साँवली हूँ तो क्या… – विभा गुप्ता 

   ” छोटी भाभी, समझाइये अपनी बेटी को।इसे रेडियो-वेडियो में तो कोई काम मिलने से रहा।मेरी रश्मि की बात कुछ और है।हमारी रश्मि तो सुंदरता की मूरत है और उसके पापा के पास धन की भी कमी नहीं है पर आपकी ज्योति तो साँवली है और फिर कोर्स की फ़ीस के लिये मोटी रकम भी चाहिये जो तो आप दे नहीं सकती। आनंदी ने अपनी भाभी उषा से ऐंठकर कहा तो वहीं बैठी ज्योति अपने दोनों हाथ कमर पर रखते हुए तपाक-से बोली ,” साँवली हूँ तो क्या….? मुझे पहनने-ओढ़ने,सजने-सँवरने और अपना शौक पूरा करने का अधिकार नहीं है।और कहाँ लिखा है कि सिर्फ़ गोरी चमड़ी वाले ही काम….” तभी उसकी माँ ने उसका हाथ पकड़कर कहा,”  चुप हो जा, क्यों अपनी बुआ से ज़बान लड़ा रही है।” और बेटी को एक तरफ़ करके ननद से बोली, ” जाने दीजिए आनंदी, अभी नासमझ है।मैं इसे समझा दूँगी।” कहकर उषा बेटी को लेकर कमरे में चली गई और आनंदी अपनी बड़ी भाभी से मिलने चली गई।

          आनंदी उसी शहर में रहती थी।पति का हार्डवेयर शाॅप से अच्छी आमदनी होती थी।बेटी रश्मि की सुन्दरता और पति के पैसे पर उसे बहुत घमंड था।उसकी बड़ी भाभी भी सम्पन्न घराने से ताल्लुक रखती थीं लेकिन छोटी भाभी उषा का मायका मध्यमवर्गीय था,इसलिए आनंदी उनपर अपना रुआब दिखाती थी।ज्योति का साँवला रंग तो उसे हमेशा ही खटकता था।जब भी वह ज्योति को देखती तो भाभी को उलाहना देती कि एक तो लड़की, ऊपर से साँवली।कैसे करोगी इसका ब्याह?।सुनकर उषा का मन बहुत आहत होता था लेकिन उसका पति उसे समझाता कि सब अच्छा होगा, भगवान पर भरोसा रख, एक दिन तुम्हें अपनी ज्योति पर बहुत गर्व होगा।

         साँवले रंग की तीखे नाक-नक्श वाली ज्योति पढ़ाई में जितनी होशियार थी,उतनी ही खेल-कूद,पेंटिंग और डिबेट में भी कुशल थी।उसकी बातों से हर कोई मिनटों में ही उसकी तरफ़ आकर्षित हो जाता था।आठवीं क्लास में जब उसने ‘बालिका-शिक्षा’ विषय पर एक स्पीच दिया था और जिसे सुनकर पूरा सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा था तब उसके प्रिंसिपल सर ने उससे कहा था कि तुम्हारी आवाज़ में जादू है।भाषा की शुद्धता और शैली भी तुम्हारी बहुत अच्छी है।भविष्य में अगर तुम इसे ही अपना कैरियर बनाओगी तो सफ़लता तुम्हारे कदम चूमेगी और तभी उसने रेडियो अनाउंसर बनने का मन बना लिया था।

      अब उसने बारहवीं की परीक्षा दे दी थी और बीएमसी (Bachelor of Mass Communication) का तीन वर्षीय कोर्स करने के लिए फ़ार्म भरने वाली थी जिसकी जानकारी आनंदी को हुई तो ज्योति को हतोत्साहित करने का उसे एक मौका मिल गया।

           वैसे तो अपनी बुआ की जली-कटी बातों को सुनने की ज्योति को आदत पड़ चुकी थी,फिर भी आज न जाने क्यों….,मेज पर रखे अपने फ़ार्म को वह निहार रही थी कि पीछे से उषा आई और बेटी के कंधे पर हाथ रखते हुए बोली, ” अपने सपने को निहार मत, उसे पूरा कर।” उसे कलम थमाती हुई बोली कि अलमारी के नीचे वाली रैक में तेरी पासपोर्ट साइज की फोटो रखी है और पापा कमरे में बैठे हैं, उनसे साइन करा लेना।

        फिर तो ज्योति ने पूरे उत्साह से फ़ार्म भर दिया और नये सत्र में वह काॅलेज़ जाने लगी।उसका प्रैक्टिकल वर्क तो बहुत अच्छा था लेकिन अंग्रेजी थोड़ी कमज़ोर होने के कारण उसे थ्योरी में दिक्कत होती थी तब उसकी सहेली दिव्या ने उसकी मदद की।फिर वह पूरी मेहनत से अपनी पढ़ाई करने लगी।

