“अरे दीदी इस समय कैसे टाइम मिला अपनी बहन से बात करने का
ये तो तुम्हारे रसोई में रहने का टाइम है” सुधा ने बड़ी बहन प्रभा से कहा (जब कई दिनों बाद उसका फोन आया और जब फोन आता तो दोनों बहन का एक घंटा कब निकल जाता पता ही नहीं चलता)
“अरे आज मै छुट्टी पर हूं तो जेठानी जी है रसोई में” प्रभा खुश होते हुए बोली(प्रभा के पीरियड्स चल रहे थे और इन दिनों उसके ससुराल में रसोई में जाना वर्जित है)
“वाह भाई वाह तुम्हारी तो मौज है संयुक्त परिवार में रहने के मजे ले रही हो
और एक मै जिसकी छुट्टी होते हुए भी सारे काम करने पड़ते हैं एक मिनिट का आराम नहीं
घर का ,बाहर का , स्कूल,दूध सब्जी , बच्चों का सारे काम मेरे माथे ही हैं
महीने के तीन दिन जहां आप आराम से रह सकती हो वहां मुझे तो पता ही नहीं चलता कब महीना आ गया और चला गया
काश मैं भी आपकी तरह संयुक्त परिवार में रहती तो कुछ तो फायदा होता”
“हां छोटी कभी कभी तो लगता है अच्छा हुआ जो सब साथ ही रहते हैं। एक दूसरे के भरोसे घर और बच्चों को छोड़कर कही आ जा तो सकते हैं और मैं तो नौकरी भी कर पा रही हूं चाहे तुमसे कम पढ़ी हुई हूं क्योंकि सासु मां और जेठानी जी का सहयोग मिल जाता है।”
“सही है दीदी, एक मै जो इतना पढ़ने के बावजूद भी घर पर बैठी हूं क्योंकि बच्चों को सम्हालने वाला कोई नहीं है। जेठानी जी इसी शहर में रहती है पर मजाल है जो कभी मिलने मिलाने आ जाएं उन्हें तो बस अपने से मतलब है।
एक बार मैने पूछा भी था दीदी आप दो घंटे के लिए खुशी को अपने पास रहने दो तो मै एक स्कूल ज्वाइन कर लूं। अच्छा बड़ा स्कूल है । सुबह खुशी को छोड़ने के बाद जाऊंगी और उसके आने के एक घंटे बाद मैं आकर उसे ले जाऊंगी । स्कूल बस आपके घर तक आएगी । आपको बस खुशी को बस से उतारना पड़ेगा बाकी खुशी अपने काम अपने आप कर लेती है
पर वो बोली न भाई न, ऐसी बंदिश की वजह से ही तो मैने अपना अलग घर बनाया है । मुझे किसी के बंधन में बंध के नहीं रहना , रही बात खुशी की तो तुम उसके लिए कोई और व्यवस्था कर दो या एक मेड रख लो .
पर दीदी मेड का भरोसा नहीं कर सकती ,अभी खुशी इतनी बड़ी भी नहीं कि अंजान के भरोसे छोड़ सकूं, मैने कहा
तो सासु मां को बुला लो,उन्हें गांव में कौनसा काम है वो रहेंगे तुम्हारे साथ
दीदी उनका यहां शहर में मन नहीं लगता , वो नहीं आते यहां
खैर छोड़िए दीदी मै कुछ और देखती हूं और मैने फिर नौकरी नहीं करने का मन बना लिया।”
“कोई बात नहीं छोटी तुझे किस चीज़ की कमी है जो नौकरी करनी है”
“दीदी बात कमी की नहीं आत्मनिर्भर होने की है जो एक संयुक्त परिवार में रहकर आसानी से हो सकता है बशर्ते सब लोग एक दूसरे की परेशानी समझकर सहयोग करें”
“आप देखिए कितनी स्मार्ट हो गई हो , बाहर जाती हो,दस लोगों से मिलती हो तो अपने आप आत्मविश्वास बढ़ जाता है ।”
“हां ये बात तो है। मेरी जेठानी जी और सासु मां मेरा पूरा सहयोग करते हैं ।
जब बच्चे छोटे थे तो दादा दादी, ताऊ ताई, चाचा बुआ सबने अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभाई और मुझे कभी भी ये नहीं लगा कि मेरे पीछे से बच्चे कैसे रहेंगे। कब खाना है, क्या खाना है बच्चे अपने भाई बहनों के साथ रहकर सीख गए। ससुर जी ने तो छाछ और रोटी तक खाना सिखा दिया मेरे बच्चों को और दादी ने अच्छी आदतें सिखा दी। ताई जी ने भाई बहनों में आपसी प्यार और विश्वास करना सिखा दिया तो ताऊजी ने एक दूसरे के सामने अपनी बात रखना सिखा दिया वो बात अलग है कि ये सब बच्चे लड़ते झगड़ते सीखे हैं पर आज बड़े होने पर चाचा ताऊ के बच्चों में उतना ही प्यार है।
