सधे हुए कदम – Blog Post by Kanchan Shrivastav

चार साल की शादी में कभी दोनों के बीच एक हल्की सी भी नोक झोंक नहीं हुई , रूचि को खुशहाल  देखके रवि को  बहुत अच्छा लगता।

हालांकि  पहली रात में अरमानों को शब्दों का रूप देना आसान नहीं  कितने  रूप जाल में फंस सिर्फ देह तक सिमट के रह जाते है ,कितने मन की खिड़की थोड़ी बहुत खोलते और कितने सधे सधाए कदमों और शब्दों से जीवन की शुरुआत करते हैं तो रवि उन्हीं में से एक था इसने अपने जीवन की शुरुआत सधे सधाए कदमों और शब्दों से की , तभी तो जीवनसाथी के साथ  विफल नही हुआ।

क्योंकि  जब वो छोटा था तो हमेशा मां पापा को  लड़ाते झगड़े मार पीट करते देखा ,और तब तो अत ही हो जाती जब वो दारू पीकर आते और  किसी को न छोड़ते ।

उसे याद नहीं कि कभी उसने पापा मम्मी को साथ बैठकर चाय पीते देखा हो , किसी न किसी बात को लेकर हमेशा दोनों में तकरार होती रहती, कभी सामंजस्य रहा ही नही। जबकि इतनी पैसे की भी कभी न थी , पर पापा का गुस्सेल मिजाज और तानाशाही ने मां को तोड़के रख दिया।वो कभी अपनी मर्जी से कुछ कर न सकी।जिसका उन्हें बहुत मलाल रहा, फिर धीरे धीरे उम्र ढलने लगी तो वो चुप रहने लगी और फिर एक दिन असाध्य रोग से पीड़ित होके परलोक सिधार गई ,पर पापा के ऊपर इसका कोई असर न हुआ।


ऊपर से चिंता की आग ठंडी भी नहीं हुई थी कि किसी औरत को घर लाए। जिसका विरोध दीदी ने किया और न मानने पर वो घर छोड़कर किराए के मकान में चली गई ,अब नौकरी पेशा जो थी , तो कोई मना भी न कर सका।और छोटा भाई पढ़ने बाहर (जिसका खर्चा दीदी उठा रही थी) अब बचा मैं तो मैं क्या करता मां के जाने का दुख सीने में दफन कर उन्हीं के साथ पड़ा रहा।कोई चारा जो नहीं था। क्योंकि मैंने देखा था कि पापा कितना भी दुख देते  पर वो चाहती बहुत थी । उनके नाम के सारे व्रत रहती खाने पर इंतज़ार करती और पैर दबाए बेगैर कभी न सोती।

यक़ीनन जो दिल से चाहने लगी थी,तभी इतनी प्रताड़ना के बाद भी कभी घर छोड़कर नहीं गई।गई तो अर्थी पर सजके ।

 हालांकि इसका सीधा असर हम भाई बहनों पर पड़ा , बहन ने शादी नहीं की, भाई गया तो कभी पलट कर नहीं देखा, मैंने भी अपनी पसंद की शादी की पर पिता के नक्शे कदम पर नहीं चला क्योंकि मैंने मां को पापा की बंदिशों में  बहुत कलपते  देखा था। इसलिए पहली रात को  ही उसने रूचि के लिए ये कहके कि जैसे चाहो जिंदगी को जियो मेरी तरफ से कोई रोक टोक नहीं है।

यही कारण है कि उसके चेहरे से नूर बरसता है, जिसे देख वो फूला नहीं समाता ।

और सोचता है सच एक शब्द स्त्री के जीवन में कितना मायने रखता है कि वो स्वत: ही पुरूष के बंधन में बंध जाती है और  जीवन में पार्दर्शिता भी बनी  रहती है साथ ही प्यार और विश्वास अटूट भी।

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