ने सबके सामने ये ऐलान कर दिया कि कुछ समय वह अपनी स्थिति का स्वयं अवलोकन करना चाहती है और मानसिक शांति की दरकार है उसे तो बेहतर है कि सभी उसे उसके हाल पर अपना घर परिवार संभाले।
दो टूक ये बात सुनकर सभी मुंह लटकाए वहां से रवाना हो गए। आरती मेरी बहन मेरे साथ रहेगी।
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“पर मां, मौसी को गांव में अपने घर की भी देखभाल करनी है वो आपके पास हमेशा थोड़ी ना रह सकतीं हैं,” राजन कुछ कड़वे स्वर में बोला।
ये सुनकर अरुणा के चेहरे पर व्यंगात्मक मुस्कान आ गई।
“बेटा, फिर तुम अपनी अमीर ससुराल छोड़ कर चले आओ यहां मेरे पास”
शोभा ने राजन को घूरकर देखा तो राजन सकपका कर चुप हो गया।
अलका और कुंदन तो जैसे समवेत स्वर में बोलें, “ भईया तो रहे नहीं तो जाहिर है कि मरजी तो आपके ही मन की होगी, जिसे चाहे अपने साथ रखें आप पर बड़े भइया हमारे लिए कुछ ना करके गए हों ये हम मान नहीं सकते ” कड़वाहट से भरी बात थी।
फिलहाल मकान का विषय दब गया पर बीनल समझ गई चुकी थी कि अब मां को अकेला छोड़ना सही नहीं इसीलिए लंदन की नौकरी छोड़ कर वो मां के साथ रहना चाहती थी। जब ये बात उसने मां से कही तो अरुणा ने उसे इस बात के लिए सख़्त मना कर दिया और आराम से चिंतामुक्त होकर वहीं सुचारू रूप से रहने और नौकरी करते रहने को कहा पर बीनल अब जल्द से जल्द अरुणा
से मिलने को आतुर हो गई थी इसीलिए वो क्रिसमिस की छुट्टियां होते ही भारत आ गई।
घर पहुंची तो मुख्यद्वार को देखकर आश्चर्य से भर उठी।
“लिटिल स्टार्स–प्रिपेट्री स्कूल” का बोर्ड द्वार के ऊपर लगा था।
अंदर पहुंची तो छोटे छोटे नन्हें बच्चें मकान के विशाल आंगन में अपनी दुनिया में मस्त होकर खेल रहे थे।
दृश्य इतना मनोहारी था कि बीनल का दिल चाहा कि वो भी बच्चा बन जाए तभी पीछे से अपने कंधे पर स्पर्श पाकर वो मुड़ी तो देखा कि अरुणा थी।
“मां” वो अरुणा के गले लग गई।
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“मां, ये सब कब,कैसे..” बीनल सब कुछ जानने के लिए बेहद उत्सुक थी।
रात को दोनों बैठी तो अरुणा ने पिछले तीन माह के बारे में सब बताया।
“तू तो अपनी बुआ का स्वभाव अच्छे से जानती है, ससुर जी अपनी बेटी को बहुत चाहते थे और सुधीर जैसे अच्छे जीवनसाथी पाकर भी वो लालची नियत की ही रही। वो भूल गई कि ससुर जी ने गांव की ज़मीन में से अपना हिस्सा बेचकर उसकी शादी करवाई थी। किस्मत अच्छी थी उसकी सुधीर भी बड़े घर का स्वामी है। किसी चीज की कमी नहीं उसे बस लोगों की बातों में ज़रा जल्दी आ जाती है”
“और कुंदन जो आज बड़े भइया को याद कर रहा है थोड़ा अपना समय भी याद कर लेता तो और अच्छा होता। तेरे पापा से जब जब उसने अपने बच्चों की पढ़ाई, उनके कोर्स के लिए जितनी रकम मांगी, उन्होंने दी। आज उसके बेटे अपने सैटल हो चुके हैं और कुंदन और रमा को उनके घर में किसी चीज़ की कमी नहीं है बस कमी है तो उनकी सोच में।”
“अब रहा सवाल तेरे भाई राजन का तो शोभा जैसी बड़े घर की इकलौती बेटी जिसके माता पिता उससे दूर नहीं रह सकते बस किसी के बेटे को उसके मां बाप से दूर कर सकते हैं उनका घर जमाई बन चुका है तो उसे क्या मेरी चिंता होगी और क्या ही तेरी…?”
“खैर सौ बातों की एक बात यही है कि ये मकान तेरे पापा ने अपनी एक एक पाई जोड़ कर बनवाया था और मेरे नाम कर दिया था। उन्होंने सिर्फ ये दीवारें हीं खड़ी नहीं की बल्कि ये मकान घर का रुप ले इसके लिए वो सदा से इसमें छोटे बच्चों का स्कूल और महिलायों के लिए कार्य स्थल आरंभ करना चाहते थे क्यूंकि उनकी सोच थी
कि इस एक घर से और कई घरों का भविष्य उज्जवल हो और उनकी इस इच्छा को पूरा करने की ज़िम्मेदारी अब मेरी है और बेटी अब यही ज़िम्मेदारी मैं तुझे सौंपना चाहती हूं कि मेरे बाद भी ये घर सिर्फ घर ही बना रहे, किसी इमारत का रुप ना ले।
कमाई का ज़रिया नहीं बल्कि एहसासों से भरा पूरा घर ही रहेगा ये मेरे बाद भी, इस बात का वादा कर मुझसे।”
बीनल अरुणा के गले से लग कर फफक पड़ी और अरुणा को उसकी पीठ सहलाते हुए ऐसा लग रहा था जैसे आज उसके पति के सपने ने हकीकत का रुप ले लिया हो।
स्वरचित