मैने भी कभी भाभी या मां जी से शिकवा शिकायत नहीं की , उन्होंने कभी बच्चों को डांटा या फटकारा भी तो मैने हमेशा बच्चों को ही समझाया और उन्हें बड़ों का आदर करना सिखाया। अमित और मै आज ऑफिस और घर सम्हाल पा रहे हैं तो संयुक्त परिवार की वजह से ही ।”
“पर संयुक्त परिवार में रहने के अपने फायदे है तो नुकसान भी हैं
तू देख अपने हिसाब से अपने काम करती है, जब मन हुआ सोई, उठी, जो खाना है बना लिया , नहीं मन तो बाजार से मंगा लिया पर मेरे घर पर एक दूसरे के हिसाब से काम करना पड़ता है। सुबह जल्दी उठकर, नहा धोकर रसोई में जाना पड़ता है। कभी मन नहीं है काम करने का तो भी मन मारकर काम पूरा करना ही पड़ता है। एक दूसरे से कभी बहस भी हो जाती है । मतभेद हो जाते हैं पर हम मनभेद नहीं करते इसलिए आज तक परिवार साथ है “
“हां दीदी ये तो है। मेरे परिवार में बस इसी की कमी है ।कभी बहस हो जाती है तो जेठानी और सासु मां दिल से लगा लेते हैं और बात करना बंद कर देते हैं तभी तो सब एकल परिवार बसाए हुए हैं । मै कोशिश करती हूं साथ रहने की तो कोई तैयार नहीं होता।
सबको अपनी जिंदगी अपने तरीके से जीनी है”
“चलिए दीदी मै फोन रखती हूं आपको तो रोटी बनी हुई मिल जाएंगी पर मुझे तो खुद ही बनाना और खाना है” हंसते हुए सुधा बोली
“अरे मेरे पास और भी काम है भाई, जेठानी जी मेरे हिस्से का काम कर रही हैं तो मैं भी तो उनके हिस्से का काम करूंगी “प्रभा भी यह बोलकर हंस दी और फोन रख दिया
दोनों बहने अपने अपने परिवार में खुश थी पर एक ओर जहां प्रभा औसत पढ़ी लिखी होने के बाद भी नौकरी कर रही थी वहीं सुधा पी एच डी की डिग्री होने के बाद भी नौकरी नहीं कर पा रही थी क्योंकि वो एकल परिवार में रहती थी। बच्चों की , घर की सबकी जिम्मेदारी आखिर उसी की थी और यही सोचकर कभी कभार सुधा उदास हो जाती थी। तब उसे लगता कि शायद मेरा भी एक संयुक्त परिवार होता तो मैं भी दीदी की तरह कब की आत्मनिर्भर बन गई होती।
दोस्तों मुझे तो लगता है संयुक्त परिवार होने के फायदे ज्यादा नुकसान कम है और अपने शब्दों में कहूं तो ….
संयुक्त परिवार के हैं बहुत फायदे
जिंदगी जीने के जहां सीखते हम कायदे
छोटे से बड़ों के होते अपने अपने विचार
जिनको अपनाकर बनता एक सुखी परिवार
प्यार ,अनुशासन, सहनशक्ति और भाईचारा
कभी होती नोक झोंक कभी होता दुलार ढेर सारा
कभी दो पीढ़ी तो कभी तीन पीढ़ी का होता साथ
संयुक्त परिवार में रहने की अलग ही है बात
ऐसे परिवार के साथ जिंदगी जीने से जीवन में मिलती खुशियां अपार
खट्टे मीठे पलों की जैसे रोज़ ही होती बौछार
फिर हर मुश्किल वक्त परिवार के सहारे कट जाता है
जहां पैसा काम नही आता वहां हर खूबसूरत रिश्ता
अपने हिस्से का काम निभा जाता है
इसलिए परिवार और रिश्तों की कद्र करना सीखिए
कभी माफ़ी मांगना तो कभी माफ़ करना सीखिए
एक दूजे से दूर भले ही हो जाए पर
दिल से हमेशा परिवार से जुड़े रहना सीखिए
दोस्तों आपकी क्या राय है ? क्या सुधा का सोचना सही था ? संयुक्त परिवार और एकल परिवार में कौनसा ज्यादा बेहतर है?
कमेंट करके अपने विचारों से अवगत कराना न भूलिए। हमेशा की तरह आपकी प्रतिक्रिया के इंतजार में …
आपकी दोस्त
निशा जैन