सास बिना कैसा ससुराल – मंजू ओमर : Moral Stories in Hindi

आज शिखा को किटी पार्टी में जाना है ।वो अपने तीन साल के बेटे को तैयार कर रही है साथ ले जाने को । तैयार करते करते बार बार झुंझला जा रही है देर हो रही है घर में कोई है भी तो नहीं कि मोनू को उसके पास छोड़ दूं । फिर भी जब तैयार होकर निकलने को हुईं तभी मोनू बोला मम्मा पोटी आई है । शिखा झुंझला गई वैसे ही देर हो रही है तू और देर कराएं जा रहा है ।अब फिर से कपड़े मोजे जूते सब उतारों ,,,,,,,,,। लेकिन मजबूरी थी साथ ले जाने की क्या करें।

                    जब शिखा किटी पार्टी में पहुंची तो पूरे एक घंटे लेट थी । वहां पहले से मौजूद शिखा की सभी सहेलियां श्रेया, सलोनी,सोनल क्षिप्रा सभी एक साथ बोल पड़ी शिखा तू हर बार लेट हो जाती है समय पर नहीं आती ।अब आगे से जो लेट होगा उसका सौ रूपया फाइन लगेगा श्रेया बोली ।

शिखा बोली अरे समझा करो तुम लोगों मोनू की वजह से बड़ी प्राब्लम होती है । तभी बीच से किसी की आवाज आई उसको छोड़ दिया कर न किसी के पास ‌।मैं तो भी अपने सासू मां के पास बच्चों को छोड़ आती हूं सोनल बोली ।काश? मेरी भी सासू मां होती शिखा बोली ।

तभी सलोनी बीच में बोल पड़ी अरे आजकल तो बहुएं चाहती नहीं है कि ससुराल में सांस हो और तू कह रही है मेरी भी सांस होती। श्रेया बोली अरे नहीं जैसे बहू के बिना घर ,घर नहीं होता वैसे ही सांस के बिना ससुराल कैसा। हां,हां शायद तुम ठीक कह रही हो सांस न हो तो हम बहुओं के नखरे कौन उठाएगा ‌‌‌‌नए नए जब हम ब्याहकर ससुराल आते हैं तो दरवाजे पर सांस आरती का थाल लिए खड़ी रहती है तो हम लोगों को अपनी अहमियत का अहसास होता है।

जब सासूमां कहती हैं अच्छे से तैयार होना,अच्छी साड़ी पहनना और सारे जेवर पहनना, मेरी बहू सबसे अच्छी लगनी चाहिए तो लगता है कि कोई है घर में जो हमारा इतना ख्याल रख रहा है ।हमें एहसास दिलाता है कि हम नई नवेली दुल्हन है । नहीं तो कौन ये आजकल भारी-भरकम साड़ी और जेवर पहनकर रखता है ।बस शार्ट पहनकर ही काम चल जाता है।

               आजकल तो शादी के समय एक बार साड़ी और जेवर पहन लिए बस उसके बाद तो वो बस आलमारी की शोभा बढ़ाते हैं फिर कौन पहनता है।सासू मां होती है तो तीज त्यौहार पर , किसी पूजा पाठ पर छोटे मोटे फंक्शन में पहनने में आ ही जाता है।

                           शिखा की दूसरी सहेली बोली हां भई ये तो है ।सासू मां है तो घर की जिम्मेदारी इतनी नहीं होती है कि सबकुछ हमें ही देखना पड़े । कोई त्यौहार है या कोई पूजा पाठ हो किसी मेहमान का आना हो हम बहुओं पर इतनी जिम्मेदारी कहा होती है सब व्यवस्था तो मां जी को ही करनी होती है।

अरे नहीं बाबा सांसू मां तो बबाल होती है बबाल ,हर समय टोका-टाकी ये क्यों किया वो क्यों किया।ऐ काम तुमने ठीक से नहीं किया अभी काम पूरा क्यों नहीं हुआ फलाना फलाना भी मैं तो उनसे तंग आ गई हूं । इससे अच्छा तो अकेले रहने में ही  अच्छा है आजादी की जिंदगी जीते ।

