रमा का परिवार उसे हमेशा ही मनहूस कहता था। उसके ताने सुनने का सिलसिला बचपन से ही शुरू हो गया था, जब उसकी ताई दांत पीसकर कहती, “यह कुलच्छिनी जन्म लेते ही मां को खा गई, फिर बाप को भी निगल गई। इसके साये से भी दूर रहना चाहिए।” इस तरह की बातें सुन-सुनकर रमा का मासूम मन घबरा जाता था। उसने बहुत छोटी उम्र में ही यह समझ लिया था कि इस घर में उसे अपनाने वाला कोई नहीं है।
रमा के लिए हर दिन एक नई चुनौती था। परिवार का हर सदस्य उसे देखकर ऐसा महसूस कराता मानो वह इस घर में एक बोझ हो। खाने-पीने से लेकर पहनने-ओढ़ने तक, हर बात पर उसे ताने सुनने को मिलते। उसे हमेशा पुराने फटे हुए कपड़े ही दिए जाते, जिन्हें देखकर कोई भी कह सकता था कि यह उसकी उतरन है। इसके बावजूद, रमा का रूप ऐसा था कि उसके साधारण कपड़े और परेशानियों के बीच भी उसकी सुंदरता दमक उठती। उसका चेहरा स्वाभाविक रूप से सुंदर था, और उसका आत्मविश्वास भी उसके चेहरे पर झलकता था।
रमा की सुंदरता ही उसके लिए एक और समस्या बन गई थी। घर की बाकी लड़कियों को उसकी सुंदरता फूटी आंख नहीं सुहाती थी। उनकी नजरों में रमा का सुन्दर होना जैसे एक अपराध था। उसकी चाची अक्सर कहतीं, “खा-खा के मोटी हो रही है… काम की न काज की!” इस तरह के तानों और उपेक्षा के बीच भी रमा सिर झुकाए सबकी तीमारदारी में लगी रहती। वह डरती थी कि कहीं उसकी कोई गलती ना हो जाए, जिससे उसे और अधिक ताने सुनने पड़ें।
रमा ने अपनी पढ़ाई सरकारी स्कूल में की, जहां उसने अपनी मेहनत और लगन से अपने शिक्षकों का ध्यान आकर्षित किया। उसकी बुद्धि बहुत तेज थी, और उसने अपनी पढ़ाई में हर संभव कोशिश की। जबकि घर के अन्य बच्चे महंगे स्कूलों में पढ़ते थे और बमुश्किल पास हो पाते थे, रमा सरकारी स्कूल में वजीफा पाती थी। उसे इस पर गर्व था, लेकिन उसके परिवार के लिए यह गर्व का कारण नहीं बल्कि तानों का एक और मुद्दा था।
जब भी रमा को वजीफा मिलता, उसकी ताई और चाची उससे पैसे छीन लेतीं और ताना मारते हुए कहतीं, “ला, ये पैसे हमें दे… मुफ्तखोरी की आदत पड़ गई है तुझे।” रमा के लिए यह सहन करना मुश्किल था, लेकिन वह चुपचाप सहती रहती और अपने सपनों को अपने दिल में दबाकर पढ़ाई में जुटी रहती।
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ईश्वर की माया, ऐसे ही रोते-धोते, गाली-गलौज और अपमान सहते हुए रमा ने अपनी मेहनत जारी रखी। उसे हमेशा से यह सपना था कि वह एक दिन अपने जीवन में कुछ बड़ा हासिल करेगी और अपने आत्म-सम्मान को फिर से स्थापित करेगी। वह अपने मन में इस बात को ठान चुकी थी कि चाहे उसके पास कोई सहारा हो या न हो, वह अपनी मेहनत के बल पर अपने सपनों को पूरा करेगी।
फिर एक दिन ऐसा आया जब रमा का चयन प्रशासनिक सेवा में हो गया। जैसे ही यह खबर फैली, पेपर और मीडिया में रमा का नाम छा गया। अब वही लोग जो उसे ताने मारते थे, उसकी सफलता पर हैरान थे। आसपास के लोग, जो पहले उसे तानों से चोट पहुंचाते थे, अब उसे बधाई देने लगे। रमा की यह सफलता एक ऐसा जवाब थी जिसने उसके हर अपमान का बदला ले लिया था।
यह खबर सुनकर उसकी ताई और बाकी परिवार के लोग भी स्तब्ध थे। ताई के लिए यह मानना मुश्किल था कि जिस बच्ची को उन्होंने हमेशा एक बोझ की तरह देखा, उसी ने आज अपने दम पर परिवार का नाम रोशन कर दिया। लेकिन ताई की कटुता अभी भी कम नहीं हुई थी। जब आसपास के लोग उसे रमा की सफलता पर बधाई दे रहे थे, ताई ने फिर से ताना मारा, “देखना, यह मनहूस लड़की वहां भी सुख से न रह पाएगी!”
