संयुक्त परिवार का साथ – गीता वाधवानी : Moral Stories in Hindi

 अशोक और आशा जी अपनी बेटी शगुन की शादी के लिए बहुत चिंतित थे। अब तक जो भी रिश्ते आए थे वह उन्हें जँच नहीं रहे थे। अबकी बार जो रिश्ता आया था उसे परिवार में सब कुछ अच्छा था और लड़का शुभम तो बहुत ही बढ़िया था।अशोक जी जब से उससे मिलकर आए थे उसी की बातें कर रहे थे कभी कह रहे थे कि देखने में बहुत स्मार्ट है और कभी कह रहे थे कि बातचीत में बहुत अच्छा है और संस्कारी भी है, लेकिन उनका परिवार संयुक्त परिवार बहुत ही बड़ा है।

  आशा जी भी यही सोच रही थी कि मैं अपने घर में इकलौती लड़की थी और शगुन के पापा का भी कोई बड़ा या छोटा भाई बहन नहीं है। शगुन शुरू से एकल परिवार में रही है, वह कैसे इतने बड़े परिवार में रह पाएगी। इतनी सारी जिम्मेदारियां कैसे निभाएगी। 

      तब उन्होंने शगुन के सामने पूरी बात रख दी। शगुन ने पूरी बात सुनने के बाद इस रिश्ते के लिए सहमति दे दी। उसने अपने मम्मी पापा से कहा- “मम्मी पापा मुझे तो संयुक्त परिवार में रहना बहुत पसंद है। मैं जब अपनी सहेली राशि के घर जाती थी तब उसके संयुक्त परिवार को देखकर मुझे बहुत अच्छा लगता था। उसके घर में सब मिल बांटकर काम करते थे और जिम्मेदारी उठाते थे। जब कभी राशि से मिलने जाती थी तो उसकी दादी मुझे बहुत स्नेह देती थी और और चाची तो बिल्कुल सहेलियों की तरह बात करती थी। ” 

 उसके मम्मी पापा ने समझाया -” बेटा थोड़ी देर के लिए जाना, और उसे परिवार में रहने में बहुत फर्क होता है, वैसे तो हमें अपने संस्कारों पर पूरा भरोसा है लेकिन तुम सोच समझ कर ही हां करना। ” 

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 शगुन के सहमति देने पर, शगुन और शुभम का विवाह हो गया। विवाह के चार दिन बाद वे लोग दार्जिलिंग घूमने के लिए जाने वाले थे। तब घर के सभी लोगों ने हंसी खुशी आशीर्वाद देकर उन्हें घूमने के लिए भेजा। आज एक हफ्ते बाद वे लोग लौट कर आए थे। 

 आज शगुन की पहली रसोई थी। उसे बहुत घबराहट हो रही थी। तभी उसकी सासू मां और उनकी देवरानी यानी की चाची जी, रसोई में हस्ती मुस्कुराती आई और उसे सारा सामान समझा कर बाहर चली गईं और साथ ही उसकी घबराहट भी दूर कर गई। उन्होंने कहा “शगुन, बेफिक्र होकर हलवा और पूरी आलू बनाओ।” 

    शगुन ने टेंशन फ्री होकर सब कुछ बना लिया। सब लोग नाश्ता खाने बैठे, सभी को खाना बहुत पसंद आया। सभी ने उसे बड़ी खुशी खुशी नेग भी दिया। चाचा जी की भी दो बहुएं साथ ही रहती थी। वे दोनों शगुन से बड़ी थी। अब तीनों मिलजुल कर काम निपटा लेती थी। शगुन को संयुक्त परिवार में विवाह करके बहुत अच्छा लग रहा था, हालांकि वे लोग मध्यम वर्गीय थे, पर आपस में बहुत खुश थे। 

   थोड़े दिनों बाद, अचानक रात में शगुन के ससुर जी की तबीयत बहुत खराब हो गई। तब उनके छोटे भाई यानी कि चाचा जी और उनके बेटों ने तुरंत सब कुछ संभाल लिया और ससुर जी को अस्पताल मे एडमिट करवा दिया। हालांकि शुभम बहुत घबरा गया था, लेकिन चाचा जी के बेटों ने उसका बहुत हौसला बढ़ाया। डॉक्टर साहब ने कहा कि आप इन्हें समय पर ले आए हो वरना, बात बिगड़ सकती थी। 

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 एक सप्ताह बाद ससुर जी घर आ गए थे। हर कोई अपने तरीके से उनका ध्यान रख रहा था। सब उनकी सेवा में लगे हुए थे। कुछ दिनों बाद वह बिल्कुल स्वस्थ हो गए लेकिन उन्हें अभी भी खाने पीने की बहुत सारी चीजों का परहेज बहुत जरूरी था। 

    थोड़ा समय और बीता,तो शगुन को पता लगा कि वह गर्भवती है। घर में यह बात पता लगते ही सब लोग बेहद खुश हो गए और उसकी जेठानियां( चाचा की बहुएं ) उसका बेहद ध्यान रखने लगी। वक्त आने पर शगुन ने एक प्यारी सी बिटिया को जन्म दिया। 

 शगुन की बिटिया रात भर जागती थी, इस कारण शगुन रात में सो नहीं पाती थी। उसकी दोनों जेठाणिया प्यार से कहती थी कि हमारे भी बच्चे हुए हैं हमें पूरा अनुभव है कि बच्चे कैसे परेशान करते हैं। जो तुम दिन में जाकर सो जाओ,दिन में हम इसकी देखभाल कर लेंगे। इस तरह शगुन को आराम मिल जाता था। एक बार शगुन की बिटिया रात में बहुत जोर-जोर से रोने लगी। शगुन उसे देखकर घबरा गई उसे समझ नहीं आ रहा था कि यह चुप क्यों नहीं हो रही है और इसे क्या हो रहा है। 

 फिर वह उसे लेकर अपनी सास के पास गई, तो उन्होंने बताया कि हो सकता है इसके पेट में दर्द हो रहा हो जो कि अक्सर बच्चों को हो जाता है। उन्होंने तुरंत हींग का लेप बनाकर बच्ची की नाभि पर लगा दिया, उसे तुरंत आराम आ गया और वह सो गई। 

    एक बार चाचा जी के लड़के की कंपनी वालों ने वर्कर्स की  छंटाई  के नाम पर उसे नौकरी  से हटा दिया। वह बहुत ही तनाव में था कि अब घर कैसे चलेगा बच्चों की पढ़ाई कैसे होगी। 

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 तब ससुर जी, चाचा जी, चाचा जी के बड़े बेटे और शुभम ने उसे समझाया कि कोई बात नहीं हम सब मिलकर घर का खर्चा चला तो रहे हैं, आप इतनी टेंशन मत लो और दूसरी जॉब ढूंढने की कोशिश करते रहो, बच्चों के पढ़ाई के बारे में भी चिंता मत करो। तब पूरे 6 महीने बाद उसको एक नौकरी मिली। लेकिन तब तक उसकी सहायता इसीलिए संभव हो पाई क्योंकि उनका एक संयुक्त परिवार था और परिवार में प्यार था। 

 शगुन को अपने फैसले पर गर्व था कि उसने एक संयुक्त परिवार में  शादी की। शगुन के माता-पिता भी बेहद खुश थे क्योंकि उनकी बेटी खुश थी। संयुक्त परिवार का साथ ऐसा ही होता है।  

 अप्रकाशित स्वरचित गीता वाधवानी दिल्ली

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