हेलो भैया… वह मैं कह रही थी इस बार रक्षाबंधन पर जब मैं आऊंगी, तो हम सब अयोध्या के राम मंदिर चलेंगे… राखी सोमवार को है तो, हम वीकेंड पर ही चल चलेंगे और वही रखी मनाकर घर वापस आ जाएंगे… त्यौहार का त्योहार और साथ में राम मंदिर के दर्शन भी… कहो कैसा लगा मेरा प्लान..? रचिता ने अपने भैया आदर्श को फोन पर कहा
आदर्श: अरे नहीं रचिता… तुझे मैं फोन करने ही वाला था… इस बार रक्षाबंधन पर पहली बात तो मुझे छुट्टी नहीं है और दूसरी तेरी भाभी का भाई कई सालों बाद अमेरिका से आया है, तो वह उसे राखी बांधने जाएगी… ऐसे में तू क्या करेगी यहां आकर..? तू अपनी रखी भिजवा देना कोरियर से… मैं बांध लूंगा… चल अब रखता हूं ऑफिस के लिए देर हो रही है…
रचिता फोन रख देती है और रोने लगती है… आज उसकी मां को गए लगभग साल होने को है और मां के बिना पहले राखी.. इस पहले ही साल में उसका भैया इतना बदल गया..? जब मां थी तब तो राखी पर मुझे लिवाने खुद आता था.. पापा को तो बहुत पहले ही खो दिया था… तब से भैया को ही अपने पापा के रूप में पाया… और आज जब मां भी नहीं है तो भैया के पास अपनी बहन से राखी बंधवाने तक की फुर्सत नहीं… सच कहते हैं लोग माता-पिता के न रहने से मायका भी नहीं रहता… पर भैया भी औरों की तरह बन जाएगा यह नहीं सोचा था…
रचिता को मानो अपने भैया की कही गई बातों या अपने कानों पर यकीन ही नहीं हो रहा था… काफी देर तक वह रोती रही… फिर बड़ी हिम्मत करके अपनी आंसू पोंछे और घर के कामों में लग गई.. पर उसका कोई काम में मन ही नहीं लग रहा था और उसे बात-बात पर आंसू भी आ रहे थे… शाम को जब उसका पति अनुपम घर आया रचिता की सूजी आंखें देख कर उसे पूछने लगा… पति की सहानुभूति पाकर रचिता खुद को रोक न सकी और उसके सीने से लगकर फूट फूटकर रोने लगी
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अनुपम: क्या हुआ रचिता..? घर में किसी ने कुछ कहा क्या..?
रचिता: नहीं यह कहकर रचिता ने आदर्श से हुई सारी बातें अनुपम को बता दी…
अनुपम: रचिता समय हमेशा एक सा नहीं रहता और इंसान भी.. तुम्हें यह बात समझनी होगी… तुम्हारे भैया तुमसे बहुत प्यार करते हैं… हो सकता है इस बार उसकी कोई मजबूरी रही होगी… जिसे तुम मम्मी के न रहने के साथ जोड़ रही हो..
रचिता: नहीं ऐसा ही है, जैसा मैं सोच रही हूं… भाभी हमेशा से ही अपनी राखी भिजवाती आई है… आज उनके भैया अचानक से आ गए और भैया राखी की तैयारी हफ्तों पहले से करते हैं… आज उनकी छुट्टी नहीं… यह सब मां के रहते तो कभी भी नहीं हुआ… फिर आज क्यों..? आप भी तो दीदी को लिवाने हमेशा जाते हो… चाहे आपको कितना भी काम हो… रक्षाबंधन रोज-रोज नहीं आता और शादी के बाद भाई बहन भी अपने-अपने जीवन में व्यस्त हो जाते हैं… ऐसे में यही मौके होते हैं, बचपन की यादों को जीने का एक साथ कुछ प्यारे पल बिताने का… लिवाने तो छोड़ो भैया ने तो यह कह दिया कि कोरियर से रखी भिजवा देना… आप समझ भी नहीं सकते अभी जो मेरे मन का हाल है…
अनुपम रचिता को काफी समझाता है, पर रचिता रोए ही जा रही थी… फिर थोड़ी देर बाद वह अपनी आंसू पोंछते हुए कहती है… चलिए मेरी वजह से आपकी राखी खराब नहीं होनी चाहिए… हमने जैसा तय किया था कि राम मंदिर चलेंगे… वैसे ही हमारा परिवार और रेनू दीदी का परिवार राम मंदिर चलेंगे… बस मेरे भैया भाभी के बिना
उसके बाद निर्धारित दिन पर रचिता, अनुपम, उनके बच्चे, अनुपम की दीदी रेनू, उसका पति अतुल और उनके बच्चे… सभी राम मंदिर के लिए निकल जाते हैं.. जहां पूरे रास्ते रचिता खुश होने का दिखावा कर रही थी… पर उसका मन ही जानता था वह कितनी खुश थी..?
