समय का खेल निराला – लतिका श्रीवास्तव : Moral Stories in hindi

ये भाग्य वाग्य सब फालतू बातें हैं निकम्मों के बहाने हैं मैं नहीं मानता ये सब मैं तो खुद अपनी तकदीर का मालिक हूं … परिमल जी ने सिगार का कश लेते हुए थोड़े दर्प से कहा तो और तो किसी की हिम्मत नही हुई कुछ कहने की लेकिन उनकी पत्नी मधु जी रोक नही पाई स्वयं को और आगे बढ़कर  बोल ही पड़ीं नहीं ऐसा नहीं कहते हमारे हाथ में कुछ नही होता   हम सब तो उस परम पिता की इच्छा अनुसार ही जीवन जीते हैं वही हम सबका भाग्यविधाता है क्षण भर में ही समय पलट जाता है और जिस पर हमें आज अहंकार हो रहा है वह सब छिन जाता है हम विवश हो जाते हैं …!

तो भाग्य में है तो मिलेगा ही  यही सोचकर हाथ पर हाथ धरे बैठे रहो कर्म ऐसे करो कि  भाग्य विधाता भी विवश हो जाये भाग्य दौड़ता हुआ खुद तुम्हारे पास आ जाए  जैसे मैं करता हूं मेहनत करता हूं साम दाम दण्ड भेद सारी नीतियां अपनाता हूं तभी तो इस मुकाम तक पहुंच पाया हूं तुम अपनी ये बकवास अपने पास रखो तुम्हारा ये बेटा दीप भी तुम्हारी ही तरह सोचता है इसीलिए जिंदगी में अभी तक कुछ कर नही पाया…

आइए सुवीर जी परिमल जी ने उठते हुए कहा डुग्गू आया है वही युवाओं का दमदार नेता  चलिए उसके साथ बैठकर वो कॉलेज के पास वाली जमीन पर मदिरालय बनाने का प्रोजेक्ट तय करते हैं सुना है ऑफिस के अधिकारी के साथ उसकी गाढ़ी छनती है..!

अरे परिमल जी आपका ये पुत्र भी तो उसी जमीन पर पुस्तकालय बनवाने की फाइल बढ़ा चुका है पहले आप इससे तो मामला तय करिए अपनी फाइल वापिस लेने का…!सुवीर जी ने दीप और मधु जी की तरफ देखते हुए थोड़ा तल्खी से जवाब दिया था।

पापा प्लीज आप कॉलेज के पास डुग्गू के साथ मिलकर मदिरालय मत खोलिए कॉलेज का पूरा वातावरण दूषित हो जाएगा पुस्तकालय बनने दीजिए ।पापा अगर आप पुस्तकालय बनवाने में रुचि लेंगे तो मैं अपनी फाइल वापिस ले लूंगा आप इसी प्रोजेक्ट की फाइल बढ़ा लीजिए दीप ने बहुत विनम्रता से कहा लेकिन परिमल जी झटके से खड़े हो गए ।

मेरा बेटा होकर भी तू रहा निरा बेवकूफ ही …फाइल फाइल …अगर फाइल बढ़ाने से ही सब कुछ हो जाता तो डुग्गू जैसों का अस्तित्व क्यों होता .. हर फाइल के साथ बहुत सारा वजन और डुग्गू सरीखे का समर्थन चाहिए बेटा …. फाइल तो महज औपचारिकता होती है दिखावा होती है …. तुम्हारी फाइल तो बस कचरे के डिब्बे में ही जायेगी ….जैसे तुम्हारी पिछली फाइल शॉपिंग कॉम्प्लेक्स वाली ..!!मेरी बात मानो कुछ वजन रखो उसके साथ या हटा लो फाइल और पुस्तकालय जैसा बिना प्रॉफिट का प्रोजेक्ट अप्रूव होगा ये भूल जाओ..बी प्रैक्टिकल ….परिमल जी आवेश में आ गए थे।

