सपना का पश्चाताप – सुभद्रा प्रसाद : Moral Stories in Hindi

  सपना का रो रो कर बुरा हाल था | वह अस्पताल में बैठी भगवान् को याद कर रही थी | उसके पति  की गाड़ी को आफिस से घर आते हुए एक दूसरी गाड़ी ने टक्कर मार दिया था और वे धायल हो गये थे |

कुछ लोगों ने उन्हें अस्पताल पहुंचा दिया था और उनके मोबाइल  से सपना को खबर भी कर दिया था | वह तत्काल अस्पताल पहुँच गई | उसके पति का इलाज चल रहा था | आफिस के कुछ लोग और परिचित, रिशतेदार भी आ गये थे | दवा, इलाज, पैसे किसी चीज की कमी न थी,

पर खून ज्यादा बह जाने के कारण तत्काल खून चढाने की आवश्यकता थी | अस्पताल में उस ग्रूप का खून नहीं था और किसी का ब्लड ग्रुप मिल नहीं रहा था |सब प्रयास कर रहे थे, पर खून की आवश्यकता तुरंत थी | सपना को समझ नहीं आ रहा था, वह क्या करे | वह खून के लिए कोई भी मोल देने को तैयार थी, पर मिले तो| वह भगवान् से प्रार्थना कर रही थी |

” आंटी, आप चिंता न करें | हम प्रयास करते हैं | शायद हमारा ब्लड ग्रूप अंकल से मिल जाये |” आवाज सुनकर सपना ने सिर उठाया तो सामने दो लडके, जो उसके बेटे सुशील के दोस्त थे, खड़े थे | तुरंत जांच किया गया और एक लड़के का ब्लड ग्रुप मिल गया | कुछ ही देर में उसके पति को ब्लड चढ़ने लगा | सपना ने कुछ राहत की सांस ली , पर उसका मन ग्लानि से भर गया | उसे अपना व्यवहार याद आने लगा | 

सपना के पति एक अच्छी कंपनी में बहुत अच्छे पद पर कार्य करते थे | उसका घर सुख, सौभाग्य, सारी सुविधाओं से परिपूर्ण था | घर में किसी चीज की कमी न थी, कमी थी तो सिर्फ सपना के व्यवहार में | उसे अपने सुख, संपन्नता, पैसों का बडा़ घमंड, था|

ये दो लडके उसके पुत्र सुशील के साथ स्कूल में पढते थे और उसके दोस्त भी थे | उनके घर की स्थिति सुशील के घर जैसा नहीं था और वे लोग साधारण परिवार के थे | उन्हें नौकरी भी साधारण ही मिली  थी |इसीलिए सपना उन्हें बिलकुल पसंद नहीं करती थी और अपने अहंकार में उन्हें बहुत तुच्छ  समझती थी | वह उनका अपने घर में आना पसंद नहीं करती थी | घर आने पर उन्हें अपमानित कर देती थी | सुशील को  बराबर  डांटती,उन्हें अपने घर न बुलाने और उनसे दोस्ती खत्म करने को कहती थी |

कहती थी वे सब तुम्हारे स्तर के नहीं है ं | सुशील एक सीधा, सरल लडका था | वह छोटा-बडा, अमीर- गरीब नहीं सोचता था | उसके पिता भी उसे इनसब बातों के लिए नहीं बोलते थे | वह माँ के नापसंद करने पर अपने उन दोस्तों को घर नहीं बुलाता था, पर उनसे अपनी दोस्ती नहीं तोडी थी | सपना इसके कारण उसपर गुस्सा करती रहती थी | सुशील अपनी इंजिनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर एक अच्छी नौकरी पा गया था और अभी कंपनी के काम से दो महीने के लिए विदेश गया हुआ था |

जिन लड़कों को सपना गाजर मूली, तुच्छ समझती थी और उनसे नफरत करती थी, सुशील के उन्हीं दोस्तों ने आज सपना के पति को अपना खून देकर जान बचाई थी | इस मुसीबत की घड़ी में , संकट की घड़ी में जब सपना बहुत परेशान थी और कोई रास्ता समझ नहीं आ रहा था, तब सुशील के उन्हीं दोस्तों ने देवदूत की भांति आकर उसकी सहायता की | उसके पति  को अपना खून दिया और उनकी जान बचाई| सपना इस बात से बहुत लज्जित  हुई और उसे अपने ऊपर, अपने व्यवहार के ऊपर बहुत ग्लानि हो रही थी | 

उसका मन पश्चाताप से भर गया |  “अब वह कभी किसी को तुच्छ नहीं समझेगी और किसी के साथ गलत व्यवहार नहीं करेगी |  ये लोग समय पर न पहुँचते, तो पता नहीं क्या होता?” सपना यह सोचकर कांप उठी |

” आंटी, डाक्टर कह रहे हैं | अब अंकल खतरे से बाहर है ं | आप चिंता न करें|  हमें जैसे ही सुशील ने बताया, हम दौडे आये | आगे भी किसी चीज की आवश्यकता हो तो तुरंत बताइयेगा | सुशील यहाँ पर नहीं है, तो क्या हम तो हैं ना ?  ” सुशील के दोस्तों ने कहा |

” बेटा मुझे माफ कर दो | मैं तुमलोगों को तुच्छ समझती थी और तुमलोगों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करती थी | आज तुमलोगों के व्यवहार ने मुझे बता दिया कि तुच्छ मैं हूँ, मेरे सोच, मेरे विचार है ं| सुशील खुशनसीब है, जो तुमलोग उसके दोस्त हो | तुमलोग सदा उसके दोस्त बने रहना और जब चाहो हमारे घर आना | ” सपना ने पश्चाताप भरे स्वर में लडकों से कहा |

” आंटी, आप बड़ी है, हमसे माफी न मांगे | हमारे माता- पिता भी तो हमपे गुस्सा करते हैं, डांटते है, तो क्या हम उन्हें छोड़ देंगे? ”  दोस्तों ने सपना के हाथ पकडते हुए कहा |

सपना के आंखों से फिर आंसू  और उसके साथ उसका घमंड, अहंकार भी बहने लगा |

# गाजर मूली समझना ( तुच्छ समझना) 

स्वलिखित और मौलिक

सुभद्रा प्रसाद

पलामू, झारखंड |

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