बताओ विमला, कैसे आना हुआ और सब ठीक-ठाक है ना? फोन पर तो ठीक से बात ही नहीं हो पाती, अब इतने दिनों बाद आई हो तो एक-दो महीने रुक कर जाना, कमला जी ने अपनी बहन विमला जी से कहा
विमला जी: अरे दीदी! अब मैं यहां एक-दो महीने रुक जाऊंगी तो मेरा घर कैसे चलेगा? अब मेरी बहू तो है नहीं तुम्हारी तरह, जो उसके भरोसे घर छोड़ आऊं, अपने दोनों बेटे की शादी करवा कर आराम से बैठी हो, यह नहीं कि मेरे बेटे के लिए भी एक अच्छी सी लड़की ढूंढ दो, ताकि मैं भी थोड़ी चैन की सांस लूं, कब से लड़की तलाश रही हूं?
कमला जी: अब क्या बताऊं विमला? लड़की बड़ी समझदारी से ढूंढनी पड़ती है, अब मुझे ही देख लो, एक अच्छी मिल गई पर वहीं दूसरी में गलती कर दी, तो ऐसे में अमोल के लिए क्या ही लड़की परखू?
विमला जी: क्यों दीदी तुम्हारा तो अच्छा ही है! एक बहू नौकरी पेशा है और दूसरी घर संभाल लेती है, तुम्हारे तो दोनों हाथों में लड्डू है, फिर ऐसा क्यों बोल रही हो?
कमला जी: हां दूर के ढोल सुहावने ही लगते हैं, छोटी बहू मेरी कितनी होशियार, बड़ी कंपनी में नौकरी करती है, बड़े-बड़े लोगों के साथ उठना बैठना, उसकी वजह से हमें कितना गर्व होता है और वही बड़ी पूरे दिन फटे हाल, घर पर मुफ्त की रोटियां तोड़ने के अलावा और कुछ नहीं आता। बताओ तो गलती कर दी ना मैंने, बड़ी को परखने में?
विमला जी: पर दीदी छोटी बहू तो पूरे दिन बाहर रहती है, घर, तुम्हें और जीजाजी का ध्यान तो बड़ी बहू ही रखती है ना?
कमला जी: अब पैसे कमाने के गुण तो है नहीं! तो घर काम तो करना ही पड़ेगा ना, वरना कोई महारानी तो है नहीं जो दिन भर खाट पर बैठकर बस हुकुम चलाएं।
कमला जी की यह बात उनकी बड़ी बहू आरोही सुन लेती है और उसे बहुत बुरा लगता है, उसकी क्या गलती है? 2 साल पहले जब वह शादी करके इस घर में आई थी और सबको अपने आगे पढ़ने और नौकरी करने की ख्वाहिश बताई थी। तब सब ने यह कहकर उसे रोक दिया कि अगर तुम पढ़ाई या नौकरी करोगी
तो घर और गृहस्ती कौन संभालेगा? मम्मी जी भी अपनी उम्र की दुहाई देने लगी। अंत में उसे अपने सपनों की कुर्बानी देनी ही पड़ी और आज जिनकी वजह से उसने अपने सपनों की बलि दी, वही उसका अपमान कर रही है, उसने यह बात अपने पति आकाश को भी बताया, तो आकाश ने भी यह कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया
कि तुम औरतों के झंझट और पंचायती में मुझे मत घसीटो। और वह सो गया, पर आरोही की आंखों से नींद कोसों दूर थी। वह पूरी रात बस करवटें बदलती रही, फिर अगली सुबह वह एक नए प्रण और आशा के साथ उठी। उसने अपनी पुरानी किताबें जिसे वह अपने साथ सूटकेस में भरकर ससुराल लेकर आई थी।
इसी उम्मीद से कि उसे यहां पढ़ने का मौका मिलेगा, पर अपने सपनों को मारते वक्त उसने इसे अपने अलमारी के कोने में रख दिया था, यह सोचकर के शायद इसकी जरूरत अब कभी नहीं पड़ेगी। आज 2 साल बाद उन किताबों को निकाल कर वह धूल झाड़ने लगी। बैंक में नौकरी करना चाहती थी जिसकी तैयारी वह शिद्दत से कर रही थी।
पर घर की बड़ी बेटी होने की वजह से माता-पिता ने अच्छा रिश्ता है कहकर शादी करवा दिया। जैसा कि हर मध्यम वर्गीय परिवार में होता है कि अभी शादी कर ले फिर शादी के बाद पढ़ाई कर लेना। पर शादी के बाद कितने ससुराल वाले पढ़ने की इजाजत देते हैं? वही हुआ आरोही के साथ,
उसे भी मना कर दिया गया और वह भी एक आम लड़की ही थी समझौता करना उसके लिए कौन सी बड़ी बात थी? पर आज उसे अपने इस समझौते पर पछतावा हो रहा था। पर अब उसने तय किया के वह अपने सपनों के पीछे दोबारा लगेगी। हां अब उसे मेहनत दोगुनी करनी पड़ेगी, पर वह हर संभव प्रयास करेगी।