पापा लीजिए पानी पी लीजिए प्लीज…. आपकी तबियत खराब हो जायेगी ….तुरंत पानी का गिलास पापा को थमाते हुए दीप ने कहा तो परिमल जी ने गिलास झटक कर दूर फेंक दिया … बस यही करो तुम मेरी समझाइश का कोई असर नहीं है तुम पर मेरी तबियत तुम्हारे ही कारण खराब होती है….. चल यार सुवीर डुग्गू को ज्यादा इंतजार कराना ठीक नहीं है मेरे बेटे की तो मति भ्रष्ट हो चुकी है अरे उस ऊपरवाले को अपना भाग्यविधाता मानना छोड़….जिसने तुझे ये बुद्धि प्रदान कर दी है कि अब तू अपना भाग्य खुद लिख ले अपना भाग्यविधाता तू स्वयं है और कोई नहीं समझा…अपने पापा की समझाइश के भरोसे रह  तभी तेरा भाग्य उदित हो सकता है आ मेरे साथ डुग्गू से तेरा परिचय करवा देता हूं मैं हूं तो तुझसे बात भी कर लेगा वरना उससे मिलने के लिए भी एक एक महीना इंतजार करना पड़ता है..!

लेकिन दीप को तटस्थ देख कर क्षुब्ध हो परिमल जी सुवीर के साथ कार में बैठ कर चले गए थे।

आंदोलित हो उठता था दीप पापा की हमेशा की ऐसी ही बातों से … कर्म करने से वह भी पीछे नहीं हटता है लेकिन कर्म का उद्देश्य सही रखता है केवल व्यक्तिगत लाभ नहीं देखता अनुचित साधनों का सहारा लेकर कर्मो को दिशा नही देना चाहता कोई देखे या ना देखे उसका ईश्वर उसका अंतकरण तो देखता ही है लेकिन पापा किसी भी तरह से अपने अभीष्ट को सिद्ध करना चाहते हैं।

मां मुझे नही बढ़ानी अपनी कोई फाइल वाइल.. मुझे तो पापा की तबियत खराब होने से डर लगता रहता है …पापा को मालूम था कि मैंने इस जमीन पर पुस्तकालय का प्रोजेक्ट लिया है तो फिर पापा को भी यहां के लिए फाइल नहीं बनवानी चाहिए थी अचानक अपना ये मदिरालय जैसा प्रोजेक्ट बना कर और उस गुंडे डुग्गू को लेकर चले आए और अब मुझ पर दबाव बना रहे हैं फाइल वापिस लेने का… !! असमंजस और निराशा में घिर गया था दीप।

बेटा भाग्य तो हमारे साथ जुड़ा ही हुआ है वही तो अच्छा बुरा समय निर्धारित करता है ईश्वर ने बुद्धि हमें सही गलत पहचानने के लिए ही दी है सही उपयोग करने के लिए ही दी है हमे अपने जो भी सम्मुख कर्म हैं सही तरीके से करते रहने चाहिए बिना प्रतिफल सोचे….!!

हमारे हाथ में केवल कर्म करना है भाग्य विधाता हम नही है ठीक वैसे ही जैसे तुम प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करते रहे परीक्षा देते रहे लेकिन चयन होगा या नहीं होगा ये किस्मत पर छोड़ दिया था… कोशिश तुमने की कर्म तुमने किया पापा वाला बिसनेस ना करना पड़े कोई सरकारी नौकरी मिल जाए लेकिन शायद तुम्हारी तकदीर तुम्हे इसी लाइन पर लाने को प्रतिबद्ध थी ।

अब यहां भी कर्म करना ही तुम्हारे हाथ में है तुम अपने भाग्यविधाता नहीं हो कब क्या हो जायेगा किसी को नहीं पता इसीलिए खुद पर और ईश्वर पर भरोसा रख कर तुम अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहो…. मधु जी ने समझाना चाहा था।

लेकिन मां… पापा भी तो इसी के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं ….मुझे इस प्रोजेक्ट को छोड़ देना चाहिए सही कह रहे हैं पापा फाइल तो मात्र औपचारिकता है असली तो वजन होता है जो मेरे पास नहीं है मेरे पास तो पुस्तकालय बनवाने के लिए पूंजी कहा से आयेगी ये भी नहीं पता..!!दीप की चिंताएं बढ़ चलीं थीं।

किस वजन की बात कर रहा है दीप असल वजन तो तेरी सच्ची नीयत का है तू अपना कर्म कर फाइल आगे बढ़ाते रह …ठाकुर द्वारे में रखी फाइल उठा कर उसे देते हुए मां ने कहा तो ठीक है मां कहता दीप फाइल लेता अनमने भाव से उठ खड़ा हुआ था।

ऑफिस गया और अधिकारी से मिलकर अपनी फाइल जमा कर दी एक सप्ताह के बाद उन्होंने आने के लिए कहा।

