सही रिश्ते – सुभद्रा प्रसाद : Moral Stories in Hindi

सुमन के जीवन का एक कठिन समय आ चुका था। एक दिन जब वह घर में कुछ काम कर रही थी, तभी उसे एक जोर की आवाज़ सुनाई दी। यह आवाज़ उसके पति मनोहरलाल के कमरे से आ रही थी। वह घबराई और तुरंत कमरे में दौड़ी। देखा कि मनोहरलाल पलंग पर बेहोश पड़े थे, उनका चेहरा सुर्ख हो गया था, और उनका सांस लेना कठिन हो रहा था। सुमन की आंखों में घबराहट थी, और वह समझ नहीं पा रही थी कि क्या करें।

उसने जल्दी से पड़ोसियों को आवाज़ दी। “साधना भाभी, कृष्णा जी, कोई मदद करो!” सब लोग इकट्ठा हो गए। सुमन ने जैसे-तैसे मनोहरलाल को संभालते हुए, एक पड़ोसी की मदद से उन्हें अस्पताल ले जाने का इंतजाम किया। अस्पताल पहुंचने तक सुमन की धड़कनें बहुत तेज़ हो चुकी थीं। वह जानती थी कि अगर अभी कुछ ना किया गया, तो क्या होगा। मनोहरलाल को इमरजेंसी वार्ड में भर्ती कर लिया गया और डॉ. ने बताया कि उन्हें हार्ट अटैक आया था। वह गंभीर हालत में थे और उनकी स्थिति स्थिर करने के लिए तुरंत इलाज शुरू किया गया।

सुमन के मन में एक अजीब सा डर समा गया था। उसका इकलौता बेटा, जो विदेश में पढ़ाई कर रहा था, कई सालों से घर नहीं आया था। उसने खुद को किसी तरह की परेशानी से दूर रखा था, और सुमन ने कभी उसे तंग नहीं किया। पर अब सुमन के मन में यह सवाल आ रहा था कि इस मुश्किल घड़ी में उसका बेटा कहां है? उसने तुरंत बेटे को फोन किया, लेकिन फोन से उसकी आवाज़ में एक तरह का शून्य था। “माँ, मैं नहीं आ सकता। मैं बहुत व्यस्त हूं। लेकिन तुम जो भी चाहो, मैं पैसे भेज दूंगा।” यह सुनकर सुमन को थोड़ा झटका लगा। उसने बेटे के फोन पर पूछा, “तुम क्या नहीं आ सकते?”

बेटे ने जवाब दिया, “माँ, काम के कारण मैं यात्रा पर नहीं जा सकता। लेकिन अगर पैसे की जरूरत हो, तो बताओ। मैं तुरंत भेज दूंगा।”

सुमन को अब यह एहसास हुआ कि उसकी जिंदगी के सबसे कठिन समय में उसका बेटा केवल पैसों के बारे में सोच रहा था। उसने मन में सोचा कि पैसों से क्या होता है, जब आदमी साथ न हो। उसने सोचा, “वह मेरा बेटा है, लेकिन क्या वह सच में मेरा बेटा है, या केवल एक नाम है?”

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सुमन के पास पैसे की कमी नहीं थी। घर में किसी चीज की कोई कमी नहीं थी। लेकिन उस पल उसे जिस चीज़ की सबसे अधिक जरूरत थी, वह थी मानवता, संवेदना, और अपनेपन का अहसास। उसकी आँखों में आंसू थे, और वह यह सोच रही थी कि इस मुश्किल समय में कौन उसका साथ देगा।

तभी दरवाजे पर खटखट की आवाज़ आई। सुमन ने सिर उठाया और देखा कि उसका जेठ का बेटा, अनमोल, दरवाजे पर खड़ा था। वह पहले हमेशा से एक अच्छा और संवेदनशील लड़का था, लेकिन कुछ साल पहले परिवार में कुछ गलतफहमियाँ आ गईं थीं। परिवार में दरारें आईं

