समय हर घाव भर देता है – सुषमा यादव  : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  :

मीनू कालोनी की अपनी एक खास सहेली रमा के घर गई, वैसे तो वो मीनू से बहुत बड़ी थी,पर दोनों में बहुत अपनापन था। उसने देखा कि रमा अपने दोनों हाथों में मेहंदी रचाए दरवाजे पर मुस्कराती हुई खड़ी थी। उनके बड़ी बेटी की शादी थी। घर में खूब चहल-पहल और रौनक थी। सभी बहुत ही खुश नजर आ रहे थे।

रमा चहकते हुए मीनू से बोली। मीनू आओ। तुम्हें हम एक जिम्मेदारी सौंप रहे हैं। तुम ऋतु की बुआ बनकर सारे नेग संपन्न करोगी। इतने में ऋतु और गीतू तथा उनका बेटा बोल पड़े, हां हां आंटी, आप ही हमारी बुआ हैं। मीनू ने आश्चर्य से कहा,अरे,पर तुम्हारी सगी बुआ तो आईं हैं। तो मै क्यों ?  रमा भाभी बोल पड़ीं, नहीं ये सब स्वार्थी और मतलबी हैं। इन्होंने मेरी जिंदगी कड़वाहट से भर दी थी।अब ऋतु के पापा नहीं रहे तो ये झूठा दिलासा देने आईं हैं।

मैंने कहा, ठीक है और चुपचाप चली आई।

घर आकर मीनू सोचने लगी,सब सही कहते हैं, समय सब घाव भर देता है। इतने में उनकी ननद आकर कहने लगी,देखा आपने,अभी साल भर नहीं हुए भैया यानि ऋतु के पापा को गए पर उनकी कमी नहीं दिखाई दे रही है। भाभी बढ़िया बनारसी साड़ी पहने मेंहदी रचाए माथे पर बिंदी सजाए हाथों में कलाई भर भर चूड़ियां पहन कर कैसे हंस बोल रहीं हैं। अभी साल भर नहीं बीता कि बेटी की शादी रचा बैठी।

मीनू ने उनसे कहा कि दीदी, ऋतु की शादी भैया ने ही तय की थी, ससुराल वालों की मांग थी कि उसी तिथि में शादी होनी चाहिए, लड़के को बाहर जाना है। अब भाभी भैया का शोक मनाएं कि अपने बच्चों की खुशी देखें। बेटियों ने ही उन्हें पापा की कसम देकर सजाया है। जो चला गया वो तो वापस आ नहीं सकता,उनकी कमी तो हमेशा ही खलती रहेगी।पर जो सामने है,उनकी खुशी तो देखना ही पड़ेगा ना। रोने के लिए तो पूरी जिंदगी पड़ी है पर बेटी का विवाह बार बार नहीं होगा। भैया भी ऊपर से सब देखकर खुश होते होंगे। वह मुंह बिचकाते हुए चलीं गईं।

मीनू को वो दिन याद आने लगा जब एक दिन वह स्कूल जाने की तैयारी कर रही थी। निकलने ही वाली थी कि पड़ोसन आकर बोली,अरे,आप तो ऋतु के घर की बहुत खास हैं।आपको पता नहीं ऋतु के पापा का हार्टफेल हो गया। मीनू घबड़ाकर भागी, जाकर देखा तो रमा भाभी और उनके तीनों बच्चे पछाड़ खाकर सिर पटक पटक कर रो रहे थे। मीनू स्तब्ध खड़ी थी,कल ही तो प्रिंसिपल साहब अपने गांव के स्कूल से आये थे,दो दिन बाद जाने वाले थे। मीनू ने उन सबके साथ कल रात का खाना खाया था,उसकी दोनों बेटियों को उन्होंने खूब प्यार किया था। अपने हाथ से पान बना कर सबको खिलाया था और सुबह होने के पहले सबको रोता बिलखता छोड़ कर चले गए।

मीनू ने उन सबको बहुत समझाया। उसके पति ने उनका पूरा साथ दिया। उन्होंने अपने ससुराल वालों को खबर भेजा पर कोई नहीं आया शायद पुराना कोई मतभेद रहा हो। मीनू ही उन्हें खाना ले जाती रही।रमा भाभी की तो बहुत हालत गंभीर हो गई थी।वो अब जीना ही नहीं चाहतीं थीं। बार बार बेहोश हो जातीं। डाक्टर आकर इंजेक्शन लगा कर उन्हें सुलाते। मीनू ने समझाया,आप थोड़ा धीरज रखो नहीं तो इन बच्चों का क्या होगा, आपने इनके बारे में सोचा है।ये तीनों अभी पढ़ रहे हैं, एक तो पापा का गम और दूसरी आप की ऐसी दशा, ये बेचारे कहां जाएंगे। ये तो पूरी तरह अनाथ हो जाएंगे।

भैया कहीं नहीं गए हैं वो आप सबके साथ हैं,आप सबको रोता देखकर उनकी आत्मा को कितना दुःख होता होगा।

धीरे धीरे उनकी समझ में बात आने लगी और वो स्वस्थ होने लगीं।

आज सब खुश हैं। बारात आगमन की राह देख रहे हैं। बड़ी धूमधाम से बेटी की शादी हुई।

बेटे की नौकरी पापा के स्कूल में लग गई थी।

बाद में बेटे और छोटी बेटी की भी शादी हो गई थी सुनने में आया था, क्यों कि मीनू के पति का ट्रान्सफर हो जाने के बाद वो लोग भी अपने पैतृक शहर चले गए थे।

मीनू ने भी संतोष की सांस लेते हुए कहा।” समय सब घाव भर देता है।”

सुषमा यादव, लंदन से

स्वरचित मौलिक अप्रकाशित।

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