सात फेरे – प्रतिमा श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

बड़ी मन्नतों के बाद लाली का विवाह तय हो पाया था। गुणों की खान थी,बात व्यवहार और मददगार के रूप में पूरे गांव में सबकी जुबान पर सिर्फ लाली का नाम रहता था,पर क्या ही मायने रहता है इस समाज में जहां रूप ही सबसे ज्यादा मायने रखता है। सांवली सलोनी सी थी लाली यही वजह थी कि शादी में बिलंब हो रहा था। मां परेशान होती तो लाली कहती कि,”आखिर ऐसा भी क्या… सांवले तो हमारे कान्हा जी भी तो हैं पूरी दुनिया उनकी दिवानी है और तब मां हंस देती।

बुआ के ननद का देवर था महेंद्र और जिसने लाली से विवाह करने की हां भरी थी वो भी बुआ ने बहुत समझाया – बुझाया था और लेन देन का लालच भी। बहुत खुश नहीं दिख रहा था महेंद्र इस शादी से।

पंडित जी ने कहा …..अब दुल्हा-दुल्हन खड़े हो जाएं फेरे के लिए। लाली बहुत खुश थी और एक – एक रस्में और वचन दिल से निभाने की कसम भी खा रही थी। फेरे सम्पन्न हुए 

और सिंदूर की रस्म भी सम्पन्न होने के बाद दोनों ने साथ-साथ सभी बड़ों का आशीर्वाद लिया और अब बाबुल का घर छोड़कर बेटी को विदा होने का वक्त भी आ चुका था।

बेटी की विदाई के जितने सपने मां – बाप सजाते हैं विदा करने में उतना ही कष्ट भी होता है। जहां एक ओर बिटिया नए जीवन की शुरुआत करती है वहीं दूसरी ओर मां – बाप का उस पर हक कम हो जाता है।विदाई के समय मां ने धीरे से लाली से कहा कि ” बिटिया अब से वो भी तुम्हारा घर है और तुम्हारी जिम्मेदारी बनती है कि तुम हर रिश्ते को इमानदारी से निभाना ‌। कुछ बातें अच्छी होंगी तो कुछ मनमुताबिक नहीं भी होंगी पर घर को लेकर चलना है तो थोडा ऊपर – नीचे चलता है। मायके के संस्कार की हमेशा लाज रखना क्योंकि तुम्हारे बात व्यवहार से ही हमारे संस्कार को जांचा परखा जाएगा ” गले लगा कर बहुत रोईं थी मां।

बाबू जी तो ना जाने कहां चले गए थे। लाली की निगाहें उन्हें तलाश रही थी…एक पिता अपनी भावनाओं को कभी व्यक्त नहीं कर पाता पर स्नेह मां से कम थोड़े ही करता है। बिटिया कमजोर ना पड़ जाए इसलिए सामने नहीं आ रहे थे बाबूजी। लड़के वालों की विदाई में लगे हुए थे। छोटे भाई को भेज कर बाबू जी को बुलवाया लाली ने और सीने से लग कर फूट – फूट कर रो पड़ी थी। “बाबू जी भूल नहीं जाना अपनी लाली को मिलने आते रहना।” हां बिटिया आऊंगा ना…? सिर पर हांथ फेरते हुए कार में बिठा दिया था और घर आंगन सूना करके बिटिया अपने ससुराल चली गई थी।

जितनी मुंह उतनी बातें… औरतों का काम ही क्या होता है। जिसे देखो रंग – रूप का ही बात छेड़े जा रहा था। लाली की सास समझदार महिला थीं जानकी देवी, उन्होंने सब को चुप कराते हुए कहा,” हमारे घर लक्ष्मी आईं हैं सब गीत गाओ मुंह दिखाई करके अपने – अपने घर जाओ। बहू भी बहुत थक गई है वो भी आराम करेगी। लाली ने सबके पैर छुए और मुंह दिखाई की रस्म के बाद अपने कमरे में आ गई।

महेंद्र बहुत खुश नहीं दिखाई दे रहा क्योंकि दोस्तों ने भी ताने मारे थे कि तुझे यही लड़की मिली थी शादी करने को?

सच मानिए तो जितना घर वालों को परेशानी नहीं होती है उससे भी ज्यादा आस पड़ोस और रिस्तेदारो की वजह से माहौल खराब हो जाता है।

दूसरे दिन सुबह लाली उठ कर नहा धोकर सास जानकी देवी के पैर छुए और उनके साथ रसोई में हांथ बंटाने आ गई। जानकी देवी हैरान थी कि बहू कल ही आई है और इस घर को इतनी जल्दी अपना बना लेगी मैंने तो कभी नहीं सोचा था। उन्होंने लाली को रसोई घर से बाहर लाते हुए कहा कि,” बेटा अभी तुम आराम करो कल ही तो व्याह के आई हो…. मेंहदी लगी हाथों से कामकाज अच्छा नहीं लगता।”

मां!” आप अकेली सब कुछ कर रहीं हैं और मैं कमरे में आराम करूं ये तो अच्छा नहीं लगता ना।” जानकी देवी हंसती हुई बोली अरे अभी तक मैं अकेली ही घर संभाल रही थी… ये कौन सी नई बात है… दुनिया क्या कहेगी की शादी को दो दिन भी नहीं हुए और सास ने नई-नई बहू को काम में लगा दिया।

