सास घर की नौकरानी नहीं हैं

शालिनी  मां बनने वाली थी। आठवां महीना चल रहा था।  इस वजह से अपने मायके चली आई थी, धीरे धीरे डिलीवरी का डेट  नजदीक आ गया और वह पास के ही एक प्राइवेट हॉस्पिटल में भर्ती हो गई। शालिनी को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई।

घर में सब बहुत खुश हुए घर आते ही एक छोटी सी पार्टी रखी गई और सब को निमंत्रण दिया गया। पार्टी के अगले ही दिन शालिनी के पति बलराम, शालिनी को अपने घर ले जाने के लिए कहने लगा, लेकिन शालिनी की मां बोली बेटा अभी 2-4 महीने तो रुकने दो उसके बाद फिर ले जाना.  लेकिन बलराम नहीं माना वो बोला, मां जी आखिर कब तक शालिनी यहां पर रहेगी मैं सोच रहा हूं कि मैं अपने मम्मी पापा को गाँव से कुछ दिनों के लिए बुला लूँ। शालिनी वैसे तो तैयार नहीं थी जाने के लिए लेकिन बलराम के जिद के कारण उसे अपने पति के साथ  जाना पड़ा बलराम एक कुरियर कंपनी में मैनेजर था और वह जयपुर में पोस्टेड था उसका ससुराल दिल्ली में था तो वह दिल्ली से सीधे जयपुर चला गया और अपने मां पापा को भी बोल दिया कि शालिनी को लेकर मैं सीधे जयपुर आ रहा हूँ  आप लोग भी आ जाओ क्योंकि अभी शालिनी को देख भाल के लिए कोई तो घर में चाहिए। बलराम के जयपुर पहुंचते ही अगले दिन उसके मां-बाप जयपुर आ गए थे। 



वैसे तो शालिनी की नॉर्मल डिलीवरी हुई थी लेकिन वह अपने सास-ससुर के आते ही घर का कोई भी काम नहीं करती थी। सारा काम अपने सास मंजू जी पर छोड़ दिया था, घर का पोछा लगाने से लेकर खाना बनाने तक दिनभर सारा काम मंजू जी करती थी लेकिन मंजू जी को इस बात को लेकर बिल्कुल भी तकलीफ नहीं था

कि मैं दिन भर काम करती हूं  क्योंकि वह तो अपना घर समझकर करती थी उन्हें ज़रा भी एहसास नहीं था कि उन्हें शालिनी जानबूझकर काम में लगाए रहती है और अपने दिन भर TV देखती रहती है और हमेशा  शरीर में दर्द का बहाना बनाकर आराम करते रहती थी और तो और अब बलराम भी बाहर का भी कोई काम नहीं करता था

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बाहर से सब्जी लाना हो या बाहर का का कोई भी काम हो सारा कुछ उसने अपने बाबूजी पर छोड़ दिया था लेकिन बलराम के पिताजी  भी बिल्कुल ही इस बात पर नाराज नहीं होते थे कि मुझे यह सब करना पड़ता है क्योंकि वह तो यह समझते थे कि आखिर यह तो है हमारा ही घर तो बेटा दिनभर ऑफिस रहता  है थक जाता है चलो मैं ही कर देता हूं तो क्या हो जाता है आखिर मैं  दिनभर बैठा-बैठा करूंगा क्या इसी बहाने टहल लिया करूंगा।

धीरे धीरे बलराम का लड़का 6 महीने का हो गया। लेकिन शालिनी अब भी घर का कोई भी काम नहीं करती थी बलराम की मां चाहे बीमार भी पड़ती थी तब भी उनको घर का सारा काम करना पड़ता था और बदले में दस फरमाइश और भी कर देती थी मम्मी आज शाही पनीर खाने का मन कर रहा है आप बहुत अच्छा बनाती हैं।  

क्या आज आप बना देगी? बेचारी बलराम की मां  थोड़ा सा  भी आलस नहीं करती थी बनाने में और बनाकर परोस देती थी, क्योंकि उन्हें जरा सा भी एहसास नहीं था कि बहू मुझसे जानबूझकर काम करवाती है।  एक दिन की बात है, संडे का दिन था उस दिन बलराम भी घर पर ही था

सब एक साथ ही बैठे हुए थे मां किचन से आई और सोफे पर बैठ गई और बलराम का लड़का वहीं पर खेल रहा था तो उसको गोद में उठा लिया उसके बाद तो जो ड्रामा हुआ ऐसा होगा बलराम के मां को उम्मीद भी नहीं था बलराम गुस्सा हो गया अपनी मां को डांटने लगा,  



मां आपने बिना हाथ धोए मुन्ने को कैसे छू लिया आपको पता है इससे इंफेक्शन हो जाता है और हां आप जब भी मुन्ने को छुए तो हाथ धोकर ही छूए। उसके बाद तो धीरे-धीरे बलराम का व्यवहार ही बिल्कुल ही बदल गया था। 

मां आप जोर से मत बोला करो मुन्ना जग जाएगा, मां आप मुन्ना से इंग्लिश में बात करो नहीं तो मुन्ना गाँव की भाषा सीख कर गंवार बन जाएगा। जब भी आप मुन्ने को गोद में उठाया करो सैनिटाइजर से हाथ साफ कर लिया करो।

