ये लोग यहाँ कब तक रहेंगे मनीषा अपने पति परेश से बोली। ये लोग कौन लोग। जिनके बारे में तुम बात रही हो वो कोई लोग नहीं हैं वरन मेरे मम्मी पापा हैं ।उनके लिए सम्मानित शब्दों का प्रयोग करो,और रही जाने की बात तो वे क्यों जायेगें।अपने बेटे-बहू के पास रहने आए हैं अब यही रहेंगे। मैं उन्हें उम्र के इस पड़ाव पर अकेला नहीं छोड सकता। उनके रहने से तुम्हें क्या परेशानी है।
तुम मेरी परेशानी क्या समझोगे तुम्हें तो अपने मम्मी-पापा की चिन्ता है, मेरी थोडे ही है ना।
मनीषा मेरे मम्मी-पापा क्या तुम्हारे कुछ नहीं लगते। और घर में उनके रहते तुम्हें क्या परेशानी है, बताओ तो ।
मेरे लिए तो काम बढ़ गया है न दो आदमियों का नाश्ता बनाओ, खाना बनाओ ,चाय तो हर दो घंटे बाद चाहिये होती है। न मुझे अपने लिए समय मिलता है न में कहीं आ जा सकती हूं । इन्हीं की सेवा में लगी रहूँ। मेरी अपनी तो कोई जिन्दगी नहीं है।
मनीषा की बात सुनकर परेश अवाक रह गया बोला, मनीषा आज तुमने मुझे बहुत निरुत्साहित किया है। मुझे तुमसे ऐसी उम्मीद नहीं थी कि तुम मम्मी-पापा को बोझ समझती हो। उन्हें अवान्छित मेहमान समझती हो। आज जिस जगह पर तुम मुझे देख रही हो यह उन्हीं की मेहनत एवं त्याग का परिणाम है। यदि उन्होंने तब अपना सुख देखा होता और मुझे अच्छी शिक्षा नहीं दिलाई होती तो क्या आज मैं तुम्हें इतने ऐशो आराम से रख पाता। किस चीज की कमी है तुम्हें। इतना बड़ा घर है सब सुख सुविधा के साधन हैं, फिर उनके रहने,खाने से तुम्हें परेशानी क्यों हो रही है। यदि तुम्हें ज्यादा ही परेशानी हो तो कुक लगा लो खाना बनाने के लिए किन्तु उन्हें तो मैं यहीं रखूंगा अपने साथ।
मनीषा निरुत्तर हो गई। उस समय तो यह कुछ न बोली किन्तु उसका शैतानी दिमाग बराबर चल रहा था, कि इन बूढों को यहां से कैसे भगाऊं।
वह कभी भी अपने सास ससुर से ढंग से नहीं बोलती, खाना भी ऐसे देती मानो उन पर एहसान कर रही हो। कोई भी बात पूछने पर उल्टा जबाब देती । जब तक परेश घर में रहता तब तक तो सामान्य व्यवहार करती किन्तु उसके ऑफिस जाते ही वह उन्हें जली कटी सुनाती ।खाना जानबूझ कर देर से देती ताकि वे परेशान हों।
एक दिन सास सरिता जी ने कहा मनीषा बेटा खाना समय पर दे दिया करो तुम्हारे ससुर जी को शुगर की बीमारी है वे ज्यादा देर भूखे नहीं रह सकते और समय पर उन्हें दवा लेनी होती है।
वह उन पर एकदम बिफर पड़ी चिल्लाते हुए बोली मैं आप लोगों से परेशान हो गई हूं ।जब देखो तब भूख लगी रहती है नाश्ता दो, खाना दो, बीच बीच में चाय दो समझ में नहीं आता बैठे- बैठे बुढ़ापे में इतनी भूख कैसे लगती है। कैसे हजम कर लेते हैं आप इतना खाना। मैंने तो सुना था कि बुढ़ापे में खुराक कम हो जाती है यहां तो सारा दिन खाने को चाहिए।
सरिता जी सकते में आ गईं यह सब सुनकर। वे चुप रहीं सोचते अब क्या करूं। पति के खाने का समय कब से हो गया दो बज रहे हैं ।कब दवा खायेंगे। तबियत वैसे ही ठीक नहीं है। फिर
