अपने पति के साथ कुंभ नहाने आई मुग्धा अचानक सामने बैठी बुजुर्ग स्त्री को देखकर ठिठक गई, वह सावित्री देवी लग रहीं थी, हां हां वह वही तो है… उसने अपने मन में सोचा ये तो सावित्री देवी ही है जिन्हे मै माताजी कहते नहीं थकती थी और वह मुझे दुल्हन दुल्हन कहते। मुझे इतना लाड लड़ातीं कि मुझे कभी मां की कमी महसूस ही ना हुई। मैं कभी इन्हीं के इकलौते बेटे श्याम की पत्नी थी।
श्याम इनके बेटे तो थे लेकिन सावित्री देवी के लिए उनकी जान ही थे, अपनी मां के कलेजे का टुकड़ा थे श्याम।
श्याम के पिताजी ओमप्रकाश गोयल जी जो किताब कांपी की होलसेल की दुकान करते थे, श्याम भी अपने पिताजी के साथ इसी दुकान पर बैठते थे। ओम प्रकाश गोयल जी अपनी मधुर व्यवहार और अपने ज्ञान के कारण पूरे कस्बे में मशहूर थे। क्योंकि वे अपना काम पूरी ईमानदारी से करते इसलिए हर स्कूल के अध्यापक टीचर अपने विद्यार्थियों को गोयल जी की दुकान से ही किताब कॉपी और सामान लेने का सुझाव देते।
धीरे-धीरे गोयल जी की दुकान गोलजी गोलजी के नाम से प्रसिद्ध होने लगी, अब तो पूरे आसपास के क्षेत्र में उन्हें गोल जी का परिवार कहकर पुकारे जाने लगा।
गोल जी और सावित्री देवी की चार चार बेटियों के बाद ईश्वर ने सुनी और उन्हें एक बेटे के रूप में श्याम मिले। धीरे-धीरे सभी बच्चे बड़े होने लगे। गोल जी परिवार ने अपनी चारों बेटियों के हाथ पीले कर दिए। श्याम अपनी माता-पिता के साथ-साथ चारों बहनों के भी बड़े प्यारे और लाडले थे।
अब श्याम की भी उम्र शादी की हो चली थी। जगह-जगह से श्याम के रिश्ते आने लगे थे।ओमप्रकाश जी सावित्री अपने बेटे के लिए सुंदर-सुघड़ बटुआ सी बहू चाहते थे।बस उनकी इतनी ही इच्छा थी कि बहू आये और उनकी गृहस्थी की बागडोर उनकी बहू संभाल ले और उनके बाकी के बुढ़ापे के दिन सुख चैन से कट सकें। ना जाने कितने रिश्ते देखने के बाद सावित्री देवी को मुग्धा यानी मैं अपने बेटे के लिए दुल्हन के रूप में पसंद आई थी।
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बड़े ही हर्ष और उल्लास से उन्होंने अपने बेटे का विवाह किया। तब के समय में शहर में सबसे सुंदर दुल्हन का जोड़ा उन्होंने अपनी बहू को चढ़ाया। सामर्थ्य से अधिक जेवर चढ़कर बहू को सोने में जैसे पीली कर दिया।
पूरे कस्बे में उनकी सुंदर-सुशील बहू की चर्चा के साथ-साथ एक बहुत अच्छे विवाह समारोह की भी चर्चा थी। गोलजी का परिवार और घर आंगन खुशियों से भर गया।
शादी के बाद शगुन लेने घर आए कीन्नरों को भी बहुत कुछ सामान रुपया पैसा देकर उन्होंने खुश कर और अपनी बहू को एक ही आशीर्वाद दिलवाया कि जल्दी से जल्दी उसकी गोद भर जाए और वो एक बेटे की मां बने और वो दादी बन जाएं। वंश की बेल जल्दी जल्दी बढ़ती जाए, सावित्री जी बस अपनी तमाम इच्छाओं को बहुत जल्द पूरा करना चाहतीं थीं।
प्रभु की कृपा से बहुत ही जल उनकी बहू के पांव भारी थे और साल भर के भीतर ही पोता पाकर मानो गोलजी दंपति फूले न समाये। पूरा दिन दादी सर्दियों की धूप में पोते संग छोटे से खटोले पर बैठी रहती, उसकी मालिश करती , नहलाती धुलाती सुलाती जैसे मानो उनहें तो स्वर्ग का सुख यहीं छोटे से खटोले पर पोते संग मिल रहा हो। कहते हैं ना मूल से भी ज्यादा ब्याज अधिक प्यारा होता है,बस यही सब कुछ यहां हो रहा था,
