बस काठ की पुतली की तरह नाचते रहना कभी पिता तो कभी पति के इशारों पर।मुझे ऐसी जिंदगी नहीं चाहिए मां मै तो यहीं चाहती हूं मेरे इशारों पर कोई नाचे मेरी डोर मेरे हाथों में ही रहे ।
प्राची की मिनमिन सुन कर मां मुस्कुरा उठी।
बेटा ये नाचना और नचाना दोनों जीवन के स्वाभाविक तरीके हैं।कोई ना कोई डोर हम सबको बांधती है ये मजबूरी के बंधन नहीं होते बल्कि एक दूसरे के प्रेम और ख्याल की डोर होती हैं ।किसी का ख्याल रखना बाते मान लेना उसके इशारों पर नाचना नहीं होता।
किसी और की क्यों तुम खुद की बात करो मां।पिता के हाथ में तुम्हारी डोर है।जैसा चाहते हैं तुम वैसा ही कहती करती हो। तुमने बचपन से सिर्फ नाचना ही सीखा है लेकिन मैं ऐसा नहीं करूंगी।ये जो नचाने वाली डोरियां है ना इन सबको मैं काट दूंगी बस एक बार मेरी पढ़ाई पूरी हो जाने दो प्राची ने अपनी प्रोजेक्ट फाइल्स कॉलेज बैग में रखते हुए कहा और मां को मुंह चिढ़ाती कॉलेज चली गई।
ये लड़की भी बावली होती जा रही है।बड़ी बहन तो एकदम गऊ है ज्यादा पढ़ी ही नहीं घर गृहस्थी के गुर सीख गई पिता ने जहां बांध दिया ब्याह कर लिया… मां ,प्राची के अस्तव्यस्त कमरे को व्यवस्थित करती बोलती जा रहीं थीं।
कहां हो प्राची की मां खुशखबरी ले कर आया हूं खीर खिलाओ तो बताऊं अमीश जी ने घर में घुसते ही पत्नी को ढूंढते हुए आवाज लगाई तो राशि भागती हुई बैठक में आ गई और तुरंत एक गिलास पानी देते हुए उत्सुकता से पति की तरफ देखने लगी।
क्या खुशखबरी है जी जल्दी से बताइए।खीर तो वैसे ही मैं बना दूंगी उतावलेपन से राशि बोल उठी।
प्राची की शादी तय कर आया हूं।आज ऑफिस में प्रकाश जी का फोन आ गया।कहने लगे अमीश जी हम लोगों को आपकी राशि बहुत पसंद आई थी।बेटा केतन तो जबसे उससे मिला है पिछले महीने आपके घर पर जब हम सब आए थे तभी से प्रसन्न है।आज बार बार पूछने पर उसने स्वीकृति भी दे दी है।अगर आप फुर्सत में हों तो आज शाम पत्नी सहित हमारे घर आ जाए तो साथ बैठ कर शादी ब्याह की बातें तय कर लें।
अंधा क्या चाहे दो आँखें मैंने तुरंत गाड़ी उठाई और उनके घर पहुंच गया।
मुझे तो बता देते बीच में ही राशि ने टोक दिया।
अरे अब तुम्हे क्या बताना ।जो मेरा फैसला वही तुम्हारा।शाम तक का इंतजार करना व्यर्थ था वैसे भी क्या बातें करनी है कैसे करनी है तुम्हे क्या समझ आता बात तो मुझे ही करनी थी निर्णय तो मुझे ही करना था सारी व्यवस्था लें दें सब मै ही तो देखूंगा इसलिए मैंने बिना एक पल भी गंवाए उनसे मुलाकात की और सारी बात तय कर दीं।
सारी बात मतलब किसी आशंका से राशि का माथा ठनक उठा।
मतलब दो महीने बाद की तारीख निकली है।पंडित जी से पूछ लिया है अमीश ने चाय का कप उठाते हुए कहा।
लेकिन प्राची की परीक्षाएं है उसी समय पूछ तो लेना था मुझसे नहीं तो बेटी से ही राशि की आवाज में किंचित नाराजगी और आश्चर्य था।
अब मुझे तो इस बात का ध्यान ही नहीं था।अब तो बात पक्की हो गई पंडित जी ने पत्रा देख कर तिथि तय की है अमीश ने लापरवाही से कहा तो राशि को अच्छा नहीं लगा।
क्या बात है मां आज किस खुशी में मेवे वाली खीर बनाई है तुमने शाम को कॉलेज से आते ही प्राची खीर देख प्रसन्न हो गई।
