सड़क की बंजारन – नेकराम : Moral Stories in Hindi

सीतामड़ी अपने मोहल्ले का एक धनवान व्यक्ति था घर में एक सुंदर सी पत्नी कौशल्या थी और एक सात बर्ष की काव्या नाम की पुत्री थी सीतामड़ी हमेशा ही गरीबों से दूरी बनाकर रखता था उसे गरीबों से बहुत नफरत थी उसके आंगन में चमचमाती एक सफेद रंग की कार हमेशा खड़ी रहती थी चांदनी चौक में उसका प्रॉपर्टी डीलर का काम था दुकान पर कभी-कभी सप्ताह तक तो मक्खियां मारता और कभी-कभी मकान खरीदने और बेचने पर एक ही झटके में 10 या 5 लाख रुपए कमीशन के तौर पर कमा लेता था ।

घर से चांदनी चौक जाने में उसे अपनी कार से 12 किलोमीटर का समय लगता था

लेकिन एक दिन —

वह अपनी दुकान की तरफ तेज रफ्तार में गाड़ी चलाता हुआ चला जा रहा था अचानक उसने कार में ब्रेक मारी और अपनी कार वही सड़क पर

रोक दी

सामने देखा तो बहुत से मजदूर सड़क पर खुदाई कर रहे थे

सीतामड़ी ने एक मजदूर को अपने पास बुलाकर पूछा यह रास्ता क्यों बंद है

उस मजदूर ने बताया — साहब ,, यहां मेट्रो का पुल बन रहा है 1 महीने से पहले यहां का काम खत्म नहीं होगा

यह बात सुनकर सीतामड़ी उस मजदूर से पूछने लगा फिर चांदनी चौक जाने के लिए मुझे कौन सी सड़क से जाना होगा

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तब मजदूर ने बताया आप पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन वाले मार्ग से चांदनी चौक आसानी से पहुंच सकते हो इतना कहकर वह मजदूर अपने काम में वापस लग गया

सीतामड़ी ने अपनी कार पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन की तरफ मोड़ ली

कुछ आगे जाकर सीतामड़ी को एक बड़ी सी लाल बत्ती दिखाई दी

वहां ट्रैफिक काफी था उन्ही ट्रैफिक के बीच सीतामड़ी की कार रुक चुकी थी

सड़क किनारे से मैले कपड़े पहने हुए एक बंजारन सीतामड़ी की कार के पास आकर रुकी और कहने लगी ,, बाबूजी, मेरे पास कुछ बच्चों के खिलौने हैं ,, ले ,, लो

सीतामड़ी ने कार में बैठे-बैठे ही इशारा करते हुए कहा,, दूर हटो ,,मेरी कार को मत छूना, तुम्हारे कपड़ों से कितनी बदबू आ रही है,,

तब उस बंजारन ने फिर कहा बाबूजी खिलौने ले लो

2 दिन से खाना नहीं खाया,,  घर में बच्चे भूखे हैं

तब सीतामड़ी जोर से गरजते हुए बोला ,, तुझे सुनाई नहीं देता ,,बहरी है

मैं कब से कह रहा हूं ,,मेरी कार से दूर हो जा ,,

चिल्लाते हुए सीतामड़ी एक बार फिर बोला

तेरे बच्चे भूखे हैं ,,तो मैं क्या करूं,, क्यों बच्चे पैदा किये ,, चले आते हैं यहां शहर में,,  गांव से मरने के लिए,,ना खाने का ठिकाना ,,न रहने का ठिकाना

हमने क्या ठेका ले रखा है तुम्हारा पेट भरने का ,,

अब तक हरी बत्ती हो चुकी थी और सीतामड़ी अपनी चांदनी चौक वाली दुकान की तरफ चल पड़ा

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अगले दिन सुबह सीतामड़ी को उसी लाल बत्ती पर वह बंजारन फिर मिली वह कार के शीशे के पास आकर बोली बाबूजी कुछ मदद कर दो मेरे खिलौने ले लो,,

सीतामड़ी चुपचाप कार में बैठा रहा ,, इस बार बंजारन ने कार का शीशा  खटखटा दिया ,,

अपनी चमचमाती कार का शीशा खटखटाते देख अब तो सीतामड़ी का पारा चढ़ चुका था वह तुरंत कार से बाहर निकल आया उसने उस बंजारन से सारे खिलौने छीन कर सड़क पर फेंक दिए और एक जोर का धक्का देते हुए उसे सड़क पर पटक दिया ,,

उस लाल बत्ती पर बहुत सी छोटे-बड़े वाहन खड़े हुए थे मगर किसी में इतनी हिम्मत नहीं थी कोई सीतामड़ी को कोई कुछ कह सके

