आज रात भर रेखा को नींद नही आई ये सोच सोच कर कि कल क्या होगा।
अभी तक तो वो निश्चित रहती थी कि जो होगा रमेश देख लेंगे और देखते भी थे यही हक़ीकत है घर से लेकर बाहर तक के सारे काम वो देखते थे। उसे तो सिर्फ़ रसोई और बच्चों को देखना पड़ता पर पिछले साल जो हुआ वो उसने उसे हिला के रख दिया।
उसे याद है वो दीपावली कि रात जब सभी लोग पूजा करके खाना खाने बैठे ही थे कि अचानक इनको पसीना आया और चट से गिरा पड़े कोई कुछ समझ पाता कि आंखें हमेशा के लिए बंद हो गई। कुछ समझ ही नही आया कि क्या हो गया बस अस्पताल ले गए तो डा. ने साइलेंट अटैक बताया।
खैर हाथ में कुछ था ही नही तो क्या कर सकते थे एकाध घंटे की फारमेल्टी के बाद उन्हें घर लाया गया।
और विधि विधान के अनुसार सारे क्रिया कर्म के बाद आख़िरी विदाई दी गई।
अब चूकि बेटे का रोका हो गया था और शादी भी महीने भर बाद ही थी तो उसे कुछ भी करने से मना किया गया।
पर जब कुछ बड़े लोगों ने कहा कि अपने मां बाप का नही लिया जाता तो वो आगे बढ़ कर सारे काम करने को तैयार हो गया। मैने देखा ये सुनते ही उसके चेहरे का भाव बदल गया।जिसे महसूस कर मन को एक अजीब सा सुकून मिला।
तमाम चल अचल संपत्ति को छोड़ वे तो इस दुनिया से विदा हो गए ।जिसके हकदार बच्चे और पत्नी हुई।
तेरह दिन तक घर में लोगों का मेला लगा रहा।पर उसके बाद सब अपने अपने घर चले गए। रह गई वो और उसके दो बच्चे।
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कुछ दिनों बाद बेटा आफिस जाने लगा और बेटी कालेज फिर तो वो अकेली रह जाती पर ये अकेलापन भी जल्दी ही दूर हो गया क्योंकि पति के सामने ही बेटे की सगाई हो गई थी बस एकाध महीने में शादी होने वाली थी तो मानों विपत्ती का पहाड़ टूट पड़ा।
अब सारी तैयारी हो गई थी इसलिए रोका भी नही जा सकता इसलिए साधारण तरीके से तमाम रस्मो रिवाज के साथ ब्याह संपन्न हो गया।और नई बहू का स्वागत सभी ने खुशी मन से किया।
ईश्वर की कृपया ऐसी रही कि जल्द ही नए मेहमान का आगमन भी घर में हो गया। तो वक़्त जैसे जख्मों को भरने लग हम उसी में व्यस्त रहने लगे।
और बहू घर के कामों के साथ साथ वर्क फाम होम घर से ही करने लगी।
हलाकि सारी जिम्मेदारी वो निभाती फिर भी कुछ कुछ चीजों को कहने में झिझक होती अभी नई नई जो है।बस यही सोच कर रात भर नींद नही आई कि कल इनकी तिथि है और कैसे होगा।
सुबह उठी तो देखा बेटा बहू भी घर पर नही थे और बाबू बिट्टो के पास सो रहा था।
बेटी से पूछने पर पता चला वो कही गए है अभी थोड़ी देर में आयेगे तब तक वो बाबू का ख्याल रखे।
इतना सुनते ही वो दूध की बोतल बनाने जा ही रही थी कि देखा तकिये के पास बना रखा था सो उसने उसके मुंह में लगा दिया।
थोड़ी देर बाद जब बाबू ने दूध पी लिया तो वो उठी और नहाने चली गई।
नहाकर जैसे ही वो बाहर निकलती देखा बेटा बहू और पड़ित जी सामने खड़े है और बेटे के हाथ में श्राद्ध का सामान है।
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फिर क्या था पूरे विधि विधान के साथ पिंडदान हुआ और पंडित जी को दक्षिणा देखकर उन्हें राजी खुशी विदा किया गया।
ये देख उसे बड़ा सुकून मिला कि अभी साल भर पहले आई बहू ने कैसे आकर अपनी जिम्मेदारियों को संभाल लिया।
आज उसे इस बात का अहसास हो गया कि वो रहे ना रहे वो सारी जिम्मेदारियां बखूबी निभा लेगी।ये सोच उसकी आंखें छलक आईं। क्योंकि अब उसे नींद से समझौता नही करना पड़ेगा।
स्वरचित जीवंत रचना
कंचन श्रीवास्तव आरज़ू प्रयागराज