मां… मैं दुनिया की परवाह नहीं करती..आप तो मुझे घर के तौर-तरीकों को सिखाए और अब से हमारी जिम्मेदारी होगी घर की। जानकी देवी मन ही मन खुश हो रही थी कि भाभी ने जितनी तारीफ की थी उससे भी ज्यादा संस्कारी लड़की है लाली।ना तो नाज नखरे दिखाना और सबको बांध कर रखेगी ये लड़की।आज भले ही महेंद्र ने इसके रुप को ज्यादा महत्व दिया है और नाराज है कल इसके गुणों को देखकर उसका दीवाना बना घूमेगा। जिंदगी अच्छी तरह से चलाने के लिए एक समझदार जीवनसाथी जरूरी है। जानकी देवी की बात सच होने लगी थी। घर परिवार को इतनी जल्दी अपना बना लिया था लाली ने की यहां भी हर किसी के जुबान पर सिर्फ लाली का ही नाम रहता था।

महेंद्र का भी पूरा – पूरा ख्याल रखती बिना किसी शिकायत के। लाली ने कभी महेंद्र के व्यवहार पर ऊंगली नहीं उठाई थी,बस मन ही मन संकल्प लिया था की महेंद्र को अपना बना कर रहेगी।जितना प्यार और सम्मान वो महेंद्र को देती थी उतना ही एक ना एक दिन महेंद्र भी देंगे।

सबकुछ ठीकठाक चलता रहा एक दिन महेंद्र आफिस से आ रहा था तभी पीछे से एक कार ने टक्कर मार दिया था और कई दिनों तक महेंद्र अस्पताल में भर्ती था। लाली ने दिन रात एक कर दिया था महेंद्र की सेवा में और जल्दी ही ठीक हो कर घर आ गया था। अभी मदद की जरूरत पड़ती थी उठने – बैठने में। लाली की सेवा भावना देख कर महेंद्र को अब आत्मग्लानि महसूस होने लगी थी कि उसने कभी भी पत्नी होने का सम्मान नहीं दिया था लाली को,पर लाली ने पत्नी धर्म बखूबी निभाया था। कितनी गंदी सोच थी उसकी.. लाली घर में हर किसी का कितना ख्याल रखती है। मां कितना खुश रहतीं हैं और कई बार उन्होंने मुझे समझाने की कोशिश भी की कि ” बेटा हम बहुत भाग्यशाली हैं जो लाली जैसी बहू हमें मिली है वरना देखो आस-पास क्या चल रहा है। तुमको आज इसकी कद्र नहीं है लेकिन तुम्हें जब अपनी गलतियों का अहसास होगा तो तुम खुद माफी मांगोगे।”

सचमुच में मैं सौ प्रतिशत ग़लत था लाली को लेकर।आज मैंने फैसला ले लिया था कि आज मैं लाली से अपने व्यवहार के लिए माफी मांगूंगा।

जैसे ही लाली नाश्ता लेकर आई तो महेंद्र ने उसका हांथ पकड़ लिया और कहा कि,” किस मिट्टी की बनी हो तुम? इस दुनिया की नहीं लगती हो… मैंने तुम्हारे साथ कैसा सलूक किया और कभी भी पत्नी का दर्जा नहीं दिया फिर भी तुमने अपने सारे धर्म निभाएं। मैं तुमसे हांथ जोड़ कर माफी मांगना चाहता हूं। उम्मीद है की तुम मुझे माफ कर दोगी।” लाली की आंखों से अश्क बहने लगा था… उसने तुरंत ही महेंद्र का हांथ पकड़ा बोली कि ” आप मुझसे माफ़ी नहीं मांगिए… मैं तो अपना धर्म निभा रही थी। फेरों के समय जो कसमें खाई थी उसका मान रखना था मुझे और मैं जानती थी कि आप दिल के बुरे नहीं हैं बस नाराज थे मुझसे। सभी की ख्वाहिश होती है की उसको खूबसूरत बीवी मिले,पर बताइए इसमें मेरा क्या कसूर था।ये तो ईश्वर की रचना है और मुझे अपने आप से कोई शिकायत नहीं थी क्योंकि मैं हमेशा अपने कर्म को अहमियत देती हूं।रुप तो ईश्वर का दिया है लेकिन कर्म धर्म तो निभाना तो हमारे हांथ में है। मैं तो अपने माता-पिता के संस्कार को ही निभा रही थी।आप अपने दिमाग पर ज्यादा बोझ ना लें ।आपको जल्दी से ठीक हो कर फिर से काम करना है।”

महेंद्र सोच रहा था कि उसकी सोच कितनी गंदी है लाली को लेकर। सचमुच में मैं लाली के लायक नहीं था। धीरे – धीरे मन के ऊपर जमी सोच की परत साफ हो चुकी थी। लाली ने तो सात फेरे और सात कसमें बहुत अच्छी तरह निभाईं थी अब महेंद्र की बारी थी।

जानकी देवी मन ही मन सोच रहीं थीं कि जो होता है अच्छे के लिए ही होता।एक दुर्घटना ने महेंद्र को बहुत बड़ी सीख दी थी और अब बेटे – बहू के प्रति वो निश्चिंत हो गई थी। बहुत ही धैर्य और प्रेम से लाली ने सबको अपना बना लिया था।आज भी रुप के आगे गुण की जीत हुई थी।

                         प्रतिमा श्रीवास्तव

                         नोएडा यूपी 

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