भीड़ अपना सर झुकाए चुपचाप यह तमाशा देखती रही

हरी बत्ती होते ही ट्रैफिक चालू हो गया वह बंजारन जल्दी-जल्दी से सड़क पर बिखरे खिलौनों को समेटने लगी

उसके कुछ खिलौने तो गाड़ियों के पहियों में दबकर टूट चुके थे

वह अपने खिलौनों को टूटा देख ,, चिल्ला रही थी

रोको,,  गाड़ी रोको,,  मेरे खिलौने सड़क पर पड़े हुए हैं

मगर वहां उस बंजारन की आवाज सुनने वाला कोई नहीं था

वाहन तेज स्पीड में सड़क पर दौड़ रहे थे ,,

सीतामड़ी अपने प्रॉपर्टी डीलर की दुकान पर बैठा चाय पीते हुए सोचने लगा आज कोई ग्राहक आ जाए तभी एक ग्राहक आ गया उसे चांदनी चौक में एक किराए की दुकान चाहिए थी सीतामड़ी ने उसे एक दुकान दिखाई ,,ग्राहक को पसंद आ गई सीतामड़ी को अपना कमीशन मिल गया वह बहुत खुश था उसने सोचा आज शाम को जल्दी ही घर निकल चलूंगा

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शाम को अपनी दुकान का ताला लगाकर वह पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के पास वाली लाल बत्ती पर पहुंचा वहां बहुत लंबा जाम लगा हुआ था

जाम देखकर उसका सर चकरा गया

सीतामड़ी सोचने लगा दुकान से जल्दी निकलने का क्या फायदा

दिल्ली के जाम से तो मैं बहुत दुखी हो गया हूं उसने देखा कुछ बाइक वाले और कार वाले दूसरे रास्ते से अपनी गाड़ियां निकाल रहे थे

शायद यह शॉर्टकट रास्ता होगा और वहां जाम भी नहीं मिलेगा मुझे भी अपनी गाड़ी उनकी गाड़ियों के पीछे लगा देनी चाहिए

सीतामड़ी भी दूसरे रास्ते से अपनी कार लेकर चल पड़ा

आगे तो सड़क धीरे-धीरे संकरी होती जा रही थी बाइक वाले तो निकल गए लेकिन कार वाले वहा फंस गए

अब कार पीछे भी नहीं हो सकती थी क्योंकि उसके पीछे भी दो और कार आकर लग चुकी थी

आधा घंटा हो गया कार में बैठे बैठे कुछ लोग अपनी कार को धक्का लगाकर वापस मेंन रोड पर अपनी अपनी कार को ले जाने लगे

सीतामड़ी सोचने लगा अब मेरी कार में कौन धक्का लगाएगा मैं तो कार में अकेला ही हूं वह कार से बाहर निकला और कार में धक्का लगवाने के लिए  इधर-उधर लोगों से मदद मांगने लगा

मगर वहां सीतामड़ी की बात सुनने को कोई राजी नहीं था

सामने फुटपाथ पर एक कच्चा झोपड़ा दिखाई दिया शायद यहां से मदद मिल जाए यह सोचकर सीतामड़ी उस कच्चे से झोपड़े के पास पहुंचा

उस झोपड़े में किवाड़ ना था अंदर का दृश्य साफ दिखाई दे रहा था

तीन छोटी-छोटी बच्चियां जिनकी उम्र 8 ,, 9 साल के लगभग होगी चादर पर लेटी सो रही थी और वही चूल्हे पर रोटियां सेंकते हुए एक औरत दिखाई दी

सीतामड़ी ने ध्यान से देखा और कहा यह तो वही बंजारन है जो लाल बत्ती पर खिलौने बेचती है यह अपनी तीन बेटियों के साथ इस तंबू में रहती है इस तंबू में ना तो बिजली है ,,ना पानी की व्यवस्था है बड़े-बड़े और मोटे-मोटे मच्छरों ने घर पर कब्जा किया हुआ था

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वह तंबू एक फुटपाथ के ऊपर बना हुआ था ,,

सीतामड़ी सोचने लगा मुझे इस समय कार में धक्का लगवाने के लिए मदद चाहिए वरना मेरी कार यही रात भर अटकी रहेगी

सीतामड़ी ने आवाज लगाते हुए उस बंजारन से कहा ,,जी मेरी गाड़ी खराब हो गई है बाहर सड़क पर फंसी हुई है  क्या इस घर में कोई मर्द है