पोते राघव को मानो श्याम से भी अधिक प्रेम मिल रहा था। गोल जी भी अपने पोते को गोद में लेकर मूंगफली खाने का आनंद लेते, उसका पालना झुलाते, उसको लोरी सुनाते। यहां तक की छोटे राघव की सुसु पॉटी को साफ करने का काम भी कभी-कभी दादा-दादी ही कर देते थे। मुग्धा के पास तो सिर्फ बच्चा भूखा होने पर आता या रात को ही उसके पास जाकर सोता था। धीरे-धीरे जैसे राघव बड़ा होने लगा, उसकी दादी ने रात को भी उसे अपने पास सुलाना शुरू कर दिया।
बहुत ही आनंद के दिन थे आनंद से कट रहे थे कि अचानक परिवार पर गाज गिर गई एक दिन श्याम जब दुकान का सामान लेने दिल्ली गया तो लौटते समय एक नशे में धुत ट्रक ड्राइवर ने उसकी गाड़ी का एक्सीडेंट कर दिया और मौके से भाग गया, शायद यदि उस समय श्याम को सही समय पर अस्पताल पहुंचाया गया होता तो उनकी जान बच गई होती, लेकिन ईश्वर के लिखे को कौन बदल सका है श्याम बिना कुछ मन की कहे सुने वहीं मौत की गोद में समा गए।
पूरे परिवार पर मानो वज्रपात हो गया पूरा घर आंगन सूना हो गया। अब सभी जरूरतभर बोलते, जरूरतभर खाते, अब तो सावित्री देवी पोते राघव को अपने से एक पल भी अलग ना करतीं। यहां तक की मुग्धा को भी उसे नहीं ले जाने देती। मान लो कि जैसे राघव ही अब उनके जीने की वजह बन चुका था।
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एक दिन ओमप्रकाश जी ने सावित्री देवी से कहा जरा बहू की भी हालत देखा करो सावित्री, ऐसे उसकी किस तरह से जिंदगी कटेगी, हमें कुछ ना कुछ तो उसकी भविष्य के लिए निर्णय लेना होगा, उसका दूसरा विवाह अब करना ही होगा । मुग्धा के मम्मी पापा भी ऐसा ही चाहते हैं। सावित्री देवी ने इस बात पर कहा कि जिसको जो करना है वह करे लेकिन राघव को मैं नहीं जाने दूंगी। इतना कह कर उन्होंने सोते हुए राघव को अपने सीने से चिपका लिया। यह मेरे श्याम की आखिरी निशानी है कहकर सावित्री देवी फूट फूट कर रोने लगीं।
मुग्धा पर तो मानो जैसे एक और बिजली गिरी, वह बेटे को छोड़कर किसी भी कीमत पर विवाह नहीं करना चाहती थी।उसका दिमाग सुन्न था, वह कोई निर्णय नहीं ले पा रही थी पर अपने ससुर अपने पिता के कहने पर की यह जीवन बहुत लंबा है ऐसे अकेले नहीं कटेगा, अभी तो वे सभी हैं, आगे उसका क्या होगा।
इन शब्दों और दलीलों के आगे झुक कर उसने धीरेंद्र के साथ विवाह करने की सहमति दे दी। धीरेंद्र जो एक विधुर थे, उनकी दो छोटी-छोटी बेटियां थी। अब वे दोनों बेटियां ही मुग्धा के जीवन का आधार थी। उसने राघव के हिस्से की भी ममता उन बेटियों पर न्योछावर कर दी थी, जी जान से उन दोनों की परवरिश की, धीरे-धीरे समय अपनी रफ्तार से बढ़ता गया और मुग्धा की दोनों बेटियों का विवाह हो गया।
बेटियों के विवाह के बाद और धीरेंद्र के घर ब्याह कर आने के पूरे बारह वर्ष बाद प्रयागराज त्रिवेणी संगम पर महाकुंभ का अवसर था, वह अपने पति धीरेंद्र के साथ आज कुंभ ही नहाने आई थी… आज जब सावित्री देवी को उसने वहां देखा तो पुरानी स्मृतियों में खो गई। वह जब सावित्री देवी के पास गई तो सावित्री देवी को भी दो पल न लगे उसे उन्होंने श्याम की दुल्हनिया के रूप में पहचान लिया।,मानो बरसों से वो बूढी आंखें उसे ही खोज रहीं हों।