तेरे पिता जी की फरमाइश पर बनानी पड़ी उन्हीं से पूछ ले कहती राशि किचेन में चली गई।
पिता जी की फरमाइश पर वाह लगता है प्रमोशन हो गया पिता जी का पिता की तरफ देखती वह खीर लेकर पिता के पास ही बैठ गई।
प्रमोशन से भी बड़ी खुशी की बात हुई है बेटा।तेरा ब्याह निश्चित हो गया है दो माह बाद की तारीख भी तय कर आया हूं।प्रकाशजी का लड़का केतन जो तुझे देखने मिलने आया था और तुझे भी पसंद आ गया था अमीश ने कहा तो प्राची के हाथों से खीर का चम्मच छूट कर जमीन पर गिर पड़ा।
केतन वो अपने पिता का आज्ञाकारी पुत्र!! नहीं पिता जी आपने कैसे समझ लिया वह मुझे जरा सा भी पसंद है प्राची नाराज होकर बोल पड़ी।
तेरी पसंद तो बहुत नखरे वाली है।केतन बहुत होनहार लड़का है।तेरी पसंद नापसंद मैने पूछी भी नहीं है ।मैं विवाह तय कर आया हूं अब ये होकर ही रहेगा अमीश ने सख्त आवाज में कहा तो प्राची नाराज हो गई।
विवाह की क्या जल्दी मची थी पिता जी ।पहले एक्जाम तो हो जाने दीजिए मेरा पूरा भविष्य इस एक्जाम और इसके रिजल्ट पर टिका है ।मैने कितनी तैयारी की है और अभी बहुत तैयारी करनी है ।मुझे नहीं करनी शादी वादी तेज आवाज में वह चिल्ला उठी।
कौन सा भविष्य!! पढ़ाई लिखाई इसीलिए जरूरी है कि अच्छे घर में शादी हो सके।अब शादी तय ही हो गई तो पढ़ाई लिखाई वसूल हो गई ।एक्जाम से ज्यादा बड़ा है विवाह होना।शादी की तैयारी करना शुरू कर दो तुम लोग।शादी के बाद एक्जाम देते रहना सख्ती से कहते अमीश बाहर चले गए।
मां मुझे नहीं करना ये ब्याह ।मेरी पढ़ाई पूरी हो जाने दो।शादी के बाद वे लोग मुझे एग्जाम क्यों देने देंगे जब मेरे खुद के पिता ही पढ़ाई और परीक्षा का विरोध कर रहे हैं ।और एक्जाम के लिए तैयारी करने का समय कहां है।
राशि क्या कहती।कैसे समझाती कि लड़कियों को इन्हीं डोरियो से तो बांध दिया जाता है।पिता की सख्त हिदायतों की डोर बेटी के थोड़ी बड़ी होते ही बांधने लगती हैं।दुलार भी मिलता है लेकिन डोर से अलग हटकर सोचने और करने की आजादी नहीं।
मां तुम ठीक कहती हो हम कठपुतली की भांति ही तो हैं।हमारी डोर खुद हमारे ही पास नहीं है।हर किसी के पास है।पिता जी ने भी मुझे कठपुतली ही समझ लिया है सब तुम्हारे कारण…. आक्रोश और दुख से प्राची का दिल दिमाग आक्रांत हो गया लेकिन पिता जी की बात ब्रह्मवाक्य थी।
बेटी की विरोध स्वरूप चुप्पी उनके लिए कोई मायने नहीं रखती थी।पत्नी की बात पर आज तक उन्होंने ध्यान नहीं दिया था फिर इतने बड़े फैसले में तो सवाल ही नहीं उठता था।निर्विरोध स्वीकृति ही अपेक्षित थी।
राशि दिल में दुखी थी लेकिन बेटी की शादी तय हो जाने की एक खुशी सी थी उसे।एक ही बार लड़के वाले देखने आए और मेरी बेटी को पसंद ही नहीं किया बल्कि शादी करने की जल्दी भी मचाने लगे इस बात से उसे गर्व भी महसूस हो रहा था घर के लोग उसे बहुत बधाई दे रहे थे कि “बड़ी भाग्यशाली हो बिटिया की शादी अच्छे घर में इतनी जल्दी तय हो गई।”आखिर लड़की की शादी तो होगी ही ।बस उसके एक्जाम ना हो पाने का अफसोस था उसे ।लेकिन इतना भी नहीं कि उस चक्कर में शादी की तिथि उपेक्षित हो जाए।
