प्रीति आज सुबह से ही परेशान है।इतने दिनो से बेटे की मिलने की खुशी में क्या क्या नहीं कर रही थी।उसकी पसंद की खाने की चीजें एक एक करके ला कर घर में रख रही थी।उसके कमरे को अच्छी तरह से साफ सफाई कर के रखा था ताकि बेटे को आने के बाद असुविधा ना हो।महल्ले में सबको बताती फिर रही थी की उसका लल्ला आने वाला है।आज सुबह जब मोबाइल फोन में रिंग आया तो वो हुलस कर गई और फोन उठाया।
“हेलो मां,मैं आज रात को दिल्ली पहुंच जाऊंगा। वीर बोला।प्रीति बहुत खुश हो कर बोली –हां बेटा जल्दी से आ मैं तेरा इंतजार कर रही हुं।वीर ने कहा–मां मैं एक और बात बताना चाहता हूं।प्रीति–हां बेटा बोल।वीर –मां मेरे साथ कोई और भी है।मैने वहां शादी कर ली और मैं अपनी पत्नी को भी लेकर आ रहा हूं।इस बात को सुनकर प्रीति स्तबध रह गई।उसने कभी ऐसा सोचा भी नहीं था की वीर उसको बिना बताए शादी कर लेगा।
आरंभ से ही हर बात अपनी मां से पूछकर करने वाले वीर ने इतना बड़ा निर्णय कैसे ले लिया।प्रीति के दिमाग में उथल पुथल होने लगा।वो धम्म से सोफे पर बैठ गई।अब क्या करे वो।वीर चार साल का था जब उसके पति की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी।पति एक कारखाने में काम करते थे तो कुछ शिफारिश से उस कारखाने में उसको नौकरी मिल गई।
उसके माता पिता और सास ससुर ने बहुत दबाव डाला उसके ऊपर की वह दूसरी शादी के लिए तैयार हो जाए पर वो नहीं मानी।वो अपने पति की याद और अपने वीर के सहारे पूरी जिंदगी काटने को तैयार हो गई।वो कारखाने में में मेहनत कर के घर में वीर का भी अच्छे से खयाल रखती।वो चाहती थी की वीर को पढ़ाई में कोई मुश्किल न आए।
और वो पढ़ लिख कर एक इज्जत की जिंदगी जिए।इसके लिए वो हरसंभव प्रयासरत रहने लगी।वीर भी मां की मुश्किलें समझता था ।वह भी कोशिश करता की उसकी वजह से मां को कोई परेशानी ना हो।पढ़ाई में भी वीर होशियार था।दसवीं के बाद उसने आईआईटी की तैयारी की।उसने दिनरात मेहनत की।और उसका दाखिला एक अच्छे कॉलेज में हो गया।फिर पढ़ाई पूरी करते करते कैंपस सिलेक्शन भी हो गया और उसको यूएसए की एक कंपनी में अच्छी नौकरी मिल गई।
दो साल से वो वहा रह रहा था।अब आने वाला था तो प्रीति ने सोचा था की शादी की बात करेगी उससे और वो किसी अच्छी लड़की को देखकर बात आगे बढ़ाएगी।प्रीति ने अपने सभी रिश्तेदारों में भी बता दिया की कोई अच्छी लड़की के बारे में पता करके उसको बताएं।तीन चार लड़कियों के बायोडाटा भी आए हुए थे प्रीति के पास। प्रीति सोच सोच कर पागल हुई जा रही थी की अब क्या करे। रिश्तेदारों को क्या बताएगी वो।
कितनी बातें बनायेंगे लोग जब सबको पता चलेगा कि वीर उधर से ही दुल्हन ला रहा है।पीठ पीछे तरह तरह की बातें करेंगे लोग।ये सब सोच कर ही उसका दिमाग खराब होने लगा।दिनभर वो ऐसे ही बैठी रही।शाम होने को आई।घर की नौकरानी ने खाना बनाया।आज प्रीति ने वीर की पसंद की चीजें बनवाई थी।शाम के छह बजे वीर का फोन आया की वे लोग दिल्ली एयरपोर्ट पर आ गए।