एक दिन शाम को जब बलराम की मां ने सब को खाना परोसा तो बलराम ने खाना ले जाकर किचन में रख दिया उसने बोला अब आपको खाना बनाने में बिल्कुल ही मन नहीं लगता है।  अगर आपको अच्छा नहीं लगता है खाना बनाना तो छोड़ दो शालिनी बना लिया करेगी।

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देखो तो कैसा खाना बनाया है आपने कोई भी नहीं खा सकता है अगर इसे जानवरों को भी दे दो वह भी नहीं खाएं।बात ऐसा था कि अब शालिनी और बलराम अपने मां-बाप को वहां पर रखना नहीं चाहते थे क्योंकि इनका काम अब खत्म हो गया था मुन्ना बड़ा हो गया था अब मां-बाप बोझ लगने लगे थे।  

उस दिन तो बलराम की मां को यह बात बहुत ही बुरी लगी। ऐसा लगा इस घर में सच में कोई वैल्यू नहीं है और फफक फफक के रोने लगी और रोते हुए बोली बेटा जब भी मैं पहले दम आलू बनाती थी तो तुम ही कहते थे कि मां क्या दम आलू बनाई हो ऐसा लगता है कि उंगली चाट के खा जाऊं और आज तुम्हें बिल्कुल ही स्वाद नहीं लग रहा है कोई बात नहीं बेटा जब मां बाप बूढ़े हो जाते हैं उनकी हर चीज अब बेटे को अच्छा नहीं लगता है। इतने पर  बलराम के पिताजी भी खाने पर से उठ गए  और बोले मंजू अब हम यहां पर एक पल भी नहीं रहेंगे बहुत दिनों से मैं बर्दाश्त कर रहा था मैं सोच रहा था कोई बात नहीं बेटा है बोल दिया तो क्या हो गया। लेकिन अब हम यहां एक पल भी नहीं रहेंगे  जिस घर में तुम्हारी कोई इज्जत नहीं हो उस घर में हम एक पल भी नहीं रह सकते हैं।  बलराम के पिता जी ने बलराम को बोला बेटा सही है आज हम तो बिल्कुल बुरे हो ही गए हैं

तुम भूल गए जब तुम छोटे थे तो मां तुम्हारी किचन में रहती थी और वहीं पर तुम खेलते रहते थे आलू भिंडी में और माँ तुम्हारे खाना बनाती थी तभी भी आज कितने स्वस्थ और मस्त हो।  लेकिन आज तुम्हारी मां तुम्हारे बच्चों को छु देती है तो तुम्हारे बच्चों को इंफेक्शन हो जाएगा, क्या बात है!

 लेकिन कोई बात नहीं अब हम यहां पर बिल्कुल नहीं रहेंगे तुम्हारी मां कोई बाई नहीं है जो तुम्हारी पत्नी कि दिनभर सेवा करती रहेगी आज यहां रहते हुए हमें 1 साल से भी ज्यादा हो गए क्या तुम्हारी पत्नी ने कभी तुम्हारी मां का  पैर भी दबाया है। कभी पूछा है अपनी पत्नी से कि तुम भी घर में हाथ बटा दिया करो हम कोई नौकर नहीं है जो यहां पर दिन भर काम करें और उसके बदले में तुम हमें खाना देते हो ऐसी जिंदगी से बेहतर है कि हम अपने घर चले जाएं वहां हमें कोई बोलने वाला तो नहीं है। अगले दिन ही  मंजू जी और बलराम के पिताजी सुबह ही अपने गांव को लौट गए थे।  उसके बाद जब शालिनी को घर का सारा काम करना पड़ता था तब एहसास हुआ कि सास-ससुर क्या होते हैं फिर उन्होंने फैसला किया एक बाई रख लिया जाए जिससे बच्चे को भी आराम हो जाएगा और शालिनी को भी आराम हो जाएगा। इस तरह घर में एक मेड रख लिया गया।  सुबह आती और जैसे तैसे घर में पोछा लगाती और बर्तन धो कर चली जाती जब शालिनी खाना बनाने गई तो देखी कि बर्तन तो ठीक से साफ ही नहीं हुआ।



अगले दिन जैसे ही वह मेड आई शालिनी उस को डांटने लगे कि तुम्हें बिल्कुल भी तरीका नहीं है बर्तन धोने का उस पर मेड भी शालिनी को डांटने लगे मैडम आजकल ₹500 में कुछ नहीं आता। अगर मैं पूरे दिन आपके ही घर काम करूं तो मेरा पेट नहीं भर जाएगा मुझे और भी घर जाना होता है तो आप थोड़ा बहुत आप भी अपने बर्तन को साफ कर लिया करो अब एहसास हुआ कि सास ससुर क्या होते हैं शलिनी को लग रहा था कि जैसे भी थे सास-ससुर अच्छे थे कम से कम मुन्ना का भी ख्याल रखते थे और कितने अच्छे से रखते थे दोस्तों इस कहानी का लिखने का उद्देश्य यही था कि हम कतई अपने सास-ससुर को एक मेड या बाई  ना समझें। वह उनका प्यार होता है हमारे लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं लेकिन इसके बदले में उन्हें क्या चाहिए सिर्फ दो मीठे बोल, प्यार से उनकी हाल-चाल पूछ लें, 

ऑफिस से आते वक्त बेटा मां से पूछ ले मां कैसी हो ठीक हो तुम्हें कोई परेशानी तो नहीं,  अपने पिताजी से हाल-चाल पूछ ले मां बाप प्यार के ही भूखे होते हैं लेकिन यह भी नहीं कर सकते हैं।

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