सही सलाह – पुष्पा जोशी : Moral Stories in Hindi

 रजत और दिवाकर दोनों एक ही कक्षा में पढ़ते थे। दोनों बहुत ही सम्पन्न परिवार के थे। उन्हें पैसो की कोई कमी नहीं थी, मौज मस्ती से जीते थे, दोनों की पढ़ाई में बिल्कुल रूचि नहीं थी। इनकी कक्षा में पढ़ने वाला मदन बहुत गरीब था, मगर पढ़ाई में बहुत होशियार था।

वह मन लगाकर पढ़ाई करता। रजत और दिवाकर को अगर पढ़ाई में कोई परेशानी आती, तो वह उनकी मदद करता था। रजत और दिवाकर ने बड़ी मुश्किल  से बारहवीं की परीक्षा पास की जबकि मदन पूरे जिले में  प्रथम आया। वह स्वभाव से सीधा और सरल था।

बी.काम. करने के बाद उसने प्रतियोगी परीक्षाएं दी और उसकी बैंक में नौकरी लग गई। रजत और दिवाकर ने पढाई छोड़ दी और पार्टनरशिप में रेडिमेट कपड़ो का व्यवसाय शुरू किया। दोनों के पिता उन्हें समझाते मगर उनका पढ़ने में मन लगता ही नहीं था,

इसलिए उन्होंने उन दोनों की दुकान डलवा दी। दोनों की मेहनत रंग लाई और दुकान अच्छी चलने लगी बहुत मुनाफा होने लगा। दो साल बाद दिवाकर के मन में बेईमानी आ गई। रजत ईमानदार था वह दिवाकर पर ऑंख मीच कर विश्वास करता था।

दिवाकर ने जालसाजी से दुकान के कागज पर रजत के हस्ताक्षर करवा लिए, और सबकुछ अपने नाम कर लिया। उससे यही कहा कि एक बहुत बड़ा आर्डर मिला है, हम दोनों साझेदार हैं इसलिए हम दोनों के हस्ताक्षर लगेंगे। रजत ने बिना देखे हस्ताक्षर कर दिए।

दुकान दिवाकर के नाम होने पर उसने तैवर दिखाने शुरू कर दिए, एक दिन तो यहाँ तक कह दिया कि ‘रजत अब तू अपनी दूसरी दुकान की व्यवस्था कर ले, कल को हमारी शादी होगी तो इस एक दुकान से गृहस्थी कैसे चलेगी।’ जब रजत को दिवाकर की चालबाज़ी समझ में आई,

तो उसके पैरो के नीचे की जमीन खिसक गई।उसके माता पिता भी उस पर बहुत नाराज हुए।उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। तभी उसे मदन की याद आई। वह उससे मिलने शहर गया और उसे अपनी परेशानी बताई। मदन ने कहा भाई सरकार से तुझे अपना व्यवसाय शुरू करने के लिए लोन मिल सकता है।

तू अपने पिताजी से पूछकर किसी मकान, प्लाट के आधार पर लोन ले सकता है। सारी प्रक्रिया मैं तुझे बता दूँगा। तू फिर से अपना व्यवसाय शुरू कर, मेहनत और लगन से कार्य कर, मुनाफे से लोन की किश्ते हर माह जमा करते रहना। लोन की किश्ते चूकने पर व्यवसाय तेरा अपना हो जाएगा।

मेहनत तुझे करना है।’  रजत ने कहा- भाई मैं दिल लगाकर मेहनत करूँगा।’ रजत जो पूरी तरह निराश हो गया था, उसके मन में आशा की किरण जगी। मदन की सलाह ने उसके डूबते मन के लिए तिनके का कार्य किया। उसने पिताजी से पूछकर जमीन पर लोन लिया

और मेहनत करके लोन की सारी किश्ते भर दी। उसकी लगन और मेहनत से उसका  व्यवसाय अच्छा चलने लगा। उसने सच्चे मन से मदन को अपना दोस्त माना और दिवाकर से अपना नाता हमेशा के लिए तोड़ लिया।

प्रेषक-
पुष्पा जोशी
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित

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