एयरपोर्ट से उसके घर आने में आधा घंटा लगता है। प्रीति को खुशी भी हो रही थी की अपने बेटे से मिलेगी।वो सब भूल कर बेटे के स्वागत के लिए तैयार हो गई।फिर उसने सोचा की जैसी भी होगी है तो मेरी बहु ।वो भी पहली बार घर आ रही है तो उसका भी तो स्वागत करना चाहिए।इसलिए उसने आरती की थाली सजा कर तैयार कर ली।उसकी पड़ोसन जिसका नाम राधा था वो उसकी अच्छी सहेली भी थी।
वो भी वीर को अपने बेटे जैसा स्नेह देती थी।थोड़े देर के बाद वो भी आ गई।वो प्रीति को आवाज लगाते हुए घर के अंदर आई।लेकिन जब उसने प्रीति का मुंह देखा तो देखते ही समझ गई की कुछ गडबड है।उसके पूछने पर प्रीति ने सब बता दिया।राधा–अब इसमें तुम क्या कर सकती हो।जो हुआ उसको स्वीकार करो। और दोनो का स्वागत अच्छी तरह से खुशी खुशी करो।
प्रीति–हा राधा मैं कोशिश तो पूरी करूंगी।अब तो वो पहुंचने ही वाले होंगे।इतना कहकर दोनो ने देखा की दरवाजे पर टैक्सी आकर रूकी।प्रीति आरती का थाल लेकर बाहर आई तो देखा कि वीर गाड़ी से उतर कर सामान उतरवा रहा था । टैक्सी के सामने का दरवाजा खुला और उसमे से एक बहुत ही प्यारी सी लड़की बाहर आई।ऐसा लग रहा था चांद धरती पर आगया।उसने सलवार कमीज और दुपट्टा पहना था।
दूध के जैसी रंगत,नीली आंखें और भूरे बाल थे उसके।दोनो एकसाथ घर की तरफ बढ़े।प्रीति– यही रुको।मैं आरती करूंगी तब घर के अंदर आना।ये सुनकर दोनो रुक गए।फिर प्रीति ने बेटे और बहू की आरती उतारी और दोनो को अंदर ले कर आई।पूरे महल्ले में बात फैल गई।लोग दरवाजे पर इकठ्ठे होने लगी। कानाफुंसी होने लगी।प्रीति दोनो को घर के अंदर ले आई थी इसलिए नौकरानी ने दरवाजा बंद कर दिया। सभी बाहर से ही चले गए।अंदर आकर उस लड़की ने प्रीति के पांव छुए।
वीर– मां ये सुजेन है।हम दोनो ने बहुत जल्दबाजी में शादी की।इसलिए तुम्हे बता नही पाए।ये मेरे पड़ोस में रहती थी।हम दोनो एक दूसरे को पसंद करने लगे।इसने अपने घर पर मेंरी बात की लेकिन इसके पापा अपनी बेटी की शादी अपने एक दोस्त के बेटे से करना चाहते थे।उन्होंने माना किया।सुजेन ने बहुत कोशिश की पर वो नहीं माने इसलिए हमने उनको बिना बताए 2 दिन पहले ही शादी की और हम यहाँ आगाये।
मां आप तो मेरी बात को समझोगी ना।प्रीति–बेटा अब जो हुआ सो हुआ। मैने भी बहुत अरमान सजाए थे तुम्हारी शादी को लेकर।मेरे दिल को भी चोट लगी जब मैने सुना की तुमने शादी कर ली।खैर अब तो यही इस घर की बहु है। चलो अब नहा धो कर खाना खाओ और दोनो आराम करो।बहु को जो भी जरूरत हो मुझसे मांग ले।थोड़े देर में दोनों नहा धो कर आ गए।
फिर सब खाना खाने बैठे।प्रीति ने बोला –सुजैन तुम्हे मेरे बेटे ने अपना लिया तो मै भला कौन होती हूं।तुम मेरे बेटे की पसंद हो।मुझे थोड़ा समय लगेगा इसको स्वीकारने में लेकिन मैं पूरी कोशिश करूंगी तुम्हे अपने दिल से अपनाने की।सूजन थोड़ी टूटी फूटी हिंदी बोल लेती थी।उसने बोला–मम्मी धन्यवाद।मैं भी कोशिश करूंगी की आपको कोई शिकायत का मौक़ा न दूं।
