चारों ओर अफरा-तफरी मची हुई थी…जिसको जिधर जगह मिल रहा था… वहां जान लेकर भागा चला जा रहा था।
अचानक आये इस प्राकृतिक आपदा भयानक आंधी तूफान से सभी खौफ में थे। समुद्र तट पर अवस्थित इंजीनियरिंग कॉलेज … प्रशासन ने तटीय इलाकों को सुरक्षा की दृष्टि से खाली करवा दिया था। सभी शिक्षण संस्थानों को अगले आदेश तक बंद करवा दिया गया। छात्रों को हाॅस्टल खाली करने का आदेश पारित किया गया।
स्थानीय लड़कियां अपने घर या सुरक्षित स्थानों पर चली गई।बच गई वैसी छात्रायें जो दूर से पढ़ने आई थी। आस-पास उनका कोई दूसरा नहीं था। हवाई जहाज ट्रेन बसें सभी कैंसिल हो गये थे।
राधा और आभा भी उन्हीं में से थी। कहां जाये क्या करें… रात्रि में आखिरी बस जाने वाली थी।राधा पहले इस शहर से निकल जाये फिर वहां से अपने गांव चली जायेगी।
उसने औपचारिकता वश आभा से पूछा,” मेरा टिकट हो गया है… मैं एक घंटे में निकलकर किसी प्रकार बस पकड़ लूंगी… और तुम्हारा क्या प्रोग्राम है।”
” मेरा…मेरा कोई जगह नहीं…इस तूफान में मेरे शहर जाने का कोई साधन उपलब्ध नहीं है… यहां हास्टल बंद हो गया ” आभा रुआंसी हो गई।
इसी बीच ” राधा …आ रही हो… सावधानी से यात्रा करना ” राधा की मम्मी का फोन था।
” हां मैं निकल रही हूं…बस मेरी रुम मेट आभा… अकेले क्या करेगी… यही समस्या है।”
” क्यों।”
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” क्योंकि आभा के यहां जाने का सभी साधन बंद है और हास्टल भी बंद हो गया है।”
” तुम उसे अपने साथ लेती आओ… अकेले कैसे रहेगी ” कुछ सोचकर राधा की मम्मी ने कहा।
” मेरे साथ मेरे घर चलो… मम्मी ने कहा है कि अकेले यहां कैसे रहोगी।”
अंधा क्या चाहे दो आंखें… कोई उपाय नहीं देख आभा झटपट अपनी जरुरी सामान लेकर राधा के साथ निकल पड़ी।
राधा ने भी चैन की सांस ली… एक से दो भले।
रात्रि की बस यात्रा… आखिरी बस खचाखच भरी हुई थी किसी प्रकार दोनों लड़कियां उसमें बैठ गई।
शहर से निकलते मौसम ने करवट बदली और तेज हवा बौछारें पड़ने लगी। ड्राइवर बड़ी होशियारी से बस को उस तूफान निकाल कर … सुबह तक यात्रियों को गंतव्य तक पहुंचा दी।
राधा जब आभा के साथ अपने गांव पहुंची तब सभी ने राहत की सांस ली।
संयुक्त परिवार था। दादा-दादी, तीन चाचा-चाची…उनका परिवार…बाल विधवा बुआ… दूर के रिश्तेदारों के बाल-बच्चे सभी एक साथ एक घर में रहते थे।
आभा अपनी माता-पिता की इकलौती संतान थी। दो वर्ष पहले ही कोरोना में मां का निधन हो चुका था। पिताजी अपने काम के सिलसिले में देश-विदेश का चक्कर लगाते और स्वयं आभा प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ रही थी। कभी-कभी छुट्टियों में घर जाती और बाप-बेटी अपना दुख-सुख बांटते। अपने पापा को रुम मेट के घर जाने की बात बता दी, ” ठीक है…” पिता निश्चिंत हो गये।
सुबह-सुबह घंटी और भजन कीर्तन से आभा की आंखें खुली… बिस्तर पर राधा नहीं थी।
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आंगन में झांककर देखा… सभी नहा-धोकर हाथ जोड़कर खड़े हैं और पूजा घर में आरती हो रही है…उसकी सहेली राधा भी सभी के साथ भजन गा रही है… राधा का यह नया रुप देख वह हैरत में पड़ गई।
