“रात काफी हो गई है अतुल!. जाओ सो जाओ।”
धीरे से बिस्तर पर करवट लेते हुए उसने अभी-अभी फिर से अपने कमरे के भीतर आते बेटे की ओर देखा…
“नहीं!.नींद नहीं आ रही है।”
अतुल ने पिता की बात को नजरअंदाज कर दिया।
आज अचानक फिर से तबीयत नासाज हो जाने की वजह से बिस्तर पर पड़ा वह अपने बेटे के इस रवैया से तनिक खिन्न हुआ..
“बड़ी अजीब बीमारी होती है ये!”
“कैसी बीमारी!” पिता की बात सुन अतुल हैरान हुआ।
“अचानक नींद गायब हो जाने की बीमारी!”
“नहीं! ऐसी कोई बात नहीं है।”
“फिर क्या बात है?.बताओ!”
“कुछ नहीं!.बस ऐसे ही।”….
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वह अपनी कमजोर आंखों से बेटे के हाव-भाव को समझने की कोशिश करता रहा लेकिन वहीं उस कमरे में उसके बिस्तर के बगल में रखी कुर्सी पर अतुल बैठ गया..
“याद है पापा!.जब मैं छोटा था।”
“हाँ!.सब याद है।” उसके चेहरे के भाव जस के तस रहे।
“माँ कहती थी कि,.मैं बचपन में बहुत कमजोर था!”
अपनी दिवंगत माँ को याद कर अतुल के चेहरे पर मुस्कान छाई।
“असल में पाँच-छ: की उम्र तक तुम बार-बार बीमार हो जाते थे!.और वह बेचारी अक्सर रात भर तुम्हें गोद में लिए बैठी रहती थी।”
“तब आप क्या करते थे पापा?”
“मैं!.मैं तो”..
कहते-कहते वह अचानक रुक गया लेकिन अतुल ने पिता का हाथ अपने हाथों में ले लिया..
“बताइए ना पापा?”
“मुझे याद नहीं!”
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उसने टालना चाहा लेकिन बेटे ने बिमार पिता की हथेली पर अपने हथेलियों की गर्माहट महसूस करवाने की भरसक कोशिश की..
“मुझे तो याद है!”
बेटे के चेहरे को निहारती उसकी धुंधली निगाहें वहीं टिक गई..
“क्या?”
“जब भी माँ की गोद में मेरी नींद खुलती थी आप यहीं इसी कमरे में मुझे चहल-कदमी करते दिख जाते थे,.और कई बार तो मेरी नींद आपकी गोद में ही खुलती थी पापा!”
स्वयं के प्रति बेटे की भावनाओं से रूबरू हो वह नि:शब्द हुआ।
पुष्पा कुमारी “पुष्प”
पुणे (महाराष्ट्र)