सुजाता जी ने जैसे ही नई बहू का घुंघट खोला तो उसके चेहरे पर डर साफ दिख रहा था, नया घर, नये लोग हर लड़की सहम ही जाती है, उस पर अम्मा की कड़क आवाज का रूतबा, नित्या तो चुपचाप ही बैठी थी।
बहू तेरी बहू का थोडा सा घुंघट और लंबा कर, अब मुंह दिखाई की रस्म में मुंह तो ढ़का होना चाहिए, ऐसे ही सबको चेहरा दिखा देगी तो मुंह दिखाई रस्म करने का क्या मतलब होगा, सुजाता जी ने अपनी सास की आवाज सुनी और अपनी नई बहू नित्या के पास जाकर थोड़ा सा घुंघट लंबा करके कान में प्यार से कहा, बस कुछ देर की बात है, मै अभी तेरी ननद को कह देती हूं, तेरा घुंघट ऊपर कर जायेगी, घबराना मत।
नित्या का डर कुछ कम हो गया, दो चार महिलाओं ने मुंह देखा फिर ननद रश्मि ने आकर घुंघट ऊपर कर दिया, क्या अम्मा आजकल के जमाने में कौन इतना लंबा घुंघट करता है, भाभी को गर्मी लग रही होगी, अब मुंह दिखाई तो हो गई है, सब ऐसे ही चेहरा देखकर शगुन दे जाओ।
अरे!! रश्मि ये पुराने रीति रिवाज है, इन्हें करने दें, अम्मा ने अपनी पोती को कहा, पर वो नहीं मानी और सारी रस्में हो गई।
थोडी देर बाद सुजाता जी नित्या के पास आकर बोली, बहू तू रशिम को साथ ले जा और अपने कमरे में जाकर आराम कर लें, अकेले तुझे भेजूंगी तो ये अम्मा जाने ना देगी, और हां कमरा अन्दर से बंद करके एसी चला लेना, वरना सभी रिश्तेदारों की फौज कमरे में आ जायेगी और तुझे आराम नहीं मिलेगा, दो घंटे बाद मै फोन करूंगी तब तू कमरा खोल देना। सुजाता जी ने अपनी बहू के साथ रश्मि को भी कमरे में भेज दिया।
थोड़ी देर बाद अम्मा पूछती है, नई बहू कहां गई?
अम्मा वो रश्मि उसकी साड़ियां देखकर जमा देगी, दोनों ननद -भाभी अंदर है, नित्या अकेले नहीं गई है।
अम्मा अब आप भी कमर सीधी कर लो, एक डेढ़ घंटे दवाई लेकर सो जाओ, आराम मिलेगा।
नित्या ने आराम किया तो उसे काफी अच्छा लगा, सारी थकान उतर गई, फिर वो तैयार होकर बाकी रस्मों के लिए नीचे आ गई, अब रिश्तेदारों की विदाई भी हो रही थी, सभी को पैर छूकर शगुन दे रही थी, तभी रश्मि भी बोलती है, मम्मी मुझे भी विदा करा दो, आरूष की परीक्षाएं है अब और ज्यादा ना रुक पाऊंगी।
रश्मि जब जाने लगती है तो नित्या के गले लग जाती है, भाभी मम्मी बहुत सीधी है, वो सबका बहुत ध्यान रखती है, आपको भी वो एक बेटी की तरह ही रखेंगी तो मै आपसे भी ये उम्मीद करूंगी कि आप भी मम्मी को अपनी मां जैसी ही समझना, आप दोनों सास -बहू का रिश्ता खूबसूरत और सच्चा हो, उसमें कोई शिक़ायत नहीं हो, जो भी बात हो एक -दूसरे से खुलकर कहना और हमेशा प्यार से रहना।
रश्मि भी अपने ससुराल चली जाती है, अब घर में अम्मा, नित्या के सास-ससुर, देवर और पति रह जाते हैं।
नित्या भी सब अच्छे से समझ लेती है, दैनिक दिनचर्या में उसने देखा कि उसकी दादी सास उसकी सास की कोई कदर नहीं करती है, उसे कुछ भी सुना देती है, और सुजाता जी ये सब सहन कर लेती है,उनसे अम्मा कभी खुश ही नहीं रहती है, हर वक्त तानें देती रहती है।
सुजाता बहू, कहां रह गई, मेरी चाय अभी तक भी नहीं बनी? अम्मा ने देखा सामने नित्या चाय का कप लेकर खड़ी है, बहू कहां है? ये उसकी जिम्मेदारी है कि वो अपनी सास को चाय बनाकर देवे।
अम्मा, मै तो आपकी बहू की बहू हूं तो मेरा भी फर्ज बनता है कि मै आपका भी ध्यान रखू और अपनी सास का भी, मम्मी जी सो रही है, उनके सिर में दर्द हो रहा है, मै अभी बाम लगाकर आई हूं, ये सुनकर अम्मा चुप हो जाती है।
