अकेलापन, शायद यही एक ऐसा एहसास था जो मुझे एक डरावने सपने जैसा लगता और कहते हैं ना कि किस्मत आपके डर को आपके सामने खड़ा कर देती है वही मेरे साथ हुआ।
जीवन के साठ मील चलने के बाद यह अकेलापन मुझ पर जोरों से हंसने लगा ।
मैं इसके आने से पहले ही डर गई ।जब बच्चे भी वापस अपने अपने घर को चले गए और जीवन साथी, जिस ने वादा तो उम्र भर तक साथ निभाने का किया था पर उम्र के इस नाजुक पढ़ाव पर….. मैं वैसा ही महसूस कर रही थी जैसे स्कूल में पहले दिन किया था जब मेरी मां मेरा हाथ छोड़ कर एक अनजान जगह अनजान चेहरों के बीच वापस चली गई थी ।
रात आई तो घबराहट और भी बढ़ गई कभी जिंदगी में अकेले नहीं सोई थी ।फिर मुझे नानी कि कहीं एक बात याद आई थी सोने से पहले भगवान को बीते दिन के लिए धन्यवाद करना चाहिए का दिन में घटी अच्छी बातें लिखनी चाहिए।
मैं उठी और अपनी डायरी निकाली ।सालों पहले जब बच्चे छोटे थे तब मैं अपनी अच्छी यादें डायरी में लिखा करती थी फिर कामकाज में मेरी या अच्छी आदत छूट गई।
डायरी के पन्ने पलटते जिंदगी वापस से जीवंत हो गई कितने ही पल थे जो मैं शायद भूल चुकी थी वापस से आंखों के सामने खिलखिलाने लगे । मैंने प्रभु को इतनी सुंदर जिंदगी देने के लिए धन्यवाद किया और सोचने लगी कि हर दिन अलग और दिलचस्प होता है और होना भी चाहिए । जिंदगी खुलकर जीने के लिए है ।
कितने ही ऐसे काम थे जो मैं करना चाहती थी पर शायद समय अभाव के कारण कर नहीं सकी , पैसे की खास कमी नहीं थी ।
मेरा बड़ा दिल चाहता कि कोई फॉरेन लैंग्वेज सीखूं बिना रुके किताबे पढ़ हूं सनसेट देखते हुए किसी कॉफी शॉप में लोगों की भीड़ के बीच खुद को भी खो दूं पहाड़ों की सर्द हवाओं में बालों को खोल कर चाय की चुस्कियां लो कुछ हटकर पहनो ट्रेडमिल पर दौड़ू साइकिल चलाऊ स्टीम बाथ लूं और ना जाने क्या-क्या। कितनी ही ख्वाहिशे थी।
ऐसी मैंने तय किया कि मैं अपने बचे सारे ख्वाब पूरे करूंगी। जिंदगी में अकेलापन तभी तक है जब तक आप अपने दोस्त खुद ना बन जाए मैंने एक भरपूर जिंदगी जी थी परिवार रिश्तेदारों के साथ अब बारी थी खुद को जानने की।
शुरुआत मैंने की अपना सें शहर एक्सप्लोर करने से, सच मानिए वर्ल्ड टूर जैसा मजा आता है ।तेरहवी गली के धनिया के आलू और चौक के लजीज भटूरे ,नदी किनारे गरम मैगी के क्या कहने और public transport से घूमने का अलग ही मजा होता है। मेट्रो का शानदार सफर और बुधवार को लगने वाली लोकल बाजार। मैं शॉपिंग करती और सबके लिए कुछ ना कुछ कोरियर से भी भेजती।
अब मुझे कई फ्रेंड्स ओर रिलेटिव्स ने कॉल भी करना स्टार्ट कर दिया था। फिर मैंनेभी आसपास के जगहो पर जाना शुरु किया ।50 100 किलोमीटर के दायरे मे। जिस शहर में जाती वहां की लोकल मार्केट जरूर घूमती और मैंने डायरी लिखना जारी रखा ।मैं खुद को इतना थका देती थी कि रात का अकेलापन अब मुझे नहीं सालता मैं जो भी अच्छी किताब पढ़ती उसकी बातें डायरी में जरूर लिखती।
फिर मेरी जिंदगी में आया एक u turn जब अचानक एक दिन बाथरूम में फिसल कर मैं गिर गई। और मेरी pelvic bone fractured हो गई। पर हार मानना अब मेरे मन में दरकिनार कर दिया था। मैंने अपने लिए एक नर्स रखी और उसे कुछ एक्स्ट्रा पे भी करती थी।मैं बोलती जाती और वो लिखती, मैंने देखते-देखते एक किताब भी लिख डाली।
मेरे बड़े बेटे का पब्लिशिंग हाउस है और उसे मेरी बुक बहुत ही इंटरेस्टिंग लगी उसने मेरी बुक पब्लिश करती और आप मानेंगे नहीं पर चार महीनों में जब मैं वापस से चलने फिरने लगी तब तक मेरे पास इन्विटेशंस की भरमार थी मेरी बुक से ज्यादा इंटरेस्ट लोगों को मुझ में था कि कैसे मैंने अपने डर पर काबू पाया और बात से बदतर परिस्थिति से मैं बाहर आई सच जीना इसी का नाम है।
Garima
स्वरचित