      आनंदी की बेटी रश्मि फ़िल्म की हीरोइन बनना चाहती थी।आनंदी की सहेली का पति उसी फ़ील्ड में था।उसी की मदद से रश्मि को एक रोल मिल गया।फिर धीरे-धीरे ग्लैमर की दुनिया में उसके नाम का डंका बजने लगा।हर डायरेक्टर की वह पहली पसंद बन गई थी।एक फ़िल्मी मैगज़ीन के मुखपृष्ठ पर जब रश्मि की फोटो छपी तो आनंदी उसे उषा को दिखा-दिखाकर कहने लगी,” देखो मेरी रश्मि को छोटी भाभी, चारों तरफ़ इसकी प्रशंसा हो रही है और आपकी ज्योति तो अभी तक किताबों में ही अपना सिर खपा रही है।” उषा तब भी चुप रही।रश्मि को अपनी खूबसूरती पर तो घमंड था ही,स्टार बनने के बाद तो वह सातवें आसमान पर थी। एक दिन एक स्टाफ़ की छोटी-सी गलती पर ज्योति ने उसे थप्पड़ मार दिया।फिर तो बवाल मच गया।मीडिया ने इसे एक मुद्दा बना लिया।

           कोर्स पूरा होते ही ज्योति को एक रेडियो-स्टेशन में ज़ॉब भी मिल गया।शुरु में सैलेरी कम थी, फिर धीरे-धीरे उसके काम की सराहना होने लगी तो उसकी सैलेरी भी बढ़ने लगी।माइक पर वह जिस तरह से श्रोताओं से बात करती थी,ऐसा लगता मानो वह सामने बैठा हो।उसके बनाये सभी कार्यक्रम लोगों को बहुत पसंद आते थें।प्रकाश भी उसी के रेडियो स्टेशन में म्यूज़िक प्रोग्रामिंग का काम करता है।अक्सर ही दोनों की मुलाकात हो जाती थी।एक दिन प्रकाश ने उससे अपने दिल की बात कह दी।ज्योति भी उसे पसंद तो करती ही थी। माता-पिता का आशीर्वाद लेकर दोनों ने विवाह कर लिया।

        मीडिया ने रश्मि के स्टाफ़ को थप्पड़ मारने के प्रकरण को बहुत उछाला जिसके कारण डायरेक्टरों ने उसे साइन करना छोड़ दिया।पहले बनी उसकी पिक्चर्स भी अब फ़्लाॅप होने लगी।यहाँ तक कि आनंदी के पति ने अपना पैसा भी पानी की तरह बहाया लेकिन फिर भी कोई भी प्रोड्यूसर अपनी फ़िल्म में रश्मि को हीरोइन लेने को तैयार न हुआ।

       एक दिन आनंदी ने एक अखबार में ज्योति की सक्सेस स्टोरी, साथ ही अवार्ड लेते हुए उसकी बड़ी तस्वीर छपी देखी।उसी पृष्ठ के नीचे रश्मि की आलोचना और असफलता के बारे में पढ़ा तो उसका घमंड चूर-चूर हो गया।जिस पैसे और रूप का उसे घमंड था,उसी ने उसकी बेटी का जीवन बर्बाद कर दिया था।दूसरी तरफ़ जिसे वह अपने अहंकार में चूर होकर नीचा दिखाती रही वह अपनी मेहनत से सफ़लता की सीढ़ियाँ चढ़ती गई तब उसे समझ आया कि पैसा तो हाथ का मैल होता है और रूप चार दिन की चाँदनी होती है,फिर उस पर हम घमंड क्यों करे।उसकी बेटी अपनी असफ़लता बर्दाश्त नहीं कर सकी और वह डिप्रेशन की शिकार हो गई।अब आनंदी अपनी बेटी को लेकर डाॅक्टर्स के चक्कर लगाने लगी।

        ज्योति और प्रकाश ने अपने घर में एक स्कूल खोल लिया था जहाँ गरीब तबके के बच्चों को मुफ़्त शिक्षा के साथ-साथ मुफ़्त भोजन भी दिया जाता था।अपनी आय का तीस प्रतिशत वे उन्हीं पर खर्च करते थें।उषा जब दोनों की सफ़लताएँ देखती, अखबारों में पढ़ती और लोगों के मुँह से सुनती तो गर्व से उसका सीना चौड़ा हो जाता।

                                    विभा गुप्ता 

 # घमंड                         स्वरचित 

              रूप,यौवन और पैसा आया है तो उसका जाना निश्चित है।उसपर घमंड करना मूर्खता है।अहंकार का परदा यदि आँखों पर पड़ जाये तो इंसान सही-गलत की परख करना भूल जाता है।आनंदी और रश्मि से यही गलती हो गई थी।

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