खैर उन्होंने पहले बनारस घुमा, फिर अयोध्या जाकर राम मंदिर के दर्शन किए.. फिर होटल के कमरे में जाकर अनुपम की दीदी रेनू उसे राखी बांधने की तैयारी करने लगी.. रचिता भी उसकी मदद कर रही थी और अपने आंसू को अपनी उंगलियों से चुपचाप पोंछती जा रही थी… फिर अनुपम ने अपने हाथ आगे बढ़ाकर रेनू से राखी बंधवाई.. तभी दरवाजे से आदर्श अंदर आकर कहता है मुझे भी राखी बांध रचु, बड़ी जोरों की भूख लगी है..
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आदर्श को यूं अचानक अपने सामने देख रचिता हंसे या रोए उसे समझ ही नहीं आ रहा था… तभी आदर्श ने कहा. भूत नहीं हूं तेरा भाई हूं… चल अब राखी बांध
रचिता: पर भैया यह सब..? और तुम यहां..?
आदर्श: हां हां सब बताता हूं… पहले राखी बांध… कुछ खा लूं… फिर चैन से बताऊंगा.. तेरी भाभी पूरे रास्ते खुद तो खाते पीते आई, पर मुझे पानी तक पीने नहीं दिया… वैसे मैं खुद भी थोड़ी ना खाता या पीता, आज तक राखी बंधवाने से पहले खाया है क्या.? जो आज खा लेता…
रचिता ने खुशी के आंसू लिए आदर्श को राखी बांधी और फिर उसे मिठाई खिलाकर… उससे पूछा… जब यहां आ ही रहे थे तो मुझे ऐसा क्यों कहा..? पता है उस दिन से रो-रो कर मेरा बुरा हाल हो गया है.. क्यों रुलाया मुझे इतना..?
आदर्श: यह तेरी गलती की ही सजा थी..?
रचिता हैरान होकर: मेरी गलती..?
आदर्श: हां तुझे याद है… गर्मियों की छुट्टियों में, जब मैंने तुझे बच्चों समेत आने के लिए कहा… तब तूने कहा.. इस बार तू नहीं आ सकती.. क्योंकि लगातार तेरे घर में मेहमान आने वाले हैं और मैंने उसे सच भी मान लिया था… पर फिर तुझे लगा तूने फोन काट दिया, पर फोन कटा नहीं था और उस वक्त तेरे और अनुपम में हो रही सारी बातें मैंने सुन ली थी… जहां अनुपम ने तुझे कहा कि तुमने झूठ क्यों कहा आदर्श भैया से के मेहमान आने वाले हैं..? तब तूने कहा… मां के रहते जाती थी एक महीना रहकर आती थी… पर मां अब नहीं है…
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भैया तो अपना फर्ज पूरा करेंगे ही… पर भैया भाभी को कहीं मेरा इतने दिनों तक रहना सही ना लगे तो..? मां के रहते मायका कुछ और होता है और मां के ना रहते कुछ और… मां के पास चाहे जितना दिन रहो…लपर क्या पता भैया भाभी को यह अच्छा लगे या ना लगे… वह कहेंगे तो नहीं, पर मुझे ही समझना होगा… बस इसलिए मैंने तय किया है कि अब से कुछ खास मौको पर ही मायके जाऊंगी… जैसे रक्षाबंधन, भाई दूज भैया, जन्मदिन या फिर कोई तीज त्यौहार… बस तभी मैंने तय कर लिया था कि तुझे इस बात को बड़े अच्छे से समझाऊंगा…
अरे पगली तूने ऐसा सोचा भी कैसे, की मां के ना रहते मैं तुझे पहले जैसा प्यार नहीं करूंगा..? एक पल के लिए मैं अपने बच्चों को भूल भी जाऊं.. पर तुझे नहीं… तुझमें तो मेरी जान बसती है… मुझे बड़ा दुख हुआ जब तूने मेरे बारे में ऐसा सोचा…. मैं भी बहुत रोया था… उसका बदला तो लेना ही था…
आदर्श की पत्नी सुनीता: रचिता… तुमसे तो मैं भी नाराज हूं आखिर तुमने मेरे व्यवहार में ऐसा क्या देख लिया जो मेरे बारे में ऐसे विचार ले आई..? हमारे बच्चे तो पूरे दिन बस बुआ या मामू करते रहते हैं…. ऐसे रिश्ते में तुमने खुद दूरियां लानी चाही..? बस इसलिए कि अब मम्मी जी नहीं रही…
रचिता चुप्पी साधे बस रोई चली जा रही थी… फिर उसने कहा… माफ कर दो भाभी… मेरे ऐसे सोच के लिए मैं बहुत शर्मिंदा हूं.. आज मुझे उस भैया पर गर्व हो रहा है जिसको बचपन में मारते हुए कहती थी… तुम पैदा ही ना होते तो मम्मी पापा का सारा प्यार मुझे मिलता…. पर अब सोचती हूं यह पैदा नहीं होता तो मेरा क्या होता..?
