यह कहानी है दो सहेलियों की – एशा और लावण्या। इन दोनों की जीवन शैली में काफ़ी अंतर है। एशा एक गाँव में अपनी संयुक्त परिवार के साथ रहती है, जबकि लावण्या मेट्रो सिटी में अपनी न्यूक्लियर परिवार के साथ रहती है।
तो चलिए मैं आपको कहानी की ओर ले चलता हूँ।
(दृश्य 1)
एक दिन, अचानक शाम को, लावण्या एशा को फ़ोन करती है।
लावण्या: “एशा! हैलो, और कैसे हैं हमारे गाँव का हालचाल?”
एशा: “जय श्री कृष्णा, अरे सब एकदम बढ़िया है।“
लावण्या: “यार, गाँव में रहकर भी तू खुश कैसे रह लेती है? वो भी उस कैदखाने में, इतनी भीड़ में, न कहीं घूमना, बस घर के काम?”
एशा: “अरे, नहीं यार, ऐसा कुछ नहीं है! अरे, छोड़ न ये बहस। यहाँ आकर देख हमारा लाइफस्टाइल। हफ्ते में बस दो बार खाना बनाना पड़ता है। सास–ससुर का न कोई टेंशन है। बस मैं, मेरा हस्बैंड, और हमारा फुल एंजॉयमेंट, सच में लाइफ हो तो ऐसी!”
एशा: “ठीक है। और फ़ोन इसलिए किया था, या कोई काम था?”
लावण्या: “अरे नहीं यार, बस ऐसे ही बोर हो रहे थे तो सोचा तुझसे बात कर लूँ।“
एशा: “नहीं यार, मेरे पास बहुत काम है। अभी मुझे खाना भी बनाना है। बाद में बात करती हूँ।“
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लावण्या: “हाँ हाँ, घर के काम, चल जा, बाय।“
(दृश्य 2: कुछ समय बाद, लावण्या का फिर से एशा को फ़ोन आता है)
लावण्या: “गुड न्यूज़! क्या तू गेस कर सकती है?”
एशा: “क्या?”
लावण्या: “मैं प्रेग्नेंट हूँ!”
एशा: “बधाई हो! और अभी क्या कर रही हो?”
लावण्या: “बस पाइनएप्पल शेक बना रही हूँ।“
एशा: “क्या! क्या तुम पागल हो? प्रेग्नेंसी में पाइनएप्पल, पपीता जैसे फलों से बचना पड़ता है। और भी काफ़ी चीज़ें हैं जो तुम्हें इग्नोर करनी पड़ेंगी!”
लावण्या: “अच्छा? मुझे नहीं पता था यार। और क्या–क्या अवॉइड करना पड़ता है? प्लीज मुझे बता दे, मैं अपने बेबी के लिए कोई रिस्क नहीं लेना चाहती।“
एशा: “ठीक है, मैं तुझे पूरी लिस्ट भेज दूँगी।“
लावण्या: “ओके, थैंक्स! वैसे तुझे ये सब किसने बताया?”
एशा (हंसते हुए): “चल, तू! मैं बाद में बात करती हूँ।“
(दृश्य 3: काफ़ी समय निकल जाता है। एक दिन, कई साल बाद, लावण्या का फिर से एशा को फ़ोन आता है)
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लावण्या: “एशा, मैं तेरे गाँव में हूँ!”
एशा: “अरे! ऐसे कैसे? कब आई तू?”
लावण्या: “मेरे हस्बैंड को कुछ काम था यहाँ, तो उनके साथ आई हूँ। दो दिन के लिए मिलना चाहती हूँ?”
एशा: “अरे बिलकुल यार! जल्दी घर आ जा, एड्रेस भेजती हूँ।“
लावण्या: “चल आती हूँ, एड्रेस भेज।“
(दृश्य 4: लावण्या अपने 5 साल के बेटे के साथ एशा के घर आती है)
डिंग डोंग:
एशा: “वेलकम वेलकम, हमारे घर में आपका स्वागत है,” लावण्या के साथ उसका 5 साल का बेटा भी था, जो एशा को “हेलो आंटी” बोलता है।
लावण्या: “नाइस होम यार!”
एशा: “हाँ, बस अभी बनवाया है।“
लावण्या: “वेरी, वेरी नाइस। लेकिन, मैं समझ सकती हूँ कितना थकाऊ रहा होगा। तो कम से कम जीजाजी के लिए तो ऑफिस और घर मैनेज करना मुश्किल पड़ जाता होगा?”
एशा: “नहीं यार, मेरे तो दोनों देवरों ने ही काम संभाल रखा था। मुझे और मेरे हस्बैंड को तो शायद वहाँ जाने की कभी ज़रूरत ही नहीं पड़ी।“
(ये सुनकर लावण्या थोड़ी शॉक हो जाती है, क्योंकि उसने अपना घर बनवाने में बहुत मेहनत की थी।)
एशा: “चल छोड़, थोड़ा फ्रेश हो ले। मैं ब्रेकफास्ट रेडी करती हूँ।“
(दृश्य 5: ब्रेकफास्ट टेबल पर, बातें शुरू होती हैं)
लावण्या: “अच्छा, ये बता, जीजाजी क्या काम करते हैं, कितनी सैलरी है उनकी?”
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इससे पहले कि एशा कुछ बता पाती, लावण्या फिरसे बोलती है, “मेरे हस्बैंड MNC में काम करते हैं। काफी अच्छा पैकेज पर हैं, और काफी सारी फैसिलिटीज़ मिलती हैं। काफी घूमने भी मिलता है, पर जब ज़रूरत पड़ती है तो छुट्टी का इशू होता है। प्रेग्नेंसी में थोड़ा अकेला रहना पड़ा मुझे, लेकिन कंपनी ने मेरी प्रेग्नेंसी का पूरा खर्च उठाया। जीजाजी को भी कुछ ऐसे बेनेफिट्स होंगे ना?”