जो मेरी सहायता कर सके ,,

बंजारन ने मुड़कर देखा तो ,,वही कार वाले साहब खड़े हुए थे

बंजारन ने तुरंत अपनी तीनों बच्चियों को उठाया और कहा जाओ साहब की मदद करके आओ ,,

तीनों बेटियां चादर से उठकर कहने लगी चलो बाबूजी हम आपकी मदद करते हैं

सीतामड़ी कहने लगा तुम तीनों तो छोटी हो कार में धक्का कैसे लगा पाओगी

तब बंजारन बोली,, साहब  हमारी बेटियां किसी छोरो से कम नहीं है

सीतामड़ी के पास अब कोई चारा भी नहीं था वह उन तीन बेटियों को अपने साथ ले गया तीनों बेटियों ने सीतामड़ी के साथ मिलकर कार में धक्का लगाकर कार को गली से बाहर मेंन रोड तक पहुंचा दिया

सीतामड़ी ने अपनी जेब से ₹5 निकाल कर उन्हें देते हुए कहा रख लो तुम्हारा इनाम है ,,

तब उन तीनों बेटियों ने कहा ,, हम भिखारी नहीं हैं ,, लाल बत्ती पर अपने खिलौने बेचकर जो रुपए मिलते हैं उन रूपयों से हम अपना पेट भरते हैं हमारी मां ने हमें यही सिखाया है जीना है तो सम्मान के साथ जियो एक रोटी कम खाओ मगर किसी से भी भीख नहीं मांगो

इतना कह कर वह लड़कियां वापस अपने मां के पास चली आई

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सीतामड़ी अपनी कार लेकर घर लौट आया अगले दिन उसे लाल बत्ती पर वह बंजारन फिर मिली

इस बार सीतामड़ी ने बंजारन को अपनी कार के नजदीक बुलाते हुए इशारा किया मगर वह बंजारन नहीं आई

तब सीतामड़ी कार से उतरकर उस बंजारन के पास जाकर कहने लगा मुझे खिलौने खरीदने हैं कितने रुपए के दोगी

बंजारन सारे खिलौनों के एक-एक करके दाम बताने लगी

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तब सीतामड़ी ने उस बंजारन से एक सवाल पूछा ,,दिन भर तुम कितना कमा लेती हो,,

तब बंजारन ने उत्तर दिया साहब,

किसी किसी दिन हमारे खिलौने नही  बिकते और हमें घर पर भूखा ही रहना पड़ता है

आप जैसे अमीर जब हमारे खिलौने खरीद लेते हो तो हमारे घर पर चूल्हा जलता है और हमारे बच्चे पेट भर के खाना खाते हैं

बिहार में हमारा भी हंसता खेलता परिवार था मगर अचानक एक दिन बाढ़ आई और उस बाढ़ में मेरे पति की अकाल मृत्यु हो गई

जब बाढ़ का पानी नहीं सूखा तो मैं अपनी तीनों बेटियों को लेकर दिल्ली चली आई ,, किसी ने कहा था दिल्ली चली जाओ,, वहां तुम्हें रहने के लिए ठिकाना और रोजगार मिल जाएगा

लेकिन जब मैं अपनी बच्चियों को लेकर दिल्ली आई तो दर-दर भटकती रही ,, किसी को दया नहीं आई

मुझ जैसी अकेली और बेसहारा औरत को देखकर

सब मेरे जिस्म को नोचना चाहते थे,, पैसे देकर मेरे जिस्म को खरीदना चाहते थे,,

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मगर मैं एक भले घर की लड़की हूं अपना जिस्म बेचकर दो रोटियां कमाने का शौक नहीं है

लेकिन इस शहर में रात के अंधेरे में भूखे भेड़ियों की तरह कुछ हैवान

मेरे जिस्म से खेलना चाहते हैं मेरी आबरू को तार तार कर देना चाहते हैं लेकिन मेरे माता-पिता ने बचपन से यही सिखाया है

एक रोटी सूखी मिल जाए मगर इज्जत की रोटी हो मै मान सम्मान के साथ जीना चाहती हूं और अपनी बेटियों को भी पढ़ा लिखा कर होनहार बनाना चाहती हूं

भले ही आप जैसे अमीर लोग मेरे खिलौने ना खरीदें ,,हमें खाने को रोटी ना मिले लेकिन मैं अपनी बेटियों का पेट भरने के लिए अपना जिस्म नहीं बेचूंगी चाहे मुझे सड़कों पर खुदाई करनी पड़े मेहनत मजदूरी करनी पड़े पसीना बहाना पड़े ,,चाहे तपती धूप में खड़े होकर यह खिलौने ही न बेचने पड़े ,,

बंजारन की बात सुनकर सीतामड़ी ने उसके सारे खिलौने खरीद लिए और अपनी कार में बैठकर चल पड़ा