आदर्श: बस बस अब ज्यादा मक्खन लगाने की जरूरत नहीं… वरना यह नकचरी बंदरिया सर पर नाचने लगेगी…
रचिता चिढ़कर आदर्श के गले लग जाती है.. तभी आदर्श अनुपम से कहता है और हां अनुपम मेरा साथ देने के लिए धन्यवाद..
रचिता अनुपम को देखकर कहती है…. मतलब आपको सब पता था..?
अनुपम: हां राखी में हम राम मंदिर जाने का जब सोच रहे थे तभी मैंने भैया को कॉल किया था, तो इन्होंने यह प्लान बताया और फिर मेरा साथ मांगा
रचिता: अच्छा आपको जब पहले से सब पता था… फिर भी मुझे रोता देख आपने अपना मुंह नहीं खोला.. आपका दिल नहीं पसीजा…
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अनुपम: अरे भई…. मैं भाई बहन के बीच में क्यों आता भला..? और याद है मैंने तुम्हें उस दिन भी कहा था कि तुम्हारे भैया की कोई मजबूरी रही होगी… वरना वह ऐसी बातें नहीं करते… हां मैंने सीधे-सीधे नहीं बताया था… पर मेरी बात का इशारा यही था… मैंने तो बस अपना काम किया, ताकि भाई बहन के बीच का धागा और मजबूत हो जाए… मुझे पता था यह आंसू जो आज बह रहे हैं…वह बेकार नहीं जाएंगे… इसकी दोगुनी खुशी मिलेगी तुम्हें…
अब वहां का माहौल बड़ा खुशनुमा बन गया था… फिर सभी परिवार एक दिन और घूमते फिरते हैं और वापस अपने घर चले जाते हैं…
दोस्तों… अक्सर ऐसा होता देखा गया है की, माता-पिता के गुजरने के बाद बेटियां अपने ही मायके जाने से कतराती है और कहीं ना कहीं वह सही भी होती है.. क्योंकि माता-पिता के होते हुए जो अधिकार वह महसूस करती है.. वही अधिकार उसकी भाभी उससे छीन लेती है और सीधे-सीधे तो नहीं पर वह इशारों में उस लड़की को जता ही देती है, कि वह अब इस घर की मालकिन है… जिसको उसका यहां बार-बार या लंबे समय के लिए आना पसंद नहीं आ रहा… पर वह यह नहीं समझती कि अब उसका मायका उसके भैया भाभी से ही है…
उसकी बचपन की यादें, अपने गुजरे माता-पिता की यादें, यही सबको को जीने की चाह रखती है वह बस… उसे उसे घर से कोई और खजाना नहीं चाहिए होता है… मैं नहीं कहती सभी भाभियां बुरी होती है और सभी ननदे अच्छी… पर ज्यादातर घरों की यही कहानी है…. अब सोच बदलने की देर है… स्वार्थ भरे इस दुनिया में अब रिश्तों की पकड़ कमजोर होती जा रही है… अगर इसमें सुधार न लाया गया तो इंसान एक मशीन बनकर रह जाएगा… जहां बस लेनदेन का कारोबार होगा और प्यार की जगह दूर-दूर तक कहीं नहीं होगी…
धन्यवाद
#बहन
रोनिता