एशा: “नहीं।“
लावण्या: “मेरा तो बच्चा भी टॉप करता है। वहाँ के काफी इंटेलेक्ट्स और एक्सपीरियंस्ड टीचर्स हैं। तेरा बेटा?”
एशा: “नहीं।“
दोनों नाश्ता करने लगते हैं।
लावण्या: “यार एशा, खाना तो तू बहुत अच्छा बनाती है, शादी से पहले तो तुझे कुछ भी नहीं आता था।“
इतने में एशा का बेटा कमरे में आता है
(एशा का बेटा आता है और कहता है,)
बेटा: “जय श्री कृष्णा, आंटी!” और लावण्या के पैर छूता है।
और एशा से कहता है, “मम्मी, मुझे पढ़ा दो?”
लावण्या (हंसते हुए): “तुम पढ़ाती हो?”
एशा: “नहीं, मेरा पूरा परिवार इसे कुछ न कुछ सिखाता रहता है।“
लावण्या: “बेटा, किस क्लास में पढ़ते हो?”
बेटा: “आंटी, सेकंड।“
लावण्या अपने बेटे से: “बेटा, कुछ पूछो।“
लावण्या का बेटा: “अच्छा, बताओ, इंडिया का प्राइम मिनिस्टर कौन है?”
बेटा: “नरेंद्र मोदी।“
लावण्या का बेटा: “और यूएसए की राजधानी क्या है?”
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बेटा: “वॉशिंगटन डी.सी।“
लावण्या: “हम्म।“
एशा अपने बेटे से: “बेटा, आपको भी कुछ पूछना है भैया से तो पूछ लो।“
एशा का बेटा लावण्या के बेटे से: “हैलो, आपको गायत्री मंत्र आता है?”
लावण्या का बेटा लावण्या से: “मम्मी, ये क्या होता है?”
ये सुनकर और अपने बेटे का ऐसा शॉकिंग चेहरा देखकर लावण्या की नज़रें झुक गईं।
एशा: “ये सब मैंने नहीं किया। ये सब मेरे पूरे परिवार का कारण है। आज मैं जो भी हूँ, मेरा बेटा जो भी है, सब उनका रिजल्ट है। तुम जो मेरे खाने की तारीफ कर रही हो, वो ना खाना मेरी सास ने सिखाया है। जब तुम मुझसे प्रेग्नेंसी टिप्स पूछती थी, वो भी मेरी सास ने ही दी थी। रहे बात इनके तो ये जॉब नहीं करते, इनका खुद का बिज़नेस है और ये लोगों को रोजगार देते हैं,
और उसके साथ कुछ छोटे–मोटे बेनेफिट्स भी। हां, छुट्टियां तो ये भी नहीं लेते, क्योंकि इन्हें कभी लेने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती। इन्हें मेरी प्रेग्नेंसी का ज़्यादा कुछ पता भी नहीं था। रहे घूमने फिरने की बात, हम लोग बहुत घूमते हैं, साल में कम से कम दो बार पूरा परिवार एक साथ जाता है, हालांकि सब का देखकर सोचकर प्लान बनाना पड़ता है, पर मज़ा भी उतना ही आता है।
एशा (जारी रखते हुए): “तुझे पता है, शादी के बाद मैं भी बिल्कुल तेरे जैसा सोचती थी, इनफैक्ट कुछ समय तक तो, मैं भी तेरे जैसे जीवन जीना चाहती थी। सास की डांट, घर के नियम, खाने में नुस्खे, मुझे बहुत कड़वे लगते थे। कई बार ऐसे हालात आए जब मुझे समझ नहीं था और मैंने गलत तरीके से रिएक्ट किया, लेकिन मेरी सास की डांट ने मुझे सही सिखा दिया, जो आगे चलकर मेरे बहुत काम आई। मेरी प्रेग्नेंसी के टाइम पर मुझे और
एहसास हुआ कि मेरी सास के नुस्खे मुश्किल तो हैं, पर लॉन्ग टर्म बेनेफिट्स देते हैं। तो मैंने उनकी हर बात का बुरा मानना बंद कर दिया और अपनाना शुरू कर दिया, तो मैंने देखा कि मेरी ज़िंदगी कितनी बदल गई है। अब वही लोग मुझे बहुत अच्छे लगने लगे थे। और धीरे–धीरे महसूस किया कि मैं काफी गलत थी।
“माना हर घर में झगड़े होते हैं, पर झगड़े तो तेरा और जीजाजी का भी होता होगा, लेकिन तू उनके साथ भी रह रही है ना, या उनसे भी अलग होने की सोचती है?”
लावण्या: “अब मैं अकेले रहने की सोच भी नहीं सकती। मेरे हिसाब से अकेले रहना एक कैदखाना है।“
(अंतिम संदेश)
दोस्तों, यह कहानी मैंने अपने व्यक्तिगत अनुभव और वर्तमान मानसिकता को चुनौती देने के लिए लिखी है। कई लोग सोचते हैं कि अकेले रहना ज़्यादा अच्छा है, और कुछ समय के लिए शायद अच्छा हो भी सकता है, पर उसके लॉन्ग टर्म बेनेफिट्स नहीं हैं। वास्तव में, आँकड़ों के अनुसार, अकेले रहने वालों का डिवोर्स रेशियो संयुक्त परिवार वालों से कई गुना ज़्यादा है।
आप सब भी कमेंट्स में बताना कि आपको यह कहानी कैसी लगी और आपकी इस विचारधारा को लेकर क्या सोच है?
धन्यवाद!
मोहित महेश्वरी
गोवर्धन, मथुरा (उ.प्र.