वे बोलीं अच्छा तो तुम आराम करो मैं ही ले लेती हूँ खाना कह कर जैसे ही वे रसोई की तरफ बढ़ीं मनीषा दहाडते हुए बोली खबरदार मम्मी जी जो आपने रसोई में कदम रखा। यह मेरा घर है। हर जगह आपको जाने की अनुमति नहीं है। चुपचाप कमरे में जाओ मैं लाती हूं खाना।
इतना अपमान होने पर उनकी आँखो में आँसू आ गए किन्तु अपने को संयत कर कमरे में गईं भूख से व्याकुल राजीव जी बोले ले आईं खाना।
मनीषा ला रही है।
आधा घंटा हो गया खाना नहीं आया। सरिता जी डर रहीं थीं कि कहीं राजीवजी की शुगर डाउन न हो जाए। अपने अपमान को भूल कर वे बाहर आईं तो देखा मनीषा आराम से बैठी नेल पालीश लगा रही थी। उन्हें देखते ही बोली – फिर आ गईं आप। थोडी देर भी सब्र नहीं होता।
मनीषा तुम्हारे ससुर की शुगर डाउन हो रही हैं ज्यादा तबियत खराब हो जायेगी यदि उन्हें तुरंत खाने को नहीं दिया। बडबडाती हुई उठी और बोली ला रही हूं वे
वापस कमरे में गई। राजीव जी उन्हें खाली हाथ देख बोले क्या कर रही हो खाना क्यों नहीं लाती। वे बेबसी से दरवाजे की ओर देखने लगती हैं।
तभी मनीषा दो थाली लिए आती है पर ये क्या, थाली में केवल एक सब्जी और दो रोटी देख राजीव जी बोले ये कैसा खाना है न दूसरी सब्जी न दही।
खाना हो तो खाले बुड्ढे नहीं तो ये भी बापस ले जाऊंगी । वे मनीषा का मुंह देखते रह गए।
जैसे तैसे खाना गले के नीचे उतारा और बोले सुनो कल सुबह ही तैयारी कर लो चलने की अब यहां नहीं रूकना है। शाम को परेश को आने दो मैं उससे टिकट
कराने की बोलता हूं।
सरिता जी बोलीं शान्त हो जाओ। ऐसा करने से इन दोनों के बीच टकराव होगा। में नहीं चाहती अपने कारण इन दोनों के बीच मनमुटाव हो अतः शान्ति से परेश से बात करते हैं। अभी आप दवा लेकर आराम करो। मैं परेश से बात कर लूंगी। परेश रात लेट आया तो वह जैसे ही मम्मी-पापा पास जाने लगा मनीषा ने रोक दिया वो खाना खा कर सो गये हैं। सुबह बात कर लेना अभी तुम भी खाना खाओ। असल में उसने शाम को भी खाना ढंग से नहीं दिया था सो उसे डर था कि कहीं वे परेश को बता न दें।
सुबह परेश को किसी मीटिंग के चक्कर में जल्दी निकलना पड़ा सो बह सुबह भी नहीं मिल पाया।
शाम को जब वह आया तो सीधा उनसे मिलने पहुँचा उनकी मनोदशा उसे कुछ ठीक नहीं लगी। पूछने पर बोले बेटा मन
नहीं लग रहा तुम हमारा टिकट करा दो हम आज ही निकल जायेंगे।
कैसी बातें कर रहे हैं आप, अभी आपका चेक अप होना बाकी है फिर दवाइयां बदली जायेगीं, पूरा ठीक हुए बिना में आपको कहीं नहीं जाने दूंगा। अभी मैं
थोडा विजी हूं फिर आप भी स्वस्थ नहीं हैं
थोडे दिनों बाद आपको घूमाने-फिराने ले जाऊंगा तब आपको अच्छा लगेगा। तभी पापा कुछ कहने जा रहे थे कि सरिताजी ने इशारा कर उन्हें रोक दिया।
तभी कम्पनी ने पन्द्रह दिन के लिए उसे US जाने को बोला और उसे जाना पड़ा। अब तो मनीषा के मन की मुराद पूरी हो गई वह जितना परेशान कर सकती थी उसने मम्मी पापा को किया। परेश के जाने के बाद वह पूर्णरुप से निरंकुश हो गई थी। सारा दिन सहेलियों के साथ घूमना, शापिंग करना, खाना नहीं बनाना बाहर से कुछ भी लाकर खिला देती। कभी खाना बनाती तो उन्हें पूरा खाना नहीं देती।
