Moral Stories in Hindi : – सुबह के 6 बजे थे , बारिश रह -रह कर हो रही थी …. चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था… इक्का – दुक्का सड़क पर से गुज़रती हुई गाडियाँ दिखाई दे रही थी…. हवा से पेड़
हिलते – डुलते किसी साये के जैसे लग रहे थे….एक वोल्क्स वैगन सफेद रंग की जिसका वाइपर लगातार चल रहा था..60 की स्पीड से सड़क पर दौड़ रही थी | शहर यही कोई 5 या 6 किलोमीटर रहा होगा | एक नौजवान यही कोई 25, 26 साल का उस कार को चलाते हुए चला जा रहा था |
सूरज की हलक़ी सी रोशनी दिखाई देने लगी थी | इसी के साथ वो वोल्क्स वैगन एक बड़े से लोहे के गेट के सामने आ कर रुकी और होर्न बजा दिया | वॉचमैन ने दरवाज़ा खोला और उसे सेल्यूट किया | वो नौजवान गेट में दाख़िल हुआ और गाड़ी पार्किंग की तरफ ले जाने लगा… एक दो वॉचमैन और खड़े थे उन्होंने भी उसे सेल्यूट किया…. उसने गाड़ी को आगे बढ़ाया और गाड़ी पार्किंग में खड़ी की चारों तरफ देखते हुए वो एक बड़े से घर की तरफ जाने लगा. |
बारिश कुछ थम सी गयी थी.. और इस वजह से सब कुछ
धुला – धुला सा लग रहा था….वो घर के अंदर जाने लगा तो उसकी नज़र बाहर खड़े हुए एक शख़्स पर गयी. जो बगीचे की तरफ खड़ा हुआ देख रहा था…..वो उसके पास गया और बोला – “इतनी सुबह क्या देख रहे हैं काका” ?
वो शक़्स उसकी तरफ घूमा और बोला – “क्या देखेंगे बिटवा… कल ही गुलाब के नए पौधे लगाए थे और रात से इतनी बारिश हो गयी पता नही लगेगा भी नही.”
“लग जायेंगे बारिश से तो और अच्छा होता है आराम से लग जाते है पौधे “.. उसने कहा
“ये बे मौसम की बारिश है पता नहीं लगेगा या नही “?
उसने मुस्कुरा कर कहा – “काका कभी – कभी बे मौसम की बारिश भी अच्छी होती है… देखना आप आपके पौधे लग जायेंगे और जब उसमें फूल आयेगा तो आप सबसे पहले मेरे कमरे में लगाना फूलों को “|
“ठीक है बिटवा “
तभी शंख की आवाज़ घर के अंदर से आयी
“लो बिटवा बड़ी मालकिन की पूजा भी हो गयी “काका ने कहते हुए ऊपर की तरफ देखा
घर के दरवाज़े के एक तरफ नेम प्लेट पर भरद्वाज मेंशन लिखा हुआ था…क़रीब साथ – आठ मार्बल की सीढियाँ..
जो ऊपर की तरफ जा रही थी सीढ़ियों के दोनों तरफ सलीके से रखे हुए गमले… बारिश से कुछ धुले -धुले लग रहे थे….. सीढ़ियों पर पानी अभी भी था |
“संभल कर जाना बिटवा पानी है सीढ़ियों पर ” काका ने कहा
जी…. कह कर ऊपर जाने जाने लगा….. घर भीनी -भीनी खुशबु से महक रहा था… काफी बड़ा हॉल था ….जिसके एक तरफ मन्दिर था जिसमें राधा कृष्ण की मूर्ति के साथ और भी देवी देवता विराजमान थे….दो तीन लोग हाथ जोड़े उस मन्दिर की तरफ घूमे हुए थे……..एक तरफ बड़ी सी dining table थी….. उसी से थोड़ी दूर पर किचन…. दो कमरे नीचे और तीन ऊपर थे… एक तरफ ऊपर जाती हुयी सीढियाँ……मन्दिर से निकलती हुयी महिला मुस्कुराई उस नौजवान ने उनके गले में हाथ डाला और बोला … “हैलो डार्लिंग “
तभी पीछे से किसी ने उसकी पीठ पर छड़ी से हल्के से मारा और बोला – “इनके पति देव अभी जिंदा है और बरख़ुर्दार ये हमारी डार्लिंग है आपकी नहीं..”. कहते हुए उन्होंने उसे छड़ी से
उसे पीछे धकेल दिया |
जेंटेलमेंन् मुझे पता है… मैं तो बस…
उफ्फ … हो गया शुरू आप दिनों का… उस महिला ने पूजा की थाली से आरती ले कर सबको दी और उस नौजवान के सिर पर हाथ रखा |
ये उस नौजवान की दादी थी शांति भरद्वाज और उनके पति यानी कि वो जेंटेलमेंन् उसके दादाजी दीन दयाल भरद्वाज |
“अरे जेंटेलमेंन ……मैं थोड़ा लेट हो गया आने में वरना ये हमारी होती..”…हँसते हुए वो फिर से शांति जी को गले से लग गया |
“कैसी रही मीटिंग गौरव ” ?…उन्होंने पूछा
उसने शांति जी से दूर होते हुए कहा… ठीक थी ….
