शाम की नीरवता वातावरण में छाई हुई थी। पक्षी दिन भर उड़ने के बाद वापस अपने घोंसलों में लौट रहे थे। सूर्य की लालिमा धीरे-धीरे अंधेरे के आगोश में समाती चली जा रही थी।
इसी शाम के झुरमुट में रागिनी न जाने कब से तन्मय का इंतजार कर रही थी। कलाई घड़ी देखते- देखते वह ऊब चुकी थी। निराश होकर दरवाजे का पट बन्द करने ही जा रही थी कि तभी उसे दूर से तन्मय आता हुआ दिखाई दिया। आखिर कितना इंतजार करे वह। चार – पाँच दिनों से तो उसका यही हाल हो रहा है। इधर तन्मय दरवाजे को बंद देख सोच रहा था-रोज सोचता हूँ ,
समय पर आऊँ । पर क्या करूँ ,पढ़ाई भी करनी है। ढेरों काम पड़े हैं और पापा के तबादले का आदेश भी आ गया है। पर इस रागिनी को देखो, मेरी प्राब्लम समझती ही नहीं। खैर , थोड़ी ही देर में इसका गुस्सा शांत हो जाएगा। तन्मय यह सब सोच ही रहा था कि रागिनी ने दरवाजा खोला और मुँह फुलाये बोली
– अंदर आ जाओ। तन्मय मुस्कुराते हुए अंदर आया और कुर्सी पर धम्म से बैठ गया। उसके बैठते ही रागिनी टेपरिकॉर्डर की तरह शुरू हो गई- कितनी बार कहा है, थोड़ा जल्दी आया करो। मुझे खाना बनाना है, पढ़ना है, सिर्फ तुम्हारे इंतजार में रहने से मेरे काम खत्म नहीं होंगे। वह बोलती रही और तन्मय उसके भोले भाले मुखड़े को देखता रहा। कितनी प्यारी है यह ।
सच, एक दोस्त का होना जीवन को आनन्ददायक बना देता है। तभी तो प्रकृति ने हम मानवों को दोस्ती का अनुपम उपहार दिया है जो न तो मिटाये मिट सकता है, न बुझाए बुझ सकता है , यह तो वह अलौकिक दीप है जो सारे संसार को प्रकाशमान कर देती है।
रागिनी के चुप होने के बाद तन्मय सोचने लगा- कैसे बताऊँ इसे अपने तबादले की बात । थोड़ी सी देर होने पर यह इतनी लाल -पीली हो रही है , तबादले की बात सुनकर तो पागल हो जाएगी । पर, बताना तो पड़ेगा ही । आखिर आज नहीं तो कल इसे मालूम चलेगा ही, फिर क्यों न मैं ही इसे बता दूँ ।
यह सोचकर तन्मय रागिनी की ओर मुखातिब होकर बोला – अच्छा रागिनी , यह तो बता , तु मुझसे इतना लड़ती -झगड़ती है, प्यारी -प्यारी बातें करती है ,हर काम में मेरी सहायता करती है ,लेकिन अगर कभी मुझे यहाँ से जाना पड़ गया तो……….