और जेठ के साथ उनके रिश्ते खराब हो गए थे। अनमोल और सुमन के बीच कोई संवाद नहीं था। वह कभी भी एक-दूसरे से सही तरीके से बात नहीं कर पाए थे। लेकिन आज अचानक, अनमोल सामने खड़ा था, और वह कह रहा था, “चाची, आप चिंता न करें, मैं आ गया हूँ। सब संभाल लूंगा।”

सुमन को यह सुनकर आश्चर्य हुआ। यह आवाज़ तो वह बहुत समय बाद सुन रही थी। वह थोड़ी देर तक अनमोल को देखती रही, फिर उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आई। वह उठकर अनमोल के पास गई और कहा, “तुम यहां? तुमने मुझे कभी नहीं बताया कि तुम आओगे।”

अनमोल ने सिर झुकाकर कहा, “चाची, यह सच है कि हमारे रिश्तों में कुछ गलतफहमियाँ आईं, और हम दूर हो गए। लेकिन हमें यह समझना चाहिए कि हम अब भी परिवार हैं। और पापा ने मुझे भेजा है ताकि मैं आपकी मदद कर सकूं।”

सुमन की आँखों में आंसू थे। वह जानती थी कि अनमोल की बातें सच हैं। वह समझ गई थी कि रिश्ते कभी भी टूट सकते हैं, लेकिन अगर दोनों पक्ष चाहें तो वे फिर से जोड़ सकते हैं। सुमन के मन में एक गहरी शांति का अहसास हुआ, और उसने अनमोल को गले से लगा लिया।

“अनमोल, तुम सही कहते हो। हमें कभी भी रिश्तों को इतनी आसानी से तोड़ना नहीं चाहिए। मैं भी तो परिवार को भूल बैठी थी। अब मुझे समझ में आ रहा है कि परिवार का मतलब सिर्फ खून का रिश्ता नहीं होता। यह वो बंधन है, जो हमें एक-दूसरे के साथ खड़ा करता है।”

अनमोल ने कहा, “चाची, हम सब साथ हैं। पापा ने ही मुझे यह समझाया था कि हमें एक-दूसरे का साथ देना चाहिए, खासकर जब कोई मुसीबत आ जाए।”

उस दिन सुमन को समझ में आया कि जीवन के कठिन दौर में पैसों से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण होता है परिवार का प्यार, समर्थन और एक-दूसरे के लिए खड़ा होना। अनमोल ने अस्पताल में सुमन की पूरी मदद की। मनोहरलाल के इलाज के बाद, सुमन को महसूस हुआ कि रिश्तों की कोई भी दरार अगर सच्ची भावनाओं और प्रेम से भर दी जाए, तो वह कभी नहीं टूटती।

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कई दिन बाद, मनोहरलाल की हालत स्थिर हो गई, और वे अस्पताल से घर लौट आए। इस दौरान अनमोल ने पूरी तरह से सुमन का साथ दिया। उसने न सिर्फ मनोहरलाल की देखभाल की, बल्कि सुमन को भी मानसिक रूप से मजबूत किया। यह समय सुमन के लिए एक सबक बन गया कि रिश्तों की सबसे महत्वपूर्ण चीज है एक-दूसरे के साथ होना और मुसीबतों में साथ मिलकर उनका सामना करना।

आज जब सुमन अपने घर में बैठी थी, तो उसे एहसास हुआ कि इस कठिन समय में उसे जो सहारा मिला, वह केवल पैसों से नहीं, बल्कि परिवार की सच्ची भावनाओं से था। उसने सोचा, “जो रिश्ते टूटते हैं, वे फिर से जोड़ सकते हैं, अगर उनमें समझदारी और प्यार हो।”

यह कहानी एक कड़ी थी परिवार, रिश्तों, और प्यार की, जो हमें सिखाती है कि मुश्किल समय में केवल धन से नहीं, बल्कि सही इंसान और सही रिश्ते से सब कुछ सुधर सकता है।

मूल रचना 

सुभद्रा प्रसाद

पलामू, झारखंड

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