जब परेश लौटकर आया तो उसने देखा
मम्मी-पापा काफी परेशान लग रहे हैं, कमजोर से हो गए। उसे समझ नही आ रहा था कि घर में किसी चीज की कमी नहीं है फिर वे ऐसे कैसे हो रहे हैं। पूछने पर वे टाल गए और बोले बेटा अब यहाँ मन नहीं लग रहा सो तुम हमें बापस भेज दो। ठीक है सोचता हूं। कह वह ऑफिस के लिए निकल गया।
तभी दो दो वासी रोटीयां और थोडा सूखी सब्जी थालियों में रख मम्मी-पापा को खाना देने जा रही थी मनीषा ,कि डोरबेल बजी। थालियां ऐसे ही डाइनिंग टेबल पर रख वह दरवाजा खोलने गई। सामने परेश को खडा देख उसके चेहरे का रंग उड गया। थोडी हडबडाहट में बोली आप-आप कैसे आ गए। उसकी हड़बड़ाहट देख वह समझ गया जरूर कुछ दाल में काला है। उसे एक तरफ करते वह अन्दर आया तो टेबल पर थालियां देख कर पूछा ये क्या है किसको दे रही हो।
वो तो मैं ऐसे ही रख रही थी जल्दबाजी मे कोई उत्तर नहीं सूझा।
थालियों में वासी रोटी और सब्जी सजा कर रख रही थीं ।सच बोलो ये किसे दे रहीं थीं ,कहते हुए परेश सीधा मम्मी-पापा के कमरे में गया । देख कर हैरान हो गया पापा भूख से परेशान होकर बैठे थे , मम्मी भी पास बैठी परेशान थीं, दोनों की आंखें आँसूओं से भरी थी।
आप लोगो ने अभी तक खाना नहीं खाया परेश की आवाज सुन दोनों चौंक गए। वे कुछ नहीं बोले। मम्मी-पापा क्या बात है आप लोग बोल क्यों नहीं रहे। एक बजने को है आप भूखे बैठे हैं। मनीषा यहाँ आओ इन्हें अभी तक खाना क्यों नहीं दिया। बस में ला ही रही थी कि आप आ गये। अच्छा अब मेरी समझ में आ गया कि वो दो थालियां तुमने इनके लिए लगाईं थीं। परेश मनीषा का हाथ पकड बाहर आया और डाइनिंग टेबल पर रखीं थालियां दिखाते बोला ये खाना तुम मम्मी-पापा को देने जा रही थीं।बोलो ये तुमने उनके लिए ही लगाईं थीं न । मनीषा चुप रही और उसकी चुप्पी ने सच्चाई उगल दी।
ये रूखी रोटियां सूखी इतनी सी सब्जी।घर में खाना तो बहुत बना है तो इनको क्यों नहीं दिया। न रसेदार सब्जी न दही। मेरे पापा तो दही के बिना निवाला नहीं खाते। क्यों किया ऐसा और कब से कर रही हो। ये रूखी थाली कब से तुम उन्हें दे रही हो। अब समझ आया कि वे बार-बार जाने को क्यों कह रहे थे।पहले तो अभी देर हो रही है तुम खाना ढंग से लगा कर लाओ तुमसे तो में बाद में बात करता हूं ।
मनीषा खाना लगाकर लाती है और वह लेकर मम्मी-पापा के पास जाता है। खाना देख कर वे उस पर टूट पड़े। परेश उन्हें खाता देख दुःखी हो गया कितने भूखे थे। कब से खाने का इन्तजार कर रहे होंगे। उनके खाने के बाद वह बोला- मम्मी ये सब कबसे चल रहा था और आप लोगों ने मुझे बताना भी जरूरी नहीं समझा ,मुझे इतना पराया कर दिया आपने ।
शांत हो जा बेटा तुझे पराया कैसे कर सकते हैं तुम में तो हमारे प्राण बसते हैं। बस बेटा तेरे सुख की खातिर ही हम चुप थे।