पापा के दमदार प्रयासों के समक्ष खुद को बौना महसूस करता दीप अपने पुस्तकालय खोलने के स्वप्न को तिलांजलि देता दूसरे प्रोजेक्ट की तलाश में जुट गया था।

आज सुबह से पापा सुवीर अंकल और डुग्गू के साथ ऑफिस  चले गए थे आज फाइल अप्रूव होने का दिन जो था।

दीप इन सबसे बेखबरअपने दूसरे प्रोजेक्ट में तल्लीन था की अचानक मोबाइल बज उठा देखा तो पापा का कॉल था तुरंत उसे याद आया … लगता है आज पापा की फाइल अप्रूव हो गई ..!! कॉल उठाने का उसका मन ही नही हुआ .. होगा ही उनका ही होगा वो खुद अपना भाग्य लिख सकते हैं मै नही लिख सकता ठीक कहते थे पापा मैं निरा बेवकूफ हूं अव्यवहारिक एक आदर्शवादी संसार में जीता हूं काल्पनिक दुनिया बना रखी है मैने .. ठीक है मुझे यही अच्छा लगता है मेरा रास्ता यही है…!!

जल्दी घर आ जा कहां है तू दीप मां की घबराई आवाज फोन पर सुनते ही दीप भी घबरा गया अभी आ रहा हूं मां कहता तुरंत घर पहुंच गया था।

पापा की तबियत अचानक बिगड़ गई ब्लडप्रेशर एकदम हाई हो गया है डॉक्टर के पास ले चल पहले फिर सब बताती हूं मां ने आते ही उससे कहा  तो दीप तुरंत ही कार में सबको बिठा कर डॉक्टर के पास ले आया ।

दीप तेरे पापा के हाथ से ये प्रोजेक्ट निकल गया डुग्गू की नेतागिरी भारी पड़ गई .. आज ही कोई नए अधिकारी ऑफिस में आ गए …आज ही उनकी ज्वाइनिंग हुई है आते ही डुग्गू उनसे बहस करने लगा और तेरे पापा भी उसका साथ देने लगे नया नया अधिकारी था उसे ये सब पसंद नही आया उसने जिन जिन फाइल के साथ जितने लोग आए थे भीड़ लगाए थे वजन दिखा रहे थे सबको पुलिस बुला कर हवाले कर दिया और फिर जितनी फाइल्स बची रह गईं उनमें से छानबीन कर कॉलेज के हित को देखते हुए तेरी फाइल अप्रूव कर दिया… जानता है तू पुस्तकालय प्रोजेक्ट से इतना प्रभावित हो गया कि उसने इसके निर्माण के लिए सरकार की तरफ से ग्रांट दिलवाने की घोषणा भी कर दी है … बताते बताते मां की आंखों से आंसू बह निकले ।

दीप अवाक था सुनकर… शायद पापा का फोन यही बताने के लिए आ रहा था उसने सोचा।

और बेटा वो डुग्गू तो पापा की तबियत बिगड़ते देख कर भी रुका नहीं पुलिस की गिरफ्त से बचने फरार हो गया वो तो भला हो एक अजनबी का जिसने किसी तरह पापा को घर तक छोड़ा।

पापा आप जल्दी से ठीक हो जाइए मुझे नहीं बनाना कोई पुस्तकालय मैं अपनी फाइल वापिस ले लूंगा आप से बढ़कर मेरे लिए कोई नही है ये सब मेरी फाइल के कारण हुआ है आपकी तबियत इसीलिए खराब हो गई दीप बहुत दुखी होकर  हॉस्पिटल में पापा के बेड के पास बैठ कर कह रहा था।

हां बेटा जल्दी से ठीक तो मुझे भी होना है लेकिन अपने लिए नहीं तेरे लिए तेरे प्रोजेक्ट के लिए तू सही कहता था समय कब पलटी मारता है किसी को नहीं पता आज ही वह अधिकारी जाने कहां से आ गया ..!!सच कहती है तेरी मां ..कर्म करना ही अपने हाथ में हैं बाकी तो सब उस विधाता के ही हाथ है अब तेरा प्रोजेक्ट ही मेरा प्रोजेक्ट है हम दोनो मिलकर एक भव्य ऐतिहासिक पुस्तकालय को आकार देंगे ….. पुत्र का हाथ अपने दोनों हाथों में जोर से जकड़ कर परिमल जी कहते जा रहे थे और मधुजी दोनों को देख कर सुनकर उस भाग्य विधाता के प्रति कृतज्ञ हुई जा रही थीं।

लेखिका : लतिका श्रीवास्तव

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