           सबकी अलग-अलग बातें सुनकर शिखा घर आ गई ।दो दिन बाद शिखा की ननद घर आई राखी का त्योहार था । शिखा की ननद सौम्या छै महीने की प्रेगनेंट थी ।और सौम्या अपना ध्यान रखती हो कि नहीं ऐसे समय पर ।अरे भाभी मेरी सांस बहुत ध्यान रखती है मेरा। ज्यादा काम नहीं करना है थोड़ा भी कुछ कर लिया तो कहती जाओ थोड़ी देर आराम कर लो । ज्यादा झुकना नहीं है और गर्म गर्म कुछ न कुछ बनाकर खिलाती रहती है।

मेरा जो मन करता है वो बना देती है ।सब सुन कर शिखा कुछ सोंचने लगी क्या हुआ भाभी कहां खो गई, हां कुछ नहीं सौम्या मैं सोंचने रही हूं जब मोनू होने वाला था तो मेरे पास कोई नहीं था । मेरा भी मन करता था कुछ उल्टा सीधा खाने का पर कौन बनाए खुद मन नहीं करता था बनाने का उल्टियां आने लगती थी और बनाने वाला कोई नहीं था।

मेरी तो सांस नहीं है कौन बना कर देता ।मन नहीं होता था तब भी हर वो काम करती थी कभी कभी खाने का मन होता था लेकिन टाल जाती थी। सोंचती हूं सांस बिना ससुराल कैसा। हां भाभी सभी सांसे खराब नहीं होती है और सभी बहुएं भी खराब नहीं होती है।वो तो कुछ किस्से हो जाते हैं जिससे सभी बदनाम हो जाते हैं हां भाभी सही कह रही हो ।

               शिखा की ननद को तीन महीने बाद बेटी हुई।ये बात सौम्या की सांस ने शिखा को बताई तो अपार खुशी झलक रही थी उनकी बातों से। डिलीवरी के पहले शिखा ने सौम्या से पूछा कि बच्चे के लिए कपड़े वगैरह तैयार कर लिए तो वो बोली सबकुछ तैयारी सासू मां कर रही है । मुझे चिंता करने की जरूरत नहीं है।

                 सवा महीने बीतने पर आज सौम्या के ससुराल में पूजा और पार्टी रखी गई थी। शिखा ननद के घर गई तो सांस जी सौम्या की बेटी को गोद में लिए बैठी थी ।और सौम्या आजादी से सबका वेलकम करने में लगी हुई थी। सौम्या के चेहरे पर आत्मसंतुष्टि का एक अलग ही भाव था।जब सबकुछ निपट‌ गया तो शिखा घर जाने को हुईं तो सौम्या से बोली अब तो तुम बहुत व्यस्त हो जाओगी बेटी के साथ ।तो सौम्या बोली नहीं भाभी मुझे ज्यादा परेशान नहीं होना पड़ता सबकुछ मम्मी जी संभाल लेती है ।

               शिखा चाय का कप लेकर बैठीं बैठी सोंच रही थी । जीवन में हर किसी की अपनी अपनी अहमियत है । परिवार में सबका होना भी जरूरी है । यदि एक मेम्बर भी कम हो तो उसकी अहमियत पता चलती है। कोई चाहता है सांस न हो और कोई चाहता है सांस हो । जिसके नहीं होती उसको लगता है सांस हो ।

शिखा सोचने लगी सांस के सुख से वंचित हैं हम ।तो भाई संसार में सबकी अपनी अलग अलग अहमियत है ।बहू की भी और सांस की भी ।बहू बिना घर नहीं तो सांस के बिना भी ससुराल सूना ।एक दूसरे में बुराई न देखें तो लड़ाई झगडे की कोई बात ही नहीं है । बड़े छोटे को प्यार और आदर सम्मान दे ये बड़ी बात है।बहू छोटी है तो प्यार दे और सांस बड़ी है तो सम्मान दे । ऐसे ही प्रेम प्यार से रिश्ते मजबूत होते हैं ।बस थोड़ी सी समझदारी दिखाने की जरूरत होती है।

पाठकों आपकी क्या राय है बताएगा ।

धन्यवाद 

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

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