इसमें मेरा, कौन सा सुख निहित था मम्मी। पापा आप कैसे ऐसा खाना खाते रहे।
बेटा अपनी औलाद के भविष्य के खातिर हमने चुप रहना ही उचित समझा। ये आप दोनों क्या कह रहे हैं, मेरे भविष्य का आपके खाने से, चुप रहने से क्या सम्बन्ध है। सच-सच बताओ मम्मी क्या बात है।
तब मम्मी बोली बेटा मनीषा ने हमें धमकाया था कि यदि हमने तुम्हें कुछ भी बताया तो वह कुछ भी कर लेगी तो हम सबको जेल हो जाएगी। या वह दहेज उत्पीडन केस में हम सबको को जेल भिजवा देगी। हमारा तो बुढ़ापा है जो होता, बेटा तुम्हारा तो पूरा जीवन बर्बाद
हो जाता। हम यहाँ तुम्हारे पास रहने आये थे न कि तुम्हारे बीच झगडे का कारण बनने और तुम्हारी गृहस्थी उजाडने । माफ करना बेटा हम बहुत डर गए थे। ऐसा माहौल अपने परिवार में हमने कभी नहीं देखा । इसीलिए हम बार-बार तुमसे जाने की बात कर रहे थे ,किन्तु तुम भेजना ही नहीं चाहते थे और मनीषा हमें रखना नहीं चाहती थी इसीलिए वो हमें हर तरह से परेशान कर रही थी ताकि हम वापस लौट जाएं।
और वह पापा आपको चेकअप के लिए ले गई थी ।
नहीं बेटा उसने साफ मना कर दिया कि मेरे पास इन सब फलतू बातों के लिए समय नहीं है। और बोला बुड्ढे कितना जीयेगा। क्या करेगा जयादा जीकर मरता क्यों नहीं जो पीछा तो छुटे।
सुनकर परेश का खून खौल उठा वह जाकर मनीषा से बोला ये मैं क्या सुन रहा हूं मनीषा । मैंने तुम पर कितना भरोसा किया की तुम मम्मी पापा को अच्छे से रख रही हो। में बेफ्रिक था कि तुम कितना ख्याल रखती हो । क्योंकि जब भी पूछता तुम कहती खाना खा लिया, सो गए । मुझे क्या पता था कि तुम्हारा शैतानी दिमाग क्या-क्या चाल चल रहा है। तुमने मेरा भरोसा तोडा है, मैं अब तुम्हारे साथ नहीं रह सकता।
नहींं परेश तुम ऐसा कुछ नही करोगे। में अपनी गल्ती की माफी मांगती हूं।
माफी , माफी तो गल्ती की मिलती है तुमने तो गुनाह किया है और गुनाह की केवल सजा मिलती जो तुम्हें मिल कर रहेगी ।
परेश प्लीज ऐसा मत कहो, मुझसे गल्ती हो गई ।
गल्ती हो गई कितना छोटा शब्द है. मैंने उन्हें यहां आराम से रहने के लिए बुलाया था। पापा की तबीयत खराब थी सो उनका इलाज कराना चाहता था किन्तु तुमने उन्हें भरपेट खाना भी नहीं दिया भूखों मारा ,उन्हें धमकाया ,प्रताडीत किया। वे मेरे भविष्य के खातिर सब सहन करते है कारण वे मेरे माता-पिता है, कभी सपने में भी हमारा बुरा नहीं सोच सकते और तुमने क्या किया ।
परेश ग़ुस्सा थूक दो मैं माफी माँगती है तुमसे ।
मुझसे माफी क्यों, गुनाहगार तो तुम मम्मी-पापा की हो जिन्हें इस उम्र में इतना दुख दिया ,अपमानित किया, माफी जाकर उनसे मांगों। किन्तु अपने किये की सजा भुगतने को भी तैयार रहो ।मैं तुम्हें घर से जाने की तो नही कहूंगा क्योंकि तुम्हारे माता-पिता को दुख होगा मैं उन्हें भी अपना माता-पिता ही समझता हूं सो तुम्हारी करनी की सजा उन्हें नहीं दूंगा। वेशक तुम इस घर में रहोगी किन्तु अब हामारा आपस में कोई सम्बन्ध नहीं रहेगा हम एक ही घर में अजनबीयों की तरह रहेगें।
