साँच को आँच नहीं – डाॅक्टर संजु झा। : Moral Stories in Hindi

अक्सर बचपन में सुनी कहानियाँ और सीख जीवन में काम आती हैं।मनुष्य को सरल और सहज जीवन के लिए हमेशा सत्य का साथ देना चाहिए। कहा भी गया है’सत्यमेव जयते!’अर्थात् हमेशा सत्य की जीत होती है।सत्यवचन से सम्बन्धित प्रस्तुत कहानी पंचतंत्र से ली गई है।पंचतंत्र  विष्णु शर्मा की 

कहानियों का संकलन है।पं विष्णु शर्मा ने अपनी कहानियों में मनुष्यों के अलावा पशु-पक्षी को भी अपनी कहानी का पात्र बनाया है।अपनी कहानियों के माध्यम से उन्होंने शिक्षाप्रद बातें कही हैं।

प्रस्तुत कहानी एक सत्यवादी लकड़हारे की है।प्राचीनकाल में एक सत्यवादी ,ईमानदार और गरीब लकड़हारा रहता था।वह रोज सुबह समीप के जंगल  में नदी किनारे  जाकर  लकड़ियाँ काटता और उसे बेचकर अपने परिवार का जीवन-यापन करता।इस प्रकार  उसकी जिन्दगी गुजर रही थी।एक दिन जंगल में लकड़ियाँ काटते समय अचानक से उसके हाथ से कुल्हाड़ी गिरकर नदी में जा गिरी। देखते-देखते गहरी नदी में उसकी कुल्हाड़ी गुम हो गई।

नदी में कुल्हाड़ी गिरकर जाने से लकड़हारा काफी दुखी हो गया।वह सोचने लगा कि बिना कुल्हाड़ी के मैं अपने परिवार का जीवन-यापन कैसे करुँगा?दुखित लकड़हारे ने  नदी किनारे खड़े होकर ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहा -” हे ईश्वर! मुझ गरीब पर दया करो।कृपया मेरी कुल्हाड़ी वापस दिला दो।”

लकड़हारे की सच्ची प्रार्थना सुनकर  ईश्वर का दिल पसीज उठा।उन्होंने प्रगट होकर  पूछा -“हे वत्स! तुम्हें क्या दुख है?मुझे बताओ। “

लकड़हारे ने अपनी व्यथा सुनाते हुए कहा -” हे प्रभु!मेरी कुल्हाड़ी नदी में गिर गई है।कृपाकर आप मेरी कुल्हाड़ी मुझे वापस दिला दीजिए। “

लकड़हारे की करुण पुकार सुनकर भगवान ने नदी में हाथ डालकर  चाँदी की कुल्हाड़ी निकालकर पूछा -“वत्स!क्या ये तुम्हारी कुल्हाड़ी है?”

लकड़हारे ने देखकर कहा -“प्रभो!यह कुल्हाड़ी मेरी नहीं है!”

भगवान ने पुनः नदी में हाथ डालकर  सोने की कुल्हाड़ी निकालकर पूछा -“पुत्र! क्या ये सोने की कुल्हाड़ी तुम्हारी है?”

लकड़हारे ने देखकर कहा -” नहीं प्रभो! यह मेरी नहीं है।सोने की कुल्हाड़ी का मैं क्या करूँगा?इससे तो लकड़ियाँ भी नहीं कटेंगी।यह मेरे किसी काम की नहीं है।मेरी कुल्हाड़ी लोहे की है।”

भगवान  ने मुस्कराते हुए  पानी में हाथ डालकर लोहे की कुल्हाड़ी निकालकर ली।”

अपनी कुल्हाड़ी देखते ही लकड़हारे ने खुशी से चिल्लाकर कहा -“भगवन!यही कुल्हाड़ी मेरी है!इसके लिए आपका बहुत-बहुत आभार।”

लकड़हारे के सत्यवचन और ईमानदारी से प्रसन्न होकर ईश्वर  ने उसे कहा -“पुत्र!तुम्हारी सत्यवादिता और ईमानदारी से मैं बहुत प्रसन्न हूँ,इसलिए तीनों कुल्हाड़ी तुम्हें देता हूँ।”

यह कहकर ईश्वर अंतर्ध्यान हो गए। 

लकड़हारा अपनी सत्यवादिता और ईमानदारी के लिए पुरस्कृत हुआ। इसलिए कहा गया है कि जिन्दगी में भले ही लाख मुसीबत क्यों न आएँ,सत्य का साथ नहीं छोड़ना चाहिए, क्योंकि सत्य को किसी का भय नहीं होता है।

समाप्त। 

लेखिका-डाॅक्टर संजु झा।

उपरोक्त कहानी पंचतंत्र से ली गई है।

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