“आज तो ऑफिस नहीं जाओगे फिर”? उन्होंने पूछा
“जाना है…11 बजे मीटिंग है “
ठीक है….तो थोड़ा आराम करो फिर
ह्म्म्म
चाय पियोगे..?
“नहीं….मैं अपने अपने कमरे में जा रहा हूँ…… किशन को रास्ते में छोड़ कर मैं drive कर के आ रहा हूँ “|
“क्यों क्या हुआ “? …. दीनदयाल जी ने पूछा
“किशन की माँ की तबियत ठीक नहीं है तो शायद वो अभी आयेगा नहीं.”. गौरव ने कहा
“अच्छा …बहुत स्वाभिमानी लड़का है कितनी बार बोला यहीं रहो लेकिन सुनता ही नहीं है…… ठीक है जाओ तुम ‘”
ह्म्म्म …कहकर वो सीढियाँ चढ़कर जाने लगा और जाते – जाते बोला….लव यू डार्लिंग..
शांति जी हँस दी तो दीनदयाल जी ने घूर कर उसे देखा वो हँसता हुआ ऊपर चला गया |
इस हँसते – खेलते परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था जब चार साल पहले एक सड़क दुर्घटना में गौरव के माता – पिता सुरेश भरद्वाज और सुनीता भरद्वाज इस दुनिया से चले गए… गौरव तब पढ़ाई ही कर रहा था | अकस्मात् हुयी इस दुर्घटना से दीनदयाल जी, शांति जी और गौरव को बहुत बड़ा आघात लगा . .. उस वक़्त पूरी तरह से टूट गए गौरव को दीनदयाल जी और शांति जी ने अपनी ममता की छाँव में समेट लिया… दीनदयाल जी ने गौरव को अपनी पढ़ाई पूरी करने की सलाह दी.. हालाँकि वो अपने बेटे के जाने से काफी अकेले हो गए थे.. फिर भी उन्होंने गौरव को इस बात का पता लगने नही दिया…अकेले उन्होंने ही DB (दीनदयाल भारद्वाज ) ग्रुप को संभाला….. काफी उतार – चढ़ाव देखे लेकिन वो डटे रहे |
पढाई पूरी करने के बाद… गौरव ने DB ग्रुप जॉइन किया ….उसने दीनदयाल जी की समझ – बूझ और अपनी मेहनत से DB ग्रुप को आकाश की बुलंदियों पर पहुँचा दिया..
आज DB ग्रुप उन ऊंचाइयों पर खड़ा है जिसमें काम करना लोग अपना भाग्य समझते है…… गौरव भी अपने employs का परिवार की तरह ध्यान रखता है..
दीनदयाल जी ज़्यादा ऑफिस नही जाते थे….लेकिन महीने में एक बार ऑफिस जा कर वो सारे स्टाफ के लोगो से मिलते थे… उनके परिवार के बारे में पूछते उस दिन शांति जी उनके साथ जाती और सबसे मिलती |
आशा करती हूँ कहानी का ये भाग आपको पसंद आया होगा… नीचे भाग 2 का लिंक है
धन्यवाद
स्वरचित
कल्पनिक कहानी
अनु माथुर
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