संस्कार और सम्मान – सीमा गुप्ता : Moral Stories in Hindi

“सक्सेना साहब, आपकी बेटी चार पैसे क्या कमाती है, उसका तो दिमाग ही सातवें आसमान पर पहुंच गया है। अपने बड़ों से कैसे बात की जाती है, वह सब भूल गई है। अपने पति तक को वह अपने सामने कुछ नहीं समझती। मुझे तो समझ नहीं आ रहा कि आपने उसे कैसे संस्कार दिए हैं!” सुहानी की सास गोमती जी ने उसके पिता को फोन पर उसकी शिकायत लगाते हुए कहा।

यह सब सुनकर सुहानी के पिता हक्के बक्के रह गए। उनकी बेटी ने तो हमेशा उनका सिर हमेशा गर्व से ऊंचा किया है। उन्होंने प्रत्युत्तर में इतना ही कहा, “नमस्कार, समधिन जी। सुहानी ऐसा कैसे कर सकती है? शिवम और उसकी शादी को पांच साल हो गए हैं। सब ठीक चल रहा था।‌ आपने भी पहले कभी शिकायत नहीं की। अचानक क्या हो गया है?”

“सक्सेना साहब, तो क्या मैं झूठ बोल रही हूं?” गोमती जी गुस्से में बोली।

सक्सेना जी ने अपने चित्त को शांत करते हुए कहा, “जी, मेरे कहने का यह अर्थ नहीं है। हमारे दिए संस्कारों में कोई कमी रह गई होगी। मैं अभी सुहानी की मम्मी को फोन करके कहता हूँ कि उसे समझाएं। मैं अभी ऑफिस में थोड़ा व्यस्त हूं……।”

गोमती जी उनकी बात को बीच में काटते हुए तमतमाई, “सुहानी की मम्मी को तो आप रहने ही दीजिए। कुछ दिन से सुहानी उनसे रोज बात करने लगी है और तभी से उसने सारे संस्कार भट्ठी में जला दिए हैं।”

अपने संस्कारों पर भरोसा रखने वाले सक्सेना जी की हैरानी की सीमा न रही। उन्होंने कहा, “समधिन जी, ऐसा है तो थोडा सा समय दीजिए। कल रविवार है। सबका अवकाश रहेगा। हम कल आपके यहां आते हैं। सब बैठकर आमने-सामने ही बात कर, मिलकर इस समस्या को सुलझाएंगे।” 

सुहानी अपने ससुराल में सोफे पर चुपचाप बैठी अपनी सास और पिता के बीच फ़ोन पर हुए इस वार्तालाप को सुन रही थी। छत का पंखा हवा दे रहा था, लेकिन कमरे में तनाव की भावना से ठंडक महसूस नहीं हो रही थी। बाहर सड़कें गुलजार थीं, लेकिन अंदर निराशा और दर्द पसरा हुआ था।

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  सुहानी जो एक स्कूल में शिक्षिका थी, ने हमेशा अपने लिए एक संस्कारों से परिपूर्ण जीवन का सपना देखा था—एक ऐसा जीवन जिसमें प्यार, सम्मान और समझ हो। लेकिन वास्तविकता ने कुछ और ही राह चुन ली। शिवम, जिसे वह कभी बेहद चाहती थी, के साथ उसकी शादी के बाद सुहानी का जीवन एक ऐसे मोड़ पर आ गया, जिसकी उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी।

यह सब तब शुरू हुआ जब कोरोना महामारी की दूसरी लहर के दौरान शिवम अपनी नौकरी खो बैठा। अपने पिता को तो वह बचपन में ही खो चुका था। पर इस घटना ने उसको तोड़ दिया। लेकिन सुहानी, जो हमेशा अपने पति के साथ खड़ी रहती थी, उसने अपनी सारी बचत निकाल ली, जो उसने अपने तीन साल के बेटे ध्रुव के भविष्य के लिए रखी थी, और शिवम को एक नया व्यवसाय शुरू करने के लिए दे दी। 

“मुझे तुम पर विश्वास है, शिवम। हम इस कठिनाई से मिलकर बाहर निकलेंगे। मुझे पता है तुम यह कर सकते हो।” उसने धीरे से लेकिन दृढ़ आवाज में कहा था।

लेकिन शिवम का व्यवसाय कभी भी सफल नहीं हो सका। हर दिन वह और निराश होकर घर लौटता था, उसके उत्साह की जगह निराशा ने ले ली थी।

शुरू में, सुहानी उसे सांत्वना देती रही, उसे उम्मीद दिलाती रही। लेकिन समय के साथ, उसने जो चिंताजनक संकेत महसूस किए थे, उनका सामना करना पड़ा—शिवम का व्यवसाय के प्रति बढ़ता हुआ उपेक्षापूर्ण रवैया, उसकी बढ़ती शराब की आदतें और सबसे पीड़ादायक, घर के खर्चे पर ध्यान न देना और सुहानी पर पड़े वित्तीय दबाव को महसूस न करना।

