अर्पिता के पिता के असमय गुजर जाने से अर्पिता के कोमल कंधो पर घर की सारी जिम्मेदारी आ गई। असमय बड़ी हुई अर्पिता कभी बड़ी बन माँ को हौसला देती कभी छोटे भाई बहन की अभिभावक बन उनके भविष्य को सोचती। अनुकम्पा के आधार पर अर्पिता को पिता की जगह नौकरी मिल गई।
सरकारी नौकरी मिलना आसान नहीं था पर लोगों के सम्मिलित प्रयास ने अर्पिता को ये नौकरी दिला ही दी। उर्मिला जी ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं थीतो नौकरी अर्पिता को मिली।
घर की जिम्मेदारी निभातेसबका शादी ब्याह करते अर्पिता के बालों में सफेदी दिखने लगी कुछ बारीक़ लकीरें चेहरे पर उभरने लगी। पर माँ को कभी लगता ही नहीं कि अर्पिता की उम्र हो रही छोटे भाई बहन की उम्र उन्हे दिखने लगी थी
हल्ला करके उन्होंने पहले छोटी बहन अरु कीफिर भाई अभय की शादी करवा दी।पर अर्पिता की उम्र वहीं ठहरी हुई थी जहाँ पिता छोड़ गये थे। उर्मिला जी कभी अर्पिता की शादी का नाम ना लेती। हाँ ऑफिस में उसका एक सहकर्मी उसका संघर्ष देख प्रभावित था और शादी करना चाहता था। अर्पिता ने मना कर दिया।
जिम्मेदारियों से मुक्त होते ही अर्पिता को जीवन लक्ष्यहीन लगने लगा। ऑफिस से आने पर जो भाई बहन और माँ उसे घेर लेते वो अब अपनी दुनिया में मग्न हो गये।हाँ नई नवेली किरण अर्पिता के ऑफिस से लौटने पर गर्म चाय और नाश्ता जरूर देती।
पर अभय के पास बहन के लियें कोई समय नहीं था। वो सिर्फ उसे पैसा कमाने की मशीन समझ लिया। अर्पिता के पैसों पर दोनों भाई बहन अपना पूरा हक़ समझते।पर नई भाभी किरण को अर्पिता से पूरी सहानभूति थी। अभय समय के साथ पहले लड़की फिर पांच साल बाद एक लड़के का पिता बन गया। अर्पिता उपेक्षित होती गई।
पिता द्वारा अधूरा बना घरअर्पिता ने बैंक से लोन बनवाया था।घर पिता के नाम पर था। अभय कई दिन से इस घर को अपने नाम कराने के पीछे पड़ा था। पर अर्पिता टाल दे रही थी।आज सुबह ही अभय ने अर्पिता से फिर घर के पेपर मांगे अर्पिता ने मना कर दिया।
उर्मिला जी बेटे के पक्ष में बोलने लगी। अर्पिता उन्हे समझा रही थी पर उर्मिला जी भड़क गई ये मकान तेरे बाबूजी के नाम पर है इसका हक़दार तो अभय ही है। तेरा कोई हक़ नहीं है पिता के मकान में।
अर्पिता सन्न रह गई ये उसकी माँ बोल रही जिसने पिता की मृत्यु पर अर्पिता को कहा था तू इस घर की बेटा है कह सारी जिम्मेदारी को उसके कंधो पर डाल दिया था। आज बेटे के मोह में उनको समझ में नहीं आ रहा क्या बोल रही।
अर्पिता का गुस्सा जो पिता की मृत्यु के बाद चला गया था। प्रचंड हो गया माँ सही कहा पिता की जिम्मेदारियों की वारिस मै हूँ और सम्पति का वारिस अभय..। क्यों माँ इतना भेदभाव क्यों…? गुस्से में अर्पिता ऊपर अपने कमरे में आ गई.।
मौसम भी आज कुछ भीगा भीगा था.. रह रह के बारिश हो रही थी। माँ की बातों ने आज अर्पिता को सच का वो आईना दिखा दिया जो हमारे भारतीय घरों में अक्सर लड़कियों को महसूस कराया जाता है।फ्रेश हवा लेने के लियें खिड़की खोली