मां मेरी किताबें कहां गईं और नोट्स भी शादी के दो दिन पहले प्राची बदहवास हो गई जब उसने पढ़ने की जगह किताबें नहीं देखा।
क्यों उनका क्या करना है अब दो दिन बाद शादी है उसमें ध्यान लगा पिता ने टोका।
मां मेरी किताबें कहां है मुझे उन्हें रखना है सूटकेस में पिता को उत्तर ना देते हुए प्राची ने मां से जोर से कहा।
मैने सब सम्भाल के अपने पास रख लिया है।आज से पढ़ाई बंद।वहां ससुराल ले जाने जरूरत नहीं है।जब यहां आना तब पढ़ लेना पिता ने जोर से कहा।
मां…. बेबसी में वह जोर से चिल्ला कर मां के पास चली गई।
बेटा पिता ठीक कह रहे हैं।ससुराल में शादी होतेही पढ़ाई कौन करता है।वहां माहौल नहीं मिलेगा अभी।पिता तुझे जल्दी यहां ले आएंगे आजा मेहंदी वाली आ गई है मां उसे पकड़ हॉल में ले आईं।
प्राची को ऐसा लगा मेहंदी उठा कर फेंक दे।
जमाई जी मेरी बेटी का ख्याल रखिएगा अब इसकी डोर आपके संग बंध गई है शादी के बाद विदा होते समय राशि सिर्फ इतना ही कह पाई थी।बेटी के एक्जाम के बारे में चाहते हुए भी कुछ नहीं कह पाई थी। कहीं बुरा ना मान जाएं कि शादी के समय भी इन्हें एक्जाम की पड़ी है।
कितनी अजीब होती है ये डोरियां भी।बेटी ….जिसके साथ जन्म से डोर बंधी थी उसके बुरा मानने की कोई चिंता किए बिना उसकी डोर अंजान व्यक्ति को सौंप कर ख्याल रखने की प्रार्थना कर रहीं थीं।
पिता ने मेरी डोर इनके हाथों में सौंप दी।अभी तक पिता की डोर से बधी नाच रही थी अब इन लोगों की डोर पर नाचना है।मां भी तो यही करती है और मैं मां को ही ताने मारती थी ससुराल में कदम रखते ही मां को याद कर प्राची के आंखों में आंसू आ गए ।
डोर से मुक्त होना डोर को काट देना इतना सरल नहीं होता मां की जगह खुद को रख कर वह सोचने लगी थी।
इतनी पढ़ी लिखी होने के बाद भी वह पिता का विरोध करने की उनसे तर्क करने की हिम्मत नहीं जुटा पाई थी।बल्कि अपनी पढ़ाई और एक्जाम के प्रति पिता की बेपरवाही और उपेक्षा ने उसके मन में पिता के प्रति परायेपन और कटुता का भाव पैदा कर दिया था।जब पिता को ही मेरी कोई परवाह नहीं मां को कोई असहमति नहीं फिर यहां ससुराल में किससे इस बात की अपेक्षा और उम्मीद रखूं।
प्राची संभाल के पैर रखो कलश का पानी नीचे फर्श पर गिर गया है केतन का आहिस्ता से कहना और हाथ पकड़कर संभालना उसे होश में ले आया।
दस दिनों के बाद एक्जाम हैं कैसे संभाले वह अपने आपको।पिछले कई दिनों से शादी की तैयारी मानसिक उथलपुथल से उसको पढ़ाई करने का मौका ही नहीं मिल पाया था।हालांकि प्राची ने एक्जाम की काफी तैयारी चुपचाप कर ली थी लेकिन अब तो एग्जाम देने की अनुमति भी मिलेगी या नहीं इस पर भी प्रश्नचिन्ह था। दस दिनों के बाद एक्जाम है उसे लग रहा था कहीं भाग जाए और अपनी पढ़ाई में जुट जाए सिर्फ पढ़ाई।
सोचते सोचते उसकी आंख लग गई।दूसरे दिन जब आँख खुली तो केतन को चाय लिए खड़े पाया।
मुझे चाय नहीं पीनी उदास मन से उसने कहा तो केतन उसके पास बैठ गया।
प्राची क्या तुम इस शादी से खुश नहीं हो।नाराज हो केतन ने आहिस्ता से पूछा तो प्राची मानो फट ही पड़ी।
हां बहुत नाराज हूं बहुत ज्यादा।दस दिनों बाद मेरे एक्जाम हैं और मैं दुल्हन बनके बैठी हूं हताशा और बेबसी में उसकी आंखों से आंसू बहने लगे।कितनी उम्मीद लगाए बैठी थी इस एक्जाम से मैं।सब खत्म हो गया वह फूट फूट कर रो पड़ी।
