शिवानी इस बार बहुत दिनों बाद अपने मायके आई । सब से मिलने के बाद वह जीजी को ढूंढने लगी क्योंकि पहले जब भी वह आती थी जीजी उसके स्वागत में पहले ही दरवाजे में दिखाई देती थी। दादी ने शिवानी को बताया कि जीजी अपने ससुराल गई है। शिवानी को बहुत आश्चर्य हुआ क्योंकि जब से उसने होश संभाला था जीजी को कभी भी ससुराल का नाम लेते नहीं सुना था। वह तो हमेशा से यहीं रहती थी। दादी ने बताया कि दुलारी जीजी का बाल विवाह हुआ था । संतान न होने के कारण उनके पति ने उन्हें छोड़ दिया था। तब से वह यही आ गई थी। बरसों से उनके माता पिता यहीं काम करते थे।
दादी की बात सुनकर शिवानी जीजी के बारे में बहुत सारी बातें याद करने लगी। उसे याद आने लगा कि जीजी सुबह राम नाम गाती हुई पूरे आंगन को झाड़ू लगाती थी। सबकी नींद उनकी आवाज से ही खुलती थी। उसके बाद कांसे और पीतल के पूजा के बर्तनों को घिस घिस कर चमकाती थी। घर में और भी काम करने वाले थे लेकिन ये दो काम वो ही करती थी। उनको किसी और का काम पसंद नहीं आता था। दिन भर सबकी सहायता करती रहती थी। दादी की तो वह सहेली जैसी थी। दादी भी उन्हें सेविका नहीं सहेली समझती थी । दादी से वह बड़ी थी इसलिए दादी शुरू से उन्हें जीजी कहती थीं। बाद में वह पूरे घर भर की जीजी बन गईं ।
जीजी को पेड़ पौधों से बहुत लगाव था। उन्होंने तरह-तरह के पेड़ पौधे लगा कर रखे थे । वह हर पेड़ पौधों से बच्चों की तरह प्यार करती और उनकी देखभाल करती थी। शिवानी के पापा, चाचा ,बुआ सबको उन्होंने अपने बच्चों की तरह ही पाला था औऱ सब उन्हें उतना ही सम्मान देते थे। बाद में धीरे-धीरे सब अलग-अलग शहरों में रहने लगे । उनके यहां जब भी किसी बच्चे का जन्म होता या तबीयत खराब होती तो जीजी वहां पहुंच जाती और जब तक जरूरत होती है उनकी सेवा करती। फिर वापस यहीं आ जाती। वो सालों से अपने वेतन के पैसे तीर्थ और गंगा स्नान के लिए जमा कर रही थीं।
जीजी को चाय से बहुत लगाव था। सुबह जब वह झाड़ू लगाकर और पूजा के बर्तन धोकर तैयार होती तब तक शिवानी की माँ या चाची उनके लिए चाय तैयार रखती थीं और उन्हें बड़े प्रेम से देती थीं। चाय देखते ही जीजी मुस्कुराने लगती थीं ।
वह बहुत सारे फूल तोड़कर लाती , माला बनाती और भक्ति भाव से भगवान की पूजा करती थी ।जहां कहीं भी जाती वहां से अलग-अलग प्रकार के पौधे लेकर आती । खाली समय में पौधों को सहलाती और बातें करती । जीजी बच्चों को बताती कि पौधे भी हमारी प्यार की भाषा समझते हैं । तभी तो देखो कैसे सुंदर सुंदर फूल और फल हमें देते हैं।
इसी प्रकार उनके दिन बीत रहे थे। शिवानी की शादी हो गई और अपने ससुराल चली गई । अब तो वे अपने मायके बहुत कम ही आ पाती थी।
शिवानी को आये कुछ दिन हो गए। जीजी वापस आ गई। बहुत ही ज्यादा खुश थी। शिवानी की मां ने आते ही उन्हें चाय दी । जीजी मुस्कुराते हुए कहने लगी बड़ी बहू तुम मुझे चाय देना कभी नहीं भूलती । उन्होंने सबको बहुत सारा आशीर्वाद दिया। दादी ने उनसे पूछा कि जिस काम के लिए गई थी वह पूरा हो गया तो बड़ी खुशी से उन्होंने कहा हां। शिवानी को देखकर खुश हो गईं । हालचाल पूछने के बाद उन्होंने बताया कि उसके पति ने तो बाद में दूसरी शादी कर ली थी। जिससे बहुत साल बाद उनकी एक बेटी कांति पैदा हुई। कांति की माँ अच्छे स्वभाव की थी वह कभी कभी जीजी का हाल समचार लेती रहती थी। जीजी को उस गांव के एक जान पहचान वाले से पता चला कि गरीबी के कारण कांति की शादी नहीं हो पा रही है। जीजी ने अपने जीवन भर की पूंजी जो उन्होंने तीर्थ और गंगा स्नान के लिए इकट्ठा किए थे जाकर कांति की शादी के लिए दे दिए । वह कहने लगी कि कन्यादान से बड़ा कोई पुण्य नहीं है। मुझे संतान ना होते हुए भी कन्यादान करने का सुख मिल गया। अब मेरे सारे तीरथ हो गए और मैं तो गंगा नहा ली। उनके चेहरे पर एक निश्छल मुस्कान थी।
दूसरे दिन सुबह-सुबह जीजी की राम नाम की आवाज सुनाई देने लगी । शिवानी उठकर खिड़की से जीजी को देखकर मुस्कुराने लगी।