कहने लगी दुल्हनिया वहीं चंदा सा चेहरा, वही सूरत, वही सादगी अभी भी है, बस बालों में दो-चार जगह चांदी सी चमकने लगी है। इस पर मुग्धा ने कहा माताजी आप भी काफी कमजोर हो गई है। सावित्री देवी जी कहा मेरी तो अब उमर है दुल्हनिया। मुग्धा ने फिर पूछा आप यहां अकेली पिताजी और राघव कहां है? राघव का नाम लेते समय मुग्धा का मुंह मालिन हो गया आंखों से आंसू बहने लगे, उधर साइड में खड़े मुग्धा के पति धीरेंद्र को सब बातें समय समझते देर ना लगी वह एक अच्छे स्वभाव के व्यक्ति थे और एक मां की ममता का दर्द भली-भांति समझते थे।उन्होंने मुग्धा को शांत करना चाहा ।
तब सावित्री देवी ने कहा दुल्हनिया तेरे बाबूजी बेटे की मौत के गम से अंदर तक घुल चुके थे और एक दिन अचानक दिल का दौरा पड़ा और वह भी हमें छोड़ कर चले गए।
एक मैं ही हूं,जो अपनी जिंदगी को ढो रहीं हूं,अपनी गलती का पश्चाताप करने शायद आज तक बैठी हुई हूं। सोचती थी इस जन्म में मुझे अपनी गलती का पश्चाताप करने का भी अवसर प्रभु देगा या नहीं पर देखा आज त्रिवेणी संगम पर प्रभु ने कैसी अजब लीला रचाई है।
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तभी सामने से आते एक नवयुवक को देखकर मुग्धा को तनिक भी देर ना लगी कि यही उसका राघव है क्योंकि उसमें उसके श्याम की प्रतिछवी बसी थी। तभी राघव ने जाकर सावित्री देवी के हाथ में
गंगाजली देते हुए कहा ,दादी लो तुम यहीं गंगाजल से आचमन कर करलो, घाट पर बहुत भीड़ है और आपके घुटनों से वहां तक चला भी नहीं जाएगा।
इस पर सावित्री देवी ने राघव से कहा अरे मेरे बिटुआ मेरा तो आज यहां आना सार्थक हो गया। तू मुझसे कितनी बार पूछता न कि तेरी मां कौन है, कहां है, ले आज गंगा मैया ने तुझे तेरी मां से मिलवा दिया। ले मैं तुझे तेरी मां से मिलती हूं, कहकर सावित्री देवी ने मुग्धा को राघव से मिलवाया और कहा राघव यही है तेरी मां, दुनिया की सबसे सुंदर सलोनी मां, जिसने एक मां की तड़प की खातिर बहुत बड़ा दिल रखते हुए अपने कलेजे के टुकड़े को मुझे सौंप दिया।
पर बिटुआ आज मैं फिर तुझे तेरी मां को सौंपती हूं अब तू अपनी मां को सदा खुश रखना। अब तेरा ब्याह, तेरा लग्न सब तेरी मां करेगी। मैं जानती हूं एक बेटे के विवाह एक मां का कितना बड़ा अरमान होता है एक मां के दिल में।शायद अब प्रभु मेरी गलती की कुछ तो मुझे माफी दे सके, सावित्री देवी ने राघव का हाथ मुग्धा के हाथ में दे दिया। मुग्धा की आंखों से भी आंसू बहने लगे, वह आंखों में आए आंसुओं के वेग को रोक ना सकी ,राघव में वह श्याम की छवि जो देख रही थी, उसका मन हिलोरे मार मार कर रोने लगा।
ईश्वर ने भी उसकी जिंदगी में सब्र का बहुत कठिन इम्तिहान लिया था। लेकिन आज जैसे उसकी सारी परीक्षाएं पूरी हो चुकी थी इस त्रिवेणी संगम पर मां बेटे और दादी के इंसानी रिश्तों का वह संगम कराया जो अपने आप में बहुत अनूठा था।
#बड़ा दिल
ऋतु गुप्ता