सुहानी के पास कोई और विकल्प नहीं था सिवाय इसके कि वह घर के सभी खर्चों को उठाए। वह घर की सभी जिम्मेदारियों को संभालती थी, और उम्मीद करती थी कि एक दिन शिवम का व्यवसाय चलने लगेगा।

लेकिन इसके बजाय, शिवम की शराब पीने की आदत लत में बदल गई। सुहानी की चिंता निराशा में बदलने लगी।

“शिवम,” उसने एक शाम, अपनी आवाज में घबराहट के साथ कहा, “तुम्हें व्यवसाय पर ध्यान देना होगा। मैं इतना ज्यादा खर्च नहीं उठा सकती।”

शिवम, जिसका मुँह शराब से महक रहा था, कंधे उचकाते हुए बोला, “तुम मुझसे क्या चाहती हो, सुहानी? व्यापार नहीं चल रहा है तो मैं क्या करूं?”

उसका दिल टूट गया। यह वह आदमी नहीं था जिसे उसने कभी चाहा था। वह एक अजनबी सा हो गया था, जो अपने परिवार के लिए संघर्ष करने की बजाय उसे नजरअंदाज कर रहा था।

“मैं तुम्हें शराब में उड़ाने के लिए अब और पैसे नहीं दूंगी, शिवम। हमें अपने बेटे के भविष्य के बारे में सोचना होगा। मैं उसके भविष्य को और खतरे में नहीं डाल सकती।” सुहानी ने दृढ़ता से कहा।

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तभी पूरे घर में चुप्पी छा गई। शिवम का चेहरा गुस्से से तमतमाया हुआ था। उसे कभी भी पत्नी से ना सुनना स्वीकार  नहीं था। “क्या तुम मुझे नाकामयाब मान रही हो?” उसने चिल्लाते हुए कहा। 

“तुम कुछ भी नहीं कर रहे हो!” सुहानी ने चिढ़ते हुए कहा, उसकी आवाज डर और गुस्से से कांप रही थी। “तुम हमारी सारी बचत शराब में उड़ा रहे हो, और तुम इसे ठीक करने की कोशिश भी नहीं कर रहे! हम एक परिवार हैं, शिवम! हमें मिलकर संघर्ष करना होगा।”

तर्क बढ़ते बढ़ते बहस में बदल गया। गुस्से में लाल, शिवम ने सुहानी से गाली-गलौज शुरू कर दिया। उसका मिजाज अब अनियंत्रित हो गया था, और अब शिवम वह आदमी नहीं रह गया था जिसे उसने कभी चाहा था।

जैसे जैसे उनके रिश्तों में खटास बढ़ी, शिवम की माँ ने अपने बेटे का पक्ष लिया। उसने सुहानी को हर चीज के लिए दोषी ठहराया, और कहा कि वह शिवम का सही तरीके से समर्थन नहीं कर रही है, और उसका दर्द नहीं समझ रही है।

“तुम्हें मेरे बेटे को निर्देश देने का अधिकार नहीं है, सुहानी! तुम किस तरह की पत्नी हो?” वह चिल्लाई। 

सुहानी को सास के शब्दों ने गहरे घाव दिए। “मैं शिवम का समर्थन कर रही हूँ, माँ। मैंने उन्हें सब कुछ दिया, और वह उसे सिर्फ नशे में उड़ा रहे हैं। क्या तुम यह नहीं देख रही हो?”

उसकी सास ने सुनने से इंकार कर दिया। “नहीं, तुम सिर्फ एक अहंकारी महिला हो जो अपने पति की जरूरतों को नहीं समझती। मैं तुम्हारे पिता से बात करूंगी और तुम्हारी गलतियाँ उन्हें बताऊंगी। देखती हूँ वह तुम्हें कैसे सीधा नहीं करते हैं!”

आज सुहानी की सास ने जैसे ही उसके पिता को फोन किया, उसका दिल बेचैन हो गया। उसे पता था कि उसके माता-पिता‌ जो हमेशा रिश्तों में नैतिकता और सम्मान की कद्र करते हैं, कल जब वे आयेंगे तो उनकी क्या प्रतिक्रिया होगी। उसकी सास की शिकायत ने सिर्फ सुहानी के दुखते मन पर और दबाव डाला था।

जब सुहानी के पिता अपनी पत्नी के साथ सुहानी के ससुराल पहुंचे, तो वातावरण में भारी तनाव था। शिवम, उसकी माँ और सुहानी सभी लिविंग रूम में बैठे थे, और हवा में अनकहे शब्दों का बोझ था। 

“सुहानी की अवहेलना ही इस परिवार को नष्ट कर रही है। वह पत्नी के रूप में अपनी जिम्मेदारी निभाने में असफल है।” शिवम की माँ ने कहा था।

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सुहानी के माता-पिता पिता, जो शांत और दृढ़ व्यक्तित्व के मालिक थे, ने शिवम, उसकी माँ और  सुहानी  सबकी बातों को ध्यान से सुना।

सुहानी के पिता ने विनम्रतापूर्वक कहा, “सुहानी किसी की भी अवहेलना नहीं कर रही है। वह केवल स्थिति के आधार पर निर्णय ले रही है। लेकिन जब कोई अपनी जिम्मेदारी नहीं लेता, तो वह उम्मीद नहीं कर सकता कि उसे हमेशा समर्थन मिलेगा।”