और न ही मेरी वजह से आपको कोई तकलीफ हो।आप मुझे अपना रहे हो तो मैं भी आपकी बेटी की तरह रहूंगी। ये सुनकर प्रीति की आंखों में आंसू आ गए।खाना खा कर सब सोने चले गए।सुबह मुहल्ले में तरह तरह की बातें हो रही थी।दोपहर होते होते महल्ले की महिलाएं प्रीति को मिलने आ गई।उन लोगों ने प्रीति को बोला की अब बेटा तो शादी करके बहु ले ही आया भई हमें भी तो बहू को दिखा दो।
प्रीति ने बोला की अभी विधि विधान से दोनो का विवाह कराऊंगी।मेरे जो भी अरमान थे पूरी करूंगी।अब आप सभी शादी के बाद ही बहु की मुंहदिखाई करना।माफ करना अभी मुझे बहुत काम है पंडित जी से मिलना है। औरतें आपस में बातें करने लगी की अरे इसको बेटे का बहुत घमंड था।चलो बेटा तो फिरंगी बहू ले आया।वो विदेशी भला क्या समझेगी उसको।
कुछ दिन के बाद पति को लेकर फुर्र हो जायेगी।इसको कोई पूछने वाला नहीं।ऐसी बातें उड़ते उड़ते प्रीति के कानों तक भी आ रही थीं। अगले सप्ताह शुभ मुहूर्त में दोनो का हिंदू रितिरिवाज से विवाह हो गया।प्रीति ने बहुत ही धूमधाम से शादी कराई।सारे रिश्तेदारों और महल्ले वालों को न्योता दिया था।तीन दिन का कार्यक्रम रखा गया था।अब सब कार्यक्रम संपन्न हुए और रिश्तेदार विदा हुए। सूजैन ने सभी रीति रिवाज बहुत ही मन से किए।वो बहुत ही खुश लग रही थी।धीरे धीरे उसने घर के काम सीखने शुरू किए।
वो बड़े ही मन से सारी बातें सीखती।और धीरे धीरे प्रीति तो उसपर जान छिड़कने लगी।इस तरह दिन बीतने लगे।दोनो मां बेटी की तरह ही रहती थीं।सुजेन ने प्रीति का दिल जीत लिया था।हर काम में उसका साथ लगीं रहती।घर के काम बाजार के काम सबमें वो उसका हाथ बटाने लगी।वीर ने भी दिल्ली की एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम ढूंढ लिया।
धीरे धीरे सुजेन ने घर बाहर के काम अपने हाथ में लेने शुरू किए।प्रीति को आराम मिलने लगा। महल्ले की औरतें आती तो सुजेन उनकी अच्छी तरह से आवभगत करती।अब सभी उसकी तारीफ करने लगी।बहु तो फिरंगी है लेकिन संस्कार बहुत ही अच्छे हैं इसके।प्रीति के तो भाग्य ही खुल गए।प्रीति हंसने लगी।उसने बोला की इतनी अच्छी बहू तो मैं खुद से भी नही लाती।विदेशी है तो क्या हुआ ये मुझे पूरा मान देती है।
और इसके संस्कार तो इसके मां पिताजी के दिए हुए हैं लेकिन इसने हमारी संकृति पूरी तरह से अपना ली है। मैं अपने दोनो बच्चों के साथ बहुत ही खुश हुं।सबने बोला बिलकुल सच्चाई है तुम्हारी बातों में।हम सबको लगता था की विदेशी लड़की क्या ही सिख पाएगी हमारे संस्कार और क्या ही संस्कृति का पालन कर पाएगी।लेकिन सुजेन ने हमारी सोच को गलत साबित कर दिया। थोड़े देर में सारी महिलाएं चली गई।उनकी बातें सुनकर सुजेन भी बहुत प्रसन्न हुई।सही मायने में एक विदेशी लड़की ने सबका दिल जीत लिया।
– अलका पाठक