समय की माँग – श्वेता सोनी : Moral Stories in Hindi

आज कई साल बाद मायके जा रही है नंदिनी, मन में उत्साह और मायूसी के मिले-जुले भाव हैं,

 कैसा मायका.. कहाँ रहे माँ-बाप और वो बहनें..

 कैसा रुआसा हो आया उसकी मन. बहनें… शब्द में ही कितना अपनापा लगता है ना..

 नंदिनी,नलिनी,निशा और नेत्रा.. चार बहने थीं वे.. थीं… क्योंकि अब वो बहनें नहीं रहीं.. किसी की बीवी, बहू और माँ हो गई हैं.. सबका अपना अपना संसार, अपनी अपनी दुनिया.

 सभी को एक दूसरे से अपने को बड़ा बताने की होड़ है. किसी के पति डॉक्टर हैं तो कोई बहुत बड़ा व्यापारी, कोई सॉफ्टवेयर इंजीनियर तो कोई सरकारी शिक्षक..

 नंदिनी यादों के गलियारों में बेचैनी से घूमने लगी..

 वह सबसे छोटी थी और इसीलिए सारी  दीदियों की दुलारी भी.. मजाल था कि कोई उसे किसी काम को करने की पेशकश करे.

 दोस्तों रिश्तेदारों में बड़ी इतराती थी नंदिनी, सचमुच उसे बड़ा घमंड था कि उसकी तीन दीदियाँ हैं मगर यह घमंड कभी नकारात्मक रूप नहीं ले सका जितना बहनें उससे प्यार करती थीं उससे कहीं अधिक वह उनसे प्यार करती थी.

 याद है उसे नलिनी दीदी की शादी का समय, नलिनी दीदी का रंग थोड़ा साँवला था, दीदी का रिश्ता कहीं पर भी नहीं हो पा रहा था तब वह कितना अवसाद ग्रस्त हो गई थी,तब नंदिनी ने हीं तो उनमें साहस का संचार किया था कितने तरह से उन्हें समझाती थी..

… दीदी क्या शादी एक ही  विकल्प है, जीवन में और बहुत कुछ है करने को.

 निशा दीदी उन सब में सबसे बड़ी थी उन्होंने भी जीवन में बहुत दुख झेले, उनकी शादी के बाद आन्या के जन्म तक कितना परेशान रहीं वो, उनका बच्चा ठहरता ही नहीं था तब नंदिनी ने हीं तो उनकी संतान के लिए कितनी मन्नतें मान दी थी.

 और नेत्रा दीदी.. शादी होते ही ससुराल वालों का अत्याचार सहन करना पड़ा उन्हें, जीजा जी भी गलत विचारों वाले मिल गए थे तब इसी नंदिनी ने उन्हें ढाँढस बँधाया था. वह तो पति का घर छोड़कर मायके ही बैठने वाली थी मगर नंदिनी और बाबूजी की कोशिशों से वह समस्या भी दूर हुई.

 क्यों किया था नंदिनी ने सबके लिए यह सब कुछ,क्योंकि वह अथाह प्रेम करती थी अपनी दीदियों से..

 यह प्रेम भी एक मिराज ही है, रेत को पानी समझने का भ्रम..

जब नंदिनी की शादी हुई तब तक कितना कुछ बदल चुका था. नंदिनी ने सोचा था बल्कि उसे तो यकीन था कि उसकी शादी किसी भव्य उत्सव से कम न होगी, तीन-तीन दिन दीदियाँ जो हैं उसकी, मगर वहाँ तो उल्टी ही बात हो गई, सब अपने अपने पति, बच्चों और ससुराल वालों की तीमारदारी में ही लगी रहीं, यहाँ तक कि नलिनी दीदी को उसके हाथों पर मेहंदी लगाना भी याद ना रहा.

 विदाई के वक्त जितना दुख उन सब से विदा हो जाने का था उससे ज्यादा तो इस बात से था कि वह सबसे अलग हो चुकी है.