नित्या तूने आते ही मेरी जिम्मेदारी संभाल ली, अभी तुझे इतना काम करने की आदत नहीं है, मुझे तो गृहस्थी संभालते हुए सालों हो गये है, मुझे तो इसका सालों का अनुभव है, तू मुझे इतना आराम करायेगी तो शरीर को जंग लग जायेगा, सुजाता जी ने कहा।
मम्मी जी, मुझे भी सीखने में समय लगेगा, पर मैंने देखा कि आपको सिर दर्द है तो आपको आराम करना चाहिए, वैसे भी शादी के कामों की इतनी थकान आ गई होगी, आप मुझे बेटी की तरह रखती है तो मेरा भी फर्ज है कि मै भी आपकी बेटी बनूं और आराम करवाऊं, मैं जब भी मायके में मम्मी की तबीयत खराब होती थी तो उन्हें पूरा आराम करवाती थी, अब आप ही मेरी मां हो, मै अपनी मां का पूरा ध्यान रखूंगी।
अच्छा, मुझे ये बताईए आपको खाने में कौनसी सब्जी पसंद है, वो ही बना दूंगी।
खाने में मुझे…… सुजाता जी हैरान रह गई, मै तो जो सबको पसंद होती है वो ही खा लेती हूं, अपनी पसंद तो भुल ही गई, कभी अम्मा की पसंद की, कभी तेरे ससुर जी, देवर और पति के पसंद की सब्जी बन जाती है, मै अपनी पसंद की क्या बताऊं?? तू रहने दे और अम्मा की पसंद की सब्जी बना लें।
मम्मी जी मैंने अम्मा की पसंद की सब्जी तो पूछ ली और बना दूंगी पर दूसरी सब्जी मै आपके पसंद की बनाऊंगी नित्या ने जोर देकर पूछा।
तू लौकी के कोफ्ते की सब्जी बना लें, मेरी मां मेरे लिए बहुत बनाती थी, अब तो मां नहीं रही, तो उनके हाथों का स्वाद ही अब नहीं मिलता है, पर हां अब मेरा सिर दर्द ठीक है, मैंने आराम भी कर लिया, तुझे अकेले रसोई में काम ना करने दूंगी, दोनों मिलकर काम करेंगे तो जल्दी काम निपट जायेगा, सब्जियां तो तू ही बनाना,मै बाकी कामों में तेरी मदद कर दूंगी, सुजाता जी ने भी प्यार से कहा।
दोनों सास-बहू मां -बेटी की तरह बातें करते हुए मिलजुलकर काम करने लगी और उनके हंसी -ठहाके की आवाज अम्मा के कानों में गूंजती है।
अम्मा रसोई में आकर अपनी बहू को डांटती है, अरे! तुझमें तो जरा भी अक्ल नहीं आई, सास बन गई है तो थोड़ा तो सासपना दिखा, बहू की इतनी मदद कराने की क्या जरूरत है, अकेले काम कर लेंगी, मैंने भी किया था, तूने भी किया था, तो ये भी कर लेगी, ज्यादा प्यार दिखाने की जरूरत नहीं है, ये आजकल की बहूंएं सिर पर चढ़कर नाचती हैं, पहले तो तुझसे काम करा लेगी फिर सारा काम तुझपर ही छोड़ देगी, और वो बड़बड़ाकर अंदर चली गई, सुजाता जी ने समझाया, अम्मा की बात का बुरा मत मानना, उनकी तो आदत है।
रात को सब खाने पर बैठे थे, नित्या के हाथों की सब्जियां सबको पसंद आई, बस एक अम्मा ही मुंह बना रही थी, नमक थोड़ा कम है और सब्जी में तेल भी नहीं है, ये आजकल की बहूंएं तो पानी में सब्जियां उबाल लेती है, ना तेल ना मसाला, पर ये अलग बात है इतना कहकर भी अम्मा दोनों सब्जियां आराम से खा गई, हलवे में भी चीनी कम है, और ये कहकर अपने कमरे में चली गई।
लेकिन सुजाता नहीं भुली थी कि उसकी बहू की आज पहली रसोई है, नित्या हलवा अच्छा है, और सही है चीनी कम ही खानी चाहिए, तूने सब्जियां भी सही बनाई है, तेरे ससुर जी को कम तेल और कम ही मसाला बता रखा है, और इस तरह की सब्जियां तो सबकी सेहत के लिए अच्छी है।
कुछ दिनों बाद सुजाता जी की ननद उनके यहां रहने आई, अपनी भाभी और बहू का प्यार देखकर वो अंदर ही अंदर जल भुन गई, एक दिन नित्या अपने पति के साथ मूवी देखने जाने वाली थी तो बुआ सास ने टोक दिया, मेहमान घर आये है और बहू रानी सिनेमा देखने जा रही है, खाना कौन बनायेगा?