सुहानी की मां ने भी धीरे से कहा, “हमें सुहानी के दृष्टिकोण को भी समझना होगा। कुछ दिन से फोन पर यह मुझे केवल इतना ही बोल रही थी कि आजकल इसका मन अशांत है और चिंता से घिरा रहता है। ज्यादा तो मुझे यहीं आकर समझ आया है कि सुहानी वही कर रही है जो कोई भी जिम्मेदार महिला करती। वह अपने परिवार के बारे में, शिवम के स्वास्थ्य के बारे में और अपने बेटे के भविष्य के बारे में सोच रही है।”

“आप दोनों मुझ पर आरोप लगा रहे हैं?” शिवम ने गुस्से से पूछा।

“नहीं, शिवम,” सुहानी के पिता ने कहा, उनकी आवाज सख्त थी। “हम तुम्हारे खिलाफ नहीं हैं। यदि सुहानी हमारी बेटी है तो तुम हमारे बेटे हो। पर तुम्हें यह समझना होगा कि सम्मान एक-दूसरे का हक है। हम चाहते हैं कि सुहानी तुम्हारा दिल से सम्मान करे। तुम अपनी ज़िम्मेदारी निभाओगे, तो सुहानी तुम्हारी मदद और तुम्हारा आदर क्यों नहीं करेगी?”

सुहानी की सास कुछ पल चुप रही। सुहानी के माता पिता के शब्दों ने असर डाला था, लेकिन न तो शिवम और न ही उसकी माँ तैयार थे आसानी से उन्हें स्वीकारने के लिए।

आखिरकार, सुहानी ने अपनी आवाज उठाई, जो भावनाओं से भरी थी, लेकिन दृढ़ थी। “मैंने जो कुछ भी किया, वह सब मैंने अपने परिवार के लिए किया। लेकिन अब मुझे अपनी प्रतिष्ठा और बेटे के भविष्य के बारे में सोचना होगा। अगर आप मुझे सम्मान नहीं देंगे, तो मैं यह व्यवहार और सहन नहीं कर सकती।”

उसके पिता ने सिर हिलाया, उनकी आँखों में गर्व था। उन्होंने कहा, “यही है मेरी बेटी जिसने हमेशा नैतिकता और सम्मान का महत्व समझा है। सुहानी, अपने पति और अपनी सास मां का हमेशा सम्मान करना। अपने सब कर्तव्य निभाना लेकिन अन्याय और गलत आदतों को नहीं सहना। मैं तुम्हारे साथ हूँ, हमेशा।”

सुहानी की सास की चेहरा काफ़ी उदास हो गया, यह समझते हुए कि अब कोई भी आरोप उसे बदल नहीं सकता। बहू ने आखिरकार अपनी सीमा खींच दी थी, और वह अब पीछे नहीं हटने वाली थी।

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उस क्षण में, सुहानी ने महसूस किया कि उसके माता-पिता के संस्कार सिर्फ उसको नसीहतें देने के बारे में नहीं थे। वे उसके अपने भीतर की शक्ति और आत्म-सम्मान के बारे में भी थे। 

और अंत में, यही उसके लिए पर्याप्त था।

अब उसके पिता ने शिवम‌ की पीठ थपथपाते हुए धीरे से कहा, “शिवम बेटा, कठिनाइयां तो जीवन का हिस्सा हैं। सच्चे मन से संघर्ष करो ताकि तुम्हारी पत्नी तुम्हारा पूरा साथ दे। बेटा, शराब को छोड़ दो, यह विवेक हर लेती है। मैं भी तुम्हारा साथ दूंगा। देखना तुम, सफलता तुम्हारे कदम चूमेगी।”

शिवम ने आंसू छलकाते हुए और साथ में मुस्कुराते हुए कहा, “हां, पापा। आपके दिए संस्कारों में कोई कमी नहीं रही है। मैं ही भटक गया था। अब मैं संस्कारों का सही अर्थ समझ गया हूं। मैं आपसे वादा करता हूं कि इसी पल से शराब छोड़ दूंगा और पूरे मन से व्यवसाय और परिवार के प्रति अपनी जिम्मेदारी को निभाऊंगा।”

और फिर शिवम ने सुहानी की तरफ प्यार से देखते हुए कहा, ” मुझे माफ कर दोगी ना सुहानी!”

और सुहानी भी शिवम की और प्यार से देखते हुएं मुस्कुरा दी।

– सीमा गुप्ता (मौलिक व स्वरचित)

प्रतियोगिता वाक्य: #हमारे दिए संस्कारों में कोई कमी रह गई होगी।

दोस्तों, ज्यादातर देखा गया है कि बहुओं के संस्कारों पर ही उंगली उठाई जाती है और मायके वाले भी बेटी के ससुराल वालों के दवाब में आ जाते हैं। जबकि हमेशा ऐसा ही हो, ये जरूरी नहीं होता। बेटी -बहू के दृष्टिकोण को समझना भी आवश्यक है।

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