 विवाह के बाद नंदिनी के भी जीवन में क्या कम परेशानियाँ आई थी,ब्याह होते ही देवरानी ने अपने गहनों की चोरी का इल्जाम नंदिनी पर लगा दिया.. देवर की शादी उससे पहले हो गई थी, सो देवरानी, देवरानी बनकर नहीं जेठानी बनकर मिली..

 कितने-कितने सितम किये उसने..जादू टोना..गाली गलौज सब कुछ..

 जिसने सात वचन देकर उसकी रक्षा करने की सौगंध ली थी उसने भी साथ नहीं दिया.

नंदिनी अपने पर आई इस मुसीबत से स्वयं ही लड़ी और विजयी भी हुई मगर उस वक्त उसे जिन बहनों के प्रोत्साहन की जरूरत थी कहाँ थीं वे..कोई उससे ससुराल में मिलने भी ना आया..

 शायद इसी दिन के लिए बहनें भगवान से अपने लिए भाई माँगा करती हैं.

 वह किस्सा भी खत्म हुआ. बाबूजी के देहांत के बाद बनारस के घर पर ताला मार कर निशा दीदी माँ को अपने साथ ले गईं.

 उससे भी फोन के माध्यम से संपर्क बना रहा. बाद में यह संपर्क भी खत्म हो गया.

 जब मन के सारे भाव ही रिक्त हो गए तो फोन पर संवाद भी कैसे हो.. धीरे-धीरे करीब दस वर्षों का समय व्यतीत हो गया, नंदिनी और उसके पति के मध्य विवाह के शुरुआती दिनों में जो खटास पड़ी, वह दस वर्षों में और भी चटक हो गई.. कितने ही लड़ाई झगड़े हुए..होते रहे..मगर जिनकी गृहस्थी में आई अड़चनों को नंदिनी ने दूर किया था,आज वही बहनें उसके ऊपर आए संकट में उससे दूर छिटक कर खड़ी हो गईं.

 क्या यह समय की माँग थी.

बनारस पहुँच गई थी नंदिनी, मायके के घर में वर्षों बाद कदम रखा, आँखें सजल हो आईं, उन चारों का कमरा.. नंदिनी सोचती रही..अपने-अपने पलंग को यहाँ वहाँ करतीं… वे चारों बहनें, आज भी उस गलियारे में चाय के साथ बैठक करती वे चारों बहनें..

रसोई घर,बैठक, छत,दीवारें,खिड़कियाँ सब में उनकी यादें बसी हैं.. जो बरबस ही रुला रही हैं.

 सारी दीदियाँ भी अपने-अपने पतियों के साथ एक-एक कर पहुँच गईं.

मुद्दा इस घर को बेचने का था.माँ नहीं रही थीं. सबने मिलकर तय किया था कि इस घर को बेचकर सबको इसका हिस्सा दे दिया जाए.

      सब ने तय कर ही लिया है तो मुझसे क्या ही पूछना,सोचा था मैंने, जब कभी अपने-अपने घर,पति, बच्चों, ससुराल वालों से उकताएंगें तो हम चारों इसी घर में आकर एक दूसरे के गले लगा कर रो रूला लेंगें मगर लगता है कि उसकी जरूरत नहीं रही, सब अपने अपने जीवन में खुश हैं तो रोने की आवश्यकता ही क्या है.. मेरा हिस्सा मुझे मत देना उसके तीन हिस्से करके तुम तीनों ले लेना,मेरी बड़ी इच्छा थी कि मैं भी कभी कुछ दूं तुम लोगों को,, छोटी थी ना.. हमेशा तुम बड़ों से लिया ही तो है..

कहकर नंदिनी अपना बैग उठा अपनी एक दोस्त के यहाँ चली आई.दो दिन उसके पास रूक कर वहीं चली जाएगी जहां से आई थी.

आज मायके से बँधा आखिरी बंधन भी खोल आई वह..

 रिश्ते क्या टूट कर बिखर जाने के लिए ही होते हैं.. क्या यही इस यंत्रचालित समय की माँग है.

# टूटते रिश्ते 

श्वेता सोनी

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!