सास को बहू की तकलीफ नहीं दिखती – कुमुद मोहन : Moral Stories in Hindi

विनी के दोनों बच्चे एकसाथ बीमार हो गए,उसकी सास ने विनी की ननद मीशा को फौरन खबर भेजी,वो भी अपनी दो बेटियों को लेकर अगली ट्रेन से आ पहुंची।

मायके में हुई छोटी से छोटी घटना पर मीशा भी अपनी गृहस्थी छोड़ पलायन करने में कभी नहीं चूकती!

विनी खुश हुई कि चलो जीजी आ जाएंगी तो उसे बच्चों की तीमारदारी में सुविधा हो जाएगी!

पर यहां तो उल्टा ही हो गया!बेटी के आते ही अम्मा जी उसे अपने कमरे में बंद कर लेती!

दिन भर माँ बेटी “ए.सी.”में बैठी बतियाती,और अम्मा जी अपनी दो दिन को आई बेटी और उसकी बेटियों के लिए नये नये पकवानों की फ़रमाइश करती।एक छोटा नौकर था उसे भी नातिनों के साथ खेलने में लगा दिया क्योंकि वो बोर हो रही थीं।

विभा अपने बीमार बच्चों की तीमारदारी करें या ननद जी की ख़ातिरदारी?

विनी के पति विवेक की पोस्टिंग आगरा में थी बड़ा अफ़सर, बड़ी कोठी।विनी की सास भी अपने दूसरे बेटे को छोड़ आगरा आ गई,

क्योंकि उनके मायके का गांव पास में था। रोज कोई न कोई किसी भी काम से आता आराम करने के लिए अम्मा जी के दर्शन करने चला आता,मायके का तो कुत्ता भी प्यारा लगे,अम्मा जी की गाँव में जाकर वाह वाही करेगा यह,सोच उसकी खूब आवभगत करवातीं।

कुछ दिन बाद अम्मा जी की भाभी(विनी के पति की मामी) बीमार पड़ी तो अम्मा जी नें कार भिजवा कर उन्हें बुलवा लिया,शाम को कार आकर रुकी तो देखा, मामाजी, उनके बेटा बहू उसका एक साल का बच्चा,दो लड़कियाँ और मामी जी उतरे।

पहले से न कोई ख़बर न सार,विनी के तो होश उड़ गए!उसने सोचा था सिर्फ मामा जी मामी जी ही आऐंगे,

यहाँ तो पूरा परिवार ही आ गया!

रात के खाने का कैसे होगा?खाना बनाने वाली कल ही तो पांच दिन की छुट्टी ले कर गई।

उधर अम्मा जी का”फैमिली गेट टुगेदर”चालू था सब हंस हंस कर ऐसे मिल रहे थे,ठहाके लगा रहे थे जैसे किसी “फंक्शन “में आए हों।

अम्मा जी ने विनी को सबके लिए चाय नाश्ते का ऑडर दिया।

विनी ने जल्दी नाश्ता लगा कर पकौड़े तले,मामाजी की बेटी आई “भाभी!चाय के साथ छोटू का दूध भी बनाती लाना,तब तक हम पकौड़े का मज़ा लें ले।और पकौड़े इस रफ़्तार से चट हुए जैसे  कोई रात का खाना खाऐगा ही नहीं।

सर्दियों का मौसम था सबके लिऐ रज़ाई, कम्बल बिस्तरों का इतज़ाम करना था, फिर रात के खाने की तैयारी।

अम्मा जी ने विनी को बुलाया”मामी के लिए खिचड़ी, मामाजी के लिए देसी घी की लौकी,छोटू का मीठा  दलिया,बाकी लोगों के लिए मसाले दार सब्जियां, परांठे, रायते के साथ कुछ मीठा भी बना लेना।

“अरे लडकियों!भाभी के हाथों का खाना खाओगी तो उँगलियाँ चाटती रह जाओगी”अम्मा जी ने थोड़ा सा”बटर”विनी को भी लगा दिया।

“और बहू तू भी सुन ले ये रोज रोज तो आएंगी ना, रोज नयी नयी चीजें बना कर खिला दीजो।वहाँ गांव में तो बढ़िया खाना मिलता ना है,फिर बिचारियां अपने घरों को चली जावेंगी,पता ना कैसी सास मिलै”।