सब खत्म कैसे हो गया।प्राची मुझे पता है तुम्हारे एक्जाम हैं और इसीलिए तुम इतनी उदास और दुखी हो तुम एक बार गर्दन घुमा कर अपने पीछे तो देखो केतन ने बेहद मृदुल स्वर में कहा तो प्राची ने अनमने ढंग से गर्दन घुमायी।जो कुछ भी उसकी आंखों ने देखा उसने उसके आंसुओं को तुरंत सुखा दिया।
प्राची ने देखा कमरे के बीच के पार्टीशन के पर्दे के पीछे एक बेहद उम्दा स्टडी टेबल चेयर रखी है और .. और उसकी सारी किताबें सारे नोट्स सब करीने रखे हैं….देख कर वह झपट कर वहां पहुंच गई।
ये सब यहां कैसे आईं।मां तो कह रही थी ससुराल लेकर नहीं जाना है प्राची हर्ष विमूढ़ हो गई।
मैने मां को समझा कर सब मंगवा लिया था।अब तुम एक पल भी बर्बाद मत करो और एक्जाम की तैयारी में जुट जाओ केतन ने चहकती हुई पत्नी के पास आकर कहा तो प्राची आश्चर्य से उसे देखती रह गई क्या पति ऐसे भी होते हैं!!
ऐसे क्या देख रही हो ।तुम्हारे दिल की बात यही है ना केतन ने फिर से कहा तो प्राची सकुचा गई।
मुझे विश्वास नहीं हो रहा है कि शादी के दूसरे ही दिन मेरी पढ़ाई की चर्चा होगी वो भी ससुराल में प्राची सुखद आश्चर्य में डूबी थी।
अरे बहू चर्चा तो तब होगी जब तुम्हारा रिसल्ट आएगा और हम मिठाई बांटेंगे केतन के मां पिता जी ने कमरे के अंदर आते हुए कहा तो प्राची ठगी सी उन्हें देखती रह गई।
बेटा मुझे पता है तुझे पढ़ाई की कितनी चिंता है।यहां सब व्यवस्था है। आज अभी से तुम एक्जाम की तैयारी में जुट जाओ ।केतन तुम्हारा ख्याल रखेगा सहायता करेगा ।एक्जाम दिलाने लेकर जाएगा लेकर आयेगा क्यों केतन सुन रहे हो ना पिता जी ने जोर से कहा तो केतन दोनों कान पकड़ कर खड़ा हो गया।
जी पिता जी दोनों कान खोल कर सुन रहा हूं।आज से ये नाचीज अपनी प्यारी धर्मपत्नी की खिदमत में एक पैर से खड़ा हो गया जो भी हुकुम होगा सिर आँखो पर कहते हुए प्राची की तरफ उसने इतने आज्ञाकारी भाव से देखा कि प्राची की हंसी छूट गई।
सभी जोर जोर से हंसने लगे।
प्राची को अनदेखी स्नेह की डोर नजर आने लगी।
उसे केतन की आज्ञाकारी मुद्रा देख अपनी बात याद कर हंसी आ रही थी “….मै तो चाहती हूं कोई ऐसा मिले जो मेरे इशारों पर नाचे..!!
मां सही कहती थी इसे नाचना या नचाना नहीं कहते।केतन को मेरी पढ़ाई का ख्याल है मेरी भावनाओं का ख्याल है जो मैं कहूंगी वह करेंगे ।इसे नचाना नहीं कहा जाएगा।मां भी पिता जी के इशारों पर नाचती नहीं थी ख्याल रखती है।परिस्थितियां ही अक्सर व्यक्ति को कठपुतली सा नाच नचाती हैं।
डोरिया तो हर इंसान के इर्द गिर्द रहती हैं कही ना कही किसी ना किसी डोर से हम सब बंधे ही रहते हैं अगर डोरियां इतने प्रेम स्नेह और अपनेपन की हों तो कठपुतली में भी जान आ सकती है खुद के लिए कुछ सोचने और करने की हिम्मत आ सकती है।
जो विश्वास और सम्मान इन लोगों ने मेरे प्रति और मेरी पढ़ाई के प्रति दिखाया है मै उस पर खरी उतरूंगी अचानक एक नया उत्साह संकल्प बन उसके भीतर उत्पन्न होने लगा था और उसके कदम अपनी किताबों की तरफ बढ़ गए थे….!!
लेखिका : लतिका श्रीवास्तव
#कठपुतली