तो देखा लॉन में अभय की बेटी पारुल और बेटा हर्ष उधम मचा रहे थे। तभी हर्ष गिर गया पारुल दौड़ती हुई आई भाई को अपने अशक्त हाथों से उठा अंदर ले आई। जब बाबूजी गुजरे थे तब अर्पिता ने इसीतरह छोटे भाई बहन को अपनी बांहों में समेट लिया था। कितने अजीब ये रिश्ते होते है जो समय के साथ बदल जाते है।
अर्पिता का मन भीग गया सच कैसे समय बदल जाता। बचपन में एक दूसरे पर जान देने वाले भाई बहन बड़े होकर अपनी गृहस्थी में रच बस जाते जहाँ रिश्तो के नाम पर पति पत्नी और बच्चे ही धुरी बन जाते.। अपने पराये स्वार्थ वाली भावना ऊपर हो जाती दिल का रिश्ता नीचे छुप जाता। अपनी जिंदगी के इतने साल देने पर भी आज माँ ने उसे सुना दिया। जब तक भाई नहीं कमाता था तब तक माँ अर्पिता का मुँह जोहती थी.।
रात को किरण खाने पर बुलाने आई अर्पिता ने मना कर दिया। दीदी सर दबा दूँ किरण के पूछने पर अर्पिता की आँखों में आंसू आ गये। जिनसे खून का रिश्ता था उन्हे फ़िक्र नहीं थी। ये तो दूसरे घर से आ कर भी उसकी व्यथा को समझती है। शायद एक स्त्री दूसरी स्त्री के दर्द को समझ पा रही है।
भोर का सूरज एक नई उम्मीद को ले आया। अर्पिता अपनी अटैची तैयार कर नीचे उतरी माँ को बोली मै जा रही हूँ अपनी दोस्त के यहाँ रहने। ये सम्पति अभय की है पर समय रहते मेरी जिंदगी भी संवार दी होती तोआज उम्र के इस मोड़ पर मै तन्हा ना होती।
या मैंने भी समय रहते अपनी खुशियों को नजरअंदाज ना की होती तो अरु और अभय की तरह मेरा भी घर परिवार होता। आप माँ तीनों की थी फिर आपने मेरे लियें क्यों नहीं सोचा।माँ ने शर्म से आंखे झुका लीं सच ही तो कहा अर्पिता ने ये पक्षपात वो कैसे कर गई बेटे के मोह में सही गलत का फैसला करना भूल गई।
उधर किरण पहली बार पति के विरुद्ध खड़ी हो गई। अभय को बहुत खरी खोटी सुनाई “जिस बहन ने अपनी जिंदगी होम कर दी आपको पढ़ाने लिखाने में उसी बहन पर आपको एतबार नहीं था। घर दीदी का बनवाया है ये उन्ही का रहेगा।
जाना है तो हमलोग दूसरी जगह जायेंगे दीदी नहीं..”। पारुल और हर्ष में झगड़ा हो गया हर्ष कह रहा जैसे पापा ने बुआ को घर से निकल जाने को कहा मै भी बड़ा हो कर तुमको निकाल दूंगा। बच्चों की बातों ने अभय की आँखों में बँधी स्वार्थ की पट्टी हटा दी।
अर्पिता के बाहर बढ़ते कदम पर अभय गिर पड़ा माफ करना दीदी मेरी आँखों पर स्वार्थ की पट्टी बँधी थी माँ ने भी मुझे कभी नहीं टोका इसलिए मुझे अपनी गलती का अहसास कभी नहीं हुआ था। अर्पिता के पैरो पर गिरा अभय छोटे बच्चे की तरह रो पड़ा।
अर्पिता ने किरण को देखा उसने हाथ जोड़ दिया दी मत जाना हमें छोड़ कर नन्हे हर्ष ने बुआ के गले में हाथ डाल अपनी मीठी आवाज में बोला बुआ मै बड़ा हो जाऊंगा तो आपको अपने साथ ले जाऊंगा।और पारुल को छोड़ दूंगा। ना बेटे बहन को कभी नहीं छोड़ना।
कह अर्पिता ने हर्ष को प्यार किया। उसकी अटैची अभय उसके कमरे में रखने के लियें सीढ़ी चढ़ रहा था। और माँ.. बेटी की पसंद का खाना बनाने रसोई में। स्वार्थ का रिश्ता दिल के रिश्ते में बदल गया।
संगीता त्रिपाठी