उसने अपनी पढ़ाई शुरू कर दी, वह दिन में घर के काम करती और रात में पढ़ाई। ऑनलाइन क्लासेस जॉइन किया और धीरे-धीरे उसका आत्मविश्वास बढ़ता गया। उसका यह प्रयास उसने सबसे छुपा कर रखा। वह लगातार बैंक में भर्ती वाले फॉर्म भर्ती रही और परीक्षाएं देती रही। काफी सारे प्रयासों में वह पहले चरण को ही पास नहीं कर पाई।
पर फिर भी उसने कड़ी मेहनत और लगन करना नहीं छोड़ा। इस तरह उसने न सिर्फ पहला चरण दूसरा चरण भी पास कर लिया और एक सरकारी बैंक में अच्छे पोस्ट पर नौकरी हासिल कर ली। पर उसने यह भी अभी तक किसी को नहीं बताया। जिस दिन उसकी जॉइनिंग थी उस दिन सुबह सभी बाहर हाल में बैठे
आरोही के चाय का इंतजार कर रहे थे। लेकिन आरोही एक अच्छी सी साड़ी पहनकर तैयार होकर सबके सामने आकर खड़ी हो जाती है। सभी उसे हैरान होकर देख रहे थे, तभी कमला जी कहती है, हम सभी बैठे यहां चाय नाश्ते का इंतजार कर रहे हैं और तुम्हें अभी सजने सवरने की सूझ रही है? अरे तुम्हारा तो कोई काम नहीं है, घर पर ही रहना है पर और सभी को तो काम पर जाना होता है।
आरोही: मम्मी जी! अब से मैं भी काम पर जाऊंगी। सरकारी बैंक में नौकरी लगी है मेरी, तो अब आप लोग घर के कामों के लिए मेरा मुंह मत ताकना। दो नौकरानियां रख देंगे, एक खाना बनाएगी
और दूसरी झाड़ू पोछा बर्तन कर लेगी। कपड़े मशीन में सब अपने-अपने धो लेंगे। एक नौकरानी की पगार मैं दे दूंगी, दूसरी की पूजा। मम्मी जी अब तो आपको दोगुना गर्व होगा, क्योंकि पहले सिर्फ पूजा नौकरी करती थी, पर अब तो मैं भी करने लगी।
कमला जी: पर तुझे अचानक नौकरी कहां से मिल गई और बहू के होते हुए हमें नौकरानी के हाथ का खाना खाना पड़ेगा? यह लोग ज्यादा तेल मसाले से खाने का स्वाद तो खराब करेंगे ही साथ में हमारा स्वास्थ्य भी।
आरोही: पर मम्मी जी, बहु तो पूजा भी है, वह तो कभी घर काम नहीं करती, उसकी वजह से तो आपको हमेशा गर्व हुआ है और मैं जो घर काम करती थी तो आप मुझसे हमेशा शर्मिंदा होती थी और आपने मासी को भी उस दिन यही कहा था कि कमाने लगे तो हर काम के लिए नौकर तो मिल ही जाते हैं। तो मैंने भी उसी दिन ठान लिया,
जब मेरा काम नौकर भी कर सकता है, तो बेकार में ही मैंने अपने सपनों की कुर्बानी दी। मेरी शायद यहां उतनी जरुरत नहीं और आपका वह अपमान मानो मेरे लिए वरदान ही बन गया। अपने अधूरे सपने को पूरे करने की शक्ति मिल गई और आज इसलिए आपका शुक्रिया भी करना चाहती हूं।
वहां खड़े सभी की बोलती अब बंद थी। बस आकाश मुस्कुराए जा रहा था और वह मन ही मन सोच रहा था कि, सच में औरत चाहे तो क्या नहीं कर सकती? वह जब चाहे तो मोम भी बन सकती है और जो उसे ललकारा जाए तो वह रौद्र रूप भी ले सकती है।
दोस्तों, लड़कियों को भी पढ़ने का अधिकार है, पर हर वक्त यह एहसान की तरह उन्हें दिया जाता है। हर बार उसे पढ़ने के लिए किसी न किसी की स्वीकृति क्यों लेनी पड़ती है?
माता-पिता कहते हैं ज्यादा पढ़ लिख लोगी तो लड़के मिलना मुश्किल हो जाएगा। वही ससुराल वाले कहते हैं जितना पढ़ना था पढ़ लिया, अब घर गृहस्ती संभालो, पर कोई यह क्यों नहीं समझता? घर गृहस्ती भी वह संभाल लेगी, वह औरत है वक्त आने पर वह सब कुछ कर सकती है। फिलहाल उसे अपने ख्वाहिशों को संभालने दो। क्योंकि एक खुशमिज़ाज लड़की ही एक खुशहाल परिवार की नींव रखेगी।
धन्यवाद
रोनिता कुंडु
#अपमान बना वरदान