पड़ोस में खड़ी एक महिला जो रमा की इस सफलता से प्रसन्न थी, अब यह सब सुनकर चुप न रह सकी। उसने ताई की तरफ देखते हुए कहा, “अब तो बस कीजिए ताईजी। यही लड़की है जिसने आप सबका नाम रोशन किया और फिर भी आप इसे भला-बुरा कह रही हैं। अब तो इसे बधाई दीजिए और अपनी नकारात्मकता को छोड़ दीजिए। अब तो जख्मों पर नमक छिड़कना बंद कीजिए।”
पड़ोसन की यह बात सुनकर ताई के चेहरे पर एक शर्मिंदगी की लहर दौड़ गई। उसे महसूस हुआ कि उसके कटु शब्दों और तानों ने न केवल रमा के आत्म-सम्मान को चोट पहुंचाई, बल्कि उसका अपना व्यक्तित्व भी सबके सामने उजागर कर दिया था। समय ने ऐसा बदलाव ला दिया था कि अब सबके मुंह पर ताले लग गए थे।
रमा की इस सफलता ने उसे समाज में एक नई पहचान दी। अब वह सिर्फ एक अनाथ बच्ची नहीं थी, बल्कि एक सफल और आत्मनिर्भर महिला थी, जिसने अपने संघर्षों को अपनी ताकत बनाया था। उसकी यह कहानी उन सभी के लिए एक प्रेरणा है जो समाज की नकारात्मकता और तानों के बीच भी अपने आत्म-सम्मान और आत्म-विश्वास को बनाए रखते हैं।
रमा ने अपनी सफलता से यह साबित कर दिया कि कठिनाइयाँ चाहे कितनी भी बड़ी क्यों न हों, अपने आत्म-विश्वास और मेहनत के बल पर उन्हें पार किया जा सकता है। उसकी यह कहानी यह सिखाती है कि जीवन में जो लोग हमें नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं, वही हमारे प्रेरणा स्रोत बन जाते हैं। अब रमा के परिवार के लोगों को समझ में आ गया था कि उन्होंने रमा के साथ अन्याय किया था। लेकिन समय का पहिया कभी पीछे नहीं मुड़ता।
रमा ने अपने अंदर की चोटों और जख्मों को भुलाकर अपने जीवन को एक नई दिशा दी। उसने न केवल अपने लिए बल्कि उन सभी के लिए एक मिसाल कायम की जो समाज के तानों और कटाक्षों से घबरा जाते हैं। उसने साबित किया कि असली ताकत खुद पर विश्वास करने में है और खुद को अपनी शर्तों पर जीने में है।
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रमा की इस कहानी ने समाज को एक सबक दिया कि अनाथ या बेसहारा होना एक कमजोरी नहीं है। कमजोर वे लोग होते हैं जो दूसरों के सपनों को कुचलने का प्रयास करते हैं। रमा ने अपनी ताकत और आत्म-सम्मान से एक ऐसी मिसाल कायम की जो हमेशा याद रखी जाएगी।
मौलिक रचना -डाॅ उर्मिला सिन्हा