“अरे अन्नू कुछ खा पीकर ही घर से निकला कर घर से बाहर ,घर खीर तो बाहर खीर “
अन्नू की को दादी की यही बात रह रह कर याद आ रही थी। आखिरी बार फोन पर जब बात हुई दादी से उसके बाद दादी को अटैक पड़ा लेकिन किसी भी अस्पताल ने एडमिट करने से मना किया कोरोना के बढ़ते केस के कारण जिस कारण दादी ईलाज न मिलने के कारण सिधार गई थी।
अन्नू पूरी तरह टूट चुका वो दादी के बहुत करीब था और दादी उसके दादी की जिद के कारण ही वो कोचिंग करने बाहर गया।और अच्छे कोलेज में पढ़कर बढ़िया कंपनी में लगा।वो हमेशा उससे कहती थी कि
“बेटा कुँए का मेढक नही बनना है तुझे और इस छोटे शहर में कुछ नही हैं वही छोटे मोटे व्यापारी और उनकी पुश्तों के भरोसे है यह शहर तू पढ़ लिख कर बड़ा आदमी बन ,मैं देखती हूँ तेरा पापा कैसे मना करता है ?”
रह रहकर यही सारी बातें उसके मन मस्तिष्क में तैर रही थी ।
तभी पीछे से पापा ने कंधे पर उसके हाथ रखकर बोला
“बेटा अब माता जी की तेरहवीं भी हो चुकी है उन्हें अगर समय पर ईलाज मिल जाता तो शायद वो जिंदा होती और हमेशा तुझे याद करती वो बिना तुझे आनलाईन देखे खाना भी नही खाती थी “
इतना कहकर वो अन्नू से लिपटकर रोने लगे फूट-फूटकर जिस प्रकार से नदी के वेग को एक बाँध संभालकर रखता है उसी तरह से पापा लोग भी धीर गंभीर बने रहते है खुद को अंदर के ज्वार को संभाले वो बाँध आज टूटा था तो ,बाढ़ तो आनी ही थी।
फिर खुद को संभालते हुए बोले बेटा
“तु टिकट करा ले अपनी “
अन्नू को समझ नही आ रहा था कि वो क्या करे ?
तभी उसे याद आया दादी हमेशा उससे कहती थी
” जब भी कोई परेशानी हो तो मंदिर वाले पुराने पीपल के नीचे बैठ जाया कर ,शांति मिलेगी और रास्ता भी”
वह बचपन से यही करता आया था अब वो चल दिया उस पीपल की ओर
पहुंचकर कर पीपल को निहारने लगा तभी उसे पीपल में आकृति का कुछ अनुभव हुआ जो मुस्कुरा रही थी ।
जैसे उससे कुछ कहना चाह रही हो तभी उसमें से आवाज आयी
“बेटा सब तुम लोगों के कर्मो के फल अब प्रकट हो रहे हैं सब खत्म होता रहेगा अगर अब भी नही संभले “
यह कहकर जोर से अट्टहास की फिर अन्नू ने कहा
” हमने क्या किया है?
हम वैसे ही परेशान हैं दादी के जाने के बाद “
पीपल ने कहा
“यह जो हमारे हरे भरे जंगल की जगह तुम लोग कंक्रीट के जंगल उगा कर इसे उन्नति कहते हो तो तुम लोग अविकसित हो ,मेरा ही देखो इस पूरे क्षेत्र में अकेला बचा हूँ वो भी धार्मिक मान्यता के कारण वरना मुझ पर भी बुलडोज़र चल चुका होता जैसा मेरे अन्य मित्र जामुन ,आम,सागौन आदि के साथ हुआ चार पांच किलोमीटर मै फैला था हमारा साम्राज्य खूब झमाझम बारिश होती कभी जल संकट नही हुआ और आज देखो पाताल तलाश कर भी पानी नही बंजर हो गई जमीन हवा अशुद्ध हो गई आक्सीजन कम हो गई और महामारी फैल रही है “
अचानक उसकी नींद खुली पेड़ के नीचे कब नींद आई उसे पता नही लगा और यह सब स्वप्न था लेकिन स्वप्न भी सच्चा सा लगा उसे ।
अन्नू समझ चुका था कि दादी क्या कहना चाहती थी और गलती कहां हुई और सुधारना कैसे अब रोने धोने से काम नही चलेगा ।
घर लौटकर पापा को सारी बात बताई
अपने दोस्तों को फोन लगाना शुरू किया
और सब जगह पेड़ लगाना शुरू किया अपने शहर के बीचों बीच डिवाइडर पर पौधे रोपने शुरू किये और खाली और बेकार जमीन पर ,सूखे बागों में पूरे अपने टोलियों के साथ भूमि को हरी करने का कार्य करने लगा ।
और हमेशा कहता
“हमारी आने वाली पीढ़ी को बेहतर कल हम इन्हीं पेड़ पौधों के सहारे देगें।
हम पेड़ पौधों के सहारे हैं,
और पेड़ पौधे हमारे सहारे।”
-अनुज सारस्वत की कलम से
(स्वरचित और मौलिक)