आभा पर नजर पड़ते ही राधा उसे खींचकर भीतर ले आई…भगवान को प्रणाम कर…उसने दादा-दादी और बड़ों का चरणस्पर्श किया… देखा-देखी आभा भी सबके पैरों पर झुकी और सभी का आशीर्वाद पाया…यह उसके लिए अनोखा अनुभव था।
दूसरे दिन राधा ने आभा को अपना जलाशय पोखरा उसमें उछलने कूदने वाली मछलियों को दिखाया…छप-छपाक राधा और उसके भाई बहन … पोखरे में तैराकी का आनन्द लेने लगे… आश्चर्य से आभा की आंखें चौड़ी हो गई।
एकल परिवार की इकलौती बेटी आभा एक साथ इतने लोगों को देख संकोच से भर गई।
फिर राधा उसे अपने बाग में ले गई… जहां तरह-तरह के फूल खिले हुए थे…. गाछी में आम जामुन लीची अमरुद केले महुआ के साथ अन्य फलदार वृक्ष लगे हुए थे।नीम के डाल पर तख्ती वाला झूला लगा हुआ था… उसपर पींगे लेकर आभा जैसे नई दुनिया में आ गई हो।
कितना आनन्द दायक स्वर्गिक सुख से भरा हुआ है उसकी रुम मेट राधा की हवेली और संयुक्त परिवार।
रसोई में राधा की मम्मी चाची लोग तरह-तरह के व्यंजन बना रही थी…आपस में हंसी ठिठोली भी चल रहा था।
” बाप रे, इतना भोजन ” आभा ने आश्चर्य से पूछा।
” परिवार कितना बड़ा है…एक शाम में खत्म हो जायेगा ” राधा ने कहा।
कोई आभा को खेत से गन्ना लाकर उसे चूसना सिखाता…. कोई ताजे मौसमी फल खेत से लाकर खिलाता।
छोटी चाची स्कूल में पढ़ाती थी… दिनभर उनके दोनों छोटे बच्चों को घर के अन्य सदस्य देखभाल करते… सभी मिल-जुलकर बड़ी प्यार से रहते।
आपस में नोंक-झोंक भी होता और थोड़ी देर के पश्चात सभी एक-दूसरे से हंस-हंस कर बातें करते।
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अचानक बड़ी मां को तेज बुखार … उल्टी-दस्त शुरू हो गया… घर के अन्य सदस्यों ने पूरी तत्परता से उनकी देखभाल की… डाक्टर से दिखाया…
दुसरे दिन बड़ी मां उठ बैठी…” तुम लोगों की सेवा सुश्रुषा से डरकर बीमारी भी भाग गया ” ।
यह सेवा सुश्रुषा… एक-दूसरे के प्रति प्रेम सौहार्द्र समर्पण… आभा के मन-मस्तिष्क को आलोड़ित कर दिया।
” कल से कालेज में नियमित पढ़ाई होगी…आंधी तूफान निकल गया है… चलो अपना सामान समेट लें… रात के ट्रेन का टिकट पिता जी ने कटवा दिया है … आज यहां से निकलना होगा…” राधा ने आभा से कहा।
आभा जैसे सोते से जागी…” इतनी जल्दी… आज मकई के भुट्टा खाने का प्रोग्राम था…”।
” वह खा लेना… लेकिन चलने की तैयारी कर लिया जाए।”
जहां राधा कालेज जाने के लिए अति उत्साहित थी वहीं संयुक्त परिवार से साक्षात्कार…आभा का मन यहां से जाने का नहीं हो रहा था… कितना अपनापन आनंद सुरक्षा की भावना और सभी का मान-दुलार… एकल परिवार की इकलौती बेटी राधा को कहीं गहरा प्रभावित कर गया।
चलते समय राधा की मम्मी ने आभा को कपड़े दिये… चाची ने कान के डिजाइन दार झुमके… दादा-दादी ने गुड़ मेवे बेसन की लड्डू… भाई-बहनों ने … कोई कलम कोई अपने हाथ का बना तस्वीर… आभा को देते हुए… फिर
आने का वादा लिया।
संयुक्त परिवार की खूबियां अपने पापा को जरूर बतायेगी और उन्हें साथ लेकर अपनी सहेली के यहां एक बार जरूर आयेगी… राधा ने मन-ही-मन अपने आप से वादा किया।
मौलिक रचना -डाॅ उर्मिला सिन्हा
#संयुक्त परिवार