नहीं परेश तुम ऐसा नहीं कर सकते।
कर सकता हूँ तुमने मुझसे कहा था कि में मम्मी-पापा के साथ नहीं रह सकती तो सुनो वे अब स्थायी तौर पर यहीं रहेगें तुम्हें रहना हे तो रहो वरना जा सकती हो।
तभी उसके मम्मी-पापा भी बाहर आ जाते हैं और परेश की बात सुन लेते हैं।
वे परेश को समझाते है कि बेटा बहू से ऐसे नहीं कहते गल्ती इंसान से हो जाती है उसे माफ कर दे।
पापा दोषी तो वह आपलोगों की है माफी तो आपसे मांगेगी।
मनीषा मम्मी-पापा से अपने किये की माफी माँगती है।
वे कहते हैं जो हुआ बहू उसे भूल जाओ। पर जीवन में याद रखना कि बुढापा सबको आता है आज जो तुम कर्म करोगी वही आगे काटोगी। आज जिस अवस्था में हम हैं कल, इसी अवस्था में तुम भी आओगी सोचकर देखो यदि तुम्हारे साथ इस तरह का दुर्व्यवहार होगा तो तुम्हे कैसा लगेगा। जिस पति पर तुम इतना हक जमाकर हमें दूर कर रही हो उसे यहां तक पहुंचाने में हमने अपने खुख-दुख की पर्वा किये बिना अपना जीवन खपा दिया।
हर माता-पिता चाहते है उनका बेटा उनसे आगे निकले। खुशी-खुशी अपनी जरूरतों को नजरअन्दाज कर बेटे के सुख के लिए सोचा तो क्या आज हमारा इतना भी बेटे पर हक नहीं है कि कुछ दिन उसके साथ हंसी-खुशी गुजार सकें। हमने तुम्हारे साथ क्या बुरा किया जो तुमने सोच लिया कि हम यहाँ नहीं रह सकते ।
मनीषा तुम्हारे भी भाई है कल को तुम्हारी भाभी तुम्हारे मम्मी पापा के साथ यही कहानी दुहराये तो तुम्हें कैसा लगेगा। शान्त मन से सोचो बेटा ,जो माँ-बाप बच्चों को सहारा देकर इस योग्य बनाते हैं कि वह सुखमय जीवन जी सके तो उससे बुढापे में सहारे की उम्मीद रखना गलत है क्या । बेटा पारिवारीक मूल्यों को समझो और परिवार में मिल जुलकर रहने की भावना से हंसी खुशी रहो देखो जीवन कितना आनंदमय हो जाएगा।
बड़ों के रहने से उनकी छत्रछाया से परिवार का कभी अहित नहीं होता वल्कि उनके आशीर्वाद से परिवार फूलता फलता है । नई पीढ़ी में संस्कार अपने आप ही समाहित हो जाते हैं , क्योंकि जो वे अपने मम्मी-पापा को करते बचपन से देखते हैं वहीं संस्कार कहीं गहरे उनके मन में पैठ जाते हैं, उन्हें सीखाने की जरूरत नहीं पड़ती। बेटा ऐसा गलत व्यवहार करके तुमने अपने माता-पिता की परवरिश को भी झूठा साबित कर उसे भी शर्मिन्दा कर दिया।बस इतना ही कहना है आगे तो खुद समझदार हो।
मनीषा सिर झुकाए खड़ी अपने किये पर पछताते हुए आंसू बहा रही थी और सोच रही थी कि आगे से ऐसी ग़लती कभी नहीं करूंगी ।
शिव कुमारी शुक्ला
स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित
चोर चोरी से बाज आ सकता है मगर हेराफेरी करने से नहीं। इसलिए मनीषा जैसी औरत के सुधर जाने की उम्मीद करना खुद को धोखा देने के समान हैं।
चोर चोरी से बाज आ सकता है मगर हेराफेरी करने से नहीं। इसलिए मनीषा जैसी औरत के सुधर जाने की उम्मीद करना खुद को धोखा देने के समान हैं।