मोबाइल की घंटी बजते ही रसोई घर से निकलते हुए मधुमिता जी ने काव्या को आवाज लगाई ,जरा देखो किसका फोन है ? ये लड़की भी हमेशा कानों में ईयर फोन लगाए रहती है, सुनती ही नहीं । फोन पर राज था , उसकी आवाज़ सुनकर मां की आवाज़ बदल गई , उसने बताया उसकी सरकारी नौकरी लग गई है ,
कल ऑफिस का पहला दिन है , आशीर्वाद दीजिए मां । मां के मुंह से शब्द ही नहीं निकल रहे थे, खुशी से आवाज भर्रा गई , बोलीं आज वो दिन आ गया राज ! मेरी तपस्या सफ़ल हुई , उन्हें स्कूल बैग टांगे स्कूल जाता राज याद आ गया , उन्होंने उसकी अच्छी शिक्षा के लिए कभी समझौता नहीं किया था ,
राज के पिता की हार्ट अटैक से मृत्यु के बाद उसके छोटे चाचा ने अपनी मां समान भाभी का बी , एड करवाया , जिससे वे एक प्रतिष्ठित विद्यालय की शिक्षिका बनीं । मां ! मां बोलो न राज की आवाज़ आई ।
याद है , तुम्हें बचपन में कहा करता था , मम्मी मैं बड़ा आदमी कैसे बनूंगा ? राज बोला हां, मां और आप हमेशा कहती थीं ,अपनी मेहनत से । राज खुश होकर बोला , मां मैं जल्द आऊंगा । नौकरी के तीन वर्षों बाद मधुमिता जी ने उसका विवाह अपनी नन्द की जान पहचान की लड़की मौसमी से करवा दीं ।
मौसमी पढ़ी लिखी नए विचारों की लड़की थी , उसे अपनी सास का पति के प्रति अत्यधिक लगाव अच्छा नहीं लगता । वो राज से अक्सर भविष्य के प्रति आगाह करती ।ये कहती कि क्यों न हमलोग सरकारी क्वार्टर में रहें , किंतु राज अच्छी तरह समझता था, छोटी बहन काव्या की पढ़ाई है ,
मां से दूर जाने की बात वो सोच भी नहीं सकता । काव्या के कॉलेज से एजुकेशन टूर के लिए ले जाया जा रहा था, उसने अपने भैया से पाँच हजार रूपये मांगे , राज कुछ बोलता , इससे पहले ही मौसमी ने कहा, कोई जरूरत नहीं , ऐसे पैसे बर्बाद मत करो राज ! कल मेरा परिवार भी होगा , मैं सोचती हूँ ,
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इनके महीने के खर्च निकाल कर तुम हमारे अलग घर में चलो राज । यहां रहकर सेविंग नहीं होती। उसकी इन बातों से मधुमिता जी रोती हुई बोली , मैंने इतने जतन से तुम्हें पाला है ,क्या कल की आई लड़की के लिए मुझे छोड़ जाओगे ? क्या यही संस्कार दिया है मैने ?सशंकित उनकी आँखें लगातार राज को देखकर बही जा रही थीं , क्या सचमुच राज इतना बदल गया ?
अपनी विवशता पर राज बोल नहीं पा रहा था, तभी काव्या ने कहा ,भैया नहीं बोलेंगे मां । राज उठा और दृढ़ता से बोला , मैं कही नहीं जाऊंगा ,अपनी मां को छोड़कर । यदि किसी को तकलीफ़ है , तो मैं खर्च देने तैयार हूँ , अपने घर चली जाए । बाज़ी पलटती देखकर मौसमी ने कहा ,
मैंने तो आपकी भलाई के लिए कहा था , नहीं मौसमी ! मैं पिछले छः महीने से इसी दुविधा में था , किसे अपनाऊं ? मेरी मां मेरी जिम्मेवारी ही नहीं , मेरा अभिमान है, मैं मां को नहीं रखा हूँ , मां की कृपा है , उसने मुझे रखा है , मौसमी अपनी गलती पर पछताती हुई बोली सॉरी मम्मी जी !
मुझसे बड़ी गलती हो गई, मधुमिता जी ने कहा , अब कोई कुछ नहीं बोलेगा , चलो मौसमी आज पनीर पराठे और हरी चटनी साथ में लस्सी बनाती हूँ , राज की आँखें भरी थीं,लेकिन मुस्करा रहा था। आज उसके संस्कार की जीत हुई थी।
सिम्मी नाथ
# बेटा इतने जतनों से पाला पैसा और इस कल की आई के लिए हम सबको छोड़ कर जा रहा है