कार चल रही थी और सीतामड़ी सोच रहा था इस दुनिया में कितना दर्द है हम जिन्हे गरीब समझते हैं,,  कीड़ा मकोड़ा समझते हैं

वह लोग भी आत्म सम्मान के साथ जीना चाहते हैं इसीलिए आंधी में,, तूफान में,,  बरसात में लाल बत्ती के चौक पर खड़े होकर वह अपने खिलौने बेचते हैं और हम

                ,,,  उन्हें दुत्कार देते हैं ,,

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सीतामड़ी ने घर आकर यह बात अपनी पत्नी कौशल्या को बताई तो कौशल्या की आंख से आंसू आ गए उसने कहा

हमारी छत के ऊपर तीन कमरे बने हुए हैं बिल्कुल खाली पड़े हुए हैं

हमारे पास रुपए पैसों की कोई कमी नहीं है

मैं चाहती हूं तुम उस खिलौने बेचने वाली को अपने घर ले आओ वैसे भी हमें एक नौकरानी की जरूरत है

वह हमारे घर रहकर हमारे घर का कामकाज संभालेगी और उसे रहने के लिए छत भी मिल जाएगी

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और मैं चाहती हूं उस बंजारन की तीनों बेटियों का अपनी बेटी काव्या के स्कूल में एडमिशन करवा दिया जाए ,,पढ़ने की उम्र में वह बेचारी लड़कियां अपनी मां के साथ लाल बत्ती के चौराहे पर खिलौने बेचती है

अगर हम जैसे अमीर लोग इन गरीबों के काम नहीं आएंगे तो कौन काम आएगा

एक दिन समय निकालकर सीतामड़ी अपनी पत्नी कौशल्या के साथ उस बंजारन के झोंपड़े में पहुंचे

बंजारन और उसकी तीनों बेटियों को कार में बिठाकर अपने घर की तरफ चल पड़े

दिन बीतते चले गए और वह बंजारन सीतामड़ी के घर पर एक नौकरानी का काम करने लगी और उसकी तीनों बेटियां काव्या के साथ स्कूल जाने लगी तीनों पढ़ने लिखने में बहुत होशियार थी

इस घटना को सुनने के बाद पूरे मोहल्ले में सीतामड़ी का और भी मान सम्मान बढ़ गया बेसहारा और बेघर लोगों को सहारा देना आज के जमाने में,,  किसी के बस की बात नहीं है

लेकिन यह कारनामा सीतामड़ी और उसकी पत्नी कौशल्या ने कर दिखलाया

मोहल्ले के लोगों ने जब सीतामड़ी से इस घटना का जिक्र किया तब सीतामड़ी ने मोहल्ले के लोगों को बताया

हम लोग  जब अपनी महंगी महंगी बड़ी-बड़ी कारों से कहीं घूमने जाते हैं कार्यालय ऑफिस जाते हुए लाल बत्ती पर कितने ही मासूम बच्चों को खिलौने बेचते हुए देखते हैं और हम उन्हें देखकर अपना मुंह फेर लेते हैं

हम अपने बच्चों को तो पढ़ाना लिखाना चाहते हैं होनहार बनाना चाहते हैं मगर हमें उन बच्चों से कोई लेना-देना नहीं जो सड़कों और फुटपाथों पर पलते हैं वह किस तरह का जीवन जी रहे हैं किन कष्टों में अपना जीवन गुजार रहे हैं हमें तनिक भी उनकी परवाह नहीं

यही समाज की विडंबना है हम सिर्फ अपने लिए जीते हैं अपने बच्चों के लिए जीते हैं औरों से हमें क्या

हम अमीरों को एक बार गरीबों के घर भी जरूर झांककर देखना चाहिए शायद हमारी एक पहल से उनका जीवन संवर जाए उन्हें भी जीने का एक मौका मिल जाए

शहरों के बने फुटपाथों पर लोग कितना दर्दनीय जीवन जी रहे हैं अगर हम उन्हें सहारा नहीं दे सकते तो कम से कम उनका सामान खरीद कर उन्हें आत्म सम्मान से जीने का एक मौका तो जरूर दे सकते हैं

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सीतामड़ी की बात सुनकर मोहल्ले के सभी लोगों ने एक साथ कहा शहरों की लाल बत्ती पर अगर हमें कोई गरीब सामान बेचता हुआ नजर आया तो हम अवश्य खरीदेंगे

शायद हमारे कुछ रूपयों से उनके घर का चूल्हा जल सके ।।

लेखक नेकराम सिक्योरिटी गार्ड

मुखर्जी नगर दिल्ली से

स्वरचित रचना

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