रागिनी कुछ देर सोच में पड़ गयी और बोली-मैं तो जानती ही हूँ , तुम्हें यहाँ से कभी न कभी जाना ही है । यह एक सच्चाई है तन्मय , पर आज तुम ऐसी बातें क्यों कर रहे हो ? क्या तुम्हें कहीं जाना पड़ रहा है ? तन्मय उदास आँखों से शून्य में निहारते हुए बोला – हाँ रागिनी , कुछ ऐसा ही है । पापा के तबादले का आदेश आ गया है। एक महीने के बाद हमलोगों को यहाँ से जाना पड़ेगा । सोचा तुम्हें बता दूँ , देर-सवेर तुम्हें पता चलना ही था ।
रागिनी यह सुनकर भौंचक्का रह गई – क्या कह रहा है तन्मय ! इससे बिछड़ना तो शरीर के महत्वपूर्ण अंग कट जाने से भी ज्यादा दुखदायी है । वह बोली – नहीं तन्मय नहीं , तुम झूठ बोल रहे हो । तुम्हें कहीं नहीं जाना है । कहा न मैंने , तुम्हें कहीं नहीं जाना । कहते – कहते उसकी आवाज भर्रा गयी और वह फूट-फूट कर रोने लगी ।
अभी – अभी कितनी दिलेरी और गांभीर्य भरी बातें कर रही थी वह । तन्मय उठकर उसके आँसू पोंछते हुए बोला – रो मत रागिनी । भले ही हम यहाँ से चले जायें , पर मैं तुम्हें हमेशा दिल से जुड़े मित्र की भाँति याद करता रहूँगा । जीवन के किसी भी मोड़ पर अगर तुम्हें मेरी जरूरत हो
तो तुम मुझे आवाज दे देना , मैं हमेशा तुम्हारे सामने उपस्थित रहूँगा । जिंदगी में अगाध प्रगति कर लेने के बाद भी मैं तुम्हारा वही तन्मय रहूँगा , रागिनी । पर हाँ, तुम आँसू मत बहाना, नहीं तो मेरे राह में रोड़े अटक जायेंगे , जिसे मैं तो क्या, तुम भी कभी बर्दाश्त नहीं करोगी । तुमसे मेरी यही इल्तजा है । इतना कहते- कहते वह स्वयं पर काबू न रख सका और तुरंत ही वहाँ से चला गया ।
तीन साल पहले की तो बात है , जब वह यहाँ आया था । पढ़ाई में दोनों के होशियार होने के कारण जल्द ही उनमें दोस्ती हो गई । पर आज लगता ही नहीं जैसे तन्मय को आए तीन साल गुजर चुके हों। ऐसा लगता है जैसे कल की ही बात हो । हर घटनायें , हर पल रागिनी की आँखों के समक्ष घूमने लगे और आज तन्मय यहाँ से जाने वाला है ।
हर समय हँसती मुस्कुराती रहने वाली रागिनी मानो हँसना भूल गयी । धीरे – धीरे वह दिन भी आ पहुँचा जब तन्मय को जाना था । तन्मय सुबह ही रागिनी के पास पहुँचा और बोला – विदाई की बेला ही ऐसी होती है रागिनी , जो सभी को तोड़कर रख देती है ।
विदाई तो वह शब्द है , जो शान्त, निस्तब्ध और मौन है । पर उसके सन्नाटे सभी का दिल चीर जाते हैं । हमलोग आज शाम यहाँ से जा रहे हैं रागिनी । इस दुखःदायी घड़ी में तुमसे प्रार्थना है – मेरे हर गिले शिकवे माफ कर देना । टुटने में जो सुख है वह जुड़ने में कहाँ ।
यही तो प्रकृति का विधान है पगली । मुस्कुराते हुए मुझे विदा करना , ताकि जब मैं कभी तुम्हारे पास आना चाहूँ तो मुझे यह सोचकर गर्व हो कि मेरी रागिनी उन सब कल्पनाओं से ऊपर है, जहाँ तक मेरी कल्पना भी नहीं पहुँच सकती ।
शाम हो रही है । सूर्य अस्ताचल की ओर जा रहा है। पक्षी दिन भर की थकान के बाद अपने घोंसलों में वापस लौट रहे हैं। रागिनी फिर दरवाजे के पास खड़ी है। ऐसा लगता है मानो समय फिर अपने पुराने रूप में आ खड़ा हुआ हो। तन्मय अपने माता – पिता के साथ गाड़ी में सवार हो चुका है। रागिनी की आँखों में आँसू उमड़ आये हैं ,
वे बरबस निकल आना चाहते हैं , पर वह उसे अपने अन्दर जब्त की हुई है। ठीक यही हाल तन्मय का भी है। वह उदास नजरों से रागिनी को देख रहा है। तभी ड्राईवर ने हॉर्न बजाया और गाड़ी चल पड़ी । वह रागिनी के दरवाजे के पास आ चुकी है । दरवाजे के पट खुले हुए हैं। ऐसा लग रहा है मानो रागिनी तन्मय से कह रही हो
– अन्दर आ जाओ और तन्मय उसकी बातों को अनसुना कर आगे बढ़ता जा रहा है । गाड़ी उसके दरवाजे को भी पार कर चुकी है। रागिनी की आँखों के आँसू गालों पर मोती बन लुढ़क रहे हैं। सारा वातावरण बोझिल हो चुका है। वह भी जीवन की सत्यता से परिचित हो चुकी है। दूर कहीं बजते रिकॉर्ड की यह धुन भी उसके विचारों को दृढ़ता प्रदान कर रही है – खिलते हैं गुल यहाँ , खिलकर के बिखर जाने को……………
………वीणा