दोनों लड़कियाँ और बहू एक कमरे में टीवी के सामने बैठी “हाॅलेडे” एन्जॉय कर रही थी,गाँव में तो काम से फुर्सत नहीं मिलती थी, और यहाँ कोई काम ही नहीं। मजे से पका पकाया खाना और रज़ाई और हीटर का आराम।

तीनों में से कोई जाकर किचिन में झांकता भी नहीं था, कहीं कुछ करना ना पड़ जाए।

मामीजी दो दिन अस्पताल में रही तो सबके सब ने अस्पताल जाने के बहाने पूरा आगरा घूम लिया, सुबह डट कर नाश्ता करके निकलते, चार बजे आकर खाने की फरमाइश,फिर चाय नाश्ता, फिर डिनर।

चौथे दिन मामाजी ने वापस जाने को कहा, तो अम्मा जी नें यह कहकर रोक लिया कि रोजरोज थोड़े ही आओगे, अब आए हो तो रहकर ही जाओ।

ऊपर से मामीजी के भतीजे, रिश्तेदार रोजाना शाम को आकर बैठ जाते, जिनकी खातिरदारी विनी को और करनी पड़ती।

कभी थकान की वजह से विनी सुस्त हो जाती तो अम्मा जी अपने व्यंग बाणों से उसका दिल छलनी करे बिना बाज ना आतीं फौरन सुना देती”अरे!मुंह क्यूं सुजा रखा है मेहमान रोज रोज थोड़े ही आवे हैं!ससुराल का कोई आ जाए तो बहू जी का मुँह बन जाए!अभी मैके से कोई आऐगा तो देखना कैसे फुदक फुदक कर पकवान बनाती घूमैंगी!”

किसी को फिक्र नहीं थी कि विनी दिन भर चकरघिन्नी सी सबकी फरमाइशें पूरी करती कितना थक जाती होगी!बहू है ना थक कैसे सकती है!

अम्मा जी के हिसाब से तो वैसे ही बहुएं घर संभालने और सबकी खिदमत करने को ही होती हैं!

उनकी भूख प्यास उसके आराम उसके सोने जागने से अम्मा जी का क्या लेना देना!उसे भी कोई तकलीफ हो सकती है या कोई बात बुरी लग सकती है यह बात तो उनकी सोच से कोसों दूर थी!

रात को बेडरूम में दिनभर की थकीहारी विनी कुछ देर आराम करना चाहती तो विवेक झुंझलाकर कहता “क्या यार दिन भर ऑफिस में खट कर घर लौटता हूं तो तुम्हारा ये बुझा हुआ चेहरा देखकर कोफ्त होती है”!

विनी के बताने पर कि दिनभर वह अकेली कैसे सबकी खिदमत में खटती है!

विवेक ने एक सुबह अम्मा जी को कह दिया कि अगर विनी के साथ कोई थोड़ा-बहुत हाथ बंटा दे तो बेहतर होगा !काम वाली भी नहीं है”

पूरी बात सुनने से पहले ही अम्मा जी का पारा सातवे आसमान पर पहुंच गया वे चिल्लाई “दो दिन काम क्या करना पड़ गया इसने तुझ से शिकायत लगाई और तू जोरू का गुलाम मुझे कठघरे में खड़ा करने को चला आया”!

विनी सोचने लगी!

बहू होने की इतनी बड़ी सजा!कितनी भी खिदमत कर लो लोग खुश हो ही नहीं सकते!अपनी बेटी,अपने बच्चों की तकलीफ तो तकलीफ! दूसरे की बेटी की तकलीफ से कोई सरोकार ही नहीं!

अपनी बेटी के लिए सारे ऐशो-आराम और बहू के लिए बस काम ही काम!

अम्मा जी जैसी सासों के लिए कोई भी बहू बेटी जैसी बनकर रहना भी चाहे तो कभी रह नहीं सकती!वह कितना भी सास को अपनी मां जैसी मानना चाहे मान नहीं सकती!

क्या मेरे सुधी पाठक सहमत हैं?

कुमुद मोहन

स्वरचित-मौलिक 

#सास को बहू की तकलीफ नहीं दिखती

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