तभी सुजाता जी बोलती है, जीजी आप तो घर की सदस्य हो मेहमान नहीं हो, फिर नित्या ने सब्जियां बनाकर रख दी है, रोटी मै सेंक दूंगी।
अभी नई-नई शादी हुई है, इनके घुमने- फिरने के दिन है, और मनीष को एक संडे ही मिलता है, बाकी दिन तो वो ऑफिस के काम और घर आते हुए ट्रेफिक से थक जाता है, मै हूं ना, पहले भी तो सब संभाल लेती थी तो अब क्या हो गया? सुजाता जी ने अपने बहू बेटे को बाहर घूमने भेज दिया, ये बात अम्मा को पता चली तो उन्होंने घर सिर पर उठा लिया, मेरी बेटी आई है और नित्या उसे अकेला छोड़कर चली गई, मेरी बेटी का उसने बहुत अपमान किया है।
आज सुजाता जी से रहा नहीं गया, अम्मा बहुत हो गया, आपने जिस तरह मुझे जेल में और हर समय जिम्मेदारी से बांधकर रखा, उस तरह मेरी बहू नहीं रहेगी, नई -नई शादी होती है, आंखों में सपने होते हैं, बेटे -बहू को भी उनका समय देना होता है, तभी तो वो एक दूसरे से जुड़ेंगे।
अम्मा अब हमारे दिन चले गए हैं, आपने अपनी बहू को अपने हिसाब से रखा था, मै रही थी, कभी आपके निर्णय के खिलाफ नहीं गई थी, अब ये मेरी बहू है तो इसे मैं अपने हिसाब से रखूंगी। सुजाता जी का ये रूप देखकर अम्मा और उनकी बेटी भी चुप हो गई।
कुछ महीनों बाद नित्या गर्भवती हुई, अब उसे रसोई में काम करते वक्त उबकाई आती थी तो सुजाता जी उसका ख्याल रखती थी, उससे खाने का काम कम करवाती थी, और आराम का पूरा समय देती थी।
नित्या अभी तक भी ना उठी, इतनी देर तक बहूओं का सोना अच्छा नहीं है, अम्मा सुबह जागते ही बोलती है।
अम्मा, वो गर्भ से है, रात भर सो नहीं पाती है और सुबह ही आंख लगती है, सोने दो क्या काम है? मुझे मेरी बहू से कोई शिक़ायत नहीं है, अभी इसकी जगह रश्मि होती तब भी तो आप आराम करने देती, बहू है तो क्या हुआ? इंसान हैं, दर्द उसे भी होता है, सुजाता जी ने बहू का पक्ष लिया।
सुजाता बहू, तू हर वक्त मुझे नीचा दिखाने के लिए ही ऐसी बातें करती है, तू हर समय अपनी बहू का पक्ष लेती है।
मुझे पता है तू ऐसा जानबूझकर करती है ताकि मुझे तकलीफ़ हो, गुस्सा आयें। बहू को इतना सिर पर चढ़ाकर रखेगी तो फिर वो तेरे हाथों से निकल जायेगी, बाद में मेरे पास रोने मत आना, और सुन! तूने बहू का चेकअप तो करवा लिया, थोड़े पैसे डॉक्टर को खिला देना, कहीं ये घर में पहली ही लड़की पैदा ना कर ले।
अम्मा, इस जमाने में ये पाप नहीं होता है जो आपने अपने जमाने में किया था, मेरे तीन गर्भ आपने गिरायें थे, आज मेरी तीन बेटियां और होती पर पोते के लालच में आपने मेरा शरीर ही खराब कर दिया और पाप का मुझे भी भागीदार बना दिया, पर मै अपनी बहू के साथ ऐसा नहीं होने दूंगी, पोता हो या पोती, मेरे लिए तो दोनों ही बराबर होंगे क्योंकि वो मेरी संतान की संतान होंगे।
तेरी तो बुद्धि फिर गई है, हर स्त्री को पोते की चाहत होती है, मैंने भी चाहत की तो कोई बुरा काम नहीं किया,और नित्या के गर्भ में तो जुड़वां बच्चे हैं, कहीं दोनों ही लड़कियां ना हो जायें और अम्मा अपने कमरे में चली गई।
सुजाता देर तक रोती रही, तभी देखा नित्या कमरे से बाहर आ गई थी, शायद उसने सब सुन लिया था, मम्मी जी अपने आंसू पौंछिए जो खुशी मिली नहीं उसके लिए रोने से क्या फायदा, पर आपके साथ बहुत बुरा हुआ, एक मां के लिए इससे बड़ा दर्द और क्या हो सकता है कि उसकी अजन्मी सन्तान को उसकी आंखों के सामने ही मौत की नींद सुला दिया जाएं।
नित्या ने सुजाता जी को ढांढ़स बंधाया, तभी फोन की घंटी बजती है, नित्या को डिलेवरी के लिए लेने के लिए उसका भाई कल शाम को आ रहा है, फोन आते ही नित्या खुश हो जाती है और मायके जाने की तैयारी करती है मायके पहुंचकर भी उसका मन नहीं लगता है वो सुबह-शाम अपनी सास से जरूर बात करती है।
एक दिन रात को उसे अचानक दर्द उठता है और उसे अस्तपताल ले जाया जाता है, और वो दो जुड़वां बेटियों को जन्म देती है।
ये खबर सुनते ही अम्मा खुश नहीं होती है पर सुजाता जी अपनी पोतियों से मिलने बेटे के साथ पहुंच जाती है, अस्तपताल में ढ़ोल नगाड़े बजवाकर सबको मिठाईयां और शगुन में पैसे बांटती है।
तभी नित्या की मम्मी कहती हैं, समधन जी आप पोती होने पर इतनी खुशी बांट रही है, ये देखकर बहुत अच्छा लगा।
हां, समधन जी बात ही खुशी की है, एक तो लक्ष्मी आपने मुझे दी है, आपकी बेटी बहुत गुणी और संस्कारी है, उसने मुझे मां समान प्यार दिया है, मेरे घर को स्वर्ग बना दिया है, नित्या मेरे जीवन में जब से आई है, मुझे अपनी बेटी की याद नहीं आती है। इसने दो पारियों को जन्म दिया है, एक साथ दो-दो खुशी मिली है, मुझे दादी बना दिया है, मै चाहती हूं मेरी पोतियां नित्या की जैसी ही संस्कारी और अच्छी बनें।
मुझे पूरा भऱोसा है कि नित्या अपनी बेटियों की परवरिश बहुत ही अच्छे से करेगी और मेरी दोनों पोतियां मेरे घर आंगन को महका देगी।
समधन जी इसमें तारीफ आपकी भी होनी चाहिए, मेरी बेटी एक अच्छी बहू आपकी वजह से ही बनी है, आप जितनी अच्छी सास पाकर मेरी बेटी की किस्मत खुल गई है, आपने एक मां से बढ़कर उसके लिए किया है, तभी तो वो दिन रात आपकी तारीफ करती है, आपने उसकी इच्छाओं, नींद का, उसकी जरूरतों का, उसके सपनों का बहुत अच्छे से ख्याल रखा है, आपने उसे जब बेटी मान लिया तो वो आपको मां कैसे नहीं मानती।
सास-बहू का रिश्ता इसी प्यार और विश्वास पर ही तो टिका है, दोनों एक-दूसरे को समझे और एक-दूसरे के लिए सोचे तो ये रिश्ता बहुत खूबसूरत बन जाता है, सास-बहू को तो हमेशा साथ रहना होता है, आप दोनों सास-बहू का प्यार देखकर मेरा मन बहुत खुश होता है, जिस घर में मेरी बेटी आपकी छांव में इतनी खुश हैं तो मेरी दोनों नातिन भी बहुत खुश रहेगी।
सुजाता जी सवा महीने बाद अपनी बहू और पोतियों को लेकर आ जाती है, भव्य स्वागत करती है, अम्मा टोक देती है,काश ! जुडवा पोते हो जाते।
तभी सुजाता जी कहती हैं, अम्मा आपके तो पोता हो ही गया है पर मै अपनी पोतियां पाकर भी बहुत खुश हूं।
नित्या का मन अपनी सास के प्रति और ज्यादा इज्जत और प्यार से भर जाता है।
पाठकों , सास-बहू का रिश्ता अनोखा रिश्ता होता है, दोनों में अगर झगड़े होते रहे तो घर नरक बन जाता है पर दोनों प्यार से रहे तो घर में खुशियां बिखरी रहती है।
सास अपनी बहू की हर कमी का बखान ना करें और बहू अपनी सास के हर दर्द को समझे तो ये रिश्ता बहुत खूबसूरत बन जाता है।
धन्